फागुन के मौसम - भाग 25 शिखा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फागुन के मौसम - भाग 25

अपनी आदत के अनुसार सुबह ब्रह्म-मुहूर्त में उठकर जानकी नृत्य अभ्यास कर रही थी लेकिन आज उसका ध्यान एक बार फिर नृत्य पर एकाग्र न होकर घड़ी की तरफ था।

उसकी इस मनोदशा को भाँपते हुए लीजा ने कहा, "ऐसा लगता है तुम सचमुच प्यार-मोहब्बत के चक्करों में उलझकर अपनी राह से भटकने लगी हो।"

मार्क ने भी उसकी हाँ में हाँ मिलाते हुए जानकी से कहा, "अगर बड़ी मैडम को ये बात पता चली तो वो बहुत नाराज़ होंगी और उनका नाराज़ होना जायज़ भी है। तुम्हें अपनी असली पहचान बिल्कुल नहीं भूलनी चाहिए।"

अपनी गलती स्वीकार करते हुए जानकी ने कहा, "बस आख़िरी बार मुझे माफ़ कर दो। अब ऐसा कभी नहीं होगा।"

"तुम्हारे लिए बेहतर होगा क्योंकि हम नहीं चाहते हैं तुम्हारी एक छोटी सी गलती अब तक की तुम्हारी मेहनत, तुम्हारे नाम और तुम्हारी पहचान पर धब्बा बन जाये।" लीजा के समझाने पर जानकी ने हामी भरते हुए अपनी आँखें बंद करके अपने मस्तिष्क को एकाग्र किया और पुनः उसके पैर संगीत की धुन पर बिना किसी त्रुटि के थिरकने लगे।
*********

घड़ी के काँटों ने अभी आठ बजने का संकेत किया ही था कि राघव की गाड़ी वैदेही गेमिंग वर्ल्ड के परिसर में पहुँच गयी।

सिवा मंजीत के इस समय दफ़्तर में कोई नहीं आया था।
उसने मंजीत से कहा कि जानकी के आते ही वो उसे केबिन में भेज दे तो मंजीत ने उसे बताया कि जानकी आ चुकी है और केबिन में बैठी उसी का इंतज़ार कर रही है।

राघव अब तेज़ी से अपने केबिन में गया तो जानकी को उसकी कुर्सी पर बैठे हुए देखकर उसने उसे गुड मॉर्निंग विश करते हुए कहा, "मिस जानकी, देखकर अच्छा लगा कि आप समय की पाबंद हैं। आइये चलते हैं।"

जानकी ने भी प्रतिउत्तर में राघव को गुड मॉर्निंग विश करने के बाद अपना बैग उठाया और उसके पीछे-पीछे चल पड़ी।

अभी वो राघव के साथ गाड़ी में बैठी ही थी कि राघव ने कहा, "मिस जानकी, क्या आपने अपने बैंक अकाउंट के डिटेल्स दफ़्तर में दे दिये थे?"

"जी सर। मैंने सारे डॉक्यूमेंट्स तारा मैम को दे दिये थे।"

"अच्छा, आप अपना एटीएम तो साथ लायी होंगी न?"

"जी सर।"

"ठीक है फिर। मैंने एकाउंटेंट को मैसेज कर दिया है कि वो आपकी आधी सैलरी आज आपके अकाउंट में ट्रांसफर कर देगा।"

"लेकिन इसकी क्या ज़रूरत थी सर?"

"कल रात आप तारा से कह रही थीं न कि पैसों की परेशानी के कारण आप अभी उसे ट्रीट नहीं दे सकती हैं।

अब देखिये तारा के साथ बचपन से रहते हुए मुझे इतना तो पता चल ही गया है कि लड़कियों को शॉपिंग बहुत अच्छी लगती है।
हम आज ट्रिप पर जा रहे हैं तो हो सकता है आपका वहाँ कुछ खरीदने का मन करे, तब आपको परेशानी न हो इस बात का ख़्याल रखने की जिम्मेदारी मेरी बनती है क्योंकि मैं आपका बॉस हूँ।"

"थैंक्यू सो मच सर। आप सबके विषय में कितना सोचते हैं।" जानकी ने मुस्कुराते हुए कहा तो प्रतिउत्तर में राघव भी मुस्कुरा दिया।

एक घंटे का सफ़र तय करने के बाद जब राघव ने जानकी से पूछा कि वो किसी ढाबे पर नाश्ता करना पसंद करेगी क्या तब जानकी ने अपने बैग से टिफिन निकालते हुए कहा, "मैं अपने और आपके लिए नाश्ता लेकर आयी हूँ।"

"फिर एक काम करते हैं किसी चाय की टपरी के पास थोड़ी देर रुकते हैं और वहीं नाश्ता करके, चाय पीकर तब आगे बढ़ते हैं।"

राघव का ये सुझाव जानकी को भी बहुत पसंद आया।

दस मिनट के बाद ही जब राघव ने गाड़ी रोकी तब जानकी ने अपने साथ लाये हुए पेपर प्लेट में राघव को नाश्ता निकालकर दिया।

प्लेट में अपनी पसंदीदा बेड़मी पूड़ी, आलू की सब्जी और रायता देखकर राघव को एक बार फिर वैदेही की याद हो आयी।

बचपन में जिस दिन आश्रम में उन्हें ये नाश्ता मिलता था तब वैदेही अक्सर अपने हिस्से का रायता भी राघव को दे दिया करती थी क्योंकि उसे पता था कि राघव को पूड़ी के साथ सब्जी से ज़्यादा रायता पसंद है।

राघव ने जैसे ही पूड़ी का पहला कौर खाया, जानकी ने उत्सकुता से उससे पूछा कि उसे नाश्ता कैसा लगा?

"बहुत अच्छा। क्या ये आपने बनाया है? राघव ने जिज्ञासा ज़ाहिर की तो जानकी ने हाँ में सिर हिला दिया।

"क्या आप मुझे इसकी रेसिपी बतायेंगी? वैसे तो मैंने और माँ ने भी कई दफ़ा बेड़मी पूड़ी बनायी है पर उसमें ऐसा स्वाद आज तक नहीं आया।"

"रेसिपी तो मैं आपको बनारस जाने पर ही बता पाऊँगी क्योंकि ये मैंने अपनी माँ की डायरी में से देखकर बनायी है।"

"अच्छा ठीक है पर बता ज़रूर दीजियेगा।" राघव ने अपना नाश्ता खत्म करते हुए कहा तो हामी भरते हुए जानकी ने भी अपनी प्लेट फिनिश कर ली।

नाश्ते के बाद गर्मागर्म चाय के घूँट लेकर वो दोनों एक बार फिर अपने सफ़र पर आगे चल दिये।

लगभग आधे घंटे के बाद राघव ने जानकी की तरफ देखते हुए उससे कहा, "मिस जानकी, क्या आप हमेशा इतनी ही चुप रहती हैं जितनी आज हैं?"

"नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है।" जानकी ने चौंकते हुए कहा तो राघव बोला, "फिर कुछ बातें कीजिये न वर्ना अगर यूँ ही चुप-चुप वाले बोर वातावरण में मुझे झपकी आ गयी तो ये हम दोनों के लिए ही अच्छा नहीं होगा।"

"अब हमारे साथ कुछ बुरा नहीं होगा राघव।" जानकी बुदबुदायी तो राघव चौंकते हुए बोला, "क्या कहा आपने?"

"मैं ये कह रही थी कि आप प्लीज़ मुझे मिस जानकी कहना बंद कर सकते हैं? इसे सुनकर बहुत ज़्यादा फॉर्मल और अजनबी जैसी वाइब आती है इसे जिससे मैं सहज नहीं हो पाती।"

"एक शर्त पर मैं आपकी बात मान सकता हूँ।"

"कैसी शर्त?" जानकी ने हैरत से राघव की तरफ देखते हुए पूछा तो राघव ने कहा, "आप भी मुझे दफ़्तर के बाहर सर या बॉस नहीं कहेंगी।"

"ठीक है, डन।" जानकी ने मुस्कुराते हुए अपना हाथ आगे बढ़ाया तो राघव ने भी एक सेकंड के लिए उससे हाथ मिलाकर फिर वापस स्टीयरिंग व्हील को थाम लिया।

अब जो उनके बीच बातों का सिलसिला शुरू हुआ तो जल्दी ही वो एक-दूसरे के साथ खुलते चले गये।

राघव से बातें करते हुए जानकी बस इस बात का ख़्याल रख रही थी कि उसे न तो विदेश में अपने पलने-बढ़ने और पढ़ाई का ज़िक्र करना है और न ही नृत्य-संगीत के विषय में कुछ कहना है जिससे राघव पैनिक हो जाये।

उसने अपने स्कूल-कॉलेज और घर-परिवार के सारे किस्सों को राघव के साथ बाँटने से पहले उन्हें भारत की पृष्ठभूमि पर फिट कर दिया था।
*********
तारा जब दफ़्तर पहुँची तब एकाउंटेंट मिश्रा जी ने उसे बताया कि राघव ने जानकी की आधी सैलरी उसके खाते में डालने के लिए कहा है।

"तो दिक्कत क्या है मिश्रा जी?" तारा ने हैरत से पूछा तो मिश्रा जी ने कहा, "मैम, जानकी मैडम के बैंक खाते में उनका नाम वैदेही है न। अगर बॉस ने मुझसे पैसे ट्रांसफर करने वाली स्लिप माँग ली या दफ़्तर का अकाउंट चेक कर लिया तो हम सब फँस जायेंगे।"

"हम्म...ठीक है, एक काम कीजिये आप जानकी की सैलरी मेरे अकाउंट में भेज दीजिये। फिर मैं उसके अकाउंट में ट्रांसफर कर दूँगी।
बाकी बाद में देखते हैं इस समस्या का क्या करना है।"

मिश्रा जी ने इस सुझाव पर सहमति जतायी तो अपने केबिन में जाते-जाते ही तारा ने यश को फ़ोन किया।

बैंक अकाउंट की बात सुनने के बाद यश ने उससे कहा, "रियली वेरी सॉरी तारा लेकिन अब इस मामले में मैं कुछ नहीं कर पाऊँगा क्योंकि फेक आईडी के आधार पर बैंक अकाउंट खोलना गंभीर अपराध है।
तुम बस एक काम करो कि जब तक राघव के सामने जानकी का सच नहीं आता तब तक तुम उसे दफ़्तर के अकाउंट डिटेल्स देखने ही मत दो।
आई एम वेरी श्योर कि तुम ऐसा कर लोगी।"

"ठीक है। चलो अब मैं लंच ब्रेक में तुम्हें फ़ोन करती हूँ।"

"ठीक है। वैसे वो दोनों कहाँ तक पहुँचे? कुछ खबर है?"

"नहीं, अभी तक तो राघव ने एक बार भी मुझे फ़ोन नहीं किया।"

"इसका मतलब है उसे जानकी का साथ रास आ गया है।"

"आई होप सो।"

"चलो ठीक है, अब मेरी भी मीटिंग है। मैं दोपहर में तुमसे मिलता हूँ।"

"हाँ ठीक है।" कहते हुए तारा ने फ़ोन रखा और फिर उसने जानकी को मैसेज करके बता दिया कि वो थोड़ी देर में अपने अकाउंट से उसके अकाउंट में उसकी सैलरी ट्रांसफर कर देगी।

प्रतिउत्तर में जब जानकी ने उसे मैसेज करके इस स्थिति को सँभालने के लिए थैंक्स कहते हुए उसे बताया कि वो राघव के साथ इस ट्रिप को बहुत एंजॉय कर रही है तो तारा के होंठो पर सुकून भरी मुस्कुराहट आ गयी।
*******
रास्ते में थोड़े-बहुत ट्रैफिक के कारण राघव और जानकी को गोरखपुर पहुँचते-पहुँचते दोपहर के दो बज चुके थे और अब उन दोनों का ही भूख से बुरा हाल हो चुका था।

राघव को यहाँ जो पहला ढंग का रेस्टोरेंट नज़र आया उसने वहीं अपनी गाड़ी पार्क की और जानकी के साथ अंदर चला गया।

मेज़ पर रखे हुए मेन्यू कार्ड के पन्ने पलटते हुए राघव ने जानकी से पूछा कि उसे क्या खाना है तो जानकी अपने लिए सादे दाल-चावल-सब्जी की थाली मँगवाने के लिए कहते हुए बोली, "सर, आज इस लंच का बिल मैं दूँगी अपनी पहली सैलरी से। होप यू डोंट माइंड।"

"मैं बिल्कुल माइंड नहीं करूँगा लेकिन तब जब तुम मुझे सर बोलना बंद करोगी क्योंकि हम अपने दफ़्तर में नहीं हैं। कुछ देर पहले किया हुआ कमिटमेंट याद है न।" राघव ने मुस्कुराते हुए कहा तो जानकी को जैसे सुकून सा मिला कि कम से कम कुछ देर वो अपने राघव को सिर्फ राघव कहकर पुकार सकती है बिल्कुल बचपन की तरह।

राघव ने भी जानकी का साथ देते हुए जब अपने लिए चावल-दाल की थाली मँगवायी तब उसने देखा जानकी चावल के साथ सिर्फ सब्जी मिक्स करके खा रही थी और दाल की कटोरी अनछुई सी रखी थी।

फिर जब उसने अपने पूरे चावल खत्म कर लिए तब वो दाल की कटोरी उठाकर उसे पीने लगी।

उसकी इस हरकत से राघव को एक बार फिर वैदेही की याद आ गयी।
वो अभी जानकी को टोकने के विषय में सोच ही रहा था कि तभी उसकी नज़र पास के मेज़ पर बैठे हुए एक परिवार पर पड़ी जहाँ एक बच्चे को उसकी माँ डाँटते हुए कह रही थी कि वो चावल के साथ दाल मिलाकर क्यों नहीं खाता, और प्रतिउत्तर में बच्चे का तर्क था कि वो खाने के अंत में दाल पी तो लेता है न फिर समस्या क्या है?

बच्चे की बात सुनकर राघव को महसूस हुआ कि जब इस बच्चे की आदत वैदेही से मिल सकती है तो जानकी की क्यों नहीं, इसलिए उसने इस विषय पर जानकी से कुछ भी पूछना सही नहीं समझा।

जानकी के बिल देने के बाद जब वो दोनों वापस अपनी गाड़ी में बैठे तब राघव ने कहा, "यार, चावल-दाल खाने के बाद तो बस पैर फैलाकर सोने का मन करता है लेकिन अभी हमारी मंजिल यहाँ से चार घंटे दूर है।"

"कोई बात नहीं, तुम चाहो तो आराम से पीछे जाकर सो जाओ। कुछ देर तक मुझे ड्राइव करने दो।"

जानकी ने दरवाजा खोलकर बाहर निकलते हुए कहा तो राघव बोला, "तुम सचमुच ड्राइव कर लोगी?"

"बिल्कुल। चाहो तो लीजा और मार्क से फ़ोन करके पूछ लो। हम अक्सर लॉन्ग ड्राइव पर जाते हैं और बारी-बारी से हम तीनों ड्राइव करते हैं।"

"ठीक है, मुझे किसी से पूछने की ज़रूरत नहीं है लेकिन मैं पीछे नहीं बैठूँगा।" कहते हुए राघव भी गाड़ी से बाहर आया तो जानकी ने ड्राइविंग सीट पर बैठकर स्टीयरिंग व्हील की कमान सँभाल ली और उसके साथ बैठा राघव म्यूजिक सिस्टम पर अपने पसंद के गाने लगाकर सुकून से एक मिनट आँखें बंद करके तो अगले मिनट चोरी से जानकी को देखते हुए इस सोच में गुम हो जाता था कि क्या उसकी वैदेही भी बिल्कुल ऐसी ही होगी या विदेश में रहते हुए अब वो पूरी तरह से बदल चुकी होगी?
क्रमश: