फागुन के मौसम - भाग 4 शिखा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फागुन के मौसम - भाग 4

तारा ने जैसे ही गेमिंग सेक्टर के लिए राघव के चयन की ये चिट्ठी पढ़ी, ख़ुशी के अतिरेक में चीख़ते हुए उसने राघव को गले लगा लिया।

उसकी इस हरकत पर राघव ने हँसते हुए कहा, "अरे बस कर पगली, अभी तो बस चिट्ठी आयी है। अपनी मंजिल तक पहुँचने के लिए हमें अभी एक लंबा सफ़र तय करना है।"

"ये सफ़र भी तय हो जायेगा दोस्त। तू अपने सारे डॉक्यूमेंट्स की फ़ाइल तो लाया है न?" तारा के पूछने पर राघव ने फ़ाइल वाला पैकेट भी उसे देते हुए कहा, "जी मैडम लाया हूँ क्योंकि मुझे पता है अब आप एक मिनट भी बरबाद नहीं करेंगी।"

"दैट्स लाइक माय गुड बॉय।" तारा ने राघव की पीठ थपथपाते हुए कहा और फिर वो दोनों नज़दीकी साइबर कैफ़े की तरफ चल दिये।

उस कैफ़े में फ़ोन बूथ की भी सुविधा थी, इसलिए राघव ने धड़कते दिल से पहले चिठ्ठी में लिखा हुआ प्रोफेसर अनंत का फ़ोन नंबर डायल किया और फिर उनसे बात करके उसने बताया कि वो उन्हें सारे डॉक्यूमेंट्स फैक्स कर रहा है।

डॉक्यूमेंट्स भेजने के बाद राघव ने कहा, "चल अब बता तू मुझे पार्टी कब दे रही है?"

"किस बात की पार्टी? मेरे पास पैसे-वैसे नहीं हैं।" तारा ने बेचारगी भरे अंदाज़ में कहा तो उसका बैग खोलकर उसमें से उसका पर्स निकालते हुए राघव बोला, "अगले वर्ष तू भी बैंगलोर आ रही है इस बात की पार्टी, समझी।"

"देख राघव, मेरा पर्स वापस कर दे।"

"नहीं करता, जा कर ले जो करना है। वैसे भी अब पंद्रह दिन के बाद तुझे मेरी सूरत कहाँ देखने के लिए मिलेगी।"

"राघव...।" यकायक तारा की आवाज़ में उदासी घुल आयी तो उसके कंधे पर हाथ रखते हुए राघव ने कहा, "तेरे बिना वहाँ मेरा मन नहीं लगेगा। किसी भी तरह अगले वर्ष तुझे बैंगलोर आना ही होगा।"

तारा ने हाँ में सिर हिलाया और फिर राघव का हाथ थामे वो कुछ दूरी पर स्थित एक चाट कॉर्नर की तरफ बढ़ गयी।

चाट कॉर्नर पर बनारस के प्रसिद्ध टमाटर चाट के साथ मलाईदार लस्सी का लुत्फ उठाते हुए दोनों मित्र भविष्य की योजनाओं को बनाने में मगन हो चुके थे।

"हमारा सपना पूरा तो होगा न तारा?" यकायक राघव ने संशय में भरकर पूछा तो उसका हाथ अपने हाथ में लेते हुए तारा ने कहा, "बिल्कुल होगा। मुझे तेरी कर्मठता पर और हमारे जुनून पर पूरा विश्वास है राघव।"

तारा के इसी विश्वास को अपने मन में सहेजे हुए पंद्रह दिन बाद जब राघव बैंगलोर पहुँचा तब एजुकेशन लोन के लिए उसकी बची हुई औपचारिकता पूरी करवाने के बाद प्रोफेसर अनंत ने उसे बताया कि इस लोन से उसके कॉलेज और हॉस्टल की फीस का इंतज़ाम आराम से हो जायेगा और अब बचा उसका निजी खर्च तो इसके लिए उन्होंने उसे दो काम बताये।
पहला था सुबह चार बजे उठकर अख़बार बाँटने का काम और दूसरा कॉलेज के बाद तीन घंटे पास ही स्थित कपड़े की एक बड़ी दुकान में सेल्समैन का काम।

राघव को इन दोनों कामों से कोई आपत्ति नहीं थी।
घर से चलते हुए नंदिनी जी ने उसे जो कुछ रुपए दिये थे उनमें से उसने प्रोफेसर अनंत की मदद से अपने लिए एक सेकंड हैंड साइकिल की व्यवस्था कर ली ताकि अख़बार बाँटने के काम में उसे कोई परेशानी न हो।

महीना बीतते-बीतते राघव बैंगलोर में अच्छी प्रकार व्यवस्थित हो गया।
हर पंद्रह दिन पर वो नियम से अपनी माँ और तारा को फ़ोन करके उन्हें अपना हाल-समाचार देता रहता था और उनका हाल-चाल भी लेता रहता था।

नंदिनी जी के साथ-साथ तारा को भी इस बात की ख़ुशी थी कि राघव ने अपनी मेहनत के बलबूते इस महानगर में, इस बड़े से कॉलेज में अपनी एक छोटी सी लेकिन महत्वपूर्ण जगह बना ली थी।

प्रथम वर्ष की पढ़ाई सफ़लतापूर्वक पूरी करने के बाद अब राघव दूसरे वर्ष में आ चुका था लेकिन तारा के पापा ने अब भी उसे बैंगलोर जाने की इज़ाज़त नहीं दी।

राघव ने भी तारा के पापा से मिलकर उन्हें बैंगलोर के विषय में, कॉलेज के माहौल और अपनी पढ़ाई, इस पढ़ाई के बाद आगे मिलने वाले अवसरों के सम्बन्ध में उन्हें विस्तार से बताया लेकिन वो अब भी तारा को वहाँ भेजने का निर्णय नहीं ले सके और इस बार भी राघव को बिना तारा के अकेले ही बैंगलोर लौटना पड़ा।

एक वर्ष तो तारा ने उम्मीद के सहारे काट लिया था लेकिन इस बार भी अपने सपने को टूटता हुआ देखकर अब उसके मन में दु:ख की छाया गहरी होने लगी थी।

वो समझ चुकी थी कि राघव के साथ गेमिंग सेक्टर में कैरियर बनाने का उसका सपना अब कभी पूरा नहीं होगा।

तारा के पापा भी भलीभाँति उसकी उदासी को महसूस कर रहे थे।
आख़िरकार जब इस उदासी का असर तारा के स्वास्थ्य पर होने लगा और वो दिनों-दिन मुरझाने लगी तब उसके पापा ने अपनी सहमति देते हुए कहा कि वो चाहे तो अगले वर्ष नये सत्र में बैंगलोर जा सकती है।

तारा को सहसा अपने कानों पर विश्वास ही नहीं हुआ कि उसने जो सुना है वो सच है।
जब उसे इस बात का पक्का भरोसा हो गया कि वो जागती हुई आँखों से सपना नहीं देख रही है तब राघव को ये खबर सुनाने के लिए वो बेचैन हो उठी।

अगले इतवार को जैसे ही राघव ने उसे फ़ोन किया उसने उसे ये ख़ुशख़बरी सुनायी कि उसके पापा बैंगलोर में उसके दाखिले के लिए मान गये हैं।

"ये तो बहुत अच्छी बात है तारा लेकिन मैं तुझे एक सुझाव देना चाहूँगा।" राघव ने अपनी ख़ुशी जाहिर करने के साथ-साथ गंभीर आवाज़ में कहा तो तारा ने उत्सुकता से पूछा, "कैसा सुझाव?"

"देख अब फिजिक्स के साथ जब तूने दो वर्ष की पढ़ाई कर ही ली है तो एक वर्ष के लिए अपनी इस मेहनत को बरबाद मत कर।
पहले तू बीएचयू से अपनी डिग्री ले ले और तब बैंगलोर आ जा।"

"अच्छा ठीक है, मेरे ख़्याल से तू सही बोल रहा है।
ये बता कि अब अगले वर्ष जब तेरी भी डिग्री पूरी हो जायेगी तब तूने आगे के लिए क्या सोचा है?"

"प्रिंसिपल सर और प्रोफेसर अनंत ने मुझे सुझाव दिया है कि मैं अगले वर्ष कैम्पस में होने वाले इंटरव्यूज दूँ और दो वर्ष नौकरी करने के साथ-साथ डिस्टेंस एजुकेशन के तहत एमबीए कर लूँ।
इस नौकरी की मदद से मैं अपना पहला एजुकेशन लोन चुका दूँगा तो फिर आगे गेमिंग सेक्टर में मास्टर्स डिग्री की पढ़ाई करने के लिए मुझे वापस लोन भी मिल जायेगा और तब तक अपनी कम्पनी शुरू करने के लिए बिजनेस मैनेजमेंट सेक्टर की भी जानकारी मिल जायेगी।"

"हम्म... ये प्लान तो बढ़िया है लेकिन तुझे इसमें बस एक छोटा सा बदलाव करना होगा।"

"कैसा बदलाव?"

"यही कि तू नौकरी दो वर्ष नहीं बल्कि तीन वर्ष करेगा जब तक कि मैं गेमिंग सेक्टर में अपनी बैचलर डिग्री नहीं ले लेती।
हो सकता है तब तक अपनी नौकरी से तू इतने पैसे जोड़ ले कि तुझे आगे की पढ़ाई के लिए न लोन लेना पड़े और न ही अतिरिक्त मेहनत करनी पड़े।
जब मेरी बैचलर डिग्री पूरी हो जायेगी तब कम से कम हम दोनों मास्टर्स क्लास में एक साथ बैठा करेंगे जैसे स्कूल में बैठा करते थे।"

"हाँ ये भी सही है। चल फिर ये बात पक्की रही।" राघव ने कल्पना में ही तारा के हाथ पर अपना हाथ रखते हुए कहा तो तारा ने भी अपने ख़्यालों में उसका हाथ मजबूती से थाम लिया।

तीसरे वर्ष की पढ़ाई के दौरान राघव अब पहले से भी ज़्यादा गंभीर हो चुका था ताकि कैम्पस प्लेसमेंट के लिए आने वाली बेस्ट कम्पनी में एक अच्छे पैकेज पर उसका चयन हो सके।

अंततः राघव की मेहनत और उसका जुनून रंग लाया और एक अच्छे वेतन के साथ उसे अपनी पहली नौकरी मिल ही गयी।

चूँकि अब राघव को कॉलेज का हॉस्टल खाली करना था इसलिए अपने कुछ स्थानीय क्लासमेट्स की मदद से उसने अपने रहने के लिए एक कमरे का एक साधारण सा घर ढूँढ़ा और अपनी फाइनल परीक्षा देने के बाद अपना छोटा सा बैग लेकर उस कमरे में शिफ्ट हो गया।

मकान मालिक ने उसके खाने की व्यवस्था टिफिन सर्विस के माध्यम से करवा दी थी इसलिए अब राघव निश्चिंत होकर बस रिजल्ट के आने की राह देखने लगा ताकि उसके ठीक बाद वो अपनी नौकरी शुरू कर सके।
क्रमश: