फागुन के मौसम - भाग 20 शिखा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

फागुन के मौसम - भाग 20

आश्रम में राघव के सामने किसी ने भी वैदेही को देखकर उसकी असली पहचान ज़ाहिर नहीं की।
लीजा और मार्क भी यश के कहे अनुसार वैदेही को जानकी कहकर ही सम्बोधित कर रहे थे।
ये देखकर तारा और वैदेही दोनों ने ही राहत की साँस ली।

जब खाने-पीने का दौर समाप्त हो गया तब राघव ने दिव्या जी से पूछा कि उन्हें आज के कार्यक्रम में कोई कमी तो महसूस नहीं हुई।

"बिल्कुल नहीं बेटा, तुम्हारी टीम ने सब कुछ इतने अच्छे से सँभाल लिया कि मेरे साथ-साथ आश्रम के सभी लोग बहुत ख़ुश हैं।" दिव्या जी ने स्नेह से उसके गाल थपथपाते हुए कहा तो राघव नंदिनी जी से शाम में घर पर मिलने की बात कहकर अपने दफ़्तर के लिए निकल पड़ा।

अभी उसने कार का दरवाजा खोला ही था कि उसके पास आते हुए तारा ने कहा, "रुको राघव, मैं भी तुम्हारे साथ चलती हूँ।"

यश से शाम में मिलने की बात कहकर जब तारा भी कार में बैठ गयी तब यश ने वैदेही से कहा, "वैदेही, राघव की तरफ से आई एम रियली वेरी सॉरी लेकिन तुम प्लीज़ परेशान मत होना। वो जल्दी ही तुम्हें पहचान लेगा।"

"इट्स ओके यश जी, आप सॉरी क्यों बोल रहे हैं? अब मैं भी चलती हूँ। तारा ने मुझे शाम में अस्सी घाट पर बुलाया है, तो वहीं फिर आपसे मुलाकात होगी।" वैदेही ने अपना हाथ आगे बढ़ाते हुए कहा तो उससे हाथ मिलाते हुए यश बोला, "क्या मैं तुम्हें तुम्हारे फ्लैट तक छोड़ दूँ?"

"नहीं, माँ ने हमारे लिए एक गाड़ी की व्यवस्था करवा दी है। इसलिए मैं लीजा और मार्क के साथ आराम से चली जाऊँगी।"

"ठीक है, फिर मैं चलता हूँ।" लीजा और मार्क को वैदेही के पास आते हुए देखकर यश ने कहा और अपने माँ-पापा के साथ वो भी अपने घर के लिए निकल गया।

घर जाने से पहले जब वैदेही दिव्या जी और नंदिनी जी के पास उनसे मिलने पहुँची तब उन्हें उदास देखकर वैदेही ने कहा, "अगर आप लोग ऐसे अपना लटका हुआ मुँह मेरे सामने रखेंगे तो मैं इस चुनौती का सामना कैसे करूँगी?"

नंदिनी जी ने बमुश्किल अपनी भावनाओं को नियंत्रित करते हुए कहा, "वैदेही बेटा, कहाँ तो एक समय मैं अपने राघव का घर बसने की उम्मीद ही छोड़ चुकी थी, फिर अचानक जब तुम वापस यहाँ आयी तब मेरी वो उम्मीद फिर से ज़िंदा हो गयी लेकिन अब एक बार फिर मुझे सब कुछ बिखरता हुआ नज़र आ रहा है।"

"पर क्यों चाची?" वैदेही ने हैरत से पूछा तो नंदिनी जी अपनी आशंका ज़ाहिर करते हुए बोलीं, "तुम्हें वो आज नहीं तो कल पहचान ही लेगा बेटा लेकिन अगर नृत्य के प्रति उसकी चिढ़, उसकी नफ़रत खत्म नहीं हुई तो क्या होगा?
मैं ये कभी नहीं चाहूँगी कि तुम राघव की ख़ातिर अपना कैरियर, अपनी कला को बिसार दो।"

"ऐसा कुछ नहीं होगा चाची, बस आप मुझे अपना आशीर्वाद दीजिये। मैं अपने राघव को जानती हूँ। वो मुझसे मेरी ख़ुशी कभी नहीं छिनेगा और न ही किसी को छीनने देगा।"

वैदेही की आवाज़ में झलकते हुए विश्वास को महसूस करके नंदिनी जी ने मुस्कुराने की चेष्टा करते हुए जब उसके सिर पर अपना हाथ रखा तब वैदेही उनके और दिव्या जी के पैर छूकर अपने घर के लिए निकल गयी।

तारा के कहे अनुसार वैदेही अपने नये नाम जानकी के साथ शाम में ठीक समय पर उसके दफ़्तर पहुँच चुकी थी।

अपना काम खत्म करके जब तारा वैदेही के साथ दफ़्तर से निकलने लगी तब राघव ने सोचा कि वो उससे भी घाट किनारे चलने के लिए कहेगी लेकिन जब तारा उससे कुछ कहे बिना ही निकल गयी तो राघव का मन बुझ सा गया।

अपने केबिन में अकेले बैठा हुआ राघव बस यही सोच रहा था कि अगर तारा को अकेले यश से मिलना होता तो अलग बात थी लेकिन जब वो जानकी जी को अपने साथ ले जा सकती है तो मुझसे पूछने में उसे क्या परेशानी थी?

"पता नहीं ये लड़कियाँ अपने आप को समझती क्या हैं?
खैर कोई कहीं जाये, कुछ भी करे मुझे इससे क्या? मैं भी चला अपने घर। अब सुकून से बिस्तर पर पैर फैलाकर चाय पिऊँगा और गेम खेलूँगा। मुझे भी अपने मी टाइम में कोई फालतू डिस्टरबेंस नहीं चाहिए।" स्वयं से ही बातें करते हुए राघव ने पार्किंग में आकर अपनी कार स्टार्ट की लेकिन फिर अपने घर की तरफ जाते-जाते वो अचानक यू टर्न लेकर अस्सी घाट की तरफ बढ़ गया।

राघव को अच्छी तरह अंदाज़ा था कि तारा घाट पर कहाँ हो सकती है, इसलिए वो भी उस तरफ बढ़ चला।

वहाँ पहुँचकर कुछ दूर से ही उसने देखा कि यश, तारा और वैदेही एक साथ बैठे हुए किसी गहरी मंत्रणा में व्यस्त थे और अपने आस-पास उनका बिल्कुल भी ध्यान नहीं था।

"नहीं, मुझे किसी के फैमिली मैटर के बीच में नहीं बोलना चाहिए। इसलिए बेहतर यही होगा कि मैं चुपचाप यहाँ अकेले बैठूंँ।" राघव ने अपने आप को समझाया और फिर भीड़ का हिस्सा बनते हुए वो वहीं एक किनारे बैठ गया।

राघव की नज़र एक बार फिर वैदेही के चेहरे पर ही जाकर अटक जा रही थी। वो चाहते हुए भी ख़ुद को उसकी तरफ देखने से रोक नहीं पा रहा था और उसकी ये हरकत ख़ुद उसकी समझ से भी परे हो चली थी।

वैदेही की समस्या और उसकी इच्छा यश को समझाते हुए तारा ने उससे कहा, "यश, वैसे तो वैदेही को अपॉइंटमेंट लेटर मैं ही देने वाली हूँ लेकिन फिर भी हमें उसके पहचान पत्र और कुछ एजुकेशनल डॉक्यूमेंट्स की ज़रूरत तो पड़ेगी ही ताकि हमारी चोरी पकड़ी न जाये। तुम मेरी बात समझ रहे हो ना?"

"हम्म... मिस मैनेज़र, मैं सब समझ रहा हूँ कि आप चोरों को पकड़ने वाले इस सीबीआई ऑफिसर से नकली पहचान पत्र और डॉक्यूमेंट्स बनवाने का गैर-कानूनी काम करवाना चाहती हैं।"

"ये गैर-कानूनी तब होता जब हमारी वैदेही इसका कोई अनुचित उपयोग करती। वो थोड़े न कहीं डाका डालकर भागने वाली हैं।"

"भागने वाली तो नहीं है पर डाका तो उसे डालना ही है, हमारे राघव के दिल पर।" यश ने हँसते हुए कहा तो तारा भी मुस्कुराते हुए बोली, "वो दिल तो वैसे भी वैदेही का ही है।"

हामी भरते हुए यश ने अब वैदेही से कहा, "वैदेही, होली के दिन मैंने और तारा ने तुम्हारी तस्वीर राघव के पर्स में देखी थी। मुझे पूरा यकीन है कि वो रोज़ उस तस्वीर को देखता होगा फिर भी वो तुमसे अनजान क्यों बन रहा है?"

"यश जी, आपने शायद राघव के पास ये तस्वीर देखी होगी।" वैदेही ने अपने पर्स से एक तस्वीर निकालते हुए कहा तो इसे देखने के बाद तारा और यश बोले, "हाँ, बिल्कुल यही तस्वीर थी।"

"तो अब आप लोग इस तस्वीर में मेरा चेहरा देखिये जब मैं सिर्फ दस वर्ष की साधारण सी बच्ची थी और अब मुझे देखिये।
समय के साथ मैं बहुत बदल गयी हूँ। फिर अचानक उन्नीस वर्षों के बाद मुझे सामने देखकर राघव भला कैसे पहचानेगा कि मैं कौन हूँ?
ऊपर से ये उसकी सबसे बड़ी कमज़ोरी है कि उसे चेहरे जल्दी याद नहीं होते।
बचपन में भी वो अक्सर लोगों को देखकर कन्फ्यूज़ हो जाता था।"

"हाँ ये बात तो है। आज भी उसकी ये कन्फ्यूज़ होने वाली आदत गयी नहीं है।" तारा ने भी सहमति जताते हुए कहा और फिर उसने यश से पूछा कि वो जानकी के नाम से वैदेही का पहचान पत्र और बाकी डॉक्यूमेंट्स कब तक उसे लाकर दे सकता है।

"बस मुझे दो दिन का समय दो, तुम्हारा काम हो जायेगा। फिर तुम वैदेही आई मीन जानकी को नौकरी पर रख सकती हो।" यश ने कहा तो उसे धन्यवाद देते हुए वैदेही ने कहा कि अब उसे घर जाना है क्योंकि परसों लखनऊ में उसका एक शो है तो उसे काफ़ी सारी तैयारियां करनी हैं।

"तुम अकेले चली जाओगी?" तारा ने संशय से पूछा तो उसे रिलैक्स रहने के लिए कहकर वैदेही वहाँ से उठ गयी।

राघव, जिसकी नज़र अब भी यश, तारा और वैदेही की तरफ ही थी, जब उसने देखा कि वैदेही के जाने के बाद अब तारा यश के कंधे पर सिर रखते हुए उसका हाथ अपने हाथ में लेकर सुकून से उससे बातें कर रही है, तब वो भी वहाँ से उठ गया।

जब वो अपनी कार के पास आया तब उसने देखा वैदेही ऑटो की प्रतीक्षा करते हुए वहीं थोड़ी दूरी पर खड़ी थी।

उसने सोचा वो वैदेही को आवाज़ दे लेकिन ख़ुद को असहज पाकर वो रुक गया।
फिर जब तक उसने अपना संकोच त्यागकर उसे पुकारते हुए कहा, "जानकी जी...", तब तक वैदेही ऑटो में बैठकर आगे बढ़ चुकी थी।

"ख़ैर अच्छा ही हुआ उसने मुझे नहीं देखा वर्ना मैं तारा को क्या जवाब देता कि मैं यहाँ क्या कर रहा था।" राघव ने गहरी साँस लेते हुए कहा और अब वो भी अपने घर की तरफ बढ़ गया।
क्रमश: