थोड़ी ही देर में जब नंदिनी जी भी घर आ गयीं तब उन्हें चाय देकर राघव और तारा पराठे सेंकने चल पड़े।
उन दोनों को इस तरह एक साथ देखकर नंदिनी जी ने मन ही मन कहा, "न जाने वो दिन कब आयेगा जब इस रसोई में मेरे बेटे के साथ मेरी बहू खड़ी होगी।"
उनके लिए थाली परोसते हुए तारा जैसे उनके मन की बात समझ चुकी थी।
इसलिए उसने माहौल को हल्का करने के उद्देश्य से शरारत से मुस्कुराते हुए कहा, "चाची, बस कुछ दिन आप अपनी इस बेटी का सुख भोग लीजिये फिर तो यहाँ आपकी बहू आकर आपको नाकों चने चबवायेगी।"
"ओ हैलो, तुम अभी से मेरी पत्नी के खिलाफ़ मेरी माँ के कान क्यों भर रही हो?" राघव ने खीझते हुए कहा तो तारा बोली, "क्योंकि यही एक अच्छी बेटी का काम होता है, है न चाची?"
"हाँ री मेरी अच्छी बेटी। अब बैठो तुम भी।" नंदिनी जी ने तारा के कान खींचते हुए कहा तो राघव बोला, "ज़रा अच्छे से इसके कान खींचना माँ, ये आजकल बहुत बदमाश हो गयी है।"
"कान तो मैं तुम्हारे भी खींचूँगी बेटा जो अभी से अपनी पत्नी की तरफदारी कर रहे हो।" नंदिनी जी ने हँसते हुए कहा तो उनके हाथ पर हाई-फाइव देते हुए तारा भी हँस पड़ी और उन दोनों की इस हँसी ने जैसे राघव के मन से भी सारी उदासी धो-पोंछकर दूर बहा दी।
जब तारा को घर छोड़ने का समय हुआ तब राघव ने उससे कहा, "चलो पैदल ही टहलते हुए चलते हैं।"
"हाँ ये बढ़िया रहेगा।" हामी भरते हुए तारा ने नंदिनी जी को गुड नाईट विश किया और राघव के साथ चल पड़ी।
अभी वो दोनों आधे रास्ते ही पहुँचे थे कि तारा की नज़र लीजा और मार्क के साथ घूमती हुई जानकी पर पड़ी।
तारा ने जब जानकी को पुकारा तब लीजा और मार्क के साथ उसके पास आते हुए जानकी ने कहा, "हैलो तारा।"
"हैलो जानकी, वैसे तुम यहाँ क्या कर रही हो?"
"बस आईसक्रीम खाने का मन हुआ तो हमने सोचा इसी बहाने थोड़ा टहल कर आते हैं।" जानकी ने कहते हुए अब राघव की तरफ देखा जो एकटक उसी को देख रहा था।
जानकी से नज़र मिलते ही राघव ने सकपकाकर अपनी नज़र फेर ली तो मन ही मन मुस्कुराकर जानकी ने लीजा और मार्क का परिचय राघव से करवाते हुए कहा, "राघव सर, ये लीजा और मार्क हैं। यूनिवर्सिटी के मेरे क्लासमेट्स और अब बनारस में मेरे पड़ोसी।
ये दोनों यहाँ बनारस पर अपनी थिसिस लिखने आये हैं।
और लीजा-मार्क, ये राघव सर हैं मेरे बॉस।
राघव ने बारी-बारी से लीजा और मार्क से हाथ मिलाते हुए कहा, "बनारस में आप दोनों का स्वागत है। अगर कभी किसी तरह की मदद की ज़रूरत हो तो आप मुझे फ़ोन कर सकते हैं। मुझे बहुत ख़ुशी होगी।"
"बिल्कुल। थैंक्स फॉर योर कंसर्न मिस्टर राघव।" लीजा ने मुस्कुराते हुए कहा तो मार्क ने भी राघव को थैंक्यू कहने के बाद जानकी से कहा, "अब आईसक्रीम खाने चलें?"
"हम भी चलते हैं न। वैसे भी जानकी ने मुझे अपनी नयी जॉब की ट्रीट नहीं दी है।" तारा ने कहा तो जानकी बोली, "ट्रीट तो मैं सैलरी मिलने पर ही दे पाऊँगी तारा, अभी मेरी जेब की हालत सही नहीं है।"
"चलो ठीक है, कोई बात नहीं। वो देखो वहाँ आईसक्रीम वाला नज़र आ रहा है।" कुछ दूरी पर संकेत करते हुए तारा आगे बढ़ी तो लीजा और मार्क भी उससे बातें करते हुए उसके साथ चल पड़े।
पीछे खड़े राघव और जानकी भी ख़ामोशी से उनका अनुसरण करते हुए चलने लगे कि तभी अचानक जानकी ने ज़ोर से चीख़ते हुए राघव का हाथ कसकर थाम लिया।
"क्या हुआ?" राघव ने घबराकर पूछा तो जानकी ने अभी-अभी अपने पास से गुज़रे कुत्ते की तरफ संकेत करते हुए कहा, "मुझे कुत्तों से बहुत डर लगता है।"
"ओह! कोई बात नहीं। आप इस तरफ आ जाइये।" राघव ने जानकी को अपनी बायीं तरफ करते हुए कहा।
तारा, लीजा और मार्क भी जानकी की चीख़ सुनकर रुक गये थे और पीछे मुड़कर उसे ही देख रहे थे।
जब राघव और जानकी उनके पास पहुँचे तब तारा ने जानकी से पूछा, "क्या हुआ? सब ठीक तो है?"
"हाँ बस वो कुत्ते...।" जानकी ने कहा तो मार्क हँसते हुए बोला, "उफ़्फ़ बेबी, तुम्हारा ये डर कब जायेगा?"
"तुम उसे चिढ़ाना बंद करो।" लीजा ने गुस्से से कहा तो मार्क मुँह बनाते हुए तारा के साथ आईसक्रीम वाले के पास चला गया।
तारा ने राघव की पसंद की आईसक्रीम उसकी तरफ बढ़ायी तो मार्क ने भी जानकी और लीजा को उनकी पसंदीदा आईसक्रीम देते हुए जानकी से कहा, "तुम लकी हो कि ये मिक्स-फ्लेवर वाली आईसक्रीम यहाँ मिल गयी वर्ना या तो तुम हम सबको आईसक्रीम खाते हुए देखती या तुम्हें ज़बरदस्ती किसी दूसरे फ्लेवर से अपना मन बहलाना पड़ता।"
न जाने क्यों राघव को मार्क का यूँ जानकी से घुल-मिलकर बातें करना, उसकी पसंद का ख़्याल रखना अच्छा नहीं लग रहा था, जबकि उसे पता था कि जानकी और वो सहपाठी रह चुके हैं तो ये बहुत नॉर्मल सी बात है।
दूसरी तरफ खाने में जानकी की पसंद और यूँ कुत्तों से उसके डरने की आदत भी राघव को बार-बार उसके और वैदेही के बचपन की याद दिला रही थी।
जानकी, लीजा और मार्क के जाने के बाद तारा को उसके घर छोड़कर जब राघव वापस अपने घर पहुँचा तब बिस्तर पर लेटते हुए अचानक उसका ध्यान अपने उस हाथ की तरफ चला गया जिसे जानकी ने अचानक ही थाम लिया था।
उस लम्हे को याद करते हुए राघव को ख़्याल आया कि जानकी का स्पर्श उसे बिल्कुल भी अपरिचित महसूस नहीं हुआ था, जैसे वो इस हाथ को पहले भी अनगिनत बार थाम चुका है।
"जानकी की पसंद मेरी वैदेही जैसी क्यों है? क्या ये सिर्फ एक संयोग है या आजकल मैं वैदेही के विषय में कुछ ज़्यादा ही सोचता हूँ, उसकी कमी बहुत महसूस करता हूँ इसलिए मुझे कोई वहम हो रहा है?"
ख़ुद से प्रश्न करते हुए राघव ने फिर ख़ुद ही उत्तर देते हुए कहा, "ये मेरे मन का फितूर ही है और कुछ नहीं। भला मेरी वैदेही मेरे सामने होकर मुझसे अजनबियों की तरह क्यों व्यवहार करेगी और किस किताब में लिखा है कि दो अलग-अलग लोगों की पसंद या आदतें एक जैसी नहीं हो सकती हैं?"
सुबह रोड-ट्रिप पर जाने की बात याद करके अब राघव ने कमरे की बत्ती बंद कर दी ताकि उसकी नींद अच्छी तरह पूरी हो सके और पूरे दिन की ड्राइविंग में उसे कोई समस्या न हो।
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अपने बिस्तर पर लेटी हुई तारा इस समय बेसब्री से यश के फ़ोन का इंतज़ार कर रही थी।
जैसे ही उसके मोबाइल की स्क्रीन पर यश का नाम उभरा, तारा ने पहली ही घंटी पर फ़ोन उठाते हुए कहा, "यश, आई लव यू सो मच। मैं बस तुम्हें ही याद कर रही थी।"
"ओहो, चलो अच्छा लगा जानकर। अब जल्दी से बताओ मेरी चमकती हुई तारा शाम में बुझी-बुझी सी क्यों लग रही थी?"
तारा ने अब राघव की मनोदशा के विषय में यश को बताते हुए कहा, "यश, मेरी बात तो जानकी सुन ही नहीं रही है। प्लीज़ तुम ही उसे समझाओ न कि वो ये लुका-छिपी का खेल छोड़कर राघव को अपनी असली पहचान बता दे और फिर वो दोनों हमेशा के लिए एक-दूसरे के हो जायें।
मुझसे राघव की ये तड़प देखी नहीं जा रही है।"
"अच्छा ठीक है। तुमने दोपहर में बताया था कि तुम राघव और जानकी को किसी ऑफिशियल ट्रिप पर भेज रही हो। उसका क्या हुआ?"
"वो दोनों कल सुबह निकलेंगे और चार दिन बाद वापस लौटेंगे।"
"ठीक है, फिर पहले उन दोनों को वापस आने दो तब तक मैं भी वीकेंड पर बनारस आ जाऊँगा और तब हम आमने-सामने जानकी से बात करेंगे।"
"हाँ ठीक है, हो सकता है इन चार दिनों में कोई चमत्कार हो जाये।" तारा ने अपनी आँखें बंद करते हुए कहा तो यश ने उसे रिलैक्स रहने के लिए समझाते हुए आराम से सो जाने की हिदायत देकर फ़ोन रख दिया।
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अगले दिन राघव के साथ अकेले ट्रिप पर जाने की बात सोचते हुए जानकी बहुत ज़्यादा ख़ुश थी।
उसने ध्यान से अपने पर्स से वैदेही के नाम वाले सारे डॉक्यूमेंट्स निकालकर अलमारी में रख दिये और जानकी के नाम वाले डॉक्यूमेंट्स अपने पर्स में डाल लिए।
ट्रिप के लिए अपना बैग पैक करने के बाद जब जानकी सोने के लिए बिस्तर पर आयी तब उसे भी वो पल याद आ गया जब उसने घबराते हुए यकायक राघव का हाथ थाम लिया था।
बरसों बाद राघव का ये स्पर्श उसके मन में हलचल सी मचा गया था। उसका वश चलता तो वो राघव का हाथ यूँ ही थामे खड़ी रहती लेकिन उसे पता था कि इस अधिकार को पाने के लिए अभी उसे एक लंबा सफ़र तय करना है।
"कोई बात नहीं, जहाँ इतने वर्ष कट गयें वहाँ ये छोटा सा सफ़र भी तय हो ही जायेगा।" स्वयं को दिलासे की थपकी देते हुए जानकी ने धीरे-धीरे अपनी आँखें मूंद लीं।
क्रमश: