फागुन के मौसम - भाग 26 शिखा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फागुन के मौसम - भाग 26

जब राघव और जानकी की कार लुंबिनी की सीमा के पास पहुँचने को हुई तब जानकी ने अचानक गाड़ी रोक दी।

राघव जिसकी हल्की-हल्की आँख लग चुकी थी, उसने हड़बड़ाते हुए कहा, "हम पहुँच गये क्या?"

"नहीं, अब हमें नेपाल में प्रवेश करने से पहले परमिट बनवाना होगा और गलती से मैं अपना ड्राइविंग लाइसेंस साथ नहीं लायी हूँ, इसलिए अब ड्राइविंग सीट तुम सँभालो। वो तो अच्छा हुआ कि अभी भारत में किसी ने हमें चेकिंग के लिए नहीं रोका वर्ना...।" जानकी ने गाड़ी से उतरते हुए कहा तो राघव भी बाहर निकलते हुए अंगड़ाई लेकर बोला, "वर्ना हमें अच्छा-ख़ासा जुर्माना भरना पड़ता और क्या।
ख़ैर इसे छोड़ो और मेरी बात सुनो, नेपाल में प्रवेश करने के बाद जब तक हम लोकल सिम कार्ड का इंतज़ाम नहीं कर लेते तब तक हमारे मोबाइल तो डेड रहेंगे, इसलिए तुम एक काम करो कि अभी फटाफट गूगल करके देखो कि हम लुंबिनी में इस समय कहाँ घूमने जा सकते हैं।"

"वो तो मैं कर लूँगी राघव लेकिन अगर तुम बुरा न मानो तो मैं एक बात कहूँ?"

"ओह प्लीज़ यार तुम इतनी फॉर्मेलिटी मत करो। तारा को देखो वो सीधे मुझे ऑर्डर्स दिया करती है।"

"हाँ, पर मैं तारा नहीं हूँ न।"

"अच्छा ठीक है, फिर भी आराम से कहो जो भी कहना है।"

"एक्चुअली मैं न आज बहुत थक गयी हूँ और मेरा कहीं भी घूमने जाने का और हमारे प्रोजेक्ट के लिए नोट्स बनाने का बिल्कुल भी मन नहीं हो रहा है।"

"अच्छा फिर तुम्हारा जो मन है हम वही करेंगे।"

"तो एक काम करते हैं होटल चलकर फ्रेश होते हैं और फिर अपनी-अपनी चाय की प्याली लेकर आस-पास किसी गार्डन में बस यूँ ही सुकून से बैठते हैं। फिर कल सुबह पूरी ऊर्जा के साथ हम अपने काम में जुट जायेंगे।"

"ये बिल्कुल सही रहेगा। तो अब जल्दी से गाड़ी में बैठो ताकि हम फटाफट होटल पहुँच सकें।"

राघव ने स्टीयरिंग व्हील सँभालते हुए कहा तो जानकी भी राहत की साँस लेते हुए उसके साथ बैठ गयी।

भारत और नेपाल की सीमा पर पहुँचने के बाद राघव ने अपनी कम्पनी और गाड़ी के पेपर्स, अपना और जानकी का आईडी कार्ड और साथ में अपना ड्राइविंग लाइसेंस सब चेक करवाने के बाद तीन दिन की वर्क परमिट बनवायी और फिर वो जानकी के साथ लुंबिनी में प्रवेश कर गया।

राघव ने पहले से ही यहाँ के प्रसिद्ध लुंबिनी बुद्धा ग्रीन रिसॉर्ट में अपने और जानकी के लिए दो कमरों की बुकिंग करवा ली थी जो भगवान बुद्ध के जन्मस्थल के नज़दीक ही स्थित था।

जब राघव ने रिसॉर्ट की पार्किंग में गाड़ी लगायी तब यहाँ चारों ओर फैली हुई हरियाली को देखकर जानकी जैसे मंत्रमुग्ध सी हो गयी।

"ये जगह कितनी सुंदर है न राघव। अब हमें सुकून से बैठने के लिए कहीं दूर नहीं जाना पड़ेगा।" जानकी ने गहरी साँस लेते हुए कहा तो राघव को महसूस हुआ कि जानकी को ख़ुश देखकर जैसे उसके मन को एक अलग ही संतोष की अनुभूति हो रही थी।

हामी भरते हुए उसने गाड़ी से अपना और जानकी का बैग निकाला और उसके साथ रिसॉर्ट के अंदर चल पड़ा।

रिसेप्शन पर पहुँचकर राघव ने अपने मोबाइल में मौजूद बुकिंग डिटेल्स रिसेप्शनिस्ट को दिखायीं तो रिसेप्शनिस्ट ने एक हाउसकीपिंग स्टाफ को आवाज़ देते हुए उसे राघव और जानकी को उनके कमरों तक पहुँचाने के लिए कहा जो रिसॉर्ट के पहले फ्लोर पर बिल्कुल अगल-बगल था।

जानकी को उसके कमरे में छोड़कर राघव ने उससे कहा कि जब वो फ्रेश हो जाये तब उसे आवाज़ दे दे।

हामी भरते हुए जानकी ने कमरे का दरवाजा बंद किया और थोड़ी देर सुकून से बिस्तर पर लेट गयी।

राघव ने भी अपना सामान अलमारी में रखा और फिर होटल मैनेज़र से मिलकर उससे अपने और जानकी के लिए लोकल सिम लेने चल पड़ा।

मैनेजर ने राघव को दो सिम देने के साथ-साथ उसे वाई-फाई का भी एक्सेस अभी दिया ही था कि तभी उसके वॉट्सएप पर तारा का फ़ोन आया।

राघव के फ़ोन उठाते ही तारा का शिकायती स्वर उसके कानों से टकराया, "राघव के बच्चे, तू है कहाँ?"

"बस अभी-अभी रिसॉर्ट पहुँचा हूँ यार। मैं सोच ही रहा था कि तुझे फ़ोन करूँ।"

"बड़ी मेहरबानी आपकी राघव साहब वर्ना आज सुबह से तो आपको मेरी याद आयी ही नहीं।"

"अरे नहीं यार, ऐसी कोई बात नहीं है। वो मैं ड्राइव कर रहा था न।"

"हाँ-हाँ, मैं भूल गयी थी कि आप तो सुपरमैन हैं। आप तो रास्ते में कहीं खाने-पीने के लिए भी नहीं रुके होंगे।"

"सॉरी यार तारा।"

"अब तो मैं भी तुम्हें ताने मारूँगी कि तुम्हें जानकी क्या मिली तुम तो मुझे भूल ही गये।"

"तारा प्लीज़ यार।"

"कोई प्लीज़-व्लीज़ नहीं अब, समझे।"

"अच्छा ठीक है, मैं तुम्हें बाद में फ़ोन करूँ? जानकी मेरा इंतज़ार कर रही होगी।"

"ओहो क्या बात है! बढ़िया है, जाओ एंजॉय करो।"

"तारा यार, मैं इस ऑफिशियल ट्रिप पर तुम्हारे कहने से ही आया हूँ और अब तुम ही मुझे ऐसे सताओगी तो कैसे चलेगा?"

"ठीक है चलो जाओ, मन लगाकर काम करो और हमारे वैदेही गेमिंग वर्ल्ड का नाम रोशन करो लेकिन अगर रात में तुमने मुझे फ़ोन नहीं किया तो फिर बनारस पहुँचते-पहुँचते तुम्हारी पिटायी होकर रहेगी।"

"मैं पक्का फ़ोन करूँगा।" इतना कहकर राघव ने फ़ोन रखा और वापस अपने कमरे की तरफ चल पड़ा।

वहाँ पहुँचकर उसने देखा जानकी कमरे से बाहर आकर बालकनी में खड़ी कुछ गुनगुना रही थी।

राघव पर नज़र पड़ते ही उसके पास आते हुए उसने पूछा, "कहाँ चले गये थे तुम?"

"बस ये सिम लेने ताकि हमारे मोबाइल काम कर सकें।" राघव ने सिम कार्ड निकालकर उसे दिखाया तो जानकी ने एक सिम लेकर अपने पास रख लिया।

थोड़ी देर में अपनी-अपनी चाय की प्याली थामे राघव और जानकी रिसॉर्ट के खूबसूरत गार्डन में बैठे हुए सूर्यास्त के मनमोहक दृश्य का आनंद ले रहे थे।

इस समय उन दोनों के ही दरम्यान एक ख़ामोशी छायी हुई थी, फिर भी राघव को महसूस हो रहा था कि ये ख़ामोशी उसे ज़रा भी उबाऊ प्रतीत नहीं हो रही थी, बल्कि उसे यूँ चुपचाप जानकी के साथ बैठे रहना और बीच-बीच में उसकी नज़र बचाकर उसे देखना बहुत अच्छा लग रहा था।

सहसा इस शांत वातावरण में कहीं से बाँसुरी की धुन तैरती हुई उन दोनों के कानों तक पहुँची।

जानकी ने चौंकते हुए इधर-उधर देखा तो पाया उनसे कुछ दूरी पर बैठा हुआ एक लड़का तन्मयता से बाँसुरी को अपने होंठों से लगाकर मीठे संगीत की तान छेड़ रहा था।

बाँसुरी के इस संगीत ने मनमोहक होने के बावजूद राघव को बेचैन कर दिया।
जब उसे लगा कि अब वो इस संगीत को और सहन नहीं कर पायेगा तब वो अपने कमरे में जाने के लिए उठा लेकिन तभी जानकी ने उसका हाथ थामते हुए कहा, "मत जाओ न राघव। देखो तो कितनी सुहानी शाम है और ऊपर से ये संगीत जैसे सीधे हमारी आत्मा को स्पर्श कर रहा है।"

जानकी के इन शब्दों का राघव पर कुछ ऐसा असर हुआ कि उसके कदमों ने अब आगे बढ़ने से इंकार कर दिया और वो एक बार फिर चुपचाप जानकी के पास बैठ गया।

कुछ देर के बाद जब आसमान में अँधेरे ने दस्तक दी तब राघव ने कहा, "अब डिनर करने चलें? हमें समय पर सोना भी है क्योंकि कल हमारा शेड्यूल बहुत व्यस्त रहने वाला है।"

"हाँ चलो।" जानकी भी उठने को हुई तो उसने देखा कि उसका हाथ अब भी राघव के हाथ में ही था।

राघव ने अपना हाथ छुड़ाने की कोई चेष्टा नहीं की थी, इस अहसास से उसका मन पुलक से भर उठा लेकिन अब फ़िलहाल तो उसे ये हाथ छोड़ना ही था इसलिए वो राघव को छोड़कर कुछ तेज़ कदमों से आगे बढ़ी तो उसके पीछे-पीछे आते हुए राघव ने कहा, "हैलो मैडम, ज़रा आराम से चलिये हमें कोई मैराथन नहीं जीतनी है।"

"हाँ वो मैं बस...।" जानकी को समझ में ही नहीं आ रहा था कि वो कहे तो क्या कहे।

"अब प्लीज़ तुम भी तारा की तरह पहेलियां बुझाने का शौक मत पाल लो वर्ना मैं बेचारा कहाँ जाऊँगा।" राघव ने अपना सिर पकड़कर परेशान होने का अभिनय करते हुए कहा तो जानकी खिलखिलाकर हँस पड़ी।

उसके साथ हँसते हुए राघव को भी ये लम्हा बहुत सुखद अहसास दे रहा था जैसे उसे कब से अपने जीवन में ऐसे लम्हे का इंतज़ार रहा हो।

डिनर करने के बाद जब राघव अपने कमरे में आया तब सोने की कोशिश करते हुए जानकी का ख़्याल उसके ज़हन पर हावी होने लगा।

उसने उस लम्हे को याद किया जब वो बाँसुरी की धुन से चिढ़कर वहाँ से जाना चाहता था लेकिन जानकी ने उसे जाने नहीं दिया।

अपने आप से बातें करते हुए राघव ने कहा, "अगर आज मैं तारा के साथ होता तब उसके रोकने से भी मैं कभी नहीं रुकता जबकि वो मेरी बेस्टी है, फिर जानकी के इस आग्रह में ऐसा क्या था कि मैंने सहज ही उसकी बात मान ली।
मैंने क्यों अपने ऊपर उसके अधिकार भरे शब्दों को हावी होने दिया?
ये मुझे हो क्या रहा है आख़िर?
क्यों जब मैं जानकी के साथ होता हूँ तब मुझे कोई और याद नहीं आता, वैदेही की कमी भी नहीं ख़लती मुझे।
बस ऐसा लगता है कि मैं ख़ामोश बैठा जानकी को देखता ही रहूँ।"

फ़िलहाल इस क्यों का उसके पास कोई उत्तर नहीं था, इसलिए उसने बड़ी मुश्किल से अपने आप को समझाकर सोने के लिए मनाया कि वो पर्सनल नहीं प्रोफेशनल ट्रिप पर यहाँ आया है, और वो अपने काम से किसी भी किस्म का समझौता किसी भी वजह से नहीं कर सकता है।
क्रमश: