फागुन के मौसम - भाग 18 शिखा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

फागुन के मौसम - भाग 18

दिव्या जी के बाद नंदिनी जी और आश्रम की कई अन्य महिलाएं जो आज इस आश्रम के सहयोग से स्वाभिमान के साथ अपना जीवन जी रही थीं, इस आश्रम में पले-बढ़े बच्चे जो अब वयस्क होकर ख़ुशहाल जीवन का आनंद ले रहे थे उन सबने इस आश्रम से जुड़ी अपनी यादें और अपनी भावनाएं बारी-बारी से मंच पर आकर साझा कीं।

दिव्या जी चाहती थीं कि राघव भी मंच पर आकर कुछ कहे लेकिन राघव ने कृतज्ञता से अपने हाथ जोड़ते हुए कहा कि अगर वो मंच पर गया तो कुछ कहने की जगह बस रो पड़ेगा।

उसकी भावनाएं समझते हुए दिव्या जी ने अभी स्नेह से उसे गले लगाया ही था कि तभी राहुल ने अगली घोषणा करते हुए कहा, "जैसा कि हम सब जानते हैं हमारा देश भारत अनेक कलाओं का एक खूबसूरत संगम है।
इन्हीं कलाओं में से एक है हमारी शास्त्रीय नृत्य कला।
और इसी कला की एक महारथी जिन्होंने अपनी प्रतिभा से विदेशों में भी हमारे देश का गौरव बढ़ाया है, उन्हें अब मैं मंच पर आमंत्रित करना चाहता हूँ ताकि इस खूबसूरत कार्यक्रम को एक अत्यंत खूबसूरत समापन मिल सके।"

राहुल की घोषणा के पश्चात अभी वैदेही ने मंच पर आने के लिए अपना पहला कदम आगे बढ़ाया ही था कि तभी राघव उठकर वहाँ से बाहर चला गया।

उसके पीछे-पीछे भागते हुए तारा ने उसे रोकने का प्रयास करते हुए कहा, "राघव सुनो तो, कहाँ जा रहे हो तुम?"

"मैं दफ़्तर जा रहा हूँ तारा, मुझे कुछ ज़रूरी काम है।"

"लेकिन अभी तो कार्यक्रम खत्म नहीं हुआ है। अभी लंच भी शुरू होगा। तुम ऐसे बिना खाना खाये चले जाओगे तो मौसी क्या कहेंगी और नंदिनी चाची को मैं क्या जवाब दूँगी?"

"तुम्हें किसी को कोई जवाब देने की ज़रूरत नहीं है। मैं बाद में उनसे बात कर लूँगा।"

"प्लीज़ राघव मत जाओ।" तारा ने अब राघव का हाथ थामकर उसे रोकते हुए कहा लेकिन फिर भी राघव बेरुखी से उसका हाथ झटकते हुए तेज़ कदमों से जाकर अपनी गाड़ी में बैठ गया।

हताश-निराश तारा जब वापस अपनी कुर्सी पर आकर बैठी तब उसने देखा यश के साथ-साथ दिव्या जी और नंदिनी जी भी उसी की तरफ देख रही थीं।

मंच पर तल्लीनता से अपने नृत्य में डूबी हुई वैदेही को इस समय सामने बैठे दर्शकों का चेहरा आपस में इस प्रकार गड्डमड्ड होता हुआ प्रतीत हो रहा था कि उसके लिए अंदाज़ा लगाना मुश्किल था कि इतने लोगों के बीच में राघव कहाँ बैठा हुआ था।

जब उसका नृत्य समाप्त हुआ तब तालियों की गड़गड़ाहट से आश्रम का प्रांगण गूँज उठा।

वैदेही ने अब माइक हाथ में लेकर वहाँ उपस्थित सभी लोगों का अभिवादन करने के पश्चात कहा, "मैं वैदेही हूँ, इसी आश्रम की बेटी।
और आज उन्नीस वर्षों के बाद वापस अपने घर आकर मुझे जो ख़ुशी हो रही है उसे शब्दों में बयां करना असंभव है।"

वैदेही को पूरी उम्मीद थी कि अगर राघव उसका नृत्य देखकर अभी तक उसके पास नहीं आया तो अब उसका परिचय सुनकर तो ज़रूर दौड़ा-दौड़ा उसके पास आयेगा लेकिन जब सिर्फ दिव्या जी और नंदिनी जी उसके पास आयीं तब वैदेही ने उनसे राघव के विषय में पूछा।

दिव्या जी ने बिना कुछ कहे बस तारा की तरफ संकेत किया तो वैदेही तेज़ी से मंच की सीढ़ियां उतरकर तारा के पास पहुँचते हुए बोली, "तारा, मेरा राघव कहाँ है?"

"राहुल ने जैसे ही नृत्य कार्यक्रम की उद्घोषणा की, वैसे ही राघव मंच पर तुम्हारे आने से पहले ही यहाँ से उठकर चला गया। उसने तुम्हें देखा भी नहीं।"

"लेकिन क्यों?"

"क्योंकि उसे नृत्य और संगीत से नफ़रत है वैदेही।"

"नफ़रत? नहीं, ऐसा नहीं हो सकता है। हम तो बचपन में एक साथ इस नृत्य का आनंद लेते थे तारा। तुम झूठ बोल रही हो, है न।"

"नहीं वैदेही, मैं बिल्कुल सच कह रही हूँ। उसी बचपन के कारण आज राघव के मन में इस कला के प्रति नफ़रत पल रही है क्योंकि उसे लगता है इसी नृत्य ने उससे उसकी वैदेही को छीन लिया।
तुम्हारा अपनी डांस टीचर के साथ जाना उसका मासूम बाल-मन सह नहीं पाया।
जानती हो उसका मन आज भी इस वेदना से भरा हुआ है कि वो तुम्हारे लिए पीला गुलाल लाने गया और तुम उससे मिले बिना चली गयी।

वो दिन और आज का दिन राघव ने होली के रंगों से भी हमेशा के लिए मुँह मोड़ लिया।

फिर तुमने ख़ुद ही मना किया था कि अभी हम सब उसके सामने तुम्हारा नाम न लें, इसलिए मेरी कोशिशों के बावजूद वो नृत्य का नाम सुनते ही मेरा हाथ झटककर यहाँ से चला गया।"

तारा से सारी बातें सुनते हुए वैदेही की आँखों से बरबस आँसू बहे जा रहे थे।

उसने हाथ जोड़कर विनती भरे स्वर में कहा, "तारा प्लीज़ मुझे इसी समय राघव के पास ले चलो। मुझे देखते ही वो अपनी सारी नफ़रत भूल जायेगा।
मैं बस ये नृत्य की वेशभूषा बदलकर आती हूँ।"

"ठीक है चलो।" तारा ने अपना बैग उठाते हुए कहा और फिर उसने यश से वैदेही का परिचय करवाने के बाद उससे पूछा कि क्या वो भी उनके साथ चलेगा लेकिन यश ने कहा कि उसने सुबह जल्दी-जल्दी में नाश्ता भी नहीं किया था तो फ़िलहाल वो यहीं लंच करेगा और बाद में उन्हें ज्वाइन कर लेगा।

जब वैदेही अपने कपड़े बदलकर बाहर आयी तब उसने लीजा और मार्क से यहीं आश्रम में रुकने के लिए कहा और फिर तारा के साथ पार्किंग की तरफ जाते हुए वो उससे बोली, "तुम्हारा और यश का रिश्ता कितना अच्छा है तारा कि तुम लोग एक-दूसरे पर न तो ख़ुद को थोपते हो और न ही तुम्हारे बीच किसी किस्म की झिझक या औपचारिकता है।
कितने आराम से यश ने अभी कहा कि उसे भूख लगी है और तुमने भी इस बात को माइंड नहीं किया कि उसने तुम्हारे साथ आने के लिए मना कर दिया।"

"दरअसल वैदेही, सिर्फ यश के साथ ही नहीं राघव के साथ भी मेरा रिश्ता ऐसा ही है। और मुझे लगता है कि कोई भी रिश्ता हो वो ऐसा ही होना चाहिए जहाँ हम खुलकर अपनी बात, अपनी इच्छा कह सकें और सामने वाला उसका सम्मान करे न कि जबरन अपनी पसंद हम पर थोपे।
इस तरह कोई भी रिश्ता कभी बोझ नहीं बनता है।

अब राघव को ही देखो उसे होली पसंद नहीं, नृत्य-संगीत पसंद नहीं लेकिन मुझे हमारे दफ़्तर में सबके साथ होली पार्टी करने से, इस पार्टी में डीजे बजाने से उसने नहीं रोका।"

"हम्म... आई रियली विश कि मेरा और राघव का रिश्ता भी ऐसा ही हो।" वैदेही ने हाथ जोड़ते हुए कहा तो तारा मुस्कुराते हुए बोली, "तुम बिल्कुल भी चिंता मत करो, बस चलकर उसके सामने खड़ी हो जाओ।"

तारा के शब्दों से वैदेही को थोड़ी उम्मीद तो मिली, फिर भी उसका मन इस समय अनेक आशंकाओं से घिरा हुआ था जिनका हल बस राघव ही उसे दे सकता था।

वैदेही गेमिंग वर्ल्ड के परिसर में जब तारा ने अपनी कार पार्क की तब सामने चमक रहे बोर्ड पर अपना नाम पढ़ते हुए वैदेही का मन भावनाओं की तरंगों से भीग उठा था।

कुछ ही मिनटों में वो राघव के सामने होगी, इस अहसास से उसकी बेचैनी बढ़ती जा रही थी।

तारा जब वैदेही को साथ लेकर दफ़्तर के अंदर पहुँची तब राघव अपने केबिन में ही था।

उसके केबिन का दरवाजा नॉक करते हुए तारा ने जब अंदर आने की इज़ाज़त माँगी तब राघव ने प्रतिउत्तर में कहा, "आ जाओ तारा।"

तारा के साथ वैदेही को देखकर राघव यकायक चौंक पड़ा।

इससे पहले कि तारा या वैदेही कुछ कहतीं, राघव ने कहा, "ये कौन है तारा?"

इस प्रश्न ने न सिर्फ वैदेही को बल्कि तारा को भी सकते में डाल दिया।

वैदेही राघव के सामने कुछ और आगे आकर खड़ी हो गयी ताकि राघव उसे अच्छी तरह देख सके लेकिन फिर भी जब राघव ने जान-पहचान जैसी कोई प्रतिक्रिया नहीं दी तब वैदेही ने तारा की तरफ देखा।

तारा ने उसका हाथ थामते हुए राघव से कहा, "राघव ये हमारी...।"

उसकी बात पूरी होने से पहले ही वैदेही ने उसे रोकते हुए धीमे स्वर में अपने साथ बाहर चलने के लिए कहा।

"तुमने मुझे बोलने क्यों नहीं दिया वैदेही?" केबिन से बाहर आने के बाद तारा ने असमंजस से पूछा तो वैदेही बोली, "जब राघव ख़ुद मुझे नहीं पहचान पा रहा है तो तुम उससे कुछ मत कहो।
मैं धीरे-धीरे उसे ख़ुद सब कुछ याद दिलाऊँगी, बस तुम इस दफ़्तर में मुझे कोई नौकरी दिलवा दो ताकि मैं उसके आस-पास रह सकूँ।"

"नौकरी? अभी तो यहाँ कोई पोस्ट भी खाली नहीं है और तुम्हारी पढ़ाई-लिखाई, तुम्हारी डिग्री से हमारी इस कम्पनी का तो कोई संबंध ही नहीं है।"

"ओह कम ऑन तारा, तुम इस कम्पनी की चीफ मैनेज़र हो, इतना फेवर तो तुम मुझे दे ही सकती हो।"

"अच्छा ठीक है, फ़िलहाल राघव के पास चलो वर्ना वो मुझ पर चिल्लायेगा कि अचानक आकर फिर मैं अचानक कहाँ गायब हो गयी।"

"ठीक है चलो।" वैदेही ने अपनी भर आयी आँखों को पोंछते हुए कहा और एक बार फिर वो तारा के साथ राघव के सामने जाकर खड़ी हो गयी।
क्रमश: