Teri Kurbat me - 13 books and stories free download online pdf in Hindi

तेरी कुर्बत में - (भाग-13)

उस लड़के को वहां देख और उसके साथ ही उसे देवी के साथ बेरहमी करते देख संचिता स्तब्ध थी। उसने ज़ोर से चिल्लाकर कहा ।

संचिता - शुभम .....। छोड़ो मेरी बहन को , वरना मैं अभी पुलिस को कॉल कर यहां बुला लूंगी ।

शुभम ( वह लड़का ) , जो कि संचिता की ही क्लास का , लेकिन कॉमर्स का स्टूडेंट था , संचिता को वहां देख और देवी के लिए बहन संबोधन सुन हैरान था । संचिता ने उसे देवी से अलग कर कहा ।

संचिता - स्कूल की लड़कियां कम पड़ गई हैं तुम्हें , जो अब मेरी बहन के पीछे पड़ गए हो???

संचिता की बातें सुनकर देवी और सोमी हैरानी से उसे देखने लगे और देवी ने अपने हाथ को मलते हुए कहा ।

देवी - ये क्या कह रही हैं दी आप??? आप इसे जानती हैं???

संचिता - हां देवी , बहुत अच्छे से जानती हूं मैं इसे । एक नंबर का आवारा और लड़कियों को छेड़ने में अव्वल रहने वाला लड़का है ये । इसने कई बार मुझसे बत्तीमीज़ी करने की कोशिश की है , लेकिन कभी सफल नहीं हो पाया । और अब ये तुम्हें शिकार बना रहा है ।

शुभम - मुझे नहीं पता था संचिता , कि ये तुम्हारी बहन है ।

संचिता - अब तो पता चल गया है न , अब निकलो यहां से , वरना जितने चमक चौदस बनकर आए हो यहां , उतनी ही शान से वापस अपने घर नहीं जा पाओगे तुम।

शुभम ( गुस्से से ) - धमकी दे रही हो तुम मुझे????

संचिता - औकात है तेरी इतनी , कि मैं तुझे धमकी दूं । मैं तुझे ऑर्डर दे रही हूं शुभम , निकल यहां से , वरना बहुत बुरा हाल करूंगी तेरा ।

शुभम ( आगबबूला हो देवी की तरफ , उसका हाथ पकड़ने को बढ़ा ) - औकात बताएगी मुझे , चल ...., आज मैं तुझे तेरी औकात बताऊंगा । और तेरी बहन को कहीं मुंह दिखाने लायक नहीं छोडूंगा । फिर बताना तू , किसकी औकात कितनी है ।

ये कहते हुए उसने देवी का हाथ पकड़ने के लिए अपना हाथ बढ़ाया ही था , कि संचिता ने उसके हाथ पर, सड़क किनारे पड़ी एक भारी ईंट को उठाया और उसी से प्रहार कर दिया । शुभम दर्द से चीख पड़ा । उसके हाथ से खून निकलने लगा । संचिता उसके पास आई और खींचकर एक जोर दार थप्पड़ उसे लगाया और उसे नफरत से देखकर बोली ।

संचिता - औकात अब मुझे बाद में दिखाना , पहले अपने हाथ का इलाज करवा । आइंदा धोखे से भी मेरी बहनों के आस - पास मंडराते दिख गया न तू , तो अगली बार तेरे पैर भी सही सलामत नहीं बचेंगे । चल हट्ट आवारा कुत्ता कहीं का ।

संचिता उसे भरे लोगों के सामने बुरी तरह से लताड़ कर चली गई थी । और शुभम उसे सिर्फ जाते हुए देखता रहा । ये जो कुछ भी अभी हुआ , छप गया था उसकी आखों में । देवी और सोमी भी अपना - अपना बैग संभाले संचिता के पीछे चल पड़ी । तीनों ने घर जाने के लिए ऑटो रुकवाया और उसमें बैठकर घर चली गईं । शुभम वहां से अपने एक दोस्त के साथ हॉस्पिटल चला गया , अपना ट्रीटमेंट करवाने । शुभम एक बहुत ही घटिया और निहायती बत्तमीज के साथ गुंडा गर्दी करने वाला इंसान था । उसके मामा राजनीति में राज्य मंत्री के पद पर थे और उसे इस बात का बेहद घमंड था । वह न तो लोगों की इज्जत करता था और न ही ढंग से बात । हर लड़की पर उसकी गंदी नज़रें रहती थीं । संचिता को भी कई बार वह परेशान करने , उसे गलत तरह से ट्रीट करने की कोशिश कर चुका था , लेकिन संचिता इस मामले में इतनी तेज़ तर्रार थी , कि वह उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाता था । इनफेक्ट संचिता ही बहुत सी लड़कियों को उसकी गंदी नजरों और हरकतों का शिकार होने से बचाती थी , इस लिए शुभम उसे हमेशा अपने रास्ते का कांटा समझता था । आज भी वह बीच में आई थी और अपनी बहन को उसी से बचा कर ले गई थी । लेकिन भरे लोगों के सामने संचिता का उसके साथ ऐसा व्यवहार करना , उसे बुरी तरह से खल गया था । वह चिढ़ा हुआ बैठा था अब संचिता से ।

घर आते ही सोमी ने सारी बातें संचिता के मौसा मौसी को बता दी । दोनों उसकी पुलिस में रिपोर्ट के लिए जाने लगे , तो संचिता ने उन्हें रोका और कहा ।

संचिता - इसकी अभी जरूरत नहीं है । मैंने उसे बीच बाजार में अच्छे से समझा दिया है । वह राज्य मंत्री का इकलौता भांजा है । लेकिन अगर इसके बाद भी वो कोई ऐसी हरकत करता है , तो बेझिझक आप उसकी रिपोर्ट कर दीजियेगा । मैं खुद गवाही दूंगी , और साथ में मेरे स्कूल की लड़कियां भी , फिर उसका मामा भी कुछ नहीं कर सकेगा ।

संचिता की बात उसके मौसा मौसी को ठीक लगी । उन्होंने भी इस वक्त बेवजह न उलझने में ही भलाई समझी। लेकिन इन सबका सोमी पर बहुत गहरा असर पड़ा था । वहां से आने के बाद से सारी घटना बताने के बाद, उसने किसी से कुछ नहीं कहा था । सहमी सी एक तरफ बैठी थी वह और उस पल को याद कर रही थी , जब शुभम ने देवी का हाथ मरोड़ दिया था और देवी की चीख निकल गई थी । सोमी संचिता और देवी की तरह स्ट्रॉन्ग नहीं थी , बल्कि थोड़ा ज्यादा इमोशनल थी । उसके लिए ये सब बिल्कुल नया था , इस लिए अपनी आखों के सामने ये सब होता देख वो बुरी तरह डर गई थी । देवी उसे समझा रही थी, पर उसे तो जैसे वो पल भुलाए नहीं भूल रहा था ।

संचिता अपने रूम में आई , तो उसका फोन बजा । स्क्रीन पर ऋषि का नाम फ्लैश होता देख संचिता ने कॉल रिसीव की । उधर से ऋषि संचिता के बोलने से पहले ही बोला ।

ऋषि - कहां थी??? कब से कॉल कर रहा हूं , लेकिन मैडम तो कॉल उठा लें , तो मेहरबानी आपकी ।

संचिता ( अनमने ढंग से ) - कुछ काम था ।

ऋषि - हां ।

संचिता - तो बताओ ।

ऋषि - कल क्लास है ।

संचिता - कौन सी और कहां???

ऋषि - अरे स्कूल में है । लास्ट डाउट क्लास । साथ में प्री बोर्ड के एडमिट कार्ड भी इशु होंगे ।

संचिता - ओके , मैं आ जाऊंगी ।

ऋषि - संचिता...!!!

संचिता - हम्मम ।

ऋषि - कुछ हुआ है क्या???

ये सुनकर संचिता थोड़ी फिर से परेशान हो गई । उसने सोचा , कि ऋषि को सब कुछ बता देती हूं । लेकिन फिर बताने से पहले ही रुक गई , ये सोचकर कि कहीं इसका असर ऋषि की पढ़ाई पर न पड़े । ऋषि ने उसे चुप देख, फिर कहा ।

ऋषि - एव्री थिंग ऑल राइट संचिता????

संचिता - यस ...., एव्री थिंग ऑल गुड ।

ऋषि - तो फिर तुम इतनी अनमनी सी क्यों साउंड कर रही हो???

संचिता - वो अभी - अभी मार्केट से आई हूं न , तो थोड़ी थक गई हूं । इस लिए तुम्हें मेरी आवाज़ थोड़ी अजीब लगी होगी ।

ऋषि - हम्मम , तो ये बात है ।

संचिता - अच्छा मैं रखती हूं । कल की क्लास के लिए डाउट्स तैयार करने हैं ।

ऋषि - हां ठीक है । मुझे भी सारे डाउट्स एक जगह सेट करने हैं ।

संचिता ने बाय बोलकर कॉल कट कर दिया । वह अपनी बुक्स लेकर बैठ गई । वह लाख कोशिश कर रही थी मन लगाने की पढ़ाई में , लेकिन रह रहकर उसे शुभम की आज की हरकतें याद आ रही थीं । उसने कभी नहीं सोचा था , कि ये लड़का उसकी बहनों तक पहुंच जाएगा । बहुत माथा पच्ची करने के बाद उसने बुक्स में ही अपना ध्यान लगाना सही समझा , क्योंकि वही उसके लिए इस वक्त पहली प्रायोरिटी थी ।

क्रमशः

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