फागुन के मौसम - भाग 41 शिखा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फागुन के मौसम - भाग 41

 भाग- 41

 

राघव और जानकी जब पीए साहब के पास पहुँचे तब तारा भी वहीं बैठी हुई थी।

पीए साहब ने राघव से पूछा कि उनका अगला गेम कब तक मार्केट में आ जाएगा?

 

राघव ने जानकी की तरफ देखा तो उसने पीए साहब को बताया कि संभवत: फरवरी के दूसरे सप्ताह में ये गेम पूरी तरह तैयार हो जाएगा।

 

“अच्छा तो आपने इसे ऑफिशियली लॉन्च करने की कोई तारीख सोची है?”

 

पीए साहब के एक और प्रश्न पर जानकी ने कहा कि उनकी टीम फरवरी में आने वाली महाशिवरात्रि जिसका बनारस में ख़ासा महत्व है उसके उद्यापन के दिन इस गेम को लॉन्च करने के विषय में सोच रही है।

 

“अच्छी बात है। इस बार हमारे राज्य की तरफ से पर्यटन विभाग ने राज्य में पर्यटन को बढ़ावा देने और हमारी संस्कृति के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से तीन दिवसीय विशेष कार्यक्रम का आयोजन किया है और मेरी इच्छा है कि आपकी कम्पनी भी इस कार्यक्रम में आए, और दो अलग-अलग दिन अपने दोनों गेम्स की झलक वहाँ आए हुए सभी मेहमानों को दिखाए।

इससे युवाओं को भी अपना कैरियर बनाने के लिए एक नए फील्ड की जानकारी होगी।”

 

पीए साहब की बात सुनने के बाद इस कार्यक्रम में वैदेही गेमिंग वर्ल्ड की भागीदारी सुनिश्चित करते हुए राघव ने कहा, “सर, ये कार्यक्रम कब से कब तक है।”

 

“दो, तीन और चार मार्च को। तब तक तो आपका गेम लॉन्च हो ही चुका होगा।”

 

“जी सर। हमें बहुत खुशी है कि आपने हमारे काम को सराहा।” तारा ने हाथ जोड़ते हुए विनम्रता से कहा तो राघव ने भी पीए साहब को धन्यवाद देते हुए मंजीत से उनके लिए खाने की प्लेट मँगवाई।

 

सभी मेहमानों के खाना खाकर विदा लेने के पश्चात राघव और उसकी टीम जब खाना खाने बैठी तब उनके बीच पीए साहब के निमंत्रण की ही चर्चा चल रही थी और सबके चेहरे अपनी इस नई कामयाबी से दमक रहे थे।

 

एक-एक करके जब वैदेही गेमिंग वर्ल्ड के सभी एमप्लॉयीज़ अपने परिवार के साथ घर के लिए निकलने लगे तब जानकी ने भी लीजा और मार्क के साथ अपनी गाड़ी की तरफ जाते हुए राघव से कहा कि अपने गिफ्ट पर वो उसकी प्रतिक्रिया जानने का इंतज़ार करेगी।

 

“तुम्हारी पसंद पर मुझे कोई संदेह नहीं है जानकी।” इतना कहकर राघव भी नंदिनी जी और दिव्या जी के साथ अपने घर की ओर रवाना हो गया।

 

घर पहुँचने के बाद राघव ने बेसब्री से जानकी का दिया हुआ उपहार खोला तो उसमें हाथों से बने हुए एक शुभकामना कार्ड के साथ चौदह टाईयों का खूबसूरत सा कलेक्शन था।

 

टाईयों के पैकेट में जानकी ने एक चिट भी रखा था जिस पर लिखा था, “सॉरी बॉस लेकिन टाई सेलेक्ट करने के मामले में आपकी पसंद बहुत खराब है इसलिए अब आप इन्हें पहना कीजिएगा।”

 

“हम्म... जैसी आपकी आज्ञा जानकी मैडम।” राघव ने मन ही मन कहा और फिर उसने जानकी के बनाए हुए शुभकामना कार्ड को उठाकर देखा।

 

इस कार्ड को देखते हुए यकायक राघव को कुछ याद आया और उसने तुरंत अपनी अलमारी खोलकर उसमें रखा हुआ एक बॉक्स निकाला।

 

इस बॉक्स में भी हाथों से बने कई पुराने शुभकामना कार्ड्स रखे हुए थे जो बचपन में वैदेही ने उसके लिए बनाए थे।

 

राघव ने उन कार्ड्स की हैंडराइटिंग को आज जानकी के दिए हुए कार्ड की हैंडराइटिंग से मिलाकर देखा लेकिन दोनों में असमानता पाकर उसने एक बार फिर ख़ुद को समझाया कि अगर उसकी वैदेही यहाँ भारत में होती तो अब तक वो उसके सामने आकर खड़ी हो जाती।

उसे बार-बार इस तरह जानकी और वैदेही की तुलना नहीं करनी चाहिए।

 

बॉक्स को वापस अलमारी में रखने के बाद राघव ने एक बार फिर जानकी का दिया हुआ कार्ड खोला और इस पर लिखे हुए अक्षरों को उसने कुछ यूँ स्पर्श किया जैसे वो जानकी के हाथों को ही स्पर्श कर रहा हो जिनसे उसने उसके लिए ये कार्ड बनाया था।

 

उसने जानकी को फ़ोन करने के लिए अपना मोबाइल उठाया तो देखा रात के बारह बजने जा रहे थे।

 

मोबाइल को वापस साइड टेबल पर रखते हुए उसने कहा, “अब तो मैडम सो चुकी होंगी।”

 

राघव भी अब कमरे की बत्ती बंद करके लेटा ही था कि तभी उसका मोबाइल बजा।

 

उसने स्क्रीन पर जानकी का नाम देखा तो फ़ोन उठाते हुए घबराकर बोला, “क्या हुआ जानकी, सब ठीक तो है?”

 

“हाँ बाबा, मुझे क्या होगा?”

 

“तो तुम अब तक जाग क्यों रही हो?”

 

“क्योंकि तुमने बताया नहीं तुम्हें मेरा गिफ्ट कैसा लगा।”

 

“वो तो बहुत खूबसूरत है, थैंक्यू सो मच।”

 

“और मेरा कार्ड?”

 

“उसके लिए मेरी डिक्शनरी में एक ही शब्द है, अनमोल।”

 

“मतलब मेरी मेहनत सफ़ल हुई। चलो अब मैं सोती हूँ।”

 

“ठीक है, गुड नाईट।”

 

कहकर जब राघव ने फ़ोन रख दिया तब जानकी ने अपने माथे पर हाथ रखते हुए कहा, “उफ़्फ़ ये राघव की याददाश्त क्या सचमुच खराब हो गई है? इस कार्ड वाले हिंट को भी नहीं समझ सका वो। लगता है बिल्कुल साफ-साफ कहे बिना वो नहीं मानेगा।

ठीक है, बस हमारा नया गेम मार्केट में आ जाए और हम सब पर्यटन विभाग के कार्यक्रम से लौट आएं उसके बाद मैं अब और इंतज़ार नहीं करूँगी।”

 

जहाँ एक तरफ वैदेही गेमिंग वर्ल्ड में जानकी और बाकी लोग नृत्य आधारित प्रोजेक्ट को तैयार करने में दिन-रात व्यस्त थे, वहीं अपने खालीपन से ऊबकर राघव भी अब अपने अगले प्रोजेक्ट के लिए रिसर्च करने में लग चुका था।

 

चूँकि अब तुलसी विवाह के दिन से तारा के विवाह के कार्यक्रम शुरू होने वाले थे इसलिए उसने दफ़्तर से छुट्टी ले ली थी।

 

तारा के केबिन के पास से गुजरते हुए उसे खाली देखकर राघव के मन में अक्सर टीस सी उठती थी और वो ये सोचने पर विवश हो जाता था कि आख़िर इंसानों की फितरत ऐसी क्यों होती है कि वो किसी के जाने के बाद ही समझ पाते हैं कि वो शख्स उनके लिए क्या मायने रखता है।

 

तारा के बिना अब गंगा घाट की शामें भी राघव को उदास सी लगती थीं इसलिए उसने वहाँ जाना लगभग छोड़ ही दिया था और तारा की हिदायत अनुसार अब दफ़्तर के बाद वो सीधे उसके घर पहुँच जाता था जहाँ तारा के साथ-साथ अविनाश को भी बेसब्री से उसका इंतज़ार रहता था।

 

कभी-कभी जानकी भी राघव के साथ तारा के घर चली जाया करती थी और उन दोनों को साथ देखकर तारा बस सेहरे में राघव की कल्पना करते हुए मुस्कुरा उठती थी।

 

तारा की हल्दी से एक दिन पहले जब राघव उसके घर पहुँचा तब तारा को परेशान देखकर राघव ने कहा, “क्या हुआ तुम्हें? सब ठीक तो है?”

 

“हाँ... वो बस मुझे एक चीज़ मँगवानी थी पर...।”

 

“पर क्या? मुझे बताओ मैं ला देता हूँ।”

 

“तुमसे नहीं होगा राघव। और ये जानकी भी पता नहीं कहाँ रह गई है आज?”

 

“तुम फ़ोन कर लो न उसे। दफ़्तर से तो वो टाइम पर निकल गई थी।”

 

“उसका फ़ोन ही तो नहीं लग रहा है।”

 

“तो लीजा या मार्क से पूछ लो।”

 

“अरे हाँ, रुको मैं अभी उन्हें फ़ोन करती हूँ।”

 

तारा ने लीजा को फ़ोन किया तो लीजा से उसे पता चला कि जानकी अस्सी घाट की तरफ गई है।

 

“ठीक है, जब उससे बात हो तो कहना कि वो तुरंत मुझे फ़ोन करे।” कहकर जब तारा ने फ़ोन रखा तब राघव ने कहा, “क्या हुआ? कहाँ है वो?”

 

“अस्सी घाट पर। राघव तुम उसे लेकर आओ न प्लीज।”

 

तारा ने मनुहार करते हुए कहा तो राघव बोला, “ठीक है, मैं जाता हूँ। बस अब तुम अपसेट होना बंद करो।”

 

जब तारा के होंठो पर मुस्कुराहट आ गई तब राघव जानकी को लाने अस्सी घाट की तरफ चल पड़ा।

 

वहाँ पहुँचकर कुछ देर इधर-उधर भटकने के बाद उसे एक कोने में अकेले बैठी हुई जानकी नज़र आई जो किसी गहरी सोच में डूबी हुई थी।

 

राघव जब उसके पास जाकर बैठा तब सहसा जानकी चौंक पड़ी।

 

वो कुछ कहती इससे पहले ही राघव ने कहा, “मैं तुम्हारा पीछा नहीं कर रहा हूँ डोंट वरी। तारा ने तुम्हें बुलाया है। वो किसी बात से बहुत परेशान है।”

 

“अरे! ऐसा क्या हो गया? जल्दी चलो।” जानकी ने उठते हुए कहा तो उसके साथ गाड़ी की तरफ बढ़ते हुए राघव ने पूछा, “वहाँ तारा परेशान है और यहाँ तुम। सब ठीक है न?”

 

“हाँ बिल्कुल। बस कभी-कभी होता है न कि हम बेवजह ही खुश हो जाते हैं और बेवजह ही कभी उदासी हमें आ घेरती है।”

 

जानकी ने कुछ इस तरह कहा कि राघव आगे कुछ नहीं बोल पाया।

 

जब वो दोनों तारा के पास पहुँचे तब तारा ने राघव को कमरे से बाहर जाने के लिए कहकर जानकी को अपने पास बैठाते हुए कहा, “देखो न मैं कल हल्दी के दिन पहनने के लिए जो ज्वेलरी और चूड़ियां लाई थी आज यश कह रहा है कि वो उसे पसंद ही नहीं आ रही हैं।

तो क्या तुम कल मेरे लिए दूसरी चूड़ियां और ज्वेलरी ले आओगी प्लीज क्योंकि यहाँ घर में तो किसी के पास समय ही नहीं है।”

 

“बिल्कुल तारा। इतनी सी बात के लिए तुम परेशान थी? हद है। बस बताओ मेरे यश भईया की पसंद कैसी है?”

 

तारा ने जानकी को यश की भेजी हुई तस्वीरें फॉरवर्ड कर दीं और फिर उसने कहा, “जानकी कल तुम्हें मेरे लिए एक और ज़िम्मेदारी निभानी है।”

 

“कैसी ज़िम्मेदारी?”

 

“राघव को हल्दी के कार्यक्रम में लाने की ज़िम्मेदारी।”

 

“क्यों? वो तो आएगा ही।”

 

“नहीं, मैं जानती हूँ उसे। वो आसानी से नहीं आएगा और न ही उसने कल के लिए कोई तैयारी की होगी।

तो तुम एक काम करना उसके लिए पीला कुर्ता और जो उसके साथ जँचे वैसा एक वेस्टकोट भी कल खरीद लेना।

अब वो उन्हें पहनेगा कैसे और यहाँ आएगा कैसे ये तुम जानो। मुझे बस कल मेरा बेस्ट फ्रेंड मेरी आँखों के सामने चाहिए।”

 

“ठीक है लेकिन मैं राघव की नाप के कपड़े कैसे खरीदूँगी?”

 

“मैं बता रही हूँ न नाप डोंट वरी।”

 

तारा ने जानकी को राघव की शर्ट का साइज बताने के साथ-साथ अपना क्रेडिट कार्ड भी निकालकर उसे दिया तो जानकी ने मना करते हुए कहा, “इसकी कोई ज़रूरत नहीं है तारा, सच्ची।”

 

“ज़रूरत है, मैं जानती हूँ। पर तुम फ़िक्र मत करो जिस दिन तुम मुझसे वैदेही गेमिंग वर्ल्ड की मालकिन बनकर मिलोगी उस दिन मैं भी पूरे अधिकार से तुम्हारा कार्ड बॉरो कर लूँगी।”

 

जानकी अब तारा को मना नहीं कर पाई और कार्ड अपने पर्स में रखने के बाद जब वो बाहर निकली तब वहीं बेचैनी से टहल रहे राघव ने उससे पूछा, “तारा की परेशानी दूर हो गई?”

 

हामी भरते हुए जानकी बोली, “हाँ हो गई। अब मैं चलती हूँ। कल मिलेंगे।”

 

“ठीक है।” राघव ने कहा और फिर वो तारा के पास चला गया।

 

तारा को अब रिलैक्स देखकर राघव ने राहत की साँस ली और उसे इसी तरह खुश रहने के लिए कहकर वो अविनाश के पास चला गया।

 

जब अविनाश ने उसे बताया कि फ़िलहाल अब कोई काम नहीं बचा है और कल की सारी तैयारी दुरुस्त हो चुकी है तब राघव भी निश्चिंत होकर अपने घर के लिए निकल गया।

 

हल्दी के दिन लंच ब्रेक के बाद जानकी ने राघव से आधे दिन की छुट्टी ली और बाज़ार की तरफ चल पड़ी।

 

तारा और राघव की सारी खरीददारी करने के बाद जब वो अपने घर पहुँची तब उसने देखा लीजा और मार्क पीले कपड़े पहने तारा के यहाँ जाने के लिए और भारतीय विवाह की सभी रस्मों को देखने के लिए उतावले हो रहे थे।

 

उनकी बेसब्री देखकर जानकी ने तारा की चीजें उन्हें देते हुए कहा कि वो तारा के घर चले जाएं ताकि दुल्हन को तैयार होने में ज़्यादा समय न लगे, वो थोड़ी देर आराम करने के बाद वहाँ आ जाएगी।

 

जब दोपहर का सूरज पश्चिमी किनारे पर डूबते हुए शाम होने का संकेत देने लगा तब जानकी भी हल्दी कार्यक्रम के लिए तैयार होने उठी।

 

अभी उसने अपनी साड़ी पहनी ही थी कि तारा ने उसे फ़ोन किया।

 

“देख लो जानकी, नंदिनी चाची और दिव्या मौसी मेरे पास आ गईं लेकिन वो राघव नहीं आया।

मैंने चाची से उसके विषय में पूछा तो उन्होंने कहा कि राघव के सिर में दर्द है।”

 

“ठीक है तुम अपसेट मत हो दुल्हनिया रानी। इस सिर दर्द का इलाज मैं कर लूँगी।”

 

“अच्छा, देखते हैं सचमुच तुममें कुछ दम है या नहीं। आज तो भईया को भी राघव से कोई काम नहीं है। हद ही हो गई।” तारा ने मानो जानकी को चैलेंज देते हुए कहा तो जानकी भी इस चैलेंज को स्वीकार करते हुए फ़ोन रखकर जल्दी-जल्दी अपना शृंगार पूरा करने में लग गई।