फागुन के मौसम - भाग 38 शिखा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फागुन के मौसम - भाग 38

 भाग- 38

 

राघव के जन्मदिन में मात्र बीस दिन रह गए थे इसलिए उसकी पूरी टीम ज़ोर-शोर से उस दिन होने वाले इवेंट की तैयारी में लगी हुई थी।

 

राहुल जैसे ही इन्विटेशन कार्ड छपवाकर लाया, उसे दिखाने वो सबसे पहले राघव के पास पहुँचा।

 

राघव की तरफ से ओके होने के बाद राहुल ने सबसे पहले दफ़्तर के मंदिर में पहला कार्ड भगवान को अर्पित किया, उसके बाद उसने दूसरे कार्ड पर जानकी का नाम लिखकर उसे देते हुए कहा, “ये हमारी टीम की नई और सबसे स्पेशल मेंबर के साथ-साथ उसके परिवार के लिए है।”

 

जानकी ने मुस्कुराते हुए इस कार्ड को देखा और सँभालकर अपने पर्स में रख लिया।

 

अब राहुल ने राघव को दो कार्ड्स दिए जिनमें एक पर नंदिनी जी का नाम लिखा था और दूसरे पर दिव्या जी का।

 

इसी तरह उसने तारा को भी दो कार्ड्स दिए जो उसके मायके और ससुराल के लिए थे।

 

फिर बाकी लोगों को भी उनके परिवार और परिचितों के लिए कार्ड्स देने के बाद उसने तारा की बनाई हुई गेस्ट लिस्ट के अनुसार बाकी कार्ड्स पर सबके नाम लिखे और उन्हें विकास को सौंप दिया।

 

विकास ने भी बिना देर किए तत्काल ही सभी कार्ड्स को भिजवाना शुरू कर दिया।

 

तीन दिन बाद ही सभी मेहमानों ने ऑफिशियल मेल के जरिए इवेंट में अपने आने की सूचना कन्फर्म कर दी, बस एक पर्यटन विभाग से अभी तक राघव और उसकी टीम को कोई सूचना नहीं मिली थी।

 

इवेंट में मात्र आठ दिन रह गए थे जब हर्षित भागा-भागा राघव के केबिन में आया।

 

उसे हाँफते हुए देखकर राघव ने उसकी तरफ पानी का गिलास बढ़ाते हुए पूछा, “क्या बात है हर्षित? सब ठीक तो है?”

 

“सर, लगता है आपने दफ़्तर का ऑफिशियल मेल अकाउंट चेक नहीं किया।”

 

“हाँ क्योंकि ये जिम्मेदारी तो आपकी है।”

 

“जी सर, इसलिए तो मैं आपके पास आया हूँ। पर्यटन मंत्री के पीए का मेल आया है। वो चाहते हैं कि हम परसों लखनऊ जाकर मंत्री जी के दफ़्तर में ठीक ग्यारह बजे हमारे इस गेम का एक विशेष शो रखें।

वो देखना चाहते हैं कि इस गेम में क्या खासियत है, इसके बाद ही वो हमारे इवेंट में अपने आने या न आने की बात तय करेंगे।”

 

“तो आप दफ़्तर में पूछ लीजिए कौन-कौन लखनऊ आना चाहता है। फिर हम इस अनुसार प्लानिंग कर लेंगे।”

 

“ठीक है सर, तो मैं सबको कांफ्रेंस हॉल में बुलाता हूँ।” कहकर हर्षित वहाँ से चला गया।

 

मंत्रालय से आए हुए इस इन्विटेशन की बात सुनकर सभी लोग उत्साहित नज़र आ रहे थे और ऐसा कोई नहीं था जो लखनऊ नहीं जाना चाहता था।

 

इसलिए मीटिंग में ये तय हुआ कि अगले दिन ही लंच के बाद लखनऊ के लिए निकल जाया जाए ताकि परसों उन्हें मंत्रालय पहुँचने में एक मिनट की भी देर न हो।

 

एक गाड़ी से विकास, राहुल, मिश्रा जी और मंजीत का जाना तय हुआ तो दूसरी गाड़ी से राघव, तारा, जानकी और हर्षित ने जाना तय किया।

 

राघव ने सबके ठहरने के लिए होटल में डबल बेड वाले चार कमरे भी बुक कर दिए और अगले दिन सबको अपने-अपने बैग के साथ ही दफ़्तर आने के लिए कहा ताकि बिना किसी परेशानी के वो सब दोपहर के ढ़ाई-तीन बजे तक लखनऊ के लिए रवाना हो सकें।

 

तारा नोटिस कर रही थी कि लखनऊ जाने की बात से जानकी थोड़ी परेशान नज़र आ रही थी, इसलिए मीटिंग खत्म होने के बाद उसने जानकी को अपने केबिन में आने के लिए कहा।

 

जानकी जब तारा के पास पहुँची तब तारा ने उससे कहा, “जानकी, क्या तुम्हारा लखनऊ जाने का मन नहीं है?”

 

“ऐसी बात नहीं है पर...।”

 

“पर क्या?”

 

“एक्चुअली परसों मेरा एक स्टेज शो है। मैंने तो सोचा था वीकेंड है तो मैं आराम से ये शो कर लूँगी लेकिन अब मैं क्या करूँ समझ में नहीं आ रहा है।

राघव से क्या कहूँ मैं?”

 

“वैसे तुम्हारा ये शो है कहाँ ?”

 

“लखनऊ में ही।”

 

“लो, फिर क्या दिक्कत है? तुम बस बताओ तुम्हारा शो कितने बजे है?”

 

“शाम में सात बजे।”

 

“फिर भी तुम मुँह लटकाकर घूम रही हो पागल लड़की।

मंत्रालय हमें सुबह ग्यारह बजे जाना है। और कितनी भी देर हो हमें वहाँ पर शाम के सात तो नहीं ही बजेंगे।

तो वहाँ का काम खत्म होने के बाद तुम राघव से कह देना कि तुम्हें किसी रिलेटिव से मिलने जाना है बस बात खत्म।”

 

“और फिर भी उसे पता चल गया तो?”

 

“नहीं पता चलेगा। मैं जानती हूँ उसे। वो कभी गलती से भी किसी भी शहर के ऑडिटोरियम हॉल्स वगैरह की तरफ नहीं जाता है।

ऐसी जगहों से उसे बहुत ज़्यादा चिढ़ है।”

 

“काश ये चिढ़ जल्दी से जल्दी मिट जाए और मुझे इतना तनाव न लेना पड़े।”

 

“डोंट वरी वो दिन अब जल्दी ही आएगा। चलो बस अब तुम खुशी-खुशी लखनऊ चलने की तैयारी करो।”

 

“ठीक है।” जानकी ने मुस्कुराने की कोशिश करते हुए कहा और फिर वो अपने केबिन में चली गई।

 

अगले दिन वैदेही गेमिंग वर्ल्ड के परिसर से लगभग तीन बजे दो गाड़ियां सभी एम्प्लॉयीज़ को लेकर लखनऊ की ओर रवाना हो गईं।

 

लगभग साढ़े चार घंटे के सफ़र के बाद राघव और उसकी टीम लखनऊ पहुँच चुकी थी।

होटल पहुँचकर अपने-अपने कमरों में बैग रखने और फ्रेश होने के बाद जब सब लोग रेस्टोरेंट में इकट्ठे हुए तब चाय पीते-पीते उन्होंने कुछ घंटे लखनऊ के बाज़ार की सैर करने का मन बनाया और एक बार फिर उनकी गाड़ियां लखनऊ की सड़कों पर दौड़ने लगीं।

 

बाज़ार में घूमते हुए सभी लोगों ने अपने और अपने परिवार के लिए अच्छी-ख़ासी खरीददारी की लेकिन जानकी ने एक बार फिर कठोरता से ख़ुद को किसी भी तरह की फ़िजूलखर्ची करने से रोक दिया।

 

उसकी आँखों में इस समय जो भाव थे उन्हें राघव अच्छी तरह समझ रहा था क्योंकि बरसों तक वो भी अपने संघर्ष के दौर में इसी तरह अपनी ख़्वाहिशों के प्रति कठोर होकर जीता आया था।

 

सबके बीच में जानकी के लिए कुछ खरीदकर वो उसके आत्मसम्मान को ठेस नहीं पहुँचाना चाहता था, और अपनी इस बेबसी पर उसका मन भारी सा हो आया था।

 

इस पल में उसका दिमाग बार-बार उसके दिल से प्रश्न कर रहा था कि आख़िर जानकी उसकी कौन लगती है कि वो उसके प्रति इतना कंसर्न रखने लगा है, उसकी मौन आँखों की भाषा को भी समझने लगा है लेकिन उसका दिल मानो अपने होंठ सिलकर मौन व्रत धारण करके बैठ गया था जो किसी भी प्रश्न का उत्तर देने का बिल्कुल भी इच्छुक नहीं था।

 

बाज़ार में घूमने के दौरान ही सब लोगों ने इतने स्नैक्स वगैरह खा लिए कि अब उनमें से किसी का भी डिनर करने का मन नहीं था, इसलिए अगले दिन की मीटिंग का ख़्याल करके सब लोग अपने-अपने कमरे में सोने चले गए।

 

तारा के साथ एक कमरे में ठहरी हुई जानकी का मन अगले दिन के विषय में सोचकर बहुत परेशान था।

बड़ी मुश्किल से तारा ने उसे समझाया कि अगर उसने अच्छी नींद नहीं ली तो मंत्रालय की मीटिंग नहीं लेकिन शाम में होने वाला स्टेज शो ज़रूर प्रभावित हो सकता है।

 

उसकी बात समझते हुए जानकी ने अपनी आँखें बंद कीं और अंततः कुछ देर के संघर्ष के बाद उसके थके हुए शरीर ने नींद के आगे अपने घुटने टेक ही दिए।

 

अगली सुबह राघव अपनी टीम के साथ बिल्कुल ठीक समय पर मंत्रालय पहुँचा।

पीए साहब की इज़ाज़त होते ही राघव ने तारा, विकास और राहुल के साथ मिलकर जब लुंबिनी और कपिलवस्तु की ऐतिहासिक यात्रा पर आधारित अपने नए गेम को खेलकर उन्हें दिखाना शुरू किया तब पीए साहब के साथ-साथ वहाँ उपस्थित उनके विभाग के अन्य लोग भी वैदेही गेमिंग वर्ल्ड की इस अनोखी प्रस्तुति से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके।

 

पीए साहब ने जब राघव से पूछा कि अब इसके बाद उसकी टीम किस नए गेम पर काम कर रही है तब उसके संकेत पर जानकी ने उत्तर प्रदेश के आधिकारिक शास्त्रीय नृत्य ‘कत्थक’ पर आधारित अपने आगामी गेम की रूपरेखा संक्षेप में उन्हें बताई।

 

पीए साहब ने इच्छा जताई कि जब उनका ये गेम तैयार हो जाएगा तब वो इसे भी ज़रूर देखना चाहेंगे।

 

राघव की पूरी टीम उनकी बात सुनकर काफ़ी उत्साहित थी। उन सबने मन ही मन ये दृढ़ संकल्प कर लिया था कि अब वो अपने आगामी प्रोजेक्ट पर और भी ज़्यादा दिल से मेहनत करेंगे।

 

जब पीए साहब ने राघव के जन्मदिन पर होने वाले इवेंट में आने के लिए हामी भर दी तब राघव और उसकी पूरी टीम की खुशी देखते ही बन रही थी।

 

अब तक लंच का समय हो चुका था, इसलिए पीए साहब ने यहीं उन सबके लिए लंच की व्यवस्था करवाई और उन्हें किसी तरह का संकोच न करने की हिदायत देते हुए अपने दो आदमियों को उनकी देखरेख के लिए छोड़कर वो मंत्री जी के दफ़्तर की तरफ चले गए।

 

लंच के दौरान हर्षित ने राघव से कहा, “थैंक्यू सर कि आपने इतना अनोखा थीम हमारे प्रोजेक्ट के लिए सोचा जिसकी बदौलत आज हम सरकारी मेहमान बनकर फाइव स्टार होटल के इस लजीज़ खाने का लुत्फ़ उठा रहे हैं।”

 

“और थैंक्यू जानकी कि तुमने इतिहास की पढ़ाई की वो भी खूब मन लगाकर।” विकास ने कहा तो उसकी बात से सहमत होते हुए राहुल बोला, “तारा मैम, आपको भी थैंक्यू कि आपने जानकी को हमारी टीम में शामिल किया।”

 

तभी जानकी ने कहा, “और सबसे बड़ा थैंक्यू हमारी पूरी टीम को जिसने मेरे और राघव सर की कल्पना मात्र को मिल-जुलकर न सिर्फ स्क्रीन पर उतारा बल्कि इसके प्रमोशन में अपने बेहतरीन आइडियाज़ का उपयोग करके इसे प्री-पॉपुलर बनाने में कोई कसर बाकी नहीं रखी।”

 

“बिल्कुल सही कहा जानकी ने। हमारी सफ़लता के पीछे किसी एक का नहीं हमारी पूरी टीम का हाथ है।” तारा ने जब कहा तो राघव उसकी बात पूरी करते हुए बोला, “मंजीत, जो हमेशा हमारे हेक्टिक शेड्यूल्स में बिना थके हमारे लिए चाय-कॉफ़ी-पानी की व्यवस्था करता रहता है, मिश्रा जी जो हमारे सारे फंड्स सँभालते हैं और किसी तरह का कोई झोल नहीं होने देते... इन सबके बिना आज हम इस मुकाम पर नहीं पहुँच सकते थे।”

 

राघव के मुँह से विशेष तौर पर अपना नाम सुनकर मंजीत की आँखें भीग उठीं कि दफ़्तर में मात्र चपरासी होने के बावजूद राघव ने सबके बीच में उसे कितना सम्मान दिया।

अगर राघव चाहता तो मंजीत को बनारस में भी छोड़ सकता था, आख़िर उसका लखनऊ में काम ही क्या था लेकिन वो उसे सचमुच अपनी टीम का हिस्सा मानता है इसलिए आज वो सबके साथ यहाँ खड़ा है, इस अहसास ने उसके मन में अपने काम के प्रति और भी लगन पैदा कर दी थी।

 

मंत्रालय से निकलकर वापस होटल आने के बाद जब राघव ने बनारस वापसी की बात की तब जानकी ने कहा, “सर, आप लोग वापस लौट जाइए, मैं अभी आप सबके साथ नहीं जा सकूँगी।”

 

“पर क्यों?” राघव की सवालिया नज़रें जानकी के चेहरे पर ही टिकी हुई थीं।

 

“दरअसल मेरी एक मौसी यहाँ पास में ही रहती हैं, इसलिए मैंने सोचा कि जब मैं यहाँ तक आ ही गई हूँ तो कुछ घंटों के लिए जाकर उनसे मिल आऊँ।”

 

“तो आप वापस कब लौटेंगी?”

 

“मैं कल सुबह की बस से लौट आऊँगी डोंट वरी।”

 

“ठीक है, फिर हम सब चलते हैं। अभी निकलेंगे तो रात के आठ-नौ बजे तक हम सब अपने-अपने घर पर होंगे।” तारा ने कहा तो सहसा राघव बोला, “तारा, एक काम करो तुम बाकी सबके साथ चली जाओ। मैं भी आज यहीं रुक जाता हूँ। कल सुबह मैं जानकी को साथ लेकर कैब से लौट आऊँगा।”

 

इस चर्चा के बीच राहुल ने अपना सुझाव देते हुए राघव से कहा, “सर, आप और जानकी अकेले कैब से आए इससे बेहतर है कि तारा मैम हर्षित और विकास के साथ एक गाड़ी से चली जाएं, मैं, मंजीत और मिश्रा जी बस से लौट जाएंगे। हमें कोई दिक्कत नहीं है।”

 

मंजीत और मिश्रा जी ने भी जब राहुल की बात से सहमति जताई तब राघव ने उन सबको धन्यवाद देते हुए अगले दिन दफ़्तर में मिलने की बात कही और फिर उसने जानकी से पूछा कि वो अकेली अपनी मौसी के यहाँ चली जाएगी या फिर वो उसे पहुँचाने चले।

 

जानकी ने जब उसे रिलैक्स रहने के लिए कहते हुए बताया कि वो कई बार अपनी मौसी के यहाँ जा चुकी है तब सुबह यहीं होटल में उसका इंतज़ार करने की बात कहकर राघव रिसेप्शन की तरफ चला गया ताकि एक कमरा छोड़कर बाकी कमरे जो अभी खाली होने वाले थे वो उनका बिल क्लियर कर सके।

 

राघव के जाने के बाद जानकी ने असमंजस से तारा की तरफ देखा।

उसकी उलझन समझते हुए तारा ने एक बार फिर उसे समझाया कि वो राघव के स्वभाव से बहुत अच्छी तरह परिचित है इसलिए जानकी को घबराने की कोई ज़रूरत नहीं है, वो अब बस निश्चिंत होकर अपने नृत्य पर फोकस करे।

 

गहरी साँस लेते हुए जानकी ने मन ही मन अपने ईश्वर से इस घड़ी में सामान्य बने रहने का हौसला माँगा और फिर वो होटल से बाहर निकलकर उस तरफ चल पड़ी जहाँ लीजा और मार्क पहले से ही उसकी राह देख रहे थे।