फागुन के मौसम - भाग 5 शिखा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फागुन के मौसम - भाग 5

जहाँ एक तरफ राघव ने गेमिंग सेक्टर की अपनी पहली डिग्री सफ़लतापूर्वक बहुत ही अच्छे अंकों के साथ प्राप्त कर ली, वहीं तारा भी बीएचयू से फिजिक्स में अपनी बैचलर डिग्री लेने के बाद अपने सपने को सच करने बैंगलौर आ चुकी थी।

पहले वीकेंड पर जब राघव को अपनी नौकरी से और तारा को कॉलेज से छुट्टी मिली तब राघव सुबह-सुबह ही तारा से मिलने उसके हॉस्टल पहुँच गया।

जब तारा अपने कमरे से निकलकर राघव के पास हॉस्टल के ऑफिस में आयी तब राघव ने उससे पूछा कि उसे यहाँ कॉलेज में कैसा लग रहा है, और उसकी पढ़ाई कैसी चल रही है।

"क्या हम बैंगलौर घूमते हुए बात कर सकते हैं?"

तारा के इन शब्दों का आशय समझते हुए राघव उसे साथ लेकर हॉस्टल से बाहर निकल गया।

एक खूबसूरत से पार्क में प्रकृति के सान्निध्य में राघव के साथ बैठी हुई तारा ने कहा, "आज यहाँ बस अपने गंगा घाट की कमी ख़ल रही है।"

"सच कहा तुमने। इसलिए मैंने सोचा है कि अपना मास्टर्स पूरा करते ही हम बनारस वापस लौट जायेंगे और वहीं अपना काम शुरू करेंगे।"

"अपना काम? क्या ये संभव होगा राघव?"

"क्यों नहीं होगा? इसलिए तो मैं एमबीए की भी पढ़ाई कर रहा हूँ।"

"बढ़िया है, फिर तो कोई टेंशन ही नहीं है।" तारा ने मुस्कुराते हुए कहा और फिर वो बोली, "अभी तो यहाँ कॉलेज में मेरी शुरुआत ही हुई है लेकिन फिर भी मेरा अनुभव बहुत ही अच्छा रहा।"

"जैसे?"

"जैसे की हम जो बचपन से लेकर आज तक इतने मज़े में ये गेम्स खेलते रहे हैं इनको बनाने के पीछे कितनी मेहनत लगती है, कितना कुछ करना पड़ता है, सोचना पड़ता है, फिर उस सोच को धीरे-धीरे मूर्त रूप देना पड़ता है... ये सब जानते हुए मेरा मन बहुत रोमांचित हो उठा है।"

"इसका अर्थ ये है कि इस सेक्टर में आने का हमारा निर्णय बिल्कुल सही था क्योंकि मुझे भी तीन वर्ष यहाँ पढ़ाई करते हुए या फिर अब इस सेक्टर में नौकरी करते हुए कभी किसी तरह के बोझ का अनुभव नहीं हुआ।
हमेशा ऐसा महसूस हुआ जैसे मैं अपनी पसंद का कोई गेम ही खेल रहा हूँ।"

"तभी तो कहते हैं जिस काम में दिल लगे अपना दिमाग भी वहीं लगाना चाहिए।"

तारा की इस बात से राघव पूर्णतः सहमत था।

कम पैसों में भी बिना किसी शिकन के जीवन जीने की जो कला राघव ने अपनी माँ से सीखी थी उसकी वजह से उसने तीन वर्षों में धीरे-धीरे इतने पैसे जोड़ लिए कि अब वो गेमिंग सेक्टर में अपनी मास्टर्स डिग्री के लिए पहले वर्ष की फीस आसानी से भर सकता था लेकिन दूसरे वर्ष की फीस अब भी उसके लिए एक समस्या थी।

दफ्तर में राघव के परफॉर्मेंस और उसकी मेहनत से पूर्णतः संतुष्ट उसके बॉस ने जब राघव की समस्या सुनी तब उन्होंने उसे फुल टाइम की जगह अपनी ही कम्पनी में पार्ट टाइम जॉब करने का सुझाव दिया जिसे राघव ने सहर्ष स्वीकार कर लिया।

तारा को भी पार्ट टाइम जॉब का ये विचार बहुत पसंद आया और उसने भी कैंपस इंटरव्यू में इस जॉब के लिए अप्लाई कर दिया।

जिस दिन तारा के हाथ में उसका ज्वाइनिंग लेटर आया, उस दिन न सिर्फ तारा और राघव बल्कि तारा का परिवार विशेष रूप से उसके पापा बहुत ख़ुश थे कि अपनी बेटी पर विश्वास करके उसे घर से इतनी दूर भेजने का उनका निर्णय गलत साबित नहीं हुआ और उनकी बेटी ने अपनी काबिलियत प्रमाणित कर ही दी।

एक के बाद एक कदम आगे बढ़ाते हुए अब राघव और तारा दोनों के पास गेमिंग सेक्टर में मास्टर्स की डिग्री के साथ-साथ इस सेक्टर में काम करने का अच्छा-ख़ासा अनुभव आ चुका था।

राघव ने जब तारा से बनारस वापस चलने के विषय में बात की तब तारा ने उससे कहा कि वो एक और वर्ष यहाँ बैंगलोर में फुल टाइम जॉब का अनुभव लेना चाहती है।

चूँकि अब तारा भी कॉलेज के हॉस्टल में नहीं रह सकती थी, इसलिए उसके लिए एक ढंग के फ्लैट की व्यवस्था करके राघव बनारस जाने की तैयारी करने लगा।

राघव अभी जिस कंपनी में काम कर रहा था वहीं मंजीत का भाई सुजीत भी बतौर चपरासी काम करता था।
उसने जब सुना कि अब राघव बनारस में अपनी कंपनी शुरू करने वाला है तब उसने अपने भाई की सिफारिश करते हुए उससे कहा कि वो उसे अपने साथ काम पर रख ले।

मंजीत और सुजीत भी मूलतः उत्तर प्रदेश के ही रहने वाले थे लेकिन नौकरी की तलाश करते-करते उनकी किस्मत उन्हें बैंगलोर ले आयी थी।

सुजीत तो फिर भी किसी तरह यहाँ के माहौल में ढ़ल गया था लेकिन मंजीत अब भी यहाँ सामंजस्य नहीं बैठा पा रहा था।

कुछ ऐसी ही स्थिति दफ़्तर में राघव के जूनियर्स हर्षित, विकास और राहुल की भी थी।

इसलिए उन सबने राघव के साथ बनारस जाने की इच्छा प्रकट की।

राघव ने स्पष्ट शब्दों में उन सबको ये बात समझायी कि अपना काम शुरू करना इतना आसान भी नहीं है और शुरुआत में वो उन सबको बैंगलोर के बराबर वेतन भी नहीं दे पायेगा।

इसके बावजूद अगर वो उसके साथ आना चाहते हैं तो ये उसके लिए बहुत ही ख़ुशी की बात होगी क्योंकि बिना एक काबिल टीम के वो अकेला कुछ नहीं कर पायेगा।

मंजीत के साथ-साथ बाकी सबने भी एक स्वर में कहा कि भले ही अभी पैसे थोड़े कम हों लेकिन अपने घर, अपने प्रदेश में जो सुकून मिलेगा वो यहाँ अपनों से दूर रहकर कभी भी नहीं मिल पायेगा।

तारा के सामने जब ये बात आयी तब उसने राघव के साथ-साथ सबको सुझाव देते हुए कहा कि पहले राघव बनारस जाकर कम्पनी शुरू करने की नींव रख दे, जैसे की दफ़्तर के लिए जगह ढूँढ़ना, कम्पनी का रजिस्ट्रेशन करवाना, काम शुरू करने लिए बेसिक मशीनों की व्यवस्था करना...वगैरह-वगैरह तब बाकी लोग यहाँ बैंगलोर की अपनी नौकरी छोड़कर उसके पास जायें।
इस तरह उनके पास शुरुआती दौर में काम चलाने के लिए कुछ पैसे तो रहेंगे।

सबको तारा का ये सुझाव बहुत पसंद आया, इसलिए जल्दी ही सबको अपने पास बनारस बुलाने की तसल्ली देकर राघव अकेला ही बनारस वापस लौट गया।

राघव के बैंगलोर जाने के बाद नंदिनी जी के जीवन में जो सूनापन भर गया था, उसके दूर होते ही नंदिनी जी का मन भी एक नयी ऊर्जा से भर उठा था।

उनके पास अपने विवाह में मिले हुए जो भी थोड़े-बहुत जेवर थे वो सब उन्होंने राघव को सौंपते हुए उससे कहा कि वो इनके बदले बैंक से कुछ लोन ले सकता है जिससे उसे अपना काम शुरू करने में मदद मिलेगी।

राघव ने वो जेवर ले तो लिए लेकिन उसे पता था इसके बदले मिलने वाले पैसे, और जो थोड़ी-बहुत सेविंग उसने और तारा ने की है, सिर्फ उसकी मदद से वो अपना काम नहीं शुरू कर पायेगा।

नंदिनी जी जहाँ काम करती थीं, वहाँ की मालकिन जिन्हें राघव बचपन से ही मौसी कहकर बुलाता था जब उन्हें नंदिनी जी से राघव की समस्या के विषय में पता चला तब उन्होंने राघव को प्रदेश सरकार की तरफ से लघु व्यापारियों को दिये जाने वाले ऋण के लिए आवेदन देने का सुझाव दिया।

ये आवेदन देने से पहले राघव को अपनी कंपनी का रजिस्ट्रेशन करवाना था।
रजिस्ट्रेशन फॉर्म पर जब कम्पनी का नाम लिखने की बारी आयी तब राघव ने बिना कुछ सोचे-विचारे वहाँ लिखा ' वैदेही गेमिंग वर्ल्ड'।

नंदिनी जी के साथ-साथ मौसी ने भी जब ये नाम पढ़ा तब उनके चेहरे पर हैरानी के भाव उभर आये लेकिन उन्होंने राघव से कोई प्रश्न किये बिना बस आगे बढ़ने के लिए उसके सिर अपने आशीर्वाद का हाथ रख दिया।

तारा को भी जब कम्पनी के इस नाम के विषय में पता चला तब वो थोड़ा चौंकी लेकिन हमेशा की तरह राघव के हर निर्णय को उसकी पूरी सहमति हासिल थी।

हालाँकि सरकार से ऋण प्राप्त करना इतना आसान नहीं था लेकिन मौसी की थोड़ी मदद के साथ तीन महीने की भागदौड़ के पश्चात राघव को अपना काम शुरू करने के लिए कुछ ऋण मिल ही गया।

अपनी कम्पनी के लिए जगह तय करने के साथ ही जब राघव ने शुरुआती मशीनों को मँगवाने का ऑर्डर दे दिया तब बैंगलोर से मंजीत, हर्षित, विकास और राहुल भी उसके पास बनारस चले आये।

उन सबने मिलकर दफ़्तर का सारा सेटअप किया और अब उन्हें कुछ दिनों की छुट्टी में तारा के बनारस आने की प्रतीक्षा थी क्योंकि बिना तारा की उपस्थिति के राघव अपनी कम्पनी का शुभारंभ नहीं करना चाहता था।
क्रमश: