Teri Kurbat me - 6 books and stories free download online pdf in Hindi

तेरी कुर्बत में - (भाग-6)




संचिता ने होठों पर मुस्कुराहट रख कर , अपने आसूं ऋषि से छुप कर साफ कर लिए । लेकिन ये आसूं नासमझ थे , जो कि बहे ही जा रहे थे । ऋषि ने उसे दोबारा खाने के लिए कहा , पर संचिता को देख चुप हो गया । संचिता भले ही ऋषि से अपनी आखें छुपा रही थी , लेकिन ऋषि ने उसे देख लिया । ऋषि को काफी अजीब लगा , कि संचिता आखिर रो क्यों रही है..? जब उससे रहा नही गया , तो वह पूंछ बैठा ।

ऋषि - क्या हुआ संचिता..!!?? तुम रो क्यों रही हो...???

संचिता ने नही में सिर हिलाया और दोबारा अपने बहते आसुओं को साफ करने लगी । ऋषि ने दोबारा पूछा , तो बस इतना ही कहा उसने ।

संचिता - जितना लाड़ प्यार मां बाप का मिल रहा है , उसकी इज्जत करो और उसे एक्सेप्ट करो ऋषि । क्योंकि हर किसी के नसीब में ये सुख नहीं होता ।

ऋषि ( नॉर्मली बोला ) - हां...., तुम्हारा कहना तो सही है । जानता हूं मैं , कि हर किसी के नसीब में ये सुख नहीं होता , लेकिन फिरहाल हमारे नसीब में तो हैं , और हम उसके खूब मजे लेते हैं और इज्जत भी करते हैं संचिता ।

लास्ट लाइन उसने संचिता की तरफ देखकर कही । संचिता कुछ नही बोली , बस फीका सा मुस्कुरा दी । ऋषि को बड़ा अजीब लगा । तभी उसके दिमाग में संचिता की कही बात कौंधी और उसने कहा ।

ऋषि - लेकिन तुम ऐसा क्यों कह रही हो , कि "हर किसी के नसीब में ये सुख नहीं होता" ? तुम्हारे और मेरे नसीब में ये सुख तो है , फिर इस बात का यहां क्या मतलब संचिता...???

संचिता उसकी बात सुनकर रो पड़ी । आसुओं की धार तेज़ हो गई और हिचकियां भी बंधने लगी । ऋषि हैरान था , कि आखिर उसने ऐसा क्या बोल दिया , जो संचिता इस तरह फूट - फूट कर रोने लगी ।

ऋषि - मैंने कुछ गलत कह दिया क्या संचिता ...?? ( संचिता बस रोती रही, कुछ न बोली ) संचिता...., हुआ क्या है..??? तुम इस तरह क्यों रो रही हो..???? कुछ हुआ है क्या..????

संचिता का रोना और बढ़ गया , गोरा चेहरा उसका पूरा अब लाल हो चुका था । सांसें फूलने लगी थीं और हिचकियां तो बंद ही नहीं हो रही थी । लेकिन तब भी संचिता का रोना बंद न हुआ । ऋषि को तो कुछ समझ ही नही आ रहा था। उसने संचिता का हाथ कसकर पकड़ा , और उसके आसूं साफ करने लगा , तो संचिता ने उसके हाथों में अपनी मुट्ठी कस ली और फिर फूट - फूट कर रोने लगी । करीब पंद्रह मिनट तक संचिता ऐसे ही रोती रही और ऋषि पहली बार किसी लड़की को चुप कराने की कोशिश कर रहा था , पहली बार वो किसी अंजान लड़की का हाथ थामे बैठा , उसे सहारा दे रहा था , उसे संबल बंधा रहा था । क्यों कर रहा था वो ऐसा , उसे खुद नही पता था । जो लड़का किसी लड़की की तरफ देखता तक नहीं है , उसके लिए ये सब करना आम बात नहीं थी। पंद्रह मिनट बाद संचिता थोड़ी सी शांत हुई , तो ऋषि ने उसे पानी की बॉटल दी और उसे पानी पीने के लिए कहा । संचिता ने पानी पिया , उसे अब थोड़ा ठीक लगा । इन सब में ऋषि ने संचिता के हाथों को बस पकड़ा था और चेहरे से हल्के हाथों से आसूं साफ किया थे , इसके अलावा उसने संचिता को कहीं नहीं छुआ और न ही उसके मन में संचिता को लेकर गलत इंटेंशन जागे । ऋषि ने जब उसे थोड़ा रिलेक्स देखा , तो कहा ।

ऋषि - अब बताओ संचिता , तुम ऐसे क्यों रो रही थी ...??? मुझे तुम्हारा ऐसे रोना , अच्छा नही लगा । मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगता , जब कोई मेरे सामने रोता है तो......, और खास कर जब वो कोई लड़की हो ।

संचिता अब भी चुप रही , पर उसका सिसकना बंद न हुआ ।

ऋषि ( उदास सा बोला ) - प्लीज संचिता , बताओ । मैं ऐसे किसी को नही देख सकता । प्लीज संचिता , बताओ ...., क्यों कहा तुमने ऐसा...???

संचिता ( अपनी चुप्पी तोड़ती हुई , रूंधे हुए गले से बोली ) - क्योंकि जो सुख तुम्हें मिल रहा है ऋषि , उससे मैं कोसो दूर हूं ।

ऋषि ( नासमझ सा बोला ) - मतलब...? मैं कुछ समझ नहीं !!!

संचिता ( रोते हुए ) - मैं अनाथ हूं ऋषि ।

संचिता का रोना फिर बढ़ गया और ऋषि को जैसे झटका सा लगा , उसने तुरंत संचिता का हाथ छोड़ दिया । उसे यकीन नही हो रहा था , कि उसने जो अभी सुना , वो सच था । उसका चेहरा देखकर लग रहा था , कि उसे इस बात की बिल्कुल भी उम्मीद नहीं थी । हर वक्त हंसने वाली लड़की , जिसकी बातें और जिसकी सोच के साथ - साथ , मिलनसार और मुस्कुराता व्यवहार पूरे स्कूल में फेमस है , वो लड़की इतना बड़ा दुख अपने साथ लेकर चलती है , इस बात से उसे ताज्जुब हो रहा था । आज उसे बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा था , संचिता की जिंदगी का इतना बड़ा सच जानकर । जिस मां बाप से दूर भागने की बात वो सोच रहा था , संचिता का सच सुन अपने मां बाप के दूर जाने का सोचकर ही , उसके रोंगटे खड़े हो रहे थे , फिर संचिता तो इस सच के साथ जी रही थी । उसके दिल में , संचिता के लिए एक सॉफ्ट कॉर्नर बनने लगा था , जिसका उसे एहसास नहीं था , लेकिन वो संचिता का दुख सुनकर हद से ज्यादा दुखी था । अब उसे सच जानने की उत्सुकता हुई , साथ ही कई सारे सवाल उसके मन में उमड़ने लगे । उससे रहा नही गया और उसने पूछ लिया।

ऋषि - लेकिन तुम्हारे सर्टिफिकेट्स में तो तुम्हारे पैरेंट्स का नाम लिया जाता है । दर्ज़ है वहां तो उनका नाम ।

संचिता इस वक्त कुछ बोल पाने की हालत में नहीं थी । ऋषि को उसे ऐसे देख अच्छा नहीं लग रहा था । संचिता की हालत बहुत ज्यादा खराब होते देख , ऋषि ने उससे कहा ।

ऋषि - एक काम करो , तुम बाद में मुझे ये सच बताना । उससे पहले तुम प्लीज कुछ खा लो और पानी पियो । मैं तुम्हें ऐसे नही देख पाऊंगा और अगर तुम्हें इस वजह से कुछ हुआ , तो पता नहीं फिर क्या होगा । शायद मैं खुद को कभी माफ न कर पाऊं।

संचिता ने हैरानी से उसे देखा , तो वह बोला।

ऋषि - मैं किसी लड़की को रुलाने का पाप नही कर सकता संचिता । इन्फेक्ट , मैं कभी नहीं चाहूंगा , कि मेरी वजह से कोई भी उदास हो या फिर एक भी आसूं बहाए । मेरे... , तुम्हारी सिचुएशन पर सवाल खड़े करने से तुम इतनी उदास हो और इतना रो रही हो , मैं इस लिए खुद की गलती मान रहा हूं और है भी मेरी गलती । प्लीज संचिता , कुछ खा लो और मुझे मेरी इस गलती के लिए माफ कर , सुधारने का मौका दो । मैं इसी लिए किसी लड़की से बात नहीं करता , कि कहीं मेरी वजह से किसी लड़की को कोई दुख न पहुंचे । लेकिन देखो न....., न चाहते हुए भी तुम मेरी वजह से आज रो रही हो । प्लीज संचिता , माफ कर दो मुझे , मेरी इस गलती के लिए ।

ऋषि की बात सुनकर संचिता के दिल में जैसे हजारों चाकू का वार हुआ हो , ऐसा उसे फील हुआ । उसने कभी नहीं सोचा था , कि ऋषि उससे कभी बिना गलती की माफी मांगेगा । उसने ऋषि के होठों पर अपना हाथ रख दिया । ऋषि ने हैरानी से उसे देखा , तो उसने तुरंत अपना हाथ हटा लिया । उसे आभास हो गया था , कि वो क्या करने जा रही थी । उसने हाथ हटा कर , धीमी आवाज़ में बड़ी मुश्किल से जितना उससे कहा गया , कहा।

संचिता - नहीं...., नहीं ऋषि । कोई गलती नही है इसमें तुम्हारी । खुद को प्लीज तुम दोष मत दो । ये सवाल तो हर बार किसी न किसी के द्वारा मेरे सामने आता ही है । लेकिन मैं कभी जवाब नही दे पाती । क्योंकि कभी हिम्मत ही नहीं कर पाती कुछ कहने की या कुछ बताने की..... , आसुओं को अपने आज तक इस सवाल...., इन बातों पर रोक नही पाई हूं मैं । लेकिन आज मैं सच बताऊंगी , तुम्हें आज अपनी जिंदगी का ये सच बताऊंगी मैं ।

ऋषि - नहीं संचिता..., तुम ये सच बताते हुए कंफर्टेबल नहीं हो , तुम मत बताओ । मुझे नही जानना ।

संचिता - नहीं ऋषि , आज मैं भी अपने मन का बोझ हल्का करना चाहती हूं । कभी किसी से कह नही पाई , कि मुझे कैसा लगता है । पर आज मैं कहना चाहती हूं ।

ऋषि - ठीक है , अगर तुम चाहती हो , तो जरूर बताना । लेकिन उससे पहले प्लीज कुछ खा लो , तुम्हारी हालत बहुत बिगड़ती जा रही है और हम यहां स्कूल में हैं । अगर घर में होते , तो शायद मैं तुम्हें नहीं रोकता ।

संचिता को उसकी बात सही लगी । उसने हां कहा । ऋषि ने पहले उसे मुंह धोने के लिए पानी दिया , संचिता ने मुंह धोया । और फिर ऋषि ने उसकी तरफ अपना लंच बढ़ा दिया । संचिता को अच्छा लगा । ऋषि की खुद के लिए केयर देखकर । लेकिन बेचारी अपने आसुओं को रोक नहीं पा रही थी , दिल रो रहा था बेताशा । दोनों ने लंच किया । ऋषि ने खाली टिफिन पैक किया और वहीं पास में बनी सीमेंट की चेयर पर संचिता को बैठा दिया, साथ ही उससे उचित दूरी बना खुद भी बैठ गया , हाथ छोड़ दिया था उसने संचिता का । वह सुनना तो चाहता था सच , कि आखिर क्यों और कैसे सब हुआ , लेकिन वह यह बिल्कुल नही चाहता था , कि इस वजह से संचिता रोए या फिर इतनी ज्यादा उदास हो , कि उसकी तबियत खराब हो जाए । सीधी तरह से कहूं , तो ऋषि सच जानने के लिए संचिता को हर्ट नही करना चाहता था । संचिता उसकी हालत समझ रही थी , इस लिए उसने खुद ही कहना शुरू किया....।


क्रमशः

अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED