फागुन के मौसम - भाग 3 शिखा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फागुन के मौसम - भाग 3

राघव की ट्रेन जब बैंगलोर पहुँची तब शाम के साढ़े छः बज रहे थे।
उसकी परीक्षा अगले दिन सुबह दस बजे थी।

रेलवे स्टेशन पर पूछताछ करके उसने वहीं पास ही स्थित एक छोटे से बजट होटल में रात गुज़ारने का निर्णय लिया।

होटल के छोटे से कमरे में आने के बाद राघव ने हाथ जोड़कर ईश्वर को धन्यवाद देते हुए कहा कि अगर इस महानगर में उसे ऐसी सस्ती जगह न मिली होती तो पता नहीं अभी वो अकेला यहाँ क्या कर रहा होता।

अगली सुबह परीक्षा हॉल में किसी तरह का व्यवधान न आये इस विचार से राघव ने थोड़ा बहुत खाना खाया और फिर सुबह जल्दी उठकर परीक्षा से पहले एक आख़िरी बार रिवीजन करने की बात सोचकर वो सोने की कोशिश करने लगा।

अनजान अजनबी जगह पर पहले तो उसे नींद आने में कठिनाई महसूस हुई लेकिन दो दिन ट्रेन में बिताने के कारण होने वाली थकान जब एक बार उस पर हावी हुई तब उसकी बंद होती आँख सीधे सुबह पाँच बजे अलार्म की घंटी सुनकर ही खुली।

फ्रेश होकर राघव ने एक बार फिर अपने साथ लायी हुई किताब के पन्ने पलटे और फिर होटल वाले से परीक्षा केंद्र जो दरअसल वही कॉलेज था, का पता समझने के बाद धड़कते दिल से वो अपनी मंजिल की तरफ चल पड़ा।

आज जब उसने अपने हाथ से तारा का दिया हुआ चंदन का टीका अपने माथे पर लगाया और पेड़े का टुकड़ा मुँह में डाला तब तारा की प्रतीक्षारत उदास आँखों की तस्वीर उसके सामने कुछ यूँ खींच गयी कि इस कॉलेज में पढ़ने का राघव का निश्चय और भी पक्का हो गया।

तय समय से कुछ पहले ही राघव कॉलेज पहुँच चुका था।
वहाँ आये हुए दूसरे छात्रों को देखकर एकबारगी राघव थोड़ा घबरा सा गया लेकिन अगले ही पल उसने अपने कंधे पर हाथ रखते हुए मानों स्वयं को ढांढस बँधाया और जैसे ही कॉलेज का प्रवेश द्वार खुला वो मन ही मन अपने महादेव को स्मरण करते हुए उस कमरे की तरफ बढ़ गया जहाँ उसकी सीट थी।

लिखित परीक्षा खत्म होने के एक घंटे बाद से सभी अभ्यर्थियों का साक्षात्कार लिया जाने वाला था।

इस एक घंटे के ब्रेक में राघव तारा की कमी शिद्दत से महसूस कर रहा था।
उसे बार-बार वो लम्हे याद आ रहे थे जब तारा ने बड़ी जतन से इधर-उधर से जानकारी जुटाकर उसे साक्षात्कार की तैयारी करवायी थी।

उसे कैसे शालीनता से कमरे का दरवाजा खोलकर अंदर जाने की आज्ञा माँगनी है, कैसे सधे हुए कदमों से अंदर जाना है, बैठने के लिए कुर्सी कैसे खिसकानी है, चेहरे के हाव-भाव से लेकर साक्षात्कार में पूछे गये प्रश्नों का उत्तर देते समय अपने हाथों की गति को किस प्रकार नियंत्रण में रखना है... इस सबका अभ्यास तारा ने उसे बखूबी करवाया था।

अपनी लिखित परीक्षा से पूर्णतः संतुष्ट राघव को जब कुछ छात्रों के बाद साक्षात्कार के लिए पुकारा गया तब तारा की हिदायतों को मन ही मन दोहराते हुए उसने साक्षात्कार कक्ष का दरवाजा हल्के से खोलते हुए पूछा, "क्या मैं अंदर आ सकता हूँ सर।"

"जी मिस्टर राघव, आइये।" कॉलेज के प्रोफेसर मिस्टर अनंत ने जैसे ही कहा राघव ने धीमे कदमों से अंदर प्रवेश किया।

राघव से उसका सामान्य परिचय पूछने के बाद जब उससे पूछा गया कि गेमिंग इंडस्ट्री में कैरियर बनाने का अनोखा ख़्याल उसे कैसे आया तब उसने बचपन से अब तक वीडियो-गेम के प्रति अपने पैशन की बात बिना किसी झिझक के बयान कर दी।

विडियो गेम्स से संबंधित कुछ बेसिक प्रश्नों के जब उसने बिल्कुल सही-सही उत्तर दिये तब प्रोफेसर अनंत ने उसकी तरफ अपना हाथ बढ़ाते हुए कहा, "मिस्टर राघव, आपसे बात करके हमें अच्छा लगा। उम्मीद है हम जल्दी ही आपको यहाँ अपने कॉलेज में देखेंगे।"

अब राघव ने सोचा कि शायद ये सही अवसर है जब उसे अपनी आर्थिक स्थिति के विषय में बात कर लेनी चाहिए।

जब उसने एजुकेशन लोन और पार्ट टाइम जॉब की ज़रूरत के विषय में कहा तब कॉलेज के प्रिंसिपल मिस्टर नायर ने उसे भरोसा दिलाते हुए कहा, "मिस्टर राघव, अगर आप अपने पैशन के लिए इतना जुनून रखते हैं तब आपका चयन पक्का होने पर हम आपकी मदद ज़रूर करेंगे।
अब सब कुछ आपके लिखित परीक्षा के अंकों पर निर्भर करता है।"

"जी सर, मैं समझता हूँ। थैंक्यू सो मच।" राघव ने हाथ जोड़ते हुए कहा और मन में उम्मीद की हल्की सी रोशनी लिए हुए वो वापस अपने होटल की तरफ चल पड़ा।

दो दिन के बाद जब राघव बनारस पहुँचा तब तारा उसके इंतज़ार में प्लेटफार्म पर ही खड़ी थी।

तारा को देखते ही राघव के होंठो पर मुस्कान आ गयी।

"कैसा रहा बैंगलोर में सब कुछ?" तारा ने व्यग्रता से पूछा तो राघव ने उसे बताया कि उसे पूरी उम्मीद है की उसका चयन ज़रूर हो जायेगा।

"तुम्हारे मुँह में घी शक्कर।" तारा ने अपने हाथ जोड़ते हुए आसमान की तरफ देखकर कहा तो राघव बोला, "घी शक्कर छोड़ मुझे तो जल्दी से गरमा-गरम कचौड़ियां खानी हैं। ऐसा लग रहा है मानों मैं जन्मों का भूखा हूँ।"

"पता था मुझे कि तू यही बोलेगा इसलिए मैं कचौड़ियों का दोना साथ लेकर आयी हूँ।" तारा ने अपने हाथ की तरफ संकेत करते हुए कहा तो राघव ने उससे वो दोना लेते हुए वहीं प्लेटफार्म पर एक खाली जगह ढूँढी और तारा के साथ भरपेट कचौड़ियां खाने के बाद अगले दिन उससे मिलने की बात कहकर अपने घर चला गया।

घर पहुँचकर जब उसने नंदिनी जी को मिस्टर नायर से हुई बातचीत के विषय में बताया तब नंदिनी जी ने भी उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए प्रार्थना करते हुए उसे अपनी शुभकामनाएँ दीं।

लगभग दो महीने गुज़र चुके थे। तारा को बारहवीं के अंकों और प्रवेश परीक्षा के आधार पर बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में दाखिला मिल गया था, जिसके बाद उसने फिजिक्स(ऑनर्स) के साथ अपनी आगे की पढ़ाई शुरू कर दी थी।

वो जब भी कॉलेज जाने के लिए निकलती थी तब राघव अक्सर उसके साथ हो लिया करता था।

ऐसे ही एक सुबह जब तारा को कॉलेज छोड़कर राघव अपने घर लौटा तब डाकिए ने आकर उसके नाम की एक चिट्ठी उसे दी।

लिफ़ाफ़े पर बैंगलोर के कॉलेज का नाम और मोहर देखकर राघव ने उत्सकुता से उसे खोला तब उसमें उसके चयनित होने संबंधी सूचना थी, साथ ही उसमें स्पष्ट निर्देश था कि अगर वो दाखिले के लिए एजुकेशन लोन लेना चाहता है तो मिस्टर अनंत को शीघ्र-अतिशीघ्र अपने सारे ज़रूरी डॉक्यूमेंट्स फैक्स के माध्यम से भिजवा दे ताकि वो आगे की प्रक्रिया शुरू करवा सकें।

राघव ने एक बार, दो बार, लगातार... इस चिट्ठी को पढ़ा और फिर घर में ताला लगाकर पहले वो नंदिनी जी के ऑफिस पहुँचा।
वहाँ पहुँचकर उसने उन्हें अपने चयनित होने की ख़ुशख़बरी सुनायी और फिर वो तेज़ी से तारा के कॉलेज की तरफ बढ़ गया।

बीच क्लास में अचानक जब चपरासी ने आकर तारा से कहा कि प्रिंसिपल सर ने उसे अपने केबिन में बुलाया है तब हैरान-परेशान तारा चपरासी के पीछे-पीछे चल पड़ी।

वो जैसे ही प्रिंसिपल सर के सामने पहुँची उसने वहाँ बैठे हुए राघव को देखा जो इस समय बहुत गंभीर नज़र आ रहा था।

तारा राघव से कुछ पूछती उसके पहले ही प्रिंसिपल सर ने उससे कहा, "मिस तारा, आप जाकर अपना बैग ले आइये। आपकी माँ ने आपको घर पर बुलाया है।"

"माँ ने?" तारा ने चौंकते हुए कहा तो प्रिंसिपल सर बोले, "हाँ, तभी तो उन्होंने आपके घर पर काम करने वाले लड़के को यहाँ भेजा है।
चपरासी ने मुझे बताया कि ये लड़का रोज़ आपको कॉलेज छोड़ने और लेने आता है।"

"जी सर। मैं अभी आती हूँ।" तारा ने अब कुछ गुस्से से राघव की तरफ देखते हुए उत्तर दिया और अपना बैग लेने क्लासरूम की तरफ बढ़ गयी।

तारा के वापस आते ही राघव ने उसके हाथ से उसका बैग लिया और प्रिंसिपल सर को धन्यवाद कहते हुए उसने तारा को बाहर आने का संकेत किया।

कॉलेज से बाहर आने के बाद जब वो दोनों वहाँ से कुछ आगे बढ़ गये तब तारा ने राघव की पीठ पर कसकर एक मुक्का मारते हुए कहा, "मेरा कॉलेज बंक करवाने के लिए तुझे और कोई बहाना नहीं मिला जो तूने ख़ुद को मेरे घर का नौकर बना लिया? गधा कहीं का।"

"तेरा ये गधा बहुत देर से एक ख़ुशख़बरी का बोझ अकेला ढ़ो रहा है तारा, चल अब मेरा बोझ हल्का कर दे।" कहते हुए राघव ने बैंगलोर से आयी हुई चिट्ठी निकालकर उसके हाथ में रख दी।
क्रमश: