Teri Kurbat me - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

तेरी कुर्बत में - (भाग-3)

असेंबली में संचिता का अजीब सा बिहेव देखकर , ऋषि हैरत में पड़ गया था । वह अपनी क्लास में आया , और जब तक टीचर नही आए , तब तक यही सोचता रहा , कि "आखिर संचिता को हुआ क्या था?? मुस्कुराना तो ठीक था...., लेकिन फिर उसके बाद उसका अजीब तरह से बिहेव करना ....., कुछ समझ नही आया । क्या हो गया है इस लड़की को???" टीचर क्लास में आ गए , तो ऋषि ने अपना सिर झटक दिया , ये सोचकर कि "कैसा भी बिहेव करे वो , मुझे उससे क्या..!!!!"

यहां क्लास में आने के बाद से संचिता खोई ही थी , ऋषि की मुस्कान में । आज किसी भी क्लास में उसका ध्यान नहीं था , वो खुद में ही खोई , बस मुस्कुराए जा रही थी । उसका क्लास में ध्यान न होने के कारण , जाने कितने बार उसके क्लास के टीचर्स उसे आज टोक चुके थे । लेकिन थोड़ी सी भी डांट खाने पर , सहम जाने वाली लड़की को आज इतनी सारी डांट से भी कोई फर्क नही पड़ रहा था ।

क्लास खत्म हुई , और संचिता वैसे ही खोई सी मुस्कुराते हुए ऑटो में बैठ गई , उसे इसका तक भान नहीं हुआ , कि उसे कोई इस तरह मुस्कुराते देख रहा है । ये ऋषि था , जो अब भी उसे देख अचंभित था , जबकि संचिता ने ऑटो वाले को घर चलने के लिए कहा । उसके जाने के बाद , ऋषि ने अपने कदम पार्किंग की तरफ बढ़ाए , और निकल गया अपने घर की तरफ । लेकिन दिमाग में अब भी संचिता का आज का अजीब सा व्यवहार ही चल रहा था , जिसे वह सुबह से देख रहा था ।

वह घर पहुंचा , अपनी बाइक पार्किंग में रखी । इससे पहले कि वह घर के मेन डोर के अंदर कदम रखता , उसका छोटा भाई अनुज आ गया , जिसके हाथ में कुछ था , शायद कोई पेपर । जब ऋषि ने ध्यान से देखा , तो उसके भाई अनुज के हाथ में उसका सपना था , हां...., उसके भविष्य के सपने की ओर बढ़ने वाले पहले कदम के कुछ कागजात थे , जिसे वह दो दिन बाद सब्मिट करने जाने वाला था । घर वालों में किसी को नही बताया था , क्योंकि शायद उसे फिर ये शहर छोड़कर जाने की इजाजत नहीं मिलती । अनुज उसके सामने खड़ा , उसे चिढ़ाते हुए अपने हाथ में इन्वेलप के साथ एक खुला हुआ पेपर लिए हवा में लहरा रहा था । ऋषि ने जब समझा , तो तुरंत उसकी तरफ लपका । लेकिन अनुज तुरंत भाग गया । अब आलम ये था , कि अनुज गार्डन में आगे - आगे दौड़ रहा था और ऋषि उसके पीछे - पीछे उसे चिल्लाते हुए या फिर ये कहूं बकते हुए दौड़ रहा था , साथ में उससे वो कागज लेने की कोशिश में था ।

ऋषि - अनुज...., अनुज...., दे न । अगर तेरी वजह से उस पेपर को कुछ भी हुआ , तो फिर आज तेरी खैर नहीं । बहुत मार खाएगा तू फिर । ( अनुज तो अनुज था , नहीं माना ) अनुज...., दे....। क्यों अपनी शामत बुला रहा है मेरे हाथों । मां को बता दूंगा , दे ....। अनुज...., तू एक बार हाथ आ गया न , तो तेरी खैर नहीं आज । अगर सही सलामत रहना चाहता है , तो दे ये पेपर ।

अनुज मां की धमकी पर भी नही माना , बस हंसता जा रहा था और भागता जा रहा है ।

अनुज - लो...., लो....। मां को क्यों बताना , आप खुद ले लो । हम सबसे आपने ये बात छुपाई न, उसकी अब यही सजा है । थोड़ी मेहनत तो आपको भी अब करनी पड़ेगी, आखिर ये पेपर मेरे हाथ जो लगा है ।

ऋषि - अनुज दे, वरना आज घर के बड़ो से तेरी शिकायत लगाऊंगा ।

अनुज - लगा दीजिए...., आपने मुझे तक कुछ नहीं बताया , मैं तो आपको इसी तरह परेशान करूंगा , और हां...., बुला लीजिए जिसे बुलाना हो, मैं नहीं दूंगा ।

ऋषि - तू सच में नही देगा..????

अनुज ( गार्डन में रखे सोफे के पीछे खड़े होकर बोला ) - नहीं...., बिल्कुल भी नही ।

ऋषि उसकी तरफ बढ़ने लगा और प्यार के साथ - साथ शांति से बोलने लगा ।

ऋषि - दे न अनुज..., फट जायेगा यार वो पेपर । मुझे संबिट करना है परसों । मत कर भाई , मैं थक गया हूं , दे दे प्लीज ।

अनुज ( अपने कदम पीछे लेते हुए बोला ) - अरे...., अरे..., अरे...., नहीं ...., नहीं..., आप मेरे पास मत आओ । और अपनी इन चिकनी चुपड़ी बातों में मुझे बलहाओ मत । मैं नहीं दूंगा , आपने मुझसे ...., अपने छोटे और सबसे प्यारे भाई से ये बात छुपाई । नहीं दूंगा मैं बस ।

ऋषि ( अनुज के पीछे देख बोला ) - अरे अभिनव भैया , आप...!!!???

अनुज पलट गया । क्योंकि वह और बाकी के सारे बच्चे , अभिनव , जो कि सबसे बड़ा था , उससे बहुत डरते थे । ये उसके बड़े पापा का बेटा था और अनुज ऋषि का सगा भाई था । अनुज के पलटते ही ऋषि ने तुरंत उसके हाथ से अपना पेपर छुड़ा लिया ।

अनुज ( पीछे पलटकर ) - कहां...??? कहां..., हैं अभी भैया ..???? ( फिर ऋषि के उसके हाथ से पेपर छुड़ाते ही वह तुरंत ऋषि की तरफ पलटा और कहा ) ये..., ये क्या किया आपने..???? झूठ कहा मुझसे...???

ऋषि ( हांफते हुए पेपर को वापस इन्वोलॉप में रखते हुए बोला ) - तेरे जैसे इंसान के लिए यही तरीका काम आता है ।

अनुज ( मुंह बनाकर बोला ) - जाओ...., मैं आपसे बात नही करूंगा ।

ऋषि ( कंधे उचकाकर गार्डन से घर के मेन डोर की तरफ जाते हुए बोला ) - एस यू विश । मैं तो चला ।

अनुज ( उसे उदास नजरों से देखकर ) - भाई....., आप मुझे मनाओगे नहीं..???

ऋषि ( रूककर उसकी तरफ मुड़कर बोला ) - तेरे लक्षण हैं , तुझे मनाने वाले..??? चल निकल....। अभी थका हूं , शाम को तेरी खबर लेता हूं ।

ऋषि निकल गया और अनुज तुरंत उसके पीछे भागा और कहा ।

अनुज - नहीं भाई...., पीटिएगा मत मुझे । मैं पक्का किसी को कुछ नहीं कहूंगा और न ही ऐसी हरकत दोबारा करूंगा ।

अनुज उसके साथ चलते हुए उसे मनाने के लिए बोला , जो कि खुद ऋषि को कुछ पल पहले मनाने बोल रहा था । और वो इस लिए , क्योंकि अभिनव से ज्यादा खतरनाक पिटाई ऋषि करता था अपने भाई बहनों की , जबकि अभिनव की आवाज़ ही इतनी ज्यादा हाई लेवल की थी , कि सब खुद ही डर जाते थे । ऋषि उसे इग्नोर कर अपने घर के अंदर आ गया , जबकि अनुज बेचारा शाम को उसकी होने वाली पिटाई से जो उसकी हालत होगी , उसे इमेजिन कर मन ही मन मिमिया रहा था ।

ऋषि का घर बहुत बड़ा था । बड़ा सा हॉल , उसमें रखे बड़े बड़े सोफे । जितने सदस्य उससे दुगुने कमरे । छोटी से लेकर बड़ी चीज़ , सबकी सुविधा थी उसके घर में । घर न्यू लुक में बना हुआ था, पूरी तरह से वेस्टर्न लुक में । घर के नए लोग भी लगभग नए विचारों के ही थे , लेकिन पुरानी पीढ़ी से उनके विचार हमेशा मेल नहीं खाते थे । पर चुकीं बड़े लोगों की बातें हमेशा मानने का रिवाज था , इस लिए कोई विरोध नहीं करता था । इसी के चलते ऋषि ने घर वालों को नहीं बताया था , अपने कैरियर से जुड़े सपनों को लेकर । ऋषि की बड़ी बहन ने , जाने कितने जतन किए थे खुद का बिजनेस ओपन करने में । उसे अपनी कंपनी ओपन करने से लेकर , घर से बाहर रहने तक , न जाने कितना कुछ बर्दास्त करना पड़ा था , जिसमें घर वालों की इजाजत न मिलने पर ताने और न जाने कितनी धमकियां भी शामिल थी । पर वो अपने फैसले पर अडिग रही , और उसने अपना मुकाम हासिल कर ही लिया । उसने नोएडा की जगह , दिल्ली में अपनी कंपनी स्थापित की । घर से कंपनी दूर होने के कारण , वह वहीं पर फ्लैट लेकर रहने लगी । उसका बड़ा भाई , अभिनव कलेक्टर की पोस्ट पर था , जिसे सिर्फ ट्रेनिंग के लिए ही बाहर भेजा गया था । उसके बाद जब से उसकी पोस्टिंग नोएडा में हुई , फिर कभी उसका ट्रांसफर नोएडा से बाहर होने ही नहीं दिया गया । उसके बाद तीसरा इंसान ऋषि था , जो अपने सपने को पाने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रहा था , घर वालों से छुप कर । लेकिन अनुज ने आज उसका पेपर देख लिया था , जिसका उसे डर था , कि कहीं अनुज कभी किसी से कुछ कह न दे । फिर यहां से जाने के बाद तो वह सब संभाल लेगा । अनुज जो कि उसका सगा भाई था , वह नाइंथ क्लास में पढ़ता था , ऋषि के ही कॉलेज में । जहां ऋषि एकदम शांत , ज्यादा किसी से न बोलने वाला , हमेशा अपने काम से काम रखने वाला , दोस्ती और लड़कियों से दूर रहने वाला इंसान था , वहीं अनुज उससे पूरा उलट था। वह एकदम शैतान , मजाकिया , फ्लर्टी , दोस्ती में अव्वल , और सबसे ज्यादा बोलने वाला इंसान था । वह सिर्फ घर के बड़ों के और अभिनव के सामने ही चुप रहता था , बाकी समय तो उससे ज्यादा बोलने वाला पैदा ही नहीं हुआ था उनके घर में । खैर ....., ऋषि अपने रूम में आया , कपड़े चेंज किए और सबसे पहले उस पेपर को पढ़ा और उसके अकॉर्डिंग अपने सर्फिसेट्स जमाने लगा ...।

आखिर क्या सपना है ऋषि का ...??? और अगर उसके लिए उसे घर से बाहर जाना पड़ा , तो क्या होगा , उसके घर वाले मानेंगे..??? और संचिता , जो कि आजकल सिर्फ ऋषि के बारे में सोचती है , उसका फिर क्या होगा ...??

क्रमशः

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