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तेरी कुर्बत में - (भाग-8)

अपने अतीत में ,अपने और अपने परिवार के साथ घटित घटनाएं बताकर संचिता सिसकने लगी । सब कुछ जानने के बाद , ऋषि और चुप पड़ गया । समझ ही नही आ रहा था उसे , कि एक परिवार एक क्षण में कैसे उजड़ गया । सच ही कहा जाता है , वर्तमान में जो तुम्हारे पास है , उसे वर्तमान में ही जी लो । क्योंकि भविष्य में कब क्या हो जाए , खुद इंसान को भी पता नहीं रहता । अब उसे खुद के सपने को लेकर भी डर लग रहा था , चिंताएं बढ़ रही थी उसकी । उसने मन ही मन एक कड़ा फैसला लिया , जो सही होगा या गलत , ये तो भविष्य ही बताएगा , क्योंकि वह अपने सपनों को छोड़ नही सकता , बचपन से उसे पाने के लिए जी तोड़ मेहनत की थी उसने , और किसी की जिंदगी बर्बाद करे , इतनी उसमें हिम्मत नही थी । संचिता की तरह , वह भविष्य में एक और परिवार , एक और लड़की को , उसकी भावनाओं को आहत नही कर सकता । संचिता का रोना चालू रहा । कुछ पल बाद संचिता शांत हुई , क्योंकि अब आसूं उसके सूखने लगे थे , आखिर कहां तक बहते । संचिता ने ऋषि की तरफ देखा , तो वह उसे शून्य में कहीं ताकता दिखा । जाने क्यों उसे लगा , कि ऋषि उसकी बताई बातों से ही परेशान है। था तो सही...., लेकिन संचिता को, ये सही बात कैसे उसके मन ने कौंध गई , उसे नही पता । संचिता ने उसे खोया हुआ सा परेशान सा देखा , तो बात को बदलने की कोशिश करते हुए बोली ।

संचिता ( नॉर्मल बनने की कोशिश करते हुए ) - अच्छा ऋषि...!!!! तुम कहां गए थे लगभग एक हफ्ते पहले..??? तुम बहुत दिनों बाद दिखे मुझे , कुछ हुआ है क्या..????

ऋषि जैसे उसकी आवाज़ सुनकर वर्तमान में आया । उसने नोटिस किया , संचिता नॉर्मल बनने की जद्दोजहद कर रही है , क्योंकि उसके सवाल से उसके चेहरे के भाव नहीं मिल रहे थे । ऋषि ने नजरें फेर लीं । क्या कहता आखिर उसे , क्या दिलासा देता , सब कुछ खोए बैठी है वो । संचिता ने उसे शांत देखा , तो दोबारा अपना सवाल दोहराया । ऋषि ने बिना किसी भाव के जवाब दिया।

ऋषि - बड़े भाई की सगाई थी , बैंगलोर गए थे हम सब ।

अब इसके आगे संचिता क्या बोले , उसे समझ नही आ रहा था । लंच तो कबका खत्म हो चुका था , और यही कुछ डेढ़ घंटे बाद स्कूल की छुट्टी का वक्त भी होने वाला था । अब दोनों अगर क्लास में जाते , तो टीचर्स के हजारों सवालों के साथ , पनिशमेंट भी भुगतनी पड़ती । और उन्हें देखकर साफ समझ आ रहा था , कि वे दोनों अभी इसके लिए तैयार नहीं है । संचिता एक बार फिर अपने मां पापा को याद करने लगी , और ऋषि भी उसी के बारे में सोचने लगा, कि कैसे होठों पर मुस्कुराहट रखकर ये लड़की , अपने सीने में इतना दर्द तकलीफ लिए घूमती है ।

कुछ वक्त बाद संचिता की नींद से आंखें बंद होने लगी , क्योंकि उसका सिर भी दुख रहा था । उसने पीछे चेयर से सिर लगाकर , अपनी आखें मूंद ली , और उसे तुरंत नींद आ गई । कुछ पल बाद ऋषि का ध्यान उसपर गया , तो उसे सोता देख , ऋषि के मन को जाने क्यों बड़ा सुकून मिला , ये सोचकर कि चलो थोड़ी देर तो ये आज के हुए वाकिए को याद करने से बचेगी । ऋषि ने देखा , संचिता का सिर बार - बार पीछे टिकी हुई चेयर से नीचे फिसल रहा है । ये देख उसे अच्छा नहीं लगा । बहुत वक्त तक सोचने के बाद उसने अपना कंधा संचिता के बगल में , उससे थोड़ी दूरी बनाकर रखा , तो संचिता का सिर अगले ही पल उसके कंधे पर आ गिरा । ऋषि ने आंखें बंद कर ली , अब वह हिल भी नहीं सकता था , वरना संचिता जग जाती ।

छुट्टी की बेल सुनकर ऋषि को आभास हुआ , कि अब उन दोनों का यहां बैठना ठीक नहीं । उसने न चाहते हुए भी , संचिता को जगाया । संचिता उसके जगाने से तुरंत उठ गई , पर अपना सिर ऋषि के कंधे पर देखा , तो असहज हो गई । उसने तुरंत उसे सॉरी कहा और उठ खड़ी हुई । ऋषि ने कुछ नहीं कहा और न उसकी तरफ देखा । शायद वह अपनी असहजता छुपाने की कोशिश कर रहा , साथ ही संचिता से नजरें मिलाकर , वह फिर से उसे तकलीफ में नहीं देखना चाहता था । दोनों सभी के जाने के बाद , अपनी क्लास में आए , अपना बैग उठाया और क्लास से बाहर आ गए । ऋषि पार्किंग की तरफ बढ़ गया , तो वहीं संचिता मेन गेट के बाहर आ गई । ऋषि जब बाइक लेकर बाहर आया , तो उसे संचिता ऑटो का वेट करते दिखी । ऋषि बिना कुछ बोले बाइक से उतरा और संचिता के बगल में जाकर खड़ा हो गया ।

संचिता को जब भान हुआ , कि वह उस जगह अकेली नहीं खड़ी है , तो उसने तुरंत अपने बगल में देखा और ऋषि को वहां देख हैरान हो गई , अगले ही पल उसने ऋषि से पूछना चाहा उसके यहां खड़े होने की वजह , लेकिन उसे रोड की तरफ देखते देख , उसने अपना इरादा बदल दिया । पर उसे इस बात का एहसास हो रहा था , कि हो न हो ऋषि उसके कारण ही यहां खड़ा है । उसका शक यकीन में तब और बदल गया , जब ऋषि ने दूसरी तरफ से आ रहे एक ऑटो को हाथ बढ़ा कर रुकवाया , और संचिता को उसमें बैठने का इशारा किया । संचिता कुछ नहीं बोली और ऑटो में जाकर बैठ गई । ऑटो चल दी , ऋषि उस ऑटो को जाते देखता रहा , तब तक , जब तक वह उसकी आखों से ओझल नहीं हो गया । और संचिता ड्राइवर सीट के बाएं तरफ लगे शीशे में , पीछे छूटते ऋषि को देखती रही । अब उसके दिल और दिमाग के बीच एक जंग सी छिड़ चुकी थी , जो कब खत्म होगी , ये उसे नहीं पता था ।

ऑटो के आंखों से ओझल होते ही , ऋषि अपनी बाइक पर आ बैठा और अपने घर की तरफ चल पड़ा । संचिता घर आकर बिना किसी से कुछ बोले अपने कमरे में आई । अब उसे अकेले कमरे में अपने मां पापा की और ज्यादा याद आने लगी। जब उससे ये सब बर्दास्त नहीं हुआ , तो वह सो गई । जब आपका मन हद से ज्यादा परेशान या उदास होता है , तो आपको शांति की ज़रूरत होती है , और अपने दिमाग को शांत करने के लिए सोने से बेहतर कोई चीज़ हो ही नहीं सकती । इसी लिए कहा जाता है , हद से ज्यादा परेशान लोग कुछ ज्यादा ही सोते हैं । संचिता सोई , तो फिर वह उठी ही नहीं । जैसे बरसों से थकी हुई हो । न उसने खाना खाया और न फिर किसी से मिली । जबकि ऋषि का इससे उल्टा हाल था । वह रात में अपने बिस्तर पर करवटें बदलता रह गया, लेकिन उसे नींद नही आई । संचिता के परिवार के बारे में सोचकर , उसका गला बार - बार भरी हो रहा था । चाहकर भी वह संचिता की कही बातों को भूल नहीं पा रहा था । उसकी एक - एक बात ऋषि के कानों में अब भी गूंज रही थी । पूरी रात उसकी आंखों में कटी ।

क्रमशः


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