फागुन के मौसम - भाग 21 शिखा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फागुन के मौसम - भाग 21

राघव की आदत थी रात में सोने से पहले वो अपनी और वैदेही की तस्वीर को कुछ पल देखने के बाद ही अपनी आँखें बंद करता था।

आज जब उसने वो तस्वीर निकाली तब यकायक उसकी आँखों के आगे जानकी का चेहरा आ गया।

उसकी तरफ से अपना ध्यान हटाने की मशक्कत करते हुए राघव ने तस्वीर में वैदेही को निहारते हुए कहा, "तुम जानती हो न वैदेही, मैं सिर्फ तुम्हारा हूँ। फिर तुम्हीं बताओ ये मुझे क्या हो रहा है?
आज तक कभी मेरा मन किसी लड़की को देखकर नहीं भटका, तारा मेरी इतनी अच्छी दोस्त है फिर भी मैंने कभी अनजाने में भी उसके साथ अपने रिश्ते में मर्यादा की रेखा पार नहीं की, फिर आज अचानक यश की कजन से मिलने के बाद मुझे क्या हो गया है?
कहीं तुम ये तो नहीं सोच रही हो न कि तुम्हारा राघव धोखेबाज़ है?
यार अब तुम आख़िर कब तक मुझसे दूर रहोगी? क्या तुम्हें मेरी याद नहीं आती है?
प्लीज़ लौट आओ वैदेही और आकर मुझे दो थप्पड़ लगाओ ताकि मेरा ये मन जो आज बहकने लगा है वो काबू में रहे और कोई ऐसी गलती न करे जिससे तुम मुझसे रूठ जाओ।
तुम आओगी न वैदेही? बोलो।

पता है जब तुम आओगी तो मैं सबसे पहले क्या करूँगा?
मैं तुम्हें साथ लेकर गंगा घाट जाऊँगा और वहाँ सुबह के शांत माहौल में बस ख़ामोशी से तुम्हारी गोद में सिर रखकर लेटे-लेटे कभी आसमान को, कभी उसमें उन्मुक्त उड़ते पंछियों को और कभी तुम्हारी आँखों में देखूँगा जहाँ सिर्फ और सिर्फ मेरा अक्स होगा, तुम्हारे राघव का अक्स।

मेरी ज़िन्दगी में वो लम्हा आयेगा न वैदेही?"

अपने इस अनुत्तरित प्रश्न को दोहराते हुए ही राघव धीरे-धीरे गहरी नींद में सो गया।
********
भारत में अपने पहले शो के लिए रिहर्सल कर रही वैदेही आज पहली बार नृत्य पर अपना ध्यान केंद्रित नहीं कर पा रही थी।

उसे बार-बार अपने स्टेप्स से भटकते हुए देखकर लीजा ने हैरान होकर कहा, "वैदेही, लगता है तुम किसी स्ट्रेस में हो। ऐसा करो कुछ देर आराम कर लो फिर हम वापस रिहर्सल शुरू करेंगे।"

हामी भरते हुए वैदेही ने पानी की एक पूरी बोतल खाली कर दी और सोफे पर बैठकर गहरी साँसें लेने लगी।

"सब ठीक है न वैदेही? तुम इतनी परेशान क्यों हो?" मार्क ने भी उसके पास बैठते हुए पूछा तो वैदेही ने कहा, "मैं जब भी नृत्य कर रही हूँ तो मेरी आँखों के सामने राघव का नफ़रत से भरा हुआ चेहरा आ रहा है और मैं...।"

"और इसलिए तुम कंसंट्रेट नहीं कर पा रही हो। है न?"

मार्क ने उसकी अधूरी बात पूरी की तो वैदेही ने ख़ामोशी से हाँ में सिर हिला दिया।

लीजा ने अब वैदेही को समझाते हुए कहा, "वैदेही, तुम प्लीज़ अपनी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ को इस तरह मिक्स मत करो वर्ना तुम दोनों ही जगह अपना बेस्ट नहीं दे पाओगी।
अगर तुम्हें नृत्य करते हुए राघव को याद ही करना है तो उसके साथ अपना बचपन याद करो।"

"हाँ, तुम सही कह रही हो। चलो एक बार फिर से शुरू करते हैं।" वैदेही ने इस बार आत्मविश्वास से परिपूर्ण मुस्कान के साथ कहा तो लीजा और मार्क भी मुस्कुराते हुए उसका साथ देने के लिए उठ खड़े हुए।

दफ़्तर से एक दिन की छुट्टी लेकर तारा भी वैदेही के साथ उसका शो देखने लखनऊ गयी थी।

वैदेही का ये शो पूरी तरह सफ़ल रहा। उसके लिए बजती हुई तालियों पर लीजा और मार्क के साथ-साथ तारा भी बहुत प्रफुल्लित थी।

जब वैदेही मंच से उतरकर नीचे आयी तब तारा ने उसे गर्मजोशी से गले लगाते हुए इस सफ़लता के लिए ढ़ेर सारी बधाई दी।

ऑडिटोरियम से बाहर निकलने के बाद जब लीजा ने लखनऊ घूमने की इच्छा जतायी तो मार्क के साथ वैदेही और तारा भी उसकी योजना में सम्मिलित हो गये।

चूँकि वो सब अपनी गाड़ी से लखनऊ आये थे इसलिए समय की कोई बाध्यता भी नहीं थी।

लखनऊ के प्रसिद्ध बाज़ार अमीनाबाद में वैदेही के साथ घूमते हुए तारा ने कहा, "पता है वैदेही मेरी ज़िन्दगी में अब तक राघव के सिवा कोई दोस्त नहीं रहा। अब ऐसा क्यों हुआ ये मुझे नहीं पता। हालाँकि मुझे कभी भी राघव के साथ रहते हुए किसी ख़ालीपन का अहसास तो नहीं हुआ लेकिन आज यहाँ तुम्हारे साथ घूमते हुए लग रहा है कि ज़िन्दगी में अब तक कुछ कमी तो ज़रूर थी और शायद इस कमी को पूरा करने के लिए मेरे मन को तुम्हारी ही प्रतीक्षा थी।"

"तारा, मुझे भी तुम्हारा साथ बहुत अच्छा लगता है सच्ची लेकिन आज अचानक तुम्हें किस कमी का अहसास होने लगा जो राघव दोस्त के रूप में पूरा नहीं कर पाया?" वैदेही ने उत्सुकता से पूछा तो तारा खिलखिलाते हुए बोली, "अब देखो तुमने मुझे कितनी आसानी से बता दिया कि मुझ पर लेमन येलो शेड की ड्रेस ज़्यादा अच्छी लग रही है न कि मस्टर्ड येलो, पर इन लड़कों को तो यही नहीं पता कि येलो के इतने शेड्स भी होते हैं।"

"ये बात तो है।" वैदेही ने भी खिलखिलाते हुए अपना हाथ बढ़ाया तो उसके हाथ पर हाई-फाइव देते हुए तारा बोली, "सो माय डियर गर्लफ्रेंड वैदेही, वेलकम इन माय लाइफ।"

"तो अब इस दोस्ती का जश्न चटपटे गोलगप्पे खाकर मनायें?" लीजा ने पास ही स्थित गोलगप्पे के स्टॉल की तरफ संकेत करते हुए कहा तो तारा बोली, "लीजा, तुम ये मसालेदार गोलगप्पे खा पाओगी?"

उसके उत्तर देने से पहले ही मार्क ने कहा, "तारा जी, हमें वैदेही के साथ रहते हुए भारतीय खाने की और भारतीय भाषा बोलने की भी आदत पड़ चुकी है।"

"फिर तो सही है। अब देर किस बात की, चलो चलते हैं।" तारा ने आगे बढ़ते हुए कहा तो वैदेही, मार्क और लीजा भी उसका अनुसरण करते हुए उसके साथ चल पड़े।

ये खूबसूरत शाम एक साथ बिताने के बाद जब वो सब वापस बनारस के लिए निकलें तब रात के दस बज रहे थे।

उनकी गाड़ी अभी कुछ ही दूर बढ़ी थी कि राघव ने तारा को फ़ोन किया।

वैदेही को चुप रहने का संकेत करते हुए तारा ने फ़ोन उठाकर कहा, "हाँ राघव, बोलो।"

"यार तुम हो कहाँ ये बताओ।"

"क्यों?"

"अरे क्यों मतलब क्या? ये आजकल तुम मुझसे दूर-दूर क्यों रहने लगी हो? क्या यश ने या उसके घर में किसी ने तुमसे कुछ कहा है?"

"क्या यार राघव, वो या कोई और क्यों मुझसे कुछ कहेगा?"

"फिर तुम मेरे बिना अपने सीक्रेट्स क्यों प्लान करने लगी हो?"

"ऐसा कुछ नहीं है राघव, वो मुझे कुछ पर्सनल काम था बस इसलिए।"

"पर्सनल काम? ये कैसा काम है जो मैं नहीं जान सकता हूँ जबकि तुमने आज तक मुझसे अपनी लड़कियों वाली बातें भी कभी सीक्रेट नहीं रखीं। फिर ये अचानक तुम्हें क्या हुआ है?"

"मुझे कुछ नहीं हुआ है राघव। तुम ऐसा क्यों सोच रहे हो?"

"देखो तारा, मैंने इतनी रात में तुमसे बहस करने के लिए फ़ोन नहीं किया है। मुझे सच-सच बताओ कि तुम इस समय कहाँ और किसके साथ हो, और प्लीज़ यश का नाम मत लेना क्योंकि उससे मैं थोड़ी देर पहले ही मिलकर आया हूँ।

उसने भी मुझे नहीं बताया कि तुम कहाँ हो। हालाँकि मुझे लगता है तुमने उसे तो ज़रूर सच बताया होगा या फिर वो भी मेरी तरह भ्रम में है प्रभु ही जाने।"

"राघव सुनो, मैं कल दफ़्तर में तुमसे बात करूँ प्लीज़।"

"हाँ-हाँ ठीक है, तुम्हारे नये दोस्त बोर हो रहे होंगे। जाओ उन्हें एंटरटेन करो। अब शायद पुराने दोस्त की ज़रूरत नहीं रही तुम्हें।"

तारा को समझ में ही नहीं आया कि वो राघव की इस बात पर क्या कहे, इसलिए वो चुपचाप फ़ोन रखने ही जा रही थी कि अचानक वैदेही चीखी, "मार्क देखो सामने कुत्ता है।"

"जानकी... ये जानकी जी की आवाज़ थी न?" राघव जो अब तक फ़ोन के दूसरी तरफ मौजूद था उसने पूछा तो तारा को हामी भरनी ही पड़ी।

"और ये मार्क कौन है?"

"हमारा ड्राइवर।"

"हमारा? मतलब?"

"मतलब मैं तुम्हें कल बताऊँ प्लीज़?" तारा ने आग्रह भरे स्वर में कहा तो राघव बोला, "ठीक है, सॉरी मैंने तुम्हें बेफ़िजूल ही डिस्टर्ब कर दिया। एंजॉय योर राइड।"

"थैंक्स।" इतना कहकर जब तारा ने फ़ोन रखा तब उसके चेहरे पर तनाव देखकर वैदेही ने इसकी वजह पूछी तो तारा बोली, "यार ये लड़के भी इतने जलकुकड़े हो सकते हैं ये मुझे आज पता चला।"

"अब उसे जलन तो होगी न तारा क्योंकि आज तक तो तुम अपना खाली समय, अपनी छुट्टियां अपने उस इकलौते दोस्त के साथ बिताती थी लेकिन अब अचानक उसमें हिस्सा बाँटने मैं आ गयी हूँ।"

"हम्म... ये हिस्सा भी बहुत ज़रूरी था। वैसे बस कुछ दिनों की ही बात है। फिर राघव भी ऐसी राइड्स में हमारे साथ होगा और तब उसे तुम्हारे साथ व्यस्त देखकर मैं कुढ़ा करूँगी।"

"तुम्हें कुढ़ने की क्या ज़रूरत है? हम यश जी को भी साथ ले चलेंगे न।"

"और फिर इसी तरह तुम लोग मेरा इंट्रोडक्शन ड्राइवर के रूप में देना।" मार्क ने हँसते हुए कहा तो तारा भी अपने कान पकड़कर उसे सॉरी बोलते हुए हँस पड़ी।

सहसा लीजा ने भविष्य की रूपरेखा पर विचार करते हुए कहा, "हम सबको एक काम करना चाहिए कि थोड़े-थोड़े पैसे मिलाकर एक बड़ी गाड़ी खरीद लेनी चाहिए ताकि हम छः लोग उसमें आराम से सफ़र कर सके।"

"डोंट वरी लीजा, ये गाड़ी तो मैं राघव से फाइनेंस करवाऊँगी।
हमारी वैदेही को न पहचानकर उसे सताने का कुछ दंड तो राघव बाबू को मिलना ही चाहिए।" तारा ने कहा तो उसकी बात से सहमति जताते हुए मार्क बोला, "और तब ड्राइवर की सीट पर भी राघव बाबू ही बैठेंगे। ठीक है न वैदेही?"

"बिल्कुल ठीक है।" वैदेही ने कल्पना में राघव को अपने साथ महसूस करते हुए कहा तो तारा ने स्नेह से उसका हाथ थामकर मानों आँखों ही आँखों में उससे कहा कि वो दिन जल्दी ही आयेगा जब उन सबकी समवेत खिलखिलाहट से वातावरण गुलज़ार हो उठेगा।
क्रमशः