फागुन के मौसम - भाग 14 शिखा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फागुन के मौसम - भाग 14

शाम में जब दफ़्तर खत्म होने का समय हुआ तब तारा ने राघव के पास आकर उससे थोड़ी देर के लिए गंगा घाट पर चलने के लिए कहा।

जब तक वो दोनों घाट किनारे पहुँचे तब तक वहाँ गंगा आरती आरंभ हो चुकी थी।
इस पवित्र आध्यात्मिक माहौल में धीरे-धीरे राघव को अपना मन शांत होता सा प्रतीत हुआ और उसके चेहरे पर भी इस सुकून की आभा परिलक्षित होने लगी।

तारा, जो उसे बहुत अच्छी तरह जानती थी उसे भी राघव को यूँ सुकून से बैठे हुए देखकर राहत सी मिली।
फिर भी उसने राघव से पूछा, "राघव, सुबह जब मैं दफ़्तर आयी थी तब तुम कुछ परेशान से लग रहे थे।"

"नहीं, बस पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लग रहा है जैसे होली वाले दिन कुछ तो हुआ था लेकिन मेरी लाख कोशिशों के बावजूद मुझे कुछ भी याद नहीं आ रहा है।"

"ओहो राघव! तुम प्लीज़ भूल जाओ न उस घटना को। कुछ भी नहीं हुआ था उस दिन। मैं और यश तो तुम्हारे साथ ही थे न।"

"हम्म...लेकिन।"

"लेकिन क्या? अच्छा क्या ऐसी कोई बात है जो हमारी इतनी पक्की दोस्ती के बावजूद तुमने आज तक मुझे नहीं बतायी।"

तारा ने एकटक राघव की तरफ देखते हुए पूछा तो एक पल के लिए राघव सकपका सा गया लेकिन फिर उसने तुरंत ही स्वयं को संयत करते हुए कहा, "नहीं तारा, भला ऐसी क्या बात होगी?"

"अच्छा तो अब तुम फ़िजूल में परेशान होना बंद करो समझे।"

"हाँ समझ गया।"

"अच्छा सुनो न, मैं क्या सोच रही थी कि आश्रम की वर्षगाँठ पर मैं और तुम भी एक डांस प्रोग्राम करें क्या?
वो नंदिनी चाची ने बताया कि तुम बचपन में बहुत सुरीली बाँसुरी बजाते थे, तो तुम बाँसुरी बजाना और मैं...।"

"तारा प्लीज़ यार, तुम्हें जो भी करना है तुम यश के साथ करो न। शायद एक बात है जो मैंने तुम्हें नहीं बतायी कि मुझे इस दुनिया में सबसे ज़्यादा नफ़रत नृत्य और संगीत से ही है।
ये नाचना-गाना सब समय की बर्बादी है और कुछ नहीं।"

"अरे संगीत से भी भला कोई नफ़रत कर सकता है? संगीत तो हमारी आत्मा के लिए औषधि का काम करता है। ये जो अभी यहाँ गंगा आरती हो रही है इसमें भी तो संगीत है जो मन को कितना सुकून पहुँचा रहा है।"

"मैं आध्यात्मिक संगीत की नहीं ये पार्टीज में होने वाले फिल्मी नाच-गाने की बात कर रहा हूँ।
न तो मुझे ऐसा कुछ करना पसंद है और न ही देखना।"

"अच्छा, ठीक है। मैं यश को बोलूँगी कि वो मेरे साथ परफॉर्म करे।"

"हाँ ठीक है, अब चलो यहाँ से।"

राघव का मूड एक बार फिर उखड़ चुका था और इस उखड़े हुए मूड ने तारा को चिंता में डाल दिया था।

माँ गंगा की तरफ देखकर हाथ जोड़ते हुए उसने मन ही मन राघव के लिए प्रार्थना की और फिर उसके तेज़ कदमों के साथ अपने कदम मिलाने की जुगत में लगभग दौड़ते हुए वो उसके साथ चल पड़ी।
*************
पांडेय की भेजी हुई तस्वीरों के आधार पर हर्षित ने जब आश्रम की वर्षगाँठ से संबंधित एडवरटाइजमेंट तैयार कर ली तब तारा ने इसमें स्पॉन्सर्ड बाय राघव वर्मा(ओनर ऑफ वैदेही गेमिंग वर्ल्ड) भी जुड़वा दिया।

फाइनल अप्रूवल के लिए जब हर्षित और तारा राघव के केबिन में पहुँचे तब राघव ने एडवरटाइजमेंट से अपना नाम हटाने के लिए कहा लेकिन तारा ने दृढ़ता से कहा, "नहीं, ये नाम नहीं हटेगा। मैं भी इस कम्पनी में मैनेज़र हूँ और मुझे भी कुछ फैसले लेने का अधिकार है।
अगर फिर भी इस नाम को हटाया जाता है तो मैं अपनी पोस्ट से इस्तीफा दे दूँगी।"

तारा की बात खत्म होते-होते राघव के चेहरे का रंग उड़ चुका था।
वो हक्का-बक्का सा उसकी तरफ देख रहा था।

उसने कभी नहीं सोचा था कि एक छोटी सी बात पर तारा इस तरह की प्रतिक्रिया दे सकती है।

तारा ने अब हर्षित की तरफ देखते हुए कहा, "मिस्टर हर्षित, आप तुरंत ही इस एडवरटाइजमेंट को कम्पनी के पेज पर डाल दीजिये और हमारे हर एम्पलॉयी से कहिये कि वो सब अपनी पर्सनल प्रोफाइल पर भी हर जगह इसे सर्कुलेट कर दें।
मैं भी थोड़ी देर में इसे अपनी प्रोफाइल पर डाल दूँगी।"

"ठीक है मैम, फिर मैं चलता हूँ।" हर्षित ने उठते हुए एक नज़र राघव की तरफ देखा जो अब भी सदमे में दिखायी दे रहा था।

अपनी कुर्सी पर आने के बाद हर्षित भी सोच में पड़ गया था कि आख़िर तारा इस एडवरटाइजमेंट को लेकर इतनी डेस्परेट क्यों है कि उसने कम्पनी छोड़ने तक की बात कह दी।

"हे प्रभु, हम सबके लिए वैदेही गेमिंग वर्ल्ड मात्र एक दफ़्तर नहीं हमारा सपना है, हमारी ख़्वाहिश है। प्लीज़ इसे कुछ मत होने देना।" हर्षित ने हाथ जोड़ते हुए प्रार्थना की और फिर तारा की हिदायत अनुसार वो अपने काम में लग गया।

"अब मैं भी चलती हूँ।" तारा अपनी कुर्सी से उठते हुए बोली तो राघव ने कहा, "रुको तारा। तुमने इस कम्पनी को छोड़ने की बात कैसे कह दी?"

"बस ऐसे कि अब मैं हर छोटी से छोटी बात पर तुम्हारी धौंस नहीं सह सकती हूँ। आख़िर मेरी भी कोई अहमियत है यहाँ। ये कम्पनी सिर्फ तुम्हारी नहीं उन सबकी है जिन्होंने इसे खड़ा करने में शुरुआत से तुम्हारा साथ दिया है। समझे तुम।"

"हाँ बाबा, समझ गया। बहुत दिनों से तुम्हारी डाँट नहीं खायी थी न तो मैं भूल गया था कि मैं बस कहने के लिए बॉस हूँ। असल में तो यहाँ तुम्हारी धौंस चलती है।"

"गुड, अब मत भूलना और न ही मेरे किसी फैसले के बीच में आना क्योंकि मैं भी हमेशा हमारे वैदेही गेमिंग वर्ल्ड का भला ही चाहती हूँ।"

"मैं जानता हूँ तारा।"

"बढ़िया है। अब मैं जाऊँ?"

"हाँ जी मैनेज़र साहिबा, आप बिल्कुल जाइये क्योंकि अब मुझे और डाँट नहीं खानी है।" राघव ने हँसते हुए कहा तो तारा भी खिलखिला पड़ी।
*************
अपने कमरे में राघव और अपनी बचपन की तस्वीर हाथ में लिए हुए वैदेही ख़्यालों में ही राघव से बातें किये जा रही थी।

"राघव देखो, जैसे माँ सीता को रावण की कैद में रहना पड़ा था वैसे ही मैं अपनी माँ के विचारों में कैद होकर इस विदेशी धरती पर तुमसे दूर पड़ी हुई हूँ।

क्या तुम प्रभु श्री राम की तरह अपनी वैदेही को इस कैद से निकालने नहीं आ सकते राघव?

या फिर माँ सच कहती है कि तुम अब तक मुझे भूल चुके होगे।

बोलो न राघव, तुम कुछ बोलते क्यों नहीं हो?

क्या मेरी ये ज़िन्दगी तुम्हारी एक झलक देखने के लिए तरसते हुए ही मिट जायेगी राघव?"

वैदेही की आँखों से अभी आँसू छलके ही थे कि तभी उसके दरवाजे पर दस्तक हुई।

उसने तत्परता से अपनी आँखें पोंछते हुए तस्वीर को अपने तकिये के नीचे छिपाकर कहा, "कौन है? आ जाओ।"

"हम हैं डांसिंग क्वीन और कौन होगा?" लीजा और मार्क ने अंदर आते हुए कहा जो न सिर्फ वैदेही के दोस्त थे बल्कि वो पिछले दस वर्षों से उसके सहायक और मैनेज़र के रूप में भी उसके साथ काम कर रहे थे।

"तुम्हें पता है वैदेही मैगियो म्यूजिकल फियोरेंटीनो में तुम्हारे परफॉर्मेंस की चर्चा चारों ओर फैल चुकी है, और तुम सोशल मीडिया स्टार भी बन चुकी हो।" लीजा ने साइड टेबल पर रखा हुआ लैपटॉप उठाकर ऑन करते हुए कहा तो मार्क ने कहा, "और पता है हमारे पास तुम्हारे लिए देश-विदेश से कई शोज़ के ऑफर्स के लिए लगातार फ़ोन आ रहे हैं।"

"और इनमें से कुछ ऑफर्स तुम्हारे अपने देश भारत से भी आये हैं। वहाँ के कई कार्यक्रमों में तुम्हें नृत्य करने के लिए आमंत्रित किया जा रहा है लेकिन...।"

लीजा की अधूरी बात पूरी करते हुए वैदेही ने कहा, "लेकिन तुम्हारी बड़ी मैडम ने कह दिया होगा कि भारत के सभी ऑफर्स रिजेक्ट कर दो, है न।"

लीजा और मार्क ने ख़ामोशी से हाँ में सिर हिलाया तो वैदेही ने गहरी साँस लेते हुए अपना मोबाइल उठाया और अपना सोशल मीडिया अकाउंट खोला जहाँ उसने भारत, विशेषकर बनारस से संबंधित कई पेजेस को फॉलो कर रखा था।

इन पेजेस को स्क्रॉल करते हुए सहसा उसकी नज़र अपराजिता निकेतन के आने वाले वर्षगाँठ से संबंधित उसी एडवरटाइजमेंट पर पड़ी जिसे हर्षित ने डिजाइन किया था।

इस एडवरटाइजमेंट में राघव और उसकी कम्पनी का नाम पढ़कर वैदेही चौंक उठी।

"क्या ये मेरा राघव ही है और ये वैदेही गेमिंग वर्ल्ड...?"

वैदेही बुदबुदायी तो मार्क ने चौंकते हुए कहा, "क्या कहा तुमने, कौन सा वर्ल्ड?"

"थोड़ी देर रुको, बताती हूँ मैं।"

वैदेही ने अब तेज़ी से अपने नाम के इस गेमिंग वर्ल्ड को सोशल मीडिया पर ढूँढ़ना शुरू किया।

अगले कुछ ही मिनटों में उसे पता चल चुका था कि ये कम्पनी उसके अपने राघव की ही थी।

उसने एक बार, दो बार, बार-बार लगातार वैदेही गेमिंग वर्ल्ड के लोगो को, और उसके ऑफिशियल पेज पर राघव की तस्वीर को देखा और सहसा उत्साह के अतिरेक में उसके मुँह से चीख़ निकल गयी।
क्रमश: