फागुन के मौसम - भाग 37 शिखा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फागुन के मौसम - भाग 37

भाग- 37

 

राघव और जानकी के बीच यकायक एक ख़ामोशी सी छा गई थी जिसे दरवाज़े की बजती हुई घंटी ने भंग किया।

 

राघव ने उठकर दरवाज़ा खोला तो सामने लीजा और मार्क के साथ खड़ी तारा बस एकटक उसे घूरे जा रही थी।

 

“घूर क्यों रही हो मुझे?” राघव के पूछने पर तारा ने कहा, “बस मेरा मन कर रहा है तुम्हें घूरने का और क्या।”

 

फिर जानकी के पास बैठते हुए उसने पूछा, “तो कैसे लगे तुम्हें मेरे बनाये हुए छोले?”

 

“बहुत टेस्टी। इस डिनर के लिए थैंक्यू। अब तुम सब आराम से बैठो और मैं तुम सबको बढ़िया सी चाय पिलाती हूँ।” जानकी ने मुस्कुराते हुए कहा तो तारा ने सोफे पर पैर फैलाकर बैठते हुए राघव की तरफ देखा।

 

“तारा यार, नाराज़ हो क्या तुम मुझसे?” राघव ने कुछ घबराते हुए पूछा तो तारा बोली, “नहीं, मैं तो तुम्हारी आरती उतारने आई हूँ। है न लीजा?”

 

“भाई मैं तो दो दोस्तों के बीच में नहीं पड़ूँगी। तुम लोग आपस में निपट लो।” लीजा ने कहा तो राघव ने अपना सिर पकड़ते हुए बेचारगी भरी नज़रों से तारा की तरफ देखा।

 

अब तारा को ज़ोरों की हँसी आ गई और उसने हँसते-हँसते कहा, “ओह माई गॉड राघव, शक्ल देखो तुम अपनी। ऐसा लग रहा है अभी रो दोगे।”

 

“जिसकी तुम जैसी दोस्त हो वो बेचारा और करेगा भी क्या?” राघव ने मुँह बनाते हुए कहा तो तारा एक बार फिर हँस पड़ी।

 

जानकी जब सबके लिए चाय लेकर आई तब चाय के साथ उन सबकी बातों का ऐसा सिलसिला चल निकला कि कब रात आधी बीत गई उन्हें खबर ही नहीं हुई।

 

जब राघव ने देखा जानकी की आँखें नींद से बोझिल हो रही हैं तब उसने तारा से कहा, “मेरे ख़्याल से अब हमें सोने का इंतज़ाम देखना चाहिए।”

 

हामी भरते हुए तारा ने लीजा की तरफ देखा तो लीजा बोली, “एक काम करते हैं मैं, तारा और जानकी मेरे फ्लैट में चले जाते हैं क्योंकि वहाँ का बेड बड़ा है। बचे मार्क और राघव तो वो जानकी के कमरे में आराम से सो जाएंगे।”

 

“हाँ ठीक है, उठो जानकी चलो।” तारा ने अर्धनिद्रा में पहुँच चुकी जानकी को सहारा देकर उठाते हुए कहा तो उसके साथ जाते हुए जानकी ने मुड़कर राघव की तरफ देखा और उसे गुड नाईट बोलकर चली गई।

 

तीनों लड़कियों के जाने के बाद मार्क राघव को लेकर जानकी के कमरे में आया।

 

यूँ तो राघव बहुत बार इस घर में आ चुका था लेकिन जानकी के कमरे में आज उसने पहली बार कदम रखा था।

 

उसने देखा एक तरफ कुर्सी पर जानकी के कपड़े बिखरे पड़े थे तो दूसरी तरफ उसकी मेज़ पर किताबें, कलम, फ़ाइल्स और दूसरी कई चीज़ें भी यूँ ही फैली थीं।

उसकी ड्रेसिंग टेबल का हाल भी कुछ ऐसा ही हो रखा था।

 

राघव को पहले तो लगा कि शायद वो ऐसे अस्त-व्यस्त कमरे में सो ही नहीं पाएगा लेकिन जैसे ही वो बिस्तर पर लेटा उसे जानकी के अहसास ने आ घेरा।

 

उसने आहिस्ते से चादर को सहलाते हुए महसूस किया कि जानकी हर रोज़ यहीं सोती है।

फिर अगले कुछ ही पलों में उसे ऐसी गहरी नींद आई कि अगली सुबह जब उसकी आँख खुली तब सुबह के आठ बज चुके थे।

 

वो हड़बड़ाकर कमरे से बाहर आया तो उसने देखा लीजा और मार्क ड्राइंग रूम में बैठे अख़बार पढ़ रहे थे और जानकी किचन में थी।

 

उसके पास आते हुए राघव ने कहा, “तुमने मुझे जगाया क्यों नहीं?”

 

“एक तो तुम गहरी नींद में थे और दूसरा आज हमें सुबह-सुबह ही किसी काम पर नहीं जाना था।”

 

जानकी ने सहजता से कहा तो राघव बोला, “अच्छा अब मैं चलता हूँ। तारा तो चली गई न अपने घर?”

 

“हाँ वो थोड़ी देर पहले ही गई है लेकिन तुम मत जाओ।”

 

“क्यों?”

 

“क्योंकि मार्क तुम्हारे घर से तुम्हारे कपड़े और टूथब्रश लेकर आ गया है, और मैंने मेरे कमरे की तरह बिखरे हुए बेतरतीब वॉशरूम को बिल्कुल चुस्त-दुरुस्त कर दिया है तो तुम्हें वहाँ कोई परेशानी नहीं होगी।”

 

“अच्छा, माँ मार्क से कुछ कह रही थी क्या?”

 

“नहीं। उन्हें भी आज जल्दी काम पर जाना था इसलिए वो भी रिलैक्स हो गईं कि अब उन्हें तुम्हारा नाश्ता नहीं बनाना पड़ेगा।”

 

“ठीक है, मैं तैयार होकर आता हूँ।”

 

“अच्छा।” जानकी ने एक चूल्हे पर चाय का बर्तन पर रखते हुए कहा और दूसरे चूल्हे पर वो जल्दी-जल्दी अपना और राघव का टिफिन बनाने में लग गई।

 

जब तक राघव तैयार हुआ तब तक जानकी ने डायनिंग टेबल पर चाय-नाश्ता लगा दिया था।

 

नाश्ता करने के बाद जानकी ने देखा अभी उसके पास दफ़्तर जाने से पहले आधा घंटा बचा हुआ था, इसलिए वो राघव से थोड़ी देर बैठने के लिए कहकर अपने कमरे में चली गई।

 

जब वो कुछ देर तक बाहर नहीं आई तब राघव ने उसे आवाज़ देते हुए कहा, “कहाँ रह गई तुम?”

 

“बस आ रही हूँ।” जानकी ने उत्तर दिया और फिर वो अपने काम में लग गई।

 

आख़िरकार जब वो कमरे से बाहर आई तो राघव बोला, “अब क्या करने बैठ गई थी तुम?”

 

“बस मैंने अपना कमरा साफ कर दिया। अब अगर कभी तारा ने अचानक ऐसा कोई नाईट आउट का प्लान बना लिया तो मेरे कमरे को देखकर तुम्हें चक्कर नहीं आएंगे।”

 

“ओहो ऐसी कोई बात नहीं है। सबका अपना-अपना लाइफस्टाइल है और क्या।”

 

“अच्छा, तो अब चलो दफ़्तर चला जाए। एक नया प्रोजेक्ट हमारी राह देख रहा है।”

 

उसके साथ गाड़ी में बैठते हुए सहसा राघव ने कहा, “तुम जिस रफ़्तार से काम कर रही हो न मुझे ऐसा लग रहा है कि जल्दी ही तुम मुझे मेरी कुर्सी से हटा दोगी और मेरी सारी टीम भी तुम्हारे ही पक्ष में खड़ी रहेगी।”

 

“वैसे अगर ये जोक था तो बिल्कुल भी फनी नहीं था।” जानकी ने गंभीर होते हुए कहा तो राघव ने एक बार फिर उसे छेड़ा, “लगता है कुछ लोगों को बस हाथी और चींटी वाले जोक्स ही समझ में आते हैं।”

 

“राघव, आज मेरा मूड बहुत अच्छा है तो तुम प्लीज मुझसे मत उलझो।”

 

“अच्छा फिर तुम बता देना तुम्हारा मूड खराब कब होता है, तब मैं तुमसे उलझने चला आऊँगा।” राघव की इस शरारत पर अब जो जानकी को हँसी आई तो उसके लिए ख़ुद को कंट्रोल करना मुश्किल सा हो गया और उसे यूँ हँसते हुए देखकर राघव का खिला हुआ चेहरा और भी खिल उठा।

 

दफ़्तर आने के बाद राघव और तारा ने सबको कांफ्रेंस रूम में बुलाया जहाँ हर्षित ने सबसे पहले इन्विटेशन कार्ड के वो डिज़ाइन्स सबको दिखाए जो उसने कल देर रात लगकर बनाए थे।

 

उसकी तारीफ़ करते हुए राघव ने कहा, “आजकल यहाँ सबको अपनी मर्ज़ी से ओवरटाइम करने की धुन क्यों सवार हो गई है?”

 

“क्योंकि हम सब अपने वैदेही गेमिंग वर्ल्ड को और ऊँचाइयां छूते हुए देखना चाहते हैं।” राहुल ने भी हर्षित की पीठ थपथपाते हुए कहा।

 

सबकी सहमति से जब एक इन्विटेशन कार्ड का डिज़ाइन फाइनल हो गया तब उसे छपवाकर लाने की जिम्मेदारी राहुल ने ले ली और सभी मेहमानों तक उसे पहुँचाने की ड्यूटी विकास को मिली।

 

तारा ने अब जानकी से कहा कि वो अगले प्रोजेक्ट के लिए अपना आइडिया सबके साथ शेयर कर सकती है।

 

जानकी ने जब प्रोजेक्टर ऑन किया तब उसकी स्क्रीन पर भारत के कई ऐतिहासिक मंदिरों की तस्वीरें बारी-बारी से उभरी।

 

इन मंदिरों की खासियत ये थी कि इनकी दीवारों पर शास्त्रीय नृत्य की विभिन्न मुद्राओं को बेहद खूबसूरती से उभारा गया था।

 

जानकी ने अब अगले गेम के लिए अपनी सोची हुई बेसिक स्टोरी लाइन सबको सुनाई जिसके बैकग्राउंड में शास्त्रीय नृत्य था।

 

उसकी बातें सुनते हुए तारा ने देखा राघव का चेहरा बिल्कुल सख़्त हो चुका था।

ऐसा लग रहा था मानो वो उठकर यहाँ से भागना चाहता हो लेकिन किसी ने उसके पाँवों में बेड़ी डाल दी हो।

 

जानकी ने भी इस बात को अनुभव कर लिया था लेकिन फिर भी उसने अपना कॉन्फिडेंस डगमगाने नहीं दिया।

 

जब जानकी अपनी बात पूरी करके बैठ गई तब तारा ने भी राघव को नज़रअंदाज़ करते हुए कहा, “हमारे इस दफ़्तर में हमेशा से ही लोकतांत्रिक व्यवस्था रही है, इसलिए हम वोट कर लेते हैं कि जानकी का आइडिया किस-किसको पसंद आया।”

 

जब राघव को छोड़कर बाकी सबने जानकी की तरफ से सहमति में अपने हाथ खड़े कर दिए तब राघव ने कहा, “अब मेरे कुछ बोलने की ज़रूरत ही कहाँ बची है? मैं बस एक ही बात कहना चाहूँगा कि इस नए प्रोजेक्ट में फ़िलहाल मेरा कोई इनवॉल्वमेंट नहीं होगा।

इससे जुड़ा हुआ हर पहलू फिर चाहे वो रिसर्च हो, इसकी रूपरेखा बनाकर इसे तकनीकी स्तर तक पहुँचाना हो वो सब आप लोगों को करना होगा।

वैसे भी मेरी टीम इतनी काबिल है कि वो मेरे बिना भी एक प्रोजेक्ट आराम से हैंडल कर सकती है।”

 

“लेकिन सर, हमें फिर भी आपके मार्गदर्शन की ज़रूरत तो होगी।” हर्षित ने कहा तो राघव बोला, “जब आप लोगों को ईमानदारी से ऐसा महसूस हो कि सचमुच आप लोग मेरे बिना कहीं अटक रहे हैं तब मैं ज़रूर आपको मदद के लिए खड़ा मिलूँगा, डोंट वरी।”

 

“ठीक है सर, थैंक्यू सो मच।” विकास ने कहा तो सबने उसके साथ मिलकर राघव को थैंक्यू कहा, जिसके बाद राघव उठकर अपने केबिन में चला गया।

 

उसके जाने के बाद तारा ने जानकी की तरफ देखते हुए कहा, “थैंक गॉड, राघव भड़का नहीं वर्ना मेरी तो हालत खराब हो गई थी।”

 

“सही में मैम, हमारी हालत भी कुछ ऐसी ही थी।” राहुल ने कहा तो हर्षित भी हामी भरते हुए बोला, “लेकिन अब लगता है कि जब सर ने इस प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी है तब इस प्रोजेक्ट के खत्म होते-होते इसके पीछे जानकी और हमारा जो उद्देश्य है वो भी अब सफ़ल होकर ही रहेगा।”

 

“ईश्वर करे ऐसा ही हो।” विकास ने अपने हाथ जोड़ते हुए कहा तो जानकी समेत बाकी सबने भी अपने हाथ जोड़ लिए।

 

जानकी जब अपने केबिन में आई तब उसने देखा राघव वहाँ नहीं था लेकिन अपना लैपटॉप वो जानकी की मेज़ पर रखकर गया था।

 

अस्सी घाट के अपने पसंदीदा एकांत में बैठा हुआ राघव इस समय बहुत ज़्यादा बेचैन था।

 

जब वो प्रोफेशनल एंगल से सोचता था तब अगले प्रोजेक्ट के लिए उसे जानकी का आइडिया सुपरहिट लगता था लेकिन जैसे ही वो इसमें अपने पर्सनल एंगल को जोड़ देता था उसे जानकी पर गुस्सा आने लगता था।

 

कुछ घंटे यूँ ही अकेले बैठकर बड़ी मुश्किल से ख़ुद को समझा-बुझाकर जब वो वापस दफ़्तर पहुँचा तब उसने देखा लंच ब्रेक का समय हो जाने के बावजूद जानकी अपने काम में लगी हुई थी।

 

उसे टोकते हुए राघव ने कहा, “मिस जानकी, अगर आपका काम थोड़ी देर इंतज़ार कर सकता है तो क्या हम खाना खा लें?”

 

“हाँ-हाँ, मैं तो आपके ही आने का इंतज़ार कर रही थी।” जानकी ने लैपटॉप बंद करते हुए टिफिन निकाला तो राघव उठकर उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया।

 

राघव की तरफ खाना बढ़ाते हुए जानकी ने उससे पूछा, “सर, क्या आप मुझसे नाराज़ हैं?”

 

“नहीं तो। आपको ऐसा क्यों लग रहा है?”

 

“वो नए प्रोजेक्ट के आइडिया को लेकर...।”

 

“ऐसी कोई बात नहीं है मिस जानकी। हमारी चीफ़ मैनेज़र साहिबा ने मुझे बहुत पहले ही अच्छी तरह ये बात समझा दी थी कि ये दफ़्तर सिर्फ मेरा नहीं है जहाँ मेरी मनमानी चलेगी।

इसलिए आप बेफिक्र होकर अपना काम कीजिए।”

 

“थैंक्यू सर एंड बिलीव मी, ये प्रोजेक्ट आपको बिल्कुल निराश नहीं करेगा।”

 

“मैं जानता हूँ। आपकी और अपनी पूरी टीम की मेहनत और लगन पर मुझे पूरा भरोसा है।”

 

राघव के इन शब्दों ने जैसे जानकी को जीवनदान दे दिया था।

 

अब बस उसे इस प्रोजेक्ट के पूरा होने का बेसब्री से इंतज़ार था, जब इस गेम के माध्यम से वो अपने जीवन की पूरी कहानी, राघव के लिए अपनी तड़प उसकी आँखों के सामने रखने वाली थी।