जब यश और तारा अपने परिवार के पास पहुँचे तब सबने उन्हें बैठने के लिए कहा।
तारा अंजली के पास जाकर बैठने लगी तो यश की दीदी 'कीर्ति' ने उसे अपने पास बैठा लिया और यश को अविनाश ने अपने साथ बैठने के लिए बुला लिया।
यश की माँ मिसेज मेहता ने तारा से विवाह और परिवार को लेकर जब उसकी सोच के विषय में पूछा तब तारा ने उनसे बस इतना ही कहा कि उसके हिसाब से लड़की के नये परिवार को लड़की को पर्याप्त समय देना चाहिए ताकि वो अपने ससुराल वालों को जान सके, पहचान सके।
साथ ही उन्हें लड़की को इतना कंफर्टेबल तो महसूस करवाना ही चाहिए कि अगर कभी उससे कोई भूल हो जाये तो वो ये सोच-सोचकर ही अधमरी न हो जाये कि अब सब लोग क्या कहेंगे।
अगर उसका परिवार, उसका पति उसे खुले दिल से अपनायें, उसे उचित मान-सम्मान दें, उसकी निजी आकांक्षाओं को भी समझें और उसे सहयोग दें तो शायद ही कोई ऐसी लड़की होगी जो अपने परिवार से अलग होकर सिर्फ पति के साथ एकाकी जीवन जीना चाहेगी क्योंकि जो सुख, जो आनंद साथ रहने में है वो अकेलेपन में कभी नहीं है।
यश के साथ-साथ उसका परिवार भी तारा के इस उत्तर पर काफ़ी प्रसन्न नज़र आ रहा था।
कीर्ति ने अब तारा से वैदेही गेमिंग वर्ल्ड में उसकी पोजिशन, जिम्मेदारियों और निकट भविष्य के लक्ष्य के विषय में कुछ प्रश्न किये जिनके उत्तर तारा ने बिना किसी लाग-लपेट के देते हुए उन सबको बताया कि कैसे वीडियो गेम खेलते हुए उसकी और राघव की दोस्ती हुई, फिर उन्होंने इसी फील्ड में अपना कैरियर बनाने के विषय में सोचा और उन दोनों को ही इस मुकाम तक पहुँचने के लिए कितना संघर्ष करना पड़ा, इसलिए वो अपने नये परिवार से यही आशा रखती है कि जैसे वो ईमानदारी से उनके प्रति अपनी जिम्मेदारी से कभी नहीं भागेगी, वैसे ही वो भी उसके सपनों को सच करने में हमेशा अपना सकारात्मक सहयोग देंगे।
"लेकिन यश की नौकरी तो ट्रांसफर वाली है, कभी यहाँ तो कभी वहाँ... फिर तुम दोनों का साथ कैसे निभेगा?" मिसेज मेहता ने जब ये प्रश्न तारा के सामने रखा तब तारा की जगह यश ने इसका उत्तर देते हुए कहा, "बिल्कुल वैसे ही माँ जैसे दीदी और जीजाजी की तरह दूसरे अन्य वर्किंग कपल्स का निभ रहा है।
हमारे पास काफ़ी सारी छुट्टियां होंगी, तो कभी अपनी सुविधानुसार हम वर्क फ्रॉम होम कर लेंगे, साथ बिताने के लिए एक अच्छा-ख़ासा वीकेंड होगा हमारे पास।
और फिर जब हम रोज़ एक-दूसरे की शक्ल नहीं देखेंगे तो कभी एक-दूसरे से बोर भी नहीं होंगे।"
यश की आख़िरी बात सुनते ही उसके जीजाजी प्रकाश ने कहा, "ये बात आपने बिल्कुल सही कही साले साहब। बस पति-पत्नी को एक-दूसरे पर विश्वास होना चाहिए, उनके रिश्ते में प्रेम होना चाहिए, फिर इन सब छोटी-मोटी बातों का कोई अर्थ नहीं रह जाता है।"
कीर्ति भी इस बात से पूरी तरह सहमत थी।
तारा के परिवार ने भी औपचारिकतावश यश से कुछ प्रश्न पूछे और फिर सबने उनके रिश्ते पर अपनी सहमति की मोहर लगाने में देर नहीं की।
यश के पापा मेहता जी रिटायरमेंट के बाद पिछले एक वर्ष से अपने स्वर्गवासी पिता की इच्छानुसार बनारस के पास ही स्थित छोटे से कस्बे 'शिवदासपुर' में अपने पुश्तैनी मकान में रह रहे थे।
उन्होंने मिसेज मेहता को संबोधित करते हुए कहा, "देखो जी, बड़े-बुजुर्गों को शायद पहले से ही भविष्य का आभास हो जाता है। इसलिए पिताजी ने हमें इस घर में रहने भेज दिया क्योंकि उन्हें पता था कि अगर हम यहाँ नहीं रहें तो उनकी पोता बहू बेचारी मुश्किल में पड़ जायेगी कि छुट्टी मिलने पर वो पति के साथ रहे, ससुराल जाये या मायके जाये।
अब न तो इसका मायका ज़्यादा दूर होगा, न इसके दफ़्तर से इसका ससुराल दूर होगा और बाकी की दूरी तो ये दोनों पति-पत्नी आपस में समझ ही लेंगे।"
मिसेज मेहता भी इस बात पर सहमति जताते हुए बोलीं, "सचमुच, कल तक कहाँ मुझे गुस्सा आता था कि हम क्यों ही इस कस्बे में रहने चले आयें लेकिन अब महसूस हो रहा है कि हमारे बुजुर्गों का ये घर तो हमारे लिए इतनी सुलझी और समझदार बहू का आशीर्वाद लेकर आया है।"
उनकी बातें सुनने के बाद अब तारा की घबराहट कम हो गयी थी और वो सबके बीच स्वयं को सहज महसूस कर रही थी।
सहसा प्रकाश ने यश से राघव के विषय में पूछा तब यश ने बहाना बनाते हुए कहा कि उसकी माँ का फ़ोन आ गया था, इसलिए वो अपने घर चला गया।
मेहता जी ने जब माथुर जी से राघव की प्रशंसा करते हुए कहा कि वो बहुत अच्छा लड़का है। जब वो यश और तारा के विषय में उनसे बात करने और होली पार्टी के लिए उन्हें निमंत्रण देने आया था तब उन्हें महसूस ही नहीं हुआ कि वो कोई गैर है।
राघव के लिए इतने सम्मानित शब्द सुनकर माथुर जी भी गर्वमिश्रित अंदाज़ में बोले, "आपने बिल्कुल सही कहा मेहता जी। हम बचपन से ही राघव को देखते आ रहे हैं और हमारे लिए तो वो बेटे के समान ही है। उसी के भरोसे मैं अपनी तारा को बैंगलोर भेजने की हिम्मत भी जुटा पाया वर्ना अकेली लड़की को इतनी दूर भेजने का साहस नहीं था मुझमें।"
"सचमुच आज के दौर में राघव और तारा की दोस्ती एक मिसाल है।" यश ने मुस्कुराते हुए कहा तो तारा के होंठो पर भी मुस्कुराहट आ गयी।
जल्दी ही सगाई की तारीख पक्की करने की बात कहकर जब यश का परिवार सबसे विदा लेकर चला गया तब तारा भी मंजीत को होली पार्टी समाप्त करने से संबंधित कुछ हिदायतें देकर अपने परिवार के साथ घर के लिए रवाना हो गयी।
घर पहुँचने के बाद नहा-धोकर जब वो सुकून से कुछ देर सोने के इरादे से अपने बिस्तर पर लेटी तब अचानक राघव के ख़्याल ने उसे घेर लिया।
"मैं तुम्हारी तकलीफ़ दूर करके ही रहूँगी राघव, तुम ज़रा भी चिंता मत करना।" तारा ने जैसे राघव को नहीं स्वयं को सांत्वना दी और शाम में राघव से मिलने की बात सोचते हुए धीरे-धीरे किसी तरह उसने अपनी आँखें बंद कर लीं।
अपने बिस्तर पर करवट बदलते हुए राघव याद करने की कोशिश कर रहा था कि होली पार्टी में ठंडाई पीने के बाद उसके साथ क्या हुआ, उसने क्या किया, किससे क्या कहा, वो कब और कैसे घर तक आया लेकिन उसे कुछ भी याद नहीं आ रहा था।
"कोई बात नहीं, तारा को तो सब पता ही होगा। और अगर चिंता की कोई बात होती तो वो मुझे तारा का चेहरा देखते ही पता चल जाती।" राघव ने स्वयं को समझाया और वो भी शाम की प्रतीक्षा करने लगा ताकि यश और तारा के रिश्ते के विषय में उन दोनों के परिवार ने क्या प्रतिक्रिया दी इस विषय में वो उनसे जान सके।
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'फ्लोरेंस', इटली का एक खूबसूरत शहर जिसे कलाप्रेमियों का स्वर्ग कहा जाता है, उसी फ्लोरेंस शहर के प्रसिद्ध कला केंद्र 'ओपेरा डि फ़िरेंज़े' में देश-विदेश के जाने-माने कलाकार वहाँ आयोजित होने वाले वार्षिक संगीत और नृत्य कार्यक्रम 'मैगियो म्यूजिकल फियोरेंटीनो' का जश्न मनाने एकत्रित हुए थे।
वर्ष 1933 से ही फ्लोरेंस में ये वार्षिक समारोह वसंत ऋतु के आगमन के प्रतीक स्वरूप मनाया जाता रहा है।
आज एक जानी-मानी युवा भारतीय नर्तकी भी ओपेरा डि फिरेंजे के मंच पर अपनी नृत्य कला का प्रदर्शन करते हुए इस जश्न में अपनी भागीदारी देने वाली थी।
ओपेरा हाउस के अंदर मंच के ठीक पीछे कलाकारों के तैयार होने के लिए बने हुए कक्ष में अपनी नृत्य प्रस्तुति से पहले तैयार होते हुए इस युवा नर्तकी ने वहीं पास की कुर्सी पर बैठी हुई एक प्रौढ़ महिला से कहा, "माँ, आज हमारे भारत में भी होली का उत्सव मनाया जा रहा होगा न।"
"हम्म... छोड़ो ये सब और तैयार होने पर ध्यान दो।" उस महिला ने अनिच्छा से उत्तर देते हुए कहा और अपने आप को व्यस्त रखने के लिए वो अपने पर्स से एक मैगजीन निकालकर पढ़ने लगी।
तैयार होने के बाद इस युवा नर्तकी ने अपना बैग खोला जिसमें एक बहुत पुरानी सी दिखने वाली नोटबुक रखी हुई थी।
उसने नोटबुक के पन्नों के बीच में बड़े ही जतन से सहेजकर रखी हुई एक बहुत पुरानी तस्वीर को नज़र भर देखा और उसे नाजुक़ हाथों से सहलाने के बाद उसने जल्दी से नोटबुक बंद करके बैग की ज़िप को भी बंद कर दिया।
क्रमश: