राघव और तारा, बचपन के पक्के दोस्त जिनकी दोस्ती का आधार बनी गेम पार्लर में खेली जाने वाली वीडियो गेम्स जिसके वो दोनों ही दीवाने थे। बचपन बीता और खेल की जगह ली कैरियर के प्रति उनकी चिंताओं ने और फिर संघर्ष की राहों पर सफर करते हुए इन दोस्तों की मंजिल बनी 'वैदेही गेमिंग वर्ल्ड'। लेकिन इस गेमिंग वर्ल्ड के साथ जुड़ा हुआ नाम वैदेही किसका था? क्यों तारा की किसी बात से इंकार न करने वाला राघव उसके स्नेह भरे आग्रह के बावजूद उसके साथ होली खेलने से कतराता था?

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फागुन के मौसम - भाग 1

'होली आयी रे कन्हाई, रंग बरसे बजा दे ज़रा बाँसुरी...' सुबह के दस बज रहे थे जब 'वैदेही गेम्स के मालिक राघव ने अपने दफ़्तर के अंदर कदम रखा और उसके कानों से गाने के ये बोल टकराये। उसने चौंकते हुए अपने आस-पास देखा तो पाया दफ़्तर में काम करने वाला कोई भी शख्स अपनी जगह पर नहीं था। सारी कुर्सियों को खाली देखकर उसने मंजीत को आवाज़ लगायी जो यहाँ का इकलौता चपरासी था। पहली पुकार पर जब मंजीत उसके सामने नहीं आया तब राघव ने एक और बार उसे पुकारा लेकिन इस बार भी नतीजा शून्य ही ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 2

अगले दिन जब सुबह की तरोताज़ा हवा के बीच दशाश्वमेध घाट पर राघव की तारा से मुलाकात हुई तब ने उसे बताया कि बैंगलोर में एक कॉलेज है जहाँ गेमिंग डिज़ाइन की पढ़ाई होती है। उसने साइबर कैफ़े से कॉलेज की सारी डिटेल का प्रिंट आउट भी निकाल लिया था। इस प्रिंट आउट को देखते हुए राघव के माथे पर बल पड़ गये थे जिसकी वजह थी कॉलेज की फीस जो लाखों में थी। उसकी परेशानी समझते हुए तारा ने कहा, "सुन, अगर हमने कॉलेज का एंट्रेंस एग्जाम क्लियर कर लिया तो वो एजुकेशन लोन लेने में हमारी मदद ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 3

राघव की ट्रेन जब बैंगलोर पहुँची तब शाम के साढ़े छः बज रहे थे। उसकी परीक्षा अगले दिन सुबह बजे थी। रेलवे स्टेशन पर पूछताछ करके उसने वहीं पास ही स्थित एक छोटे से बजट होटल में रात गुज़ारने का निर्णय लिया। होटल के छोटे से कमरे में आने के बाद राघव ने हाथ जोड़कर ईश्वर को धन्यवाद देते हुए कहा कि अगर इस महानगर में उसे ऐसी सस्ती जगह न मिली होती तो पता नहीं अभी वो अकेला यहाँ क्या कर रहा होता। अगली सुबह परीक्षा हॉल में किसी तरह का व्यवधान न आये इस विचार से राघव ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 4

तारा ने जैसे ही गेमिंग सेक्टर के लिए राघव के चयन की ये चिट्ठी पढ़ी, ख़ुशी के अतिरेक में हुए उसने राघव को गले लगा लिया। उसकी इस हरकत पर राघव ने हँसते हुए कहा, "अरे बस कर पगली, अभी तो बस चिट्ठी आयी है। अपनी मंजिल तक पहुँचने के लिए हमें अभी एक लंबा सफ़र तय करना है।" "ये सफ़र भी तय हो जायेगा दोस्त। तू अपने सारे डॉक्यूमेंट्स की फ़ाइल तो लाया है न?" तारा के पूछने पर राघव ने फ़ाइल वाला पैकेट भी उसे देते हुए कहा, "जी मैडम लाया हूँ क्योंकि मुझे पता है अब ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 5

जहाँ एक तरफ राघव ने गेमिंग सेक्टर की अपनी पहली डिग्री सफ़लतापूर्वक बहुत ही अच्छे अंकों के साथ प्राप्त ली, वहीं तारा भी बीएचयू से फिजिक्स में अपनी बैचलर डिग्री लेने के बाद अपने सपने को सच करने बैंगलौर आ चुकी थी। पहले वीकेंड पर जब राघव को अपनी नौकरी से और तारा को कॉलेज से छुट्टी मिली तब राघव सुबह-सुबह ही तारा से मिलने उसके हॉस्टल पहुँच गया। जब तारा अपने कमरे से निकलकर राघव के पास हॉस्टल के ऑफिस में आयी तब राघव ने उससे पूछा कि उसे यहाँ कॉलेज में कैसा लग रहा है, और उसकी ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 6

तारा जब एक सप्ताह की छुट्टी लेकर बनारस पहुँची तब राघव स्टेशन से ही उसे साथ लेकर सबसे पहले क्षेत्र में स्थित अपने नये दफ़्तर पहुँचा।दफ़्तर की सारी व्यवस्था देखकर तारा उत्साहित होकर राघव की पीठ पर धौल जमाते हुए बोली, "वाह मेरे शेर! क्या खूब सजाया है तूने हमारे सपने के आशियाने को।मेरा मन तो अभी से यहाँ काम करने के लिए मचलने लगा है।""फिर तुझे रोका किसने है बता?" राघव तारा को उसके केबिन की तरफ ले जाते हुए बोला तो तारा की नज़र केबिन के दरवाजे पर लगे हुए नेमप्लेट पर ठहर गयी जहाँ लिखा था, ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 7

राघव अभी कार से उतरा ही था कि नंदिनी जी ने उसके पास आते हुए कहा, "बेटा, तुम्हें मौसी आश्रम में बुलाया है।""कोई ख़ास बात है क्या माँ?""अब ये तो वहीं जाकर पता चलेगा बेटा।""अच्छा, आओ बैठो।" राघव ने कार का दरवाजा खोलते हुए कहा तो नंदिनी जी अंदर बैठते हुए बोलीं, "मैंने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था बेटा कि हम किराए के एक कमरे वाले छोटे से मकान से निकलकर अपने स्वयं के इतने अच्छे घर में रहने लगेंगे और एक दिन तुम अपनी कार में मुझे बैठाकर कहीं ले जाओगे।हमारे इस अच्छे दिन के ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 8

होली का शुभ दिन आ चुका था। तारा ने पूरी टीम के साथ मिलकर वैदेही गेमिंग वर्ल्ड के परिसर ही शानदार पार्टी का आयोजन किया था।जहाँ एक तरफ तरह-तरह की पिचकारियों के साथ रंगों के बड़े-बड़े टब रखे हुए थे, तो वहीं पास में गुलाल की थालियां भी सजी हुई थीं, और दूसरी तरफ खाने-पीने के अनेकों स्टॉल्स लगे हुए थे जहाँ होली के पारंपरिक व्यंजन मालपुए, दहीबड़े, विभिन्न तरह की गुझिया वगैरह के साथ स्पेशल ठंडाई का भी इंतज़ाम था।तारा अपने माँ-पापा और भैया-भाभी के साथ सबसे पहले यहाँ पहुँचकर सभी आगंतुकों के स्वागत में लगी हुई थी।कुछ ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 9

तारा ने जैसे ही राघव के केबिन का दरवाजा खोला, राघव ने नशीली आँखों से उसकी तरफ देखते हुए "वैदेही, तुम आ गयी।" यश ने सवालिया निगाहों से तारा को देखा तो पाया उसके चेहरे पर भी हैरानी के भाव थे। अपनी कुर्सी से उठकर तारा की तरफ आते हुए राघव के कदम अभी लड़खड़ाए ही थे कि यश और तारा ने फुर्ती से आगे बढ़कर उसे सँभाल लिया। उनके देखते ही देखते राघव की आँखें बंद हो चुकी थीं। "मुझे लगता है राघव बेहोश हो गया है।" यश ने घबराते हुए कहा तो तारा बोली, "हमें राघव को ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 10

"मेरा राघव तीन वर्ष का था जब उसके पिता नहीं रहे। वो अपने पिता का बहुत दुलारा था, इसलिए उनके बिछड़ जाने से नन्हे से राघव के हृदय को बहुत आघात पहुँचा था। उसका हँसना-मुस्कुराना, खेलना-कूदना, बाल सुलभ चंचलता सब मानों कहीं खो गया था। फिर जब मुझे अपराजिता निकेतन में नौकरी मिली तब राघव भी वहाँ मेरे साथ जाने लगा। दिव्या दीदी ने उसे आश्रम परिसर में ही बने हुए छोटे बच्चों के विद्यालय में दाखिला दिलवा दिया और राघव की पढ़ाई-लिखाई शुरू हो गयी। इसके करीब छः महीने बाद वैदेही की माँ अपने पति के द्वारा दुत्कारे ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 11

जब यश और तारा अपने परिवार के पास पहुँचे तब सबने उन्हें बैठने के लिए कहा। तारा अंजली के जाकर बैठने लगी तो यश की दीदी 'कीर्ति' ने उसे अपने पास बैठा लिया और यश को अविनाश ने अपने साथ बैठने के लिए बुला लिया। यश की माँ मिसेज मेहता ने तारा से विवाह और परिवार को लेकर जब उसकी सोच के विषय में पूछा तब तारा ने उनसे बस इतना ही कहा कि उसके हिसाब से लड़की के नये परिवार को लड़की को पर्याप्त समय देना चाहिए ताकि वो अपने ससुराल वालों को जान सके, पहचान सके। साथ ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 12

शाम में जब यश और तारा राघव से मिलने पहुँचे तब हर्षित भी वहाँ आया हुआ था। हर्षित बार-बार से अपनी भूल के लिए माफ़ी माँगते हुए कह रहा था कि उसने जानबूझकर राघव को भांग वाली ठंडाई नहीं दी थी। इतने वर्षों से एक साथ काम करते हुए आपस में भली-भाँति परिचित हो चुकने के कारण राघव को उसकी बात पर विश्वास था लेकिन फिर भी हर्षित की शर्मिंदगी कम नहीं हो रही थी। "क्या बात है, यहाँ का माहौल तो बहुत गंभीर लग रहा है।" तारा ने राघव के कमरे में प्रवेश करते हुए पूछा तो राघव ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 13

जब मंच संचालक ने वैदेही से पूछा कि क्या राघव इस समय यहाँ उपस्थित है तब वैदेही ने 'न' सिर हिला दिया। "उम्मीद है अगले वर्ष के 'मैगियो म्यूजिकल फियोरेंटीनो' में हम मिस्टर राघव से भी मिल सकेंगे और आपके नृत्य के साथ-साथ उनकी बाँसुरी की धुन भी यहाँ इस मंच पर गूँजेगी।" संचालक की इस बात पर वैदेही ने धीमे स्वर में जैसे स्वयं से ही कहा, "ईश्वर करे ऐसा ही हो।" वैदेही जो अपनी माँ शारदा जी के साथ पिछले पाँच वर्षों से फ्लोरेंस की ही स्थायी निवासी बन चुकी थी, कार्यक्रम की समाप्ति के पश्चात जब ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 14

शाम में जब दफ़्तर खत्म होने का समय हुआ तब तारा ने राघव के पास आकर उससे थोड़ी देर लिए गंगा घाट पर चलने के लिए कहा। जब तक वो दोनों घाट किनारे पहुँचे तब तक वहाँ गंगा आरती आरंभ हो चुकी थी। इस पवित्र आध्यात्मिक माहौल में धीरे-धीरे राघव को अपना मन शांत होता सा प्रतीत हुआ और उसके चेहरे पर भी इस सुकून की आभा परिलक्षित होने लगी। तारा, जो उसे बहुत अच्छी तरह जानती थी उसे भी राघव को यूँ सुकून से बैठे हुए देखकर राहत सी मिली। फिर भी उसने राघव से पूछा, "राघव, सुबह ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 15

वैदेही उसी समय उठी और शारदा जी के पास जाकर उसने उन्हें अपराजिता निकेतन का एडवरटाइजमेंट दिखाते हुए कहा, देखिये, मेरा राघव मुझे नहीं भूला है। उसने अपनी कंपनी का नाम भी मेरे नाम पर रखा है।" शारदा जी ने भी हैरत से इस एडवरटाइजेंट को पढ़ा और फिर उन्होंने वैदेही की तरफ देखा जिसका चेहरा देखकर ऐसा लग रहा था मानों उसका वश चले तो वो अभी उड़ते हुए बनारस पहुँच जायेगी। "तो अब तुम क्या चाहती हो वैदेही?" शारदा जी ने गंभीरता से पूछा तो वैदेही ने कहा, "क्या अब भी मुझे बोलकर बताना पड़ेगा माँ?" "हम्म... ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 16

वैदेही ने लीजा और मार्क की उत्सुकता देखते हुए उनसे कहा, "तुम दोनों पहले शांति से बैठ जाओ, फिर तुम्हें सारी बात बताती हूँ।" "लो बैठ गये, अब जल्दी बोलो ड्रामा क्वीन।" लीजा और मार्क लगभग एक साथ बोलें तब वैदेही ने उन्हें अपने और राघव के बचपन की बात से लेकर उससे बिछड़ने और अब अपराजिता निकेतन के वर्षगाँठ की एडवरटाइजमेंट में देखे गये वैदेही गेमिंग वर्ल्ड की सारी कहानी कह सुनायी।" "तो इसका मतलब ये है कि अब हम फाइनली अपने सपनों के देश भारत जा रहे हैं, और द ग्रेट राघव से भी मिल रहे हैं ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 17

वैदेही और तारा जब उस बिल्डिंग में पहुँचे जहाँ अब वैदेही रहने वाली थी तब तारा को पता चला शारदा जी ने एक ही फ्लोर पर आमने-सामने के दो फ्लैट रेंट पर लिए थे। एक फ्लैट में वैदेही अकेले रहने वाली थी और दूसरे फ्लैट में मार्क और लीजा रहने वाले थे। अपने फ्लैट में आकर वैदेही ने जब लीजा और मार्क को फ़ोन करके बुलाया तब वो भी तारा से मिलकर बहुत ख़ुश हुए। जब उन्हें पता चला कि वैदेही आज राघव से नहीं मिलेगी तब लीजा ने हैरत से कहा, "सारे रास्ते तुम जिसके नाम की माला ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 18

दिव्या जी के बाद नंदिनी जी और आश्रम की कई अन्य महिलाएं जो आज इस आश्रम के सहयोग से के साथ अपना जीवन जी रही थीं, इस आश्रम में पले-बढ़े बच्चे जो अब वयस्क होकर ख़ुशहाल जीवन का आनंद ले रहे थे उन सबने इस आश्रम से जुड़ी अपनी यादें और अपनी भावनाएं बारी-बारी से मंच पर आकर साझा कीं। दिव्या जी चाहती थीं कि राघव भी मंच पर आकर कुछ कहे लेकिन राघव ने कृतज्ञता से अपने हाथ जोड़ते हुए कहा कि अगर वो मंच पर गया तो कुछ कहने की जगह बस रो पड़ेगा। उसकी भावनाएं समझते ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 19

राघव ने जब से वैदेही को देखा था उसका मन बेचैन हो उठा था। उसे बार-बार लग रहा था वो शायद इस लड़की को जानता है लेकिन फ़िलहाल उसका दिमाग पहचान का कोई सूत्र उसके हाथ में नहीं थमा रहा था। एक बार फिर जब तारा वैदेही के साथ राघव के केबिन में पहुँची तब राघव ने वैदेही की तरफ देखा लेकिन फिर उसने सोचा कि अगर वो एकटक उसे देखेगा तो कहीं ये अजनबी लड़की उसके विषय में कुछ गलत न सोच बैठे कि वो क्यों उसे घूर-घूरकर देख रहा है। इसलिए उसने तारा की तरफ अपना ध्यान ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 20

आश्रम में राघव के सामने किसी ने भी वैदेही को देखकर उसकी असली पहचान ज़ाहिर नहीं की। लीजा और भी यश के कहे अनुसार वैदेही को जानकी कहकर ही सम्बोधित कर रहे थे। ये देखकर तारा और वैदेही दोनों ने ही राहत की साँस ली। जब खाने-पीने का दौर समाप्त हो गया तब राघव ने दिव्या जी से पूछा कि उन्हें आज के कार्यक्रम में कोई कमी तो महसूस नहीं हुई। "बिल्कुल नहीं बेटा, तुम्हारी टीम ने सब कुछ इतने अच्छे से सँभाल लिया कि मेरे साथ-साथ आश्रम के सभी लोग बहुत ख़ुश हैं।" दिव्या जी ने स्नेह से ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 21

राघव की आदत थी रात में सोने से पहले वो अपनी और वैदेही की तस्वीर को कुछ पल देखने बाद ही अपनी आँखें बंद करता था। आज जब उसने वो तस्वीर निकाली तब यकायक उसकी आँखों के आगे जानकी का चेहरा आ गया। उसकी तरफ से अपना ध्यान हटाने की मशक्कत करते हुए राघव ने तस्वीर में वैदेही को निहारते हुए कहा, "तुम जानती हो न वैदेही, मैं सिर्फ तुम्हारा हूँ। फिर तुम्हीं बताओ ये मुझे क्या हो रहा है? आज तक कभी मेरा मन किसी लड़की को देखकर नहीं भटका, तारा मेरी इतनी अच्छी दोस्त है फिर भी ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 22

देर रात बनारस पहुँचने के कारण अगले दिन सुबह तारा की नींद भी देर से टूटी। वो अभी भी के मूड में नहीं थी कि तभी अंजली ने उसके कमरे का दरवाजा खटखटाते हुए कहा, "तारा बाहर आओ, यश का असिस्टेंट नितिन तुमसे मिलने आया है।" यश का नाम सुनते ही तारा चौंककर उठी। जब उसकी नज़र घड़ी पर पड़ी तब उसने देखा सुबह के साढ़े दस बजने जा रहे थे। "हे भगवान, राघव तो आज मुझे कच्चा चबा जायेगा।" तारा ने बिस्तर से बाहर निकलते हुए कहा और तेज़ी से वो बाहर ड्राइंग-रूम की तरफ भागी जहाँ नितिन ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 23

जब दफ़्तर में लंच ब्रेक हुआ तब तारा राघव के पास आकर बोली, "राघव यार, तुम्हारे चक्कर में न मैंने आज सुबह नाश्ता किया और न ही टिफिन लेकर आयी हूँ।" "तो अब मैं क्या करूँ?" राघव ने उसे घूरते हुए कहा तो तारा बोली, "खाना खिलाओ मुझे और क्या।" राघव ने अपना टिफिन निकालकर मेज़ पर रखा तो तारा ने जानकी से भी खाने के लिए पूछा। "मैं अपना टिफिन लेकर आयी हूँ।" जानकी ने कहा तो तारा बोली, "अच्छा, कम से कम अपनी कुर्सी से उठकर हमारे साथ तो बैठ जाओ।" जानकी जब अपना टिफिन लेकर तारा ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 24

थोड़ी ही देर में जब नंदिनी जी भी घर आ गयीं तब उन्हें चाय देकर राघव और तारा पराठे चल पड़े। उन दोनों को इस तरह एक साथ देखकर नंदिनी जी ने मन ही मन कहा, "न जाने वो दिन कब आयेगा जब इस रसोई में मेरे बेटे के साथ मेरी बहू खड़ी होगी।" उनके लिए थाली परोसते हुए तारा जैसे उनके मन की बात समझ चुकी थी। इसलिए उसने माहौल को हल्का करने के उद्देश्य से शरारत से मुस्कुराते हुए कहा, "चाची, बस कुछ दिन आप अपनी इस बेटी का सुख भोग लीजिये फिर तो यहाँ आपकी बहू ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 25

अपनी आदत के अनुसार सुबह ब्रह्म-मुहूर्त में उठकर जानकी नृत्य अभ्यास कर रही थी लेकिन आज उसका ध्यान एक फिर नृत्य पर एकाग्र न होकर घड़ी की तरफ था। उसकी इस मनोदशा को भाँपते हुए लीजा ने कहा, "ऐसा लगता है तुम सचमुच प्यार-मोहब्बत के चक्करों में उलझकर अपनी राह से भटकने लगी हो।" मार्क ने भी उसकी हाँ में हाँ मिलाते हुए जानकी से कहा, "अगर बड़ी मैडम को ये बात पता चली तो वो बहुत नाराज़ होंगी और उनका नाराज़ होना जायज़ भी है। तुम्हें अपनी असली पहचान बिल्कुल नहीं भूलनी चाहिए।" अपनी गलती स्वीकार करते हुए ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 26

जब राघव और जानकी की कार लुंबिनी की सीमा के पास पहुँचने को हुई तब जानकी ने अचानक गाड़ी दी। राघव जिसकी हल्की-हल्की आँख लग चुकी थी, उसने हड़बड़ाते हुए कहा, "हम पहुँच गये क्या?" "नहीं, अब हमें नेपाल में प्रवेश करने से पहले परमिट बनवाना होगा और गलती से मैं अपना ड्राइविंग लाइसेंस साथ नहीं लायी हूँ, इसलिए अब ड्राइविंग सीट तुम सँभालो। वो तो अच्छा हुआ कि अभी भारत में किसी ने हमें चेकिंग के लिए नहीं रोका वर्ना...।" जानकी ने गाड़ी से उतरते हुए कहा तो राघव भी बाहर निकलते हुए अंगड़ाई लेकर बोला, "वर्ना हमें ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 27

सुबह के साढ़े चार बज रहे थे जब राघव के मोबाइल की घंटी बजी। उसने हड़बड़ाते हुए मोबाइल उठाकर तो उसकी स्क्रीन पर जानकी का नाम फ़्लैश हो रहा था। "हाँ जानकी, क्या हुआ? सब ठीक तो है?" राघव की आवाज़ में घबराहट महसूस करके जानकी को हँसी आ गयी। बमुश्किल अपनी हँसी रोकते हुए उसने कहा, "यस बॉस, सब ठीक है। बस आप उठकर जल्दी से तैयार हो जाइये क्योंकि हमें अपनी ड्यूटी पर निकलना है।" "इतनी सुबह? कम से कम सूरज चाचू को तो जागने दो।" "जब तक हम रिसॉर्ट से निकलेंगे वो भी जाग जायेंगे। बस ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 28

रिसॉर्ट के रेस्टोरेंट में जब राघव और जानकी ने अपना नाश्ता खत्म कर लिया तब राघव ने कहा, "तो हमें कब निकलना है?" "अभी नहीं, एक घंटे बाद। फ़िलहाल तुम मेरे साथ कमरे में चलो और अपना लैपटॉप मुझे दो।" जानकी ने कुर्सी से उठते हुए कहा तो राघव भी उसके साथ चल पड़ा। कमरे में आने के बाद जब राघव ने अपना लैपटॉप जानकी को दिया तब उसने कहा, "मैं यहीं बैठकर काम करूँ या फिर अगर तुम्हें प्राइवेसी चाहिए तो मैं अपने कमरे में भी जा सकती हूँ।" "नहीं, प्राइवेसी की क्या बात है? ये कोई पर्सनल ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 29

तारा भी अभी अपने केबिन में पहुँचकर अपने अगले काम के विषय में सोच ही रही थी कि तभी मोबाइल की घंटी बजी। उसने मेज़ पर रखा हुआ मोबाइल उठाया तो उसकी स्क्रीन पर राघव का नया फ़ोन नंबर फ़्लैश हो रहा था। तारा के फ़ोन उठाते ही दूसरी तरफ से राघव ने चहकते हुए कहा, "तारा... तारा... ओह तारा यू आर ग्रेट, रियली।" "अच्छा, ऐसा क्या कर दिया मैंने?" तारा ने हैरत से पूछा तो राघव बोला, "तुमने बस ये किया है कि तुम मेरे लिए वर्ल्ड की बेस्ट असिस्टेंट ढूँढ़कर लायी हो।" "ओहो, क्या बात है। जानकी ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 30

लुंबिनी बाज़ार पहुँचकर राघव ने अपनी माँ, दिव्या मौसी, तारा और यश के साथ-साथ दफ़्तर के बाकी सभी लोगों लिए उपहारस्वरूप भगवान बुद्ध की मूर्तियां और दूसरे स्मृति चिन्ह खरीदे, साथ ही उसके जिन एम्पलॉयीज़ के बच्चे थे उनके लिए उसने कुछ खिलौने भी खरीदे। तारा के लिए जब राघव अलग से रंग-बिरंगे मोतियों की एक माला खरीद रहा था तब अचानक उसने नोटिस किया कि जानकी एकटक उसी की तरफ देख रही थी। राघव से नज़रें मिलते ही जब जानकी ने अपनी आँखें दूसरी ओर फेर लीं तब राघव ने जल्दी से एक और माला खरीदी और उसे ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 31

गोरखपुर पहुँचने के बाद जब राघव और जानकी खाना खाने के लिए रुके तब राघव ने तारा को फ़ोन "क्या हाल-चाल है मैनेज़र मैडम?" "सब ठीक है बॉस। आप बताइये कहाँ हैं आप?" "मैं तो गोरखपुर में हूँ। रात तक बनारस पहुँच जाऊँगा।" "अरे इतनी जल्दी? काम खत्म हो गया क्या?" "बिल्कुल। मेरी असिस्टेंट इतनी स्मार्ट है कि हमने एक दिन में ही सारा काम निपटा लिया।" "ओहो बढ़िया है। देखकर अच्छा लगा कि बॉस अपनी नयी एमप्लॉयी से ख़ुश हैं।" "हाँ, अब हम सोमवार से इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू कर देंगे।" "बढ़िया है। हमारी पूरी टीम भी ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 32

सभी बड़ों के बाद जब यश, तारा, अंजली, अविनाश, राघव और जानकी खाना खाने बैठे तब बातचीत के दौरान ने राघव से कहा, "भाई ऐसा है कि कल सुबह ठीक ग्यारह बजे तुम दशाश्वमेध घाट पहुँच जाना।" "क्यों? कोई ख़ास बात है क्या?" "हाँ भाई, वहाँ जो बनारसी साड़ी की फैक्ट्री नहीं है जहाँ हाथों से साड़ियां बुनकर देते हैं एक्सक्लूसिव डिज़ाइन वाली, वहाँ तारा को विवाह और सगाई के लिए कुछ साड़ीयों का ऑर्डर देना है।" "तो इस खरीददारी में मेरा क्या काम है यश?" राघव ने हैरत से कहा तो यश बोला, "भाई, जितने घंटे ये शॉपिंग ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 33

लगभग एक घंटे तक लगातार काम करने के बाद जानकी पानी पीने के लिए उठी तो राघव भी उठकर की तरफ चला गया जहाँ लगातार चिड़ियों के चहचहाने की आवाज़ें आ रही थीं। वहाँ जाकर राघव ने देखा जानकी ने चिड़ियों के लिए एक कटोरी में अनाज के दाने और दूसरी कटोरी में पानी भरकर रखा हुआ था। कुछ चिड़िया जब वहाँ पानी पीने आयीं तब पहले उन्होंने एक पल राघव को संशय से देखा और फिर उसकी तरफ से निश्चिंत होने के बाद वो आराम से पानी पीकर उड़ गयीं। राघव को उनका यूँ आना-जाना और चहचहाना इतना ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 34

शाम में जब राघव जानकी के घर पर आया तब तारा को भी यहीं देखकर वो एक पल के सकपका सा गया लेकिन फिर अगले ही पल सहज होते हुए उसने कहा कि उसे विशेष रूप से लीजा और मार्क के कहने पर यहाँ आना पड़ा।"हाँ तो अच्छी बात है न। तुम मुझे सफाई क्यों दे रहे हो? वो हमारे देश के मेहमान हैं तो हमें उनकी खातिरदारी करनी ही चाहिए।" तारा की बात सुनकर राघव हल्के से मुस्कुरा दिया।जब जानकी कमरे से बाहर आयी तब राघव ने उससे लीजा और मार्क को बुलाने के लिए कहा।"बुलाने की ज़रूरत ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 35

शाम में जब राघव जानकी के घर पर आया तब तारा को भी यहीं देखकर वो एक पल के सकपका सा गया लेकिन फिर अगले ही पल सहज होते हुए उसने कहा कि उसे विशेष रूप से लीजा और मार्क के कहने पर यहाँ आना पड़ा।"हाँ तो अच्छी बात है न। तुम मुझे सफाई क्यों दे रहे हो? वो हमारे देश के मेहमान हैं तो हमें उनकी खातिरदारी करनी ही चाहिए।" तारा की बात सुनकर राघव हल्के से मुस्कुरा दिया।जब जानकी कमरे से बाहर आयी तब राघव ने उससे लीजा और मार्क को बुलाने के लिए कहा।"बुलाने की ज़रूरत ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 36

शाम में जब राघव जानकी के घर पर आया तब तारा को भी यहीं देखकर वो एक पल के सकपका सा गया लेकिन फिर अगले ही पल सहज होते हुए उसने कहा कि उसे विशेष रूप से लीजा और मार्क के कहने पर यहाँ आना पड़ा।"हाँ तो अच्छी बात है न। तुम मुझे सफाई क्यों दे रहे हो? वो हमारे देश के मेहमान हैं तो हमें उनकी खातिरदारी करनी ही चाहिए।" तारा की बात सुनकर राघव हल्के से मुस्कुरा दिया।जब जानकी कमरे से बाहर आयी तब राघव ने उससे लीजा और मार्क को बुलाने के लिए कहा।"बुलाने की ज़रूरत ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 37

शाम में जब राघव जानकी के घर पर आया तब तारा को भी यहीं देखकर वो एक पल के सकपका सा गया लेकिन फिर अगले ही पल सहज होते हुए उसने कहा कि उसे विशेष रूप से लीजा और मार्क के कहने पर यहाँ आना पड़ा।"हाँ तो अच्छी बात है न। तुम मुझे सफाई क्यों दे रहे हो? वो हमारे देश के मेहमान हैं तो हमें उनकी खातिरदारी करनी ही चाहिए।" तारा की बात सुनकर राघव हल्के से मुस्कुरा दिया।जब जानकी कमरे से बाहर आयी तब राघव ने उससे लीजा और मार्क को बुलाने के लिए कहा।"बुलाने की ज़रूरत ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 38

शाम में जब राघव जानकी के घर पर आया तब तारा को भी यहीं देखकर वो एक पल के सकपका सा गया लेकिन फिर अगले ही पल सहज होते हुए उसने कहा कि उसे विशेष रूप से लीजा और मार्क के कहने पर यहाँ आना पड़ा।"हाँ तो अच्छी बात है न। तुम मुझे सफाई क्यों दे रहे हो? वो हमारे देश के मेहमान हैं तो हमें उनकी खातिरदारी करनी ही चाहिए।" तारा की बात सुनकर राघव हल्के से मुस्कुरा दिया।जब जानकी कमरे से बाहर आयी तब राघव ने उससे लीजा और मार्क को बुलाने के लिए कहा।"बुलाने की ज़रूरत ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 39

शाम में जब राघव जानकी के घर पर आया तब तारा को भी यहीं देखकर वो एक पल के सकपका सा गया लेकिन फिर अगले ही पल सहज होते हुए उसने कहा कि उसे विशेष रूप से लीजा और मार्क के कहने पर यहाँ आना पड़ा।"हाँ तो अच्छी बात है न। तुम मुझे सफाई क्यों दे रहे हो? वो हमारे देश के मेहमान हैं तो हमें उनकी खातिरदारी करनी ही चाहिए।" तारा की बात सुनकर राघव हल्के से मुस्कुरा दिया।जब जानकी कमरे से बाहर आयी तब राघव ने उससे लीजा और मार्क को बुलाने के लिए कहा।"बुलाने की ज़रूरत ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 40

दिवाली की वो शाम आ चुकी थी जब अमावस्या होने के बावजूद पूरे शहर में कहीं अँधकार का नामों-निशान नज़र नहीं आ रहा था।जानकी ने लीजा और मार्क के साथ मिलकर विधिवत अपने घर में लक्ष्मी-गणेश की पूजा की और फिर प्रसाद लेकर वो तीनों राघव के घर चल दिये।अभी राघव के घर पर नंदिनी जी ने पूजा शुरू ही की थी।जानकी को देखते ही नंदिनी जी ने उसे आरती की थाली देते हुए कहा, "आओ बेटा, आज तुम यहाँ आरती करो।"जानकी की मधुर आवाज़ में आरती सुनता हुआ राघव मानों सम्मोहित सा हो गया था।आरती के समाप्त होने ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 41

दिवाली की वो शाम आ चुकी थी जब अमावस्या होने के बावजूद पूरे शहर में कहीं अँधकार का नामों-निशान नज़र नहीं आ रहा था।जानकी ने लीजा और मार्क के साथ मिलकर विधिवत अपने घर में लक्ष्मी-गणेश की पूजा की और फिर प्रसाद लेकर वो तीनों राघव के घर चल दिये।अभी राघव के घर पर नंदिनी जी ने पूजा शुरू ही की थी।जानकी को देखते ही नंदिनी जी ने उसे आरती की थाली देते हुए कहा, "आओ बेटा, आज तुम यहाँ आरती करो।"जानकी की मधुर आवाज़ में आरती सुनता हुआ राघव मानों सम्मोहित सा हो गया था।आरती के समाप्त होने ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 42

दिवाली की वो शाम आ चुकी थी जब अमावस्या होने के बावजूद पूरे शहर में कहीं अँधकार का नामों-निशान नज़र नहीं आ रहा था।जानकी ने लीजा और मार्क के साथ मिलकर विधिवत अपने घर में लक्ष्मी-गणेश की पूजा की और फिर प्रसाद लेकर वो तीनों राघव के घर चल दिये।अभी राघव के घर पर नंदिनी जी ने पूजा शुरू ही की थी।जानकी को देखते ही नंदिनी जी ने उसे आरती की थाली देते हुए कहा, "आओ बेटा, आज तुम यहाँ आरती करो।"जानकी की मधुर आवाज़ में आरती सुनता हुआ राघव मानों सम्मोहित सा हो गया था।आरती के समाप्त होने ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 43

दिवाली की वो शाम आ चुकी थी जब अमावस्या होने के बावजूद पूरे शहर में कहीं अँधकार का नामों-निशान नज़र नहीं आ रहा था।जानकी ने लीजा और मार्क के साथ मिलकर विधिवत अपने घर में लक्ष्मी-गणेश की पूजा की और फिर प्रसाद लेकर वो तीनों राघव के घर चल दिये।अभी राघव के घर पर नंदिनी जी ने पूजा शुरू ही की थी।जानकी को देखते ही नंदिनी जी ने उसे आरती की थाली देते हुए कहा, "आओ बेटा, आज तुम यहाँ आरती करो।"जानकी की मधुर आवाज़ में आरती सुनता हुआ राघव मानों सम्मोहित सा हो गया था।आरती के समाप्त होने ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 44

दिवाली की वो शाम आ चुकी थी जब अमावस्या होने के बावजूद पूरे शहर में कहीं अँधकार का नामों-निशान नज़र नहीं आ रहा था।जानकी ने लीजा और मार्क के साथ मिलकर विधिवत अपने घर में लक्ष्मी-गणेश की पूजा की और फिर प्रसाद लेकर वो तीनों राघव के घर चल दिये।अभी राघव के घर पर नंदिनी जी ने पूजा शुरू ही की थी।जानकी को देखते ही नंदिनी जी ने उसे आरती की थाली देते हुए कहा, "आओ बेटा, आज तुम यहाँ आरती करो।"जानकी की मधुर आवाज़ में आरती सुनता हुआ राघव मानों सम्मोहित सा हो गया था।आरती के समाप्त होने ...और पढ़े

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फागुन के मौसम - भाग 45

दिवाली की वो शाम आ चुकी थी जब अमावस्या होने के बावजूद पूरे शहर में कहीं अँधकार का नामों-निशान नज़र नहीं आ रहा था।जानकी ने लीजा और मार्क के साथ मिलकर विधिवत अपने घर में लक्ष्मी-गणेश की पूजा की और फिर प्रसाद लेकर वो तीनों राघव के घर चल दिये।अभी राघव के घर पर नंदिनी जी ने पूजा शुरू ही की थी।जानकी को देखते ही नंदिनी जी ने उसे आरती की थाली देते हुए कहा, "आओ बेटा, आज तुम यहाँ आरती करो।"जानकी की मधुर आवाज़ में आरती सुनता हुआ राघव मानों सम्मोहित सा हो गया था।आरती के समाप्त होने ...और पढ़े

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