फागुन के मौसम - भाग 9 शिखा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फागुन के मौसम - भाग 9

तारा ने जैसे ही राघव के केबिन का दरवाजा खोला, राघव ने नशीली आँखों से उसकी तरफ देखते हुए कहा, "वैदेही, तुम आ गयी।"

यश ने सवालिया निगाहों से तारा को देखा तो पाया उसके चेहरे पर भी हैरानी के भाव थे।

अपनी कुर्सी से उठकर तारा की तरफ आते हुए राघव के कदम अभी लड़खड़ाए ही थे कि यश और तारा ने फुर्ती से आगे बढ़कर उसे सँभाल लिया।

उनके देखते ही देखते राघव की आँखें बंद हो चुकी थीं।

"मुझे लगता है राघव बेहोश हो गया है।" यश ने घबराते हुए कहा तो तारा बोली, "हमें राघव को घर लेकर जाना होगा। हम डॉक्टर को भी वहीं बुला लेंगे।"

"हाँ, यही ठीक रहेगा लेकिन यार नीचे हमारे परिवार वाले बैठे हैं। वो राघव को इस हाल में देखकर क्या कहेंगे?"

यश की चिंता समझते हुए तारा ने कहा कि वो पीछे के दरवाजे से बाहर निकल सकते हैं जहाँ उन्हें कोई नहीं देखेगा।

"और अगर हमारे परिवार वालों ने हमें ढूँढ़ा तो?"

यश के इस प्रश्न को सुनकर पहले तो तारा के माथे पर बल पड़ गये फिर उसने यश से आग्रह करते हुए कहा, "यश प्लीज़, तुम अपने माँ-पापा को फ़ोन कर दो कि मैं, तुम और राघव ज़रा घाट किनारे जा रहे हैं और हम थोड़ी देर में वापस आ जायेंगे।"

"हाँ, ये सही रहेगा। रुको पहले राघव को दो मिनट बैठाने दो।"

तारा ने हामी भरी तो उन दोनों ने राघव को पास ही लगे हुए सोफे पर किसी तरह बैठाया और फिर यश ने अपनी बहन का नंबर डायल किया।

राघव के पास बैठी हुई तारा की नज़र यकायक मेज़ पर रखे हुए राघव के पर्स पर पड़ी।

उसने सोचा पर्स को इस तरह दफ़्तर में छोड़ना सही नहीं है, क्या पता होश में आने के बाद राघव को इसकी ज़रूरत पड़े तो वो परेशान हो जायेगा।

इसलिए उसका पर्स उठाकर वो अपने पास रख ही रही थी कि तभी पर्स में से एक छोटी सी तस्वीर निकलकर उसके पैरों के पास जा गिरी।

तारा ने वो तस्वीर उठायी तो उसने देखा इसमें लगभग दस वर्ष का राघव अपनी हमउम्र लड़की के साथ मुस्कुराता हुआ नज़र आ रहा था।

"ये तुम्हारे हाथ में क्या है?" यश ने अपना मोबाइल जेब में डालते हुए पूछा तो तारा ने तस्वीर उसकी तरफ बढ़ा दी।

एक नज़र इस तस्वीर को देखने के बाद यश ने उसे वापस राघव के पर्स में सँभालकर रख दिया और फिर उसने तारा से कहा कि वो राघव को उठाकर नीचे ले जाने में उसकी मदद करे।

तारा और यश ने राघव को उठाया ही था कि राघव बेहोशी की हालत में फिर बुदबुदाया, "वैदेही, देखो मैं तुम्हारा पसंदीदा पीला गुलाल ले आया हूँ।
तुम इससे मेरे साथ होली खेलोगी न?"

राघव की ये हालत, उसकी बेचैनी, वैदेही के लिए उसकी तड़प देखकर तारा की आँखों में आँसू आ गये थे।

जब वो तीनों यश की कार के पास पहुँचे तब यश ने सँभालकर राघव को पीछे की सीट पर बैठाया और तारा से भी उसके साथ बैठने के लिए कहकर वो ख़ुद ड्राइविंग सीट पर बैठ गया।

अपने आँसू पोंछते हुए तारा ने अब यश से पूछा कि उसके घरवालों ने फ़ोन पर क्या कहा?

"दीदी ने कहा है कि आराम से जाओ और आराम से लौटना। हम सब यहाँ बहुत एंजॉय कर रहे हैं क्योंकि तारा ने बहुत ही अच्छी पार्टी ऑर्गनाइज की है।"

"अच्छा।" तारा ने गहरी साँस लेते हुए कहा तो यश बोला, "तारा, वैदेही कौन है? क्या उसने हमारे राघव को धोखा दिया है?"

"मुझे नहीं पता यश। मैंने आज पहली बार राघव के मुँह से ये नाम सुना है और वो तस्वीर देखी है।"

"कमाल है। तुम सचमुच राघव की बेस्ट फ्रेंड हो न वो भी सोलह वर्षों से?"

"हाँ यश। मैं राघव की ज़िन्दगी के हर अच्छे-बुरे पहलू से वाकिफ़ हूँ सिवा वैदेही के। उसने आज तक मुझसे कभी उसकी चर्चा नहीं की और न ही मैंने आज तक कभी उसे किसी लड़की के साथ देखा है।
अगर वो अभी वैदेही से मिल-जुल रहा होता तो मुझे पता होता।"

"इसका मतलब है वो शायद बचपन में ही उससे दूर हो गयी थी और हमारा राघव आज तक उसकी यादों में जी रहा है, तभी तो उसने अपनी कम्पनी का नाम भी वैदेही गेमिंग वर्ल्ड रखा है।"

"हाँ शायद। जब उसने हमारी कम्पनी को ये नाम दिया था तब मुझे थोड़ी हैरत हुई थी। मैंने सोचा भी कि उससे इस नाम के पीछे का कारण पूछूँ लेकिन फिर मुझे लगा कि शायद राघव प्रभु श्रीराम का भक्त है इसलिए उसने ये नाम सोचा होगा क्योंकि श्री राम भी तो माता सीता अर्थात वैदेही के बिना अधूरे हैं।"

"हम्म... अब तो ये गुत्थी राघव के होश में आने के बाद ही सुलझेगी।"

"लेकिन यश, अगर राघव को होश में आने के बाद कुछ याद नहीं रहा तो क्या हमें उससे इस विषय में बात करनी चाहिए? कहीं उसे ये तो नहीं लगेगा कि हम उसके निजी जीवन में घुसपैठ कर रहे हैं।"

"भला बेस्ट फ्रेंड्स के बीच भी कुछ निजी होता है तारा? देखो राघव ने अपनी दोस्ती निभाते हुए मुझे और तुम्हें कितना सपोर्ट किया है। फिर हम अपने दोस्त को ऐसे तड़पते हुए कैसे छोड़ सकते हैं जबकि हम दोनों देख रहे हैं कि वो वैदेही के बिना किस हाल में है।"

"लेकिन आज तक राघव ने कभी मुझे इस विषय में कुछ नहीं बताया तो...।"

"तो क्या हुआ? कोई फर्क नहीं पड़ता इससे।" यश ने गंभीरता से कहा तो तारा को उसकी बात से सहमत होना ही पड़ा।

जब वो दोनों राघव के घर पहुँचे तब तक नंदिनी जी भी अपने आश्रम में सबके साथ होली मनाकर घर वापस आ चुकी थीं।

राघव की ये हालत देखकर वो बहुत ज़्यादा घबरा गयीं।
उन्हें पानी का ग्लास देते हुए तारा ने बताया कि राघव ने गलती से भांग वाली ठंडाई पी ली है। वो जल्दी ही ठीक हो जायेगा, इसलिए वो ज़रा भी न घबरायें।

फिर उसने डॉक्टर को फ़ोन किया तो डॉक्टर ने होली की भीड़-भाड़ में आने की असमर्थता जताते हुए उससे कहा कि वो राघव के चेहरे पर लगातार पानी डाले और उसके हाथ-पैर पर बर्फ रगड़े तो राघव को होश आ जायेगा।
ज़्यादा चिंता करने की कोई बात नहीं है।

डॉक्टर के बताये अनुसार यश और तारा ने राघव की तीमारदारी करनी शुरू की।
लगभग आधे घंटे बाद जब धीरे-धीरे राघव ने आँखें खोलीं तब यश ने तारा को रसोई से दही लेकर आने के लिए कहा।

यश को दही की कटोरी देकर तारा ने उससे कहा कि वो राघव को दही खिलाये तब तक उसे नंदिनी जी से कुछ ज़रूरी बात करनी है।

नंदिनी जी की इच्छा तो नहीं थी कि वो इस समय राघव को छोड़कर कहीं जायें लेकिन तारा की बात भी उनके लिए मायने रखती थी इसलिए वो उसके साथ अपने कमरे में चली गयीं।

राघव को अभी भी अच्छी तरह होश नहीं आया था। उसकी आँखें तो खुल गयी थीं लेकिन उसके आस-पास क्या हो रहा है ये उसे बिल्कुल भी समझ नहीं आ रहा था।

यश ने जब दही से भरा हुआ चम्मच उसकी तरफ बढ़ाया तब पहले तो कुछ सेकंड राघव उसे घूरता रहा, फिर यश के कहने पर उसने चुपचाप दही खा ली।

नंदिनी जी के कमरे में आने के बाद तारा ने उनसे कहा, "चाची, क्या आप मुझे बता सकती हैं कि वैदेही कौन है?"

तारा की बात सुनते ही नंदिनी जी के चेहरे पर परेशानी और उलझन के भाव उभरने लगे।

उन्होंने चौंकते हुए कहा, "वैदेही? तुम अचानक ये प्रश्न क्यों पूछ रही हो बेटा? क्या राघव ने तुमसे कुछ कहा है?"

"उसने हमारी इतनी पुरानी और पक्की दोस्ती के बावजूद आज तक मुझसे कुछ नहीं कहा, इसलिए तो मैं आपसे पूछ रही हूँ।"

"जब उसने कुछ कहा ही नहीं तब तुम्हें इस नाम के विषय में कैसे पता चला?"

"क्योंकि राघव नशे की हालत में वैदेही को पुकार रहा था।"

"तो मेरा और उसकी मौसी का संदेह सच ही था। उन्नीस वर्षों के बाद भी राघव वैदेही को भूल नहीं सका है।"

"उन्नीस वर्ष? ये क्या चक्कर है चाची। आप मुझे सब कुछ सच-सच बताइये प्लीज़।"

"बताती हूँ बेटा, सब बताती हूँ।" नंदिनी जी ने किनारे रखी एक कुर्सी पर बैठते हुए तारा को भी बैठने का संकेत करते हुए कहा और अपनी आँखें बंद करके मानों वो बीते हुए दिनों को एक बार फिर अपने अंतर्मन के माध्यम से प्रत्यक्ष देखने लगीं।
क्रमश: