तेरी कुर्बत में - (भाग-12) ARUANDHATEE GARG मीठी द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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तेरी कुर्बत में - (भाग-12)

उस दिन के बाद से ऋषि और संचिता के बीच दोस्ती गहरी होती गई । संचिता तो थी ही बातूनी और हंसने मुस्कुराने वाली लड़की , तो उसने अपने इसी स्वभाव के चलते ऋषि को भी हंसना मुस्कुराना सिखा दिया था । ऋषि बाकियों के साथ कभी नहीं हंसता था और न ही ज्यादा खुश रहता था , लेकिन संचिता की बातें उसे हंसने पर मजबूर कर देती थीं, वह उसके साथ बेहद खुश रहता था। सेमेस्टर एग्जाम का रिजल्ट आ चुका था , संचिता हमेशा की तरह फर्स्ट आई थी पूरी 12th क्लास में और ऋषि उससे एक नंबर से पीछे । हर बार ऋषि संचिता से ,एक नंबर से पीछे होने के कारण खुद को कोसता था , कुढ़ता था , हर बार उससे आगे आने के लिए जी तोड़ मेहनत करता था और बेशक इस बार भी उसने जी तोड़ मेहनत ही की थी , लेकिन फिर भी एक नंबर से पीछे हो गया । पर आज उसके मन में संचिता को लेकर गुस्सा या कोई घृणा भाव नहीं था । बल्कि वह आज खुश था , संचिता का रिजल्ट देख, अपनी दोस्त की खुशी में ऋषि भी खुश था । उसने इसी बात के लिए संचिता को उसी स्कूल के गार्डन में ट्रीट दी थी , जहां उन्होंने लंच किया था । और ट्रीट में उसकी मां के हाथ का बना स्वादिश खाना था , जिसमें सारी संचिता के पसंद की डिशेश थीं , जो ऋषि ने अपनी मां से कहकर स्पेशल संचिता के लिए बनवाई थी । उसकी मां भी अपने बच्चे को पहली बार दोस्त के साथ घुलते मिलते देखकर खुश थी । दिन बीत रहे थे । चूंकि इन दोनों की बोर्ड क्लास थी , तो अब स्कूल जाना धीरे - धीरे कम हो रहा था । क्योंकि अब स्टूडेंट्स को खुद ही पढ़ाई करनी थी , कोर्स और उसका दो बार का रिवीजन कंप्लीट हो चुका था ।

दिसंबर का लास्ट सप्ताह चल रहा था और दिसंबर में पड़ने वाली उतने ही कड़ाके की ठंड भी । और इसके साथ ही , बच्चों की अपनी स्टडीज के लिए जी तोड़ मेहनत । क्या होता है...., जितनी ज्यादा ठंड पड़ती है , उतनी ही ज्यादा वातावरण में शांति होती है । और इस शांति का पढ़ने वाले स्टूडेंट्स बखूबी फायदा उठाते हैं , क्योंकि उन्हें पता होता है , इस शांति में उन्हें पढ़ने में आसानी होगी और जल्दी ही आंसर याद होंगे । संचिता और ऋषि की तरह बाकी के स्टूडेंट्स भी अपने प्री बोर्ड एग्जाम्स की तैयारियों में लगे थे और ऋषि , अपने बोर्ड एग्जाम्स के साथ - साथ , अपने एंट्रेंस एग्जाम की तैयारी में भी लगा हुआ था ।

एक शाम संचिता अपनी दोनों बहनों के साथ मार्केट गई हुई थी , घर का कुछ सामान और सब्जियां लाने । देवी और सोमी ( देवी की छोटी बहन ) सड़क किनारे एक शॉप में चीनी मिट्टी के कुछ चाय के कप देख रही थीं और संचिता उनसे पांच कदम की दूरी पर फल खरीद रही थी । तभी देवी की तरफ , एक लड़का आया । वह बहुत देर से देवी और सोमी को देख रहा था । उस शॉप से भीड़ कम होते ही , वह देवी के बगल में आकर खड़ा हो गया और दुकान वाले से बोला ।

लड़का - एक कदम बढ़िया वाले कप दिखाओ भाई , ( देवी की तरफ इशारा कर ) बिल्कुल इन मैडम की तरह चमकदार ।

देवी ने उस लड़के को गुस्से से घुरकर देखा , तो पाया कि वह लड़का उसे ही अजीब सी वहशी निगाहों से देख रहा था और मुस्कुरा रहा है । देवी को ये बिल्कुल अच्छा नहीं लगा , सोमी भी उस लड़के की हरकत देख उसे हिराकत भरी नजरों से देख रही थी । देवी जो कप अपने हाथ में लिए देख रही थीं, उसने उन्हें वहीं रखा और दुकानदार से , " नहीं चाहिए भैया " बोलकर सोमी का हाथ पकड़कर संचिता को मार्केट में ढूंढने लगी । उनके जाते ही वह लड़का देवी और सोमी के पीछे - पीछे आया और कहा।

लड़का - हे..., मिस ब्यूटीफुल , कहां जा रही हो , मैंने तो तुम्हारी तारीफ की थी , पर तुमने तो थैंक्स तक नहीं कहा ।

देवी ने उसे दोबारा पीछे पलटकर घुरकर गुस्से से देखा और फिर उसे इग्नोर कर, संचिता की तरफ जाने लगी । वह अभी दो कदम ही चली थी , कि उस लड़के ने देवी के दूसरे हाथ की कलाई पकड़ ली । ये बात सोमी और देवी के बर्दास्त के बाहर थी । सोमी ने जोर से उस लड़के का हाथ देवी के हाथ पर से झटका और उसे धक्का देकर बोली ।

सोमी - ये क्या बत्तीमीज है??? समझ नहीं आ रहा , कि मेरी दी को तुमसे बात करने में कोई इंट्रेस्ट नहीं है।

सोमी के इस तरह उसे लताड़ने से मार्केट में आस - पास खड़े सारे लोग उन्हें ही देखने लगे । ये सब देख उस लड़के को खुद की बेज्जती महसूस हुई और उसे अपनी बेज्जती बिल्कुल भी बर्दास्त नहीं हुई । उसने सोमी की तरफ कदम बढ़ा कर गुस्से से दांत पीसते हुए कहा ।

लड़का - ए पिद्दी लड़की , अपनी अकड़ अपने पास रख , वरना यहीं सबके सामने तेरी अकड़ मिट्टी में मिला दूंगा ।

देवी ( गुस्से से सोमी के सामने आकर , उस लड़के को पीछे धकेलकर बोली ) - क्या कर लेगा तू??? हां ...., क्या कर लेगा??? शर्म नहीं आती , बच्ची से ऐसे बात करते हुए , बीच सड़क पर किसी लड़की का उसके मर्जी के खिलाफ हाथ पकड़ते हुए !?

लड़का ( बेशर्मी से मुस्कुराकर बोला ) - तो अकेले में पकडूं क्या तेरा हाथ??? अच्छा चल बता , कहां चलेगी , मैं तैयार हूं ।

देवी - हाऊ रबिश ...। तमीज नहीं है क्या , लड़कियों से बात करने की तुम्हें???

लड़का ( गुस्से से उबल गया ) - तमीज सिखाएगी तू मुझे , मुझे तमीज सिखाएगी । ए लड़की , तू मुझे एक नज़र में भा गई है , इस लिए ये हाथ में पकड़ा हुआ थैला अपनी इस छोटंकी ( सोमी ) को थमा और चल मेरे साथ ।

इतना कहते हुए उसने देवी का हाथ पकड़ लिया , तो देवी ने पूरा ज़ोर लगाकर उसका हाथ झटका और उसे ज़ोर से धक्का देकर , उसके पैर पर अपना पैर फंसा कर उसे जमीन में गिरा दिया और चिल्लाकर बोली ।

देवी - नहीं जाऊंगी मैं तेरे साथ । तेरी जागीर नहीं हूं मैं और न ही हमारे बीच कोई जान पहचान है । आइंदा से अगर मेरे सामने आया न , तो जान ले लूंगी तेरी । बेतरतीब बत्तमीज़ इंसान ।

इतना कहकर देवी उसे नफ़रत भरी निगाहों से देखकर , सोमी का हाथ पकड़ संचिता के पास जाने लगी। देवी का इस तरह उस लड़के के साथ व्यवहार करना , उस लड़के के अहम पर चोट पहुंचाने के बराबर था । वह ज़मीन से उठा और तेज़ी से देवी के पीछे दौड़ा । महज़ दो कदमों की दूरी थी , देवी सोमी और संचिता के बीच , कि उस लड़के ने देवी की कलाई बहुत कसकर पकड़ी और भरी सड़क पर बेरहमी से देवी की पीठ से लगा कर मरोड़ दी । देवी दर्द से कराह उठी । देवी की आवाज़ सुनकर संचिता का ध्यान देवी और सोमी और फिर उस लड़के पर गया , तो वह उस लड़के को देख दंग हो गई । सोमी के गुस्से से आखों में आसूं भर आए थे ।

क्रमशः