फागुन के मौसम - भाग 35 शिखा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फागुन के मौसम - भाग 35

भाग-35

जब तक राघव डिनर बनाता रहा तब तक जानकी भी वहीं खड़ी उससे बातें करती रही।

डिनर बनने के बाद जानकी ने महसूस किया कि उसकी मेंहदी सूख चुकी थी फिर भी राघव के साथ का आनंद लेने के लिए उसने जानबूझकर ऐसा दर्शाया कि उसकी मेंहदी अब भी गीली है।

 

राघव ने उसे चिंता न करने की सलाह देते हुए कहा, “मैंने वर्षों तक तारा को अपने हाथों से खाना खिलाया है जब वो इसी तरह दोनों हथेलियों में मेंहदी लगाकर ठीक खाने के समय मेरे पास चली आया करती थी, इसलिए तुम भी रिलैक्स रहो।”

 

आज राघव के हाथों से खाते हुए जानकी को बार-बार अपना बचपन याद आ रहा था जब उसके रूठने पर राघव उसका पसंदीदा खाना अपने हाथों से उसे खिलाकर फिर उसे मनाया करता था।

 

सहसा उसकी पलकों से आँसू की एक बूँद छलक उठी तो उसे आहिस्ते से पोंछते हुए राघव ने कहा, “क्या हुआ जानकी? ये आँसू...?”

 

“कुछ नहीं, बस माँ की याद आ गई।”

 

“अच्छा तो तुम वीकेंड पर जाकर उनसे मिल आओ।”

 

“हाँ इस बार जाऊँगी और डोंट वरी दफ़्तर में अपना काम करके जाऊँगी ताकि अगर मुझे लौटने में थोड़ी देर भी हो जाए तो तुम्हें परेशानी न हो।”

 

“ओह बाबा, तुम काम की इतनी फ़िक्र करती हो कि लगता है मैं नहीं तुम वहाँ की मालकिन हो।”

 

“वो तो मैं हूँ ही, बस तुम्हें नहीं पता।” जानकी ने मन ही मन कहा और फिर अपने इस ख़्याल पर वो ख़ुद ही मुस्कुरा पड़ी।

 

उसे यूँ मुस्कुराते हुए देखकर राघव कुछ कहने ही वाला था कि तभी दरवाज़े की घंटी बजी।

 

राघव ने उठकर दरवाज़ा खोला तो सामने लीजा और मार्क खड़े थे।

 

राघव को इस समय यहाँ देखकर उन्होंने जानकी की तरफ देखा तो जानकी ने अपनी हथेलियां उनके सामने कर दीं।

 

खाना खत्म करके राघव ने टेबल पर से से सारी प्लेट्स उठाकर किचन के सिंक में रखीं और फिर जानकी के साथ-साथ लीजा और मार्क को भी गुड नाईट बोलकर वो वहाँ से निकल गया।

 

“तुम हमसे गुस्सा तो नहीं हो कि हमें आने में देर हो गई?” मार्क के पूछने पर जानकी ने कहा, “बिल्कुल भी नहीं। अच्छा हुआ जो तुम दोनों यहाँ नहीं थे।”

 

“वो तो हमने देख ही लिया। हमारे यहाँ होने पर राघव तुम्हें अपने हाथ से खाना कैसे खिलाता?” लीजा ने हँसते हुए कहा तो जानकी भी उस लम्हे को याद करके मुस्कुरा उठी।

 

इन बीते हुए महीनों में अब राघव जानकी के साथ अपने जुड़ाव को लेकर बहुत सहज हो चुका था, इसलिए अब किसी भी तरह की कोई उलझन शायद ही कभी उसे परेशान करती थी।

 

आज भी जब वो जानकी के साथ बिताए हुए इस समय के विषय में सोच रहा था तब उसके चेहरे पर एक सुकून छाया हुआ था, न कि पहले की तरह तनाव की कोई रेखा वहाँ नज़र आ रही थी।

 

तारा और यश की सगाई की शाम आ चुकी थी। राघव जब नंदिनी जी और दिव्या जी को साथ लेकर बैंक्वेट हॉल पहुँचा तब उसकी नज़र तारा के साथ ही खड़ी जानकी पर पड़ी जिसने आज एक बार फिर साड़ी पहन रखी थी और अवसर के अनुसार किया गया उसका श्रृंगार भी उस पर ख़ासा खिल रहा था।

 

वो जानकी के पास जा ही रहा था कि तभी अविनाश ने उसे बुलाकर कहा कि लड़के वाले बस पहुँच ही रहे हैं और उसे भी उन सबका स्वागत करना है।

 

हामी भरते हुए राघव अविनाश और माथुर जी के साथ प्रवेश द्वार की तरफ बढ़ गया।

 

जब यश का परिवार वहाँ पहुँचा तब तारा के परिवार ने ज़ोर-शोर से उन सबका स्वागत किया और उन्हें अंदर लेकर चल पड़े जहाँ पंडित जी सगाई की रस्म आरंभ करने के लिए उन सबकी प्रतीक्षा कर रहे थे।

 

यश और तारा को एक साथ बैठाकर पंडित जी ने सगाई की विधि आरंभ की।

इस दौरान जहाँ राघव सामने मेहमानों के लिए लगाई गई कुर्सी पर बैठा था, वहीं जानकी अंजली के साथ मिलकर तारा के पास ही थी।

 

पूजा की विधि संपन्न होने के पश्चात अब तारा ने पहले यश की ऊँगली में अंगूठी पहनाई और फिर यश ने भी तारा की ऊँगली में अंगूठी पहनाकर सगाई की रस्म पूरी की।

 

अब बारी-बारी से सभी मेहमान आकर भावी वर-वधु को शुभकामनाएँ और उपहार देते हुए उनके साथ अपनी तस्वीरें खिंचवा रहे थे।

 

वैदेही गेमिंग वर्ल्ड से भी हर्षित, राहुल, विकास, मंजीत और मिश्रा जी ने जब यश और तारा के साथ तस्वीरें खिंचवा लीं तब लीजा और मार्क भी आगे आए।

उनकी तस्वीरें क्लिक हो जाने के बाद प्रकाश ने कहा, “लो भाई, राघव की टीम से तो सब लोग जोड़ियों में तस्वीरें खिंचवा कर चले गए और राघव अकेला पड़ गया।”

 

“बिल्कुल नहीं जीजाजी, जानकी है न उसका साथ देने के लिए।” यश ने पास ही खड़ी जानकी की तरफ संकेत किया तो जानकी आकर उसके पास खड़ी हो गई और राघव तारा के साथ खड़ा हो गया।

 

इस तस्वीर के क्लिक होने के बाद कीर्ति ने कहा, “भाई इस खुशी के अवसर पर थोड़ा डांस का माहौल तो जमाना ही चाहिए।”

 

सब उसकी बात से सहमत नज़र आए और अगले ही मिनट डीजे की धुन ने वहाँ समां बाँध दिया।

 

राघव ने देखा सबके साथ तारा और जानकी भी डांस के इस माहौल में ऐसी डूब गई थीं कि उनका ध्यान उसकी तरफ बिल्कुल भी नहीं था, इसलिए वो धीरे से वहाँ से निकलकर बाहर अपनी कार में आकर बैठ गया।

 

सबकी फरमाइश पर जब जानकी ने ‘ये गलियां, ये चौबारा…’ नामक गीत पर नृत्य किया तो सबके मुँह से बस एक ही शब्द निकला, “वाह!”

 

अब खाने-पीने का दौर शुरू हो चुका था।

यश और तारा को एक टेबल पर बैठाकर उन्हें खाने की प्लेट देते हुए अविनाश ने कहा, “अरे भाई, ये राघव कहाँ है? उससे कहो खाना शुरू हो चुका है और उसके पसंदीदा दही-भल्ले उसकी राह देख रहे हैं।”

 

तारा ने अब चौंकते हुए अपने पास खड़ी जानकी की तरफ देखा और उन दोनों के मुँह से एक साथ ही निकला, “राघव...।”

 

“मैं देखती हूँ वो कहाँ है।” जानकी ने कुछ चिंतित होकर कहा और फिर एक किनारे जाकर उसने राघव को फ़ोन किया।

 

“राघव, कहाँ हो तुम?”

 

“बाहर अपनी गाड़ी में।”

 

“ओहो अंदर आओ न। अविनाश भईया तुम्हें खाने के लिए बुला रहे हैं।”

 

“अच्छा, आता हूँ मैं।”

 

फ़ोन रखकर जब राघव अंदर आया तब जानकी ने उसे खाने की प्लेट देते हुए कहा, “तुम जाकर यश भईया और तारा के साथ बैठो, मैं भी अपनी प्लेट लेकर आती हूँ।”

 

“ठीक है।” कहकर राघव जब यश और तारा के पास पहुँचा तो उसने देखा लीजा और मार्क भी वहीं बैठे हुए थे।

 

राघव की तरफ एक कुर्सी खिसकाते हुए यश ने उससे कहा, “कहाँ चले गए थे तुम?”

 

“तुम दोनों का गिफ्ट मैं गाड़ी में भूल गया था वही लाने गया था।” राघव ने अपनी जेब से दो बॉक्स निकालकर उन दोनों की तरफ बढ़ाया तो यश और तारा ने उसे थैंक्यू कहते हुए खाना शुरू करने के लिए कहा।

 

“जानकी को आ जाने दो।” राघव ने अभी कहा ही था कि जानकी भी वहाँ आ गई।

 

उसे खाली हाथ देखकर तारा ने कहा, “तुम्हारी प्लेट कहाँ है?”

 

“अरे वहाँ इतनी भीड़ है कि मैं खाना ले ही नहीं पाई।”

 

“अच्छा रुको मैं भईया से बोलती हूँ।” तारा ने अविनाश को ढूंँढ़ते हुए कहा तो राघव बोला, “रहने दो, मेहमानों को कोई परेशानी नहीं होनी चाहिए। हम तो घर के ही हैं।”

 

“तो क्या घर के लोग भूखे रहेंगे?” तारा ने जानकी की तरफ देखते हुए कहा तो राघव बोला, “मैंने ऐसा कब कहा? मेरी प्लेट में देखो कितना खाना है जो मैं और जानकी आराम से खा सकते हैं।”

 

“अच्छा...।” तारा ने एक बार फिर जानकी की तरफ देखा तो उसकी नज़रों और राघव की बात का अर्थ समझते हुए जानकी राघव के साथ वाली कुर्सी पर बैठ गई।

 

राघव और जानकी को इस तरह एक साथ एक प्लेट में खाना खाते हुए देखकर अगर कोई सबसे ज़्यादा खुश था तो वो तारा थी।

 

राघव के चेहरे को ध्यान से देखते हुए तारा भी महसूस कर रही थी कि जानकी के साथ कुछ ही महीने समय बिताने के बाद राघव के अंतर्मन में दर्द और अकेलेपन की जो छाया वर्षों से जमी हुई थी वो अब धुँधली पड़ने लगनी थी।

 

वहीं लीजा और मार्क जिन्होंने वर्षों से जानकी को दुःख की एक अनकही परछाई से घिरे देखा था, अब उसके चेहरे पर वास्तविक खुशी देखकर उन्हें भी बहुत अच्छा लग रहा था।

 

पार्टी खत्म होने के बाद जब नंदिनी जी ने राघव से कहा कि आज रात वो दिव्या जी के साथ उनके घर जा रही हैं तब यकायक लीजा ने भी जानकी से कहा कि उसे मार्क के साथ बनारस की रात देखनी है इसलिए फ़िलहाल वो दोनों उसके साथ घर नहीं जा पाएंगे।

 

“कोई बात नहीं, मैं अकेले चली जाऊँगी।” जानकी ने कहा तो राघव धीमे स्वर में उससे बोला, “क्या मैं तुम्हारे साथ चलूँ?”

 

जानकी ने आहिस्ते से हामी भरी और यश-तारा को एक बार फिर उनके रिश्ते के लिए बधाई देने के बाद वो बाहर राघव की गाड़ी की तरफ बढ़ गई।

 

राघव ने भी यश और तारा समेत बाकी सभी लोगों से विदा ली और तेज़ी से जानकी के पास पहुँचा।

 

जब वो दोनों जानकी के फ्लैट पर आए तब जानकी ने उससे चाय के लिए पूछा।

 

“लगता है तुम्हें चाय का नियम पता नहीं है कि ये पूछी नहीं बस पिलाई जाती है।” राघव ने मुस्कुराते हुए कहा तो जानकी बोली, “ओहो, चलो अब पता चल गया। तुम आराम से बैठो। मैं चाय चढ़ाकर और साड़ी बदलकर तुरंत आती हूँ।”

 

“साड़ी बदलने की क्या ज़रूरत है?” राघव ने अचानक कहा तो जानकी प्रतिउत्तर में कुछ कहे बिना रसोई में चली गई।

 

चाय पीने के दौरान राघव जानकी से इधर-उधर की बातें करता जा रहा था कि सहसा उसने महसूस किया कि जानकी उसके कंधे पर सिर रखकर सो चुकी थी।

 

वो ज़रा सा हिला तो जानकी नींद में ही कुनमुनाई।

 

“जानकी सुनो...तुम अपने कमरे में जाकर सो जाओ।” राघव में दो-तीन बार कहा तो जानकी ने धीरे से अपनी आँखें खोलीं और बिना कुछ कहे अपने कमरे में चली गई।

 

“अब मैं क्या करूँ? बाहर से फ्लैट लॉक करके चला जाऊँ? ये लीजा और मार्क भी पता नहीं कहाँ रह गए।

एक काम करता हूँ मैं उन्हें फ़ोन कर देता हूँ। वैसे भी उनके पास इस फ्लैट की दूसरी चाभी तो है ही।”

 

राघव ने अब अपना मोबाइल निकालकर मार्क का नंबर डायल किया तो उसका मोबाइल बंद आ रहा था।

फिर उसने लीजा का नंबर डायल किया तो उसका भी मोबाइल बंद था।

 

“उफ़्फ़ पता नहीं दोनों कब लौटेंगे। और इस बीच अगर जानकी को बाहर जाना हुआ तब वो क्या करेगी?” सोचते हुए राघव परेशान हो गया और फिर आख़िकार वो चुपचाप यहीं सोफे पर लेट गया।

 

सुबह जब जानकी की नींद खुली और उसने बाहर ड्राइंग रूम में सोफे पर सो रहे राघव को देखा तो वो हैरत में पड़ गई।

 

अब आज राघव की उपस्थिति में वो नृत्य अभ्यास नहीं कर सकती थी इसलिए उसने अपने लिए एक कप चाय बनाई और अपने मोबाइल पर आज का अख़बार पढ़ते हुए राघव के जागने का इंतज़ार करने लगी।

 

थोड़ी देर के बाद जब राघव की नींद टूटी तब ख़ुद को अपने कमरे की जगह कहीं और देखकर वो भी एक मिनट के लिए हैरत में पड़ गया।

 

फिर जब उसे रात की सारी बातें याद आईं तब उसने जानकी को आवाज़ दी।

 

“यहीं हूँ मैं, नज़र तो उठाओ।” जानकी ने कहा तो उसे गुड मॉर्निंग कहने के बाद राघव ने कहा, “तो अब मैं जाऊँ?”

 

“अगर मेरे पास एक एक्स्ट्रा टूथब्रश होता तो मैं कहती मत जाओ लेकिन फ़िलहाल तुम्हें जाना ही पड़ेगा, और रात के लिए सॉरी। मेरे कारण तुम्हें सोफे पर सोना पड़ा।” जानकी ने अपने कान पकड़ते हुए कहा तो राघव बोला, “तुम ऐसा करना अब अगली बार किसी लेट नाईट पार्टी में जाने से पहले इस सोफे की जगह सोफा कम बेड लगवा लेना और एक एक्स्ट्रा ब्रश भी अपने वॉशरूम में रख देना।”

 

“ब्रश तो मैं रख लूँगी पर नए सोफे का बजट नहीं है। मेरा बॉस बहुत कम सैलरी देता है न।”

 

“तुम्हारे इस बॉस का कुछ करना पड़ेगा फिर।”

 

“ठीक है आज दफ़्तर में हम मिलकर उसे सबक सिखाएंगे।”

 

“अच्छा, चलो फिर दफ़्तर में मिलते हैं।”

 

“हाँ, देर मत करना।”

 

“नहीं करूँगा बाबा।” राघव ने कहा और फिर तेज़ी से वो बाहर पार्किंग की तरफ चल दिया।

 

उसके जाने के बाद जब लीजा और मार्क जानकी के पास आए तब जानकी ने उनसे नृत्य अभ्यास शुरू करवाने के लिए कहा।

 

अपने लिए राघव की परवाह और लगाव देखते हुए अब जानकी सोच रही थी कि बस उसे एक सही अवसर मिल जाए और वो राघव से जाकर कह दे कि उसे जिसका इंतज़ार है वो उसके पास आ चुकी है।

 

हमेशा के लिए राघव का साथ पा लेने के इस अहसास ने आज जानकी के रोम-रोम में एक अलग ही तरंग भर दी थी जिसकी लहरें उसके मन के हर एक कोने को रोमांचित किए दे रही थीं।