फागुन के मौसम - भाग 12 शिखा श्रीवास्तव द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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फागुन के मौसम - भाग 12

शाम में जब यश और तारा राघव से मिलने पहुँचे तब हर्षित भी वहाँ आया हुआ था।
हर्षित बार-बार राघव से अपनी भूल के लिए माफ़ी माँगते हुए कह रहा था कि उसने जानबूझकर राघव को भांग वाली ठंडाई नहीं दी थी।

इतने वर्षों से एक साथ काम करते हुए आपस में भली-भाँति परिचित हो चुकने के कारण राघव को उसकी बात पर विश्वास था लेकिन फिर भी हर्षित की शर्मिंदगी कम नहीं हो रही थी।

"क्या बात है, यहाँ का माहौल तो बहुत गंभीर लग रहा है।" तारा ने राघव के कमरे में प्रवेश करते हुए पूछा तो राघव ने अपना सिर पकड़ते हुए कहा, "यार तारा, अब तुम ही इस हर्षित को समझाओ कि मैं इससे बिल्कुल भी नाराज़ नहीं हूँ।"

"हाँ हर्षित, हम सब जानते हैं कि तुम कभी जानबूझकर राघव को या हम में से किसी को नुकसान नहीं पहुँचाओगे।" तारा ने भी जब कहा तब हर्षित राहत की साँस लेते हुए राघव से बोला, "ठीक है सर, आप लोग बातें कीजिये मैं अब चलता हूँ।"

"अच्छा लेकिन परसों तुम हमारे इवेंट मैनेज़र को साथ लेकर मौसी से ज़रूर मिल लेना और उनसे आश्रम की सारी डिटेल्स लेकर इस सेलिब्रेशन का एक अच्छा सा एडवरटाइजमेंट भी ज़रूर बना देना।"

"बिल्कुल सर, आप निश्चिंत रहिये।" इतना कहकर हर्षित जाने के लिए उठ खड़ा हुआ तो उसे रोकते हुए तारा ने कहा, "रुको हर्षित, ये किस विषय में बात हो रही है?"

हर्षित ने तारा को अपराजिता निकेतन के पैंतीसवें वर्षगाँठ के जश्न और उससे संबंधित तैयारियों के जो निर्देश उसे मिले थे उनके विषय में बताया तब यश ने कहा, "तारा, हम एक काम कर सकते हैं कि सोशल मीडिया के इस ज़माने में हम इस जश्न से संबंधित एडवरटाइजमेंट को हर सोशल साइट पर स्पॉन्सर्ड करवा सकते हैं जिससे ये ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुँच सके।"

"ये तो बहुत ही अच्छा आइडिया है। हम वैदेही गेमिंग वर्ल्ड के ऑफिशियल पेज के साथ अपने-अपने पर्सनल पेज और प्रोफाइल पर भी ये स्पॉन्सर्ड एडवरटाइजमेंट डाल देंगे। हो सकता है इससे हम वै...।" तारा ने अभी इतना ही कहा था कि यश ने धीरे से उसकी हथेली दबाते हुए उसे चुप रहने के लिए कहा।

उन सबकी बातें सुन रहे राघव ने तारा से कहा, "क्या कह रही थी तुम तारा?"

"बस यही कि हम इस जश्न का निमंत्रण ज़्यादा से ज़्यादा लोगों तक पहुँचायेंगे ताकी लोग ये जान सकें कि हमारे बनारस में दिव्या मौसी का अपराजिता निकेतन कितना महत्व रखता है।"

"जी मैम, आपने बिल्कुल सही कहा। मैं जल्दी ही अपना काम करके फिर आगे की डिटेल्स आपको देता हूँ।" हर्षित ने कहा और फिर सबको बाय बोलकर वो वहाँ से चला गया।

"तो अब बताओ, आज होली पार्टी में क्या क्या हुआ?" राघव ने उत्सुकता से यश और तारा की तरफ देखते हुए पूछा तो तारा ने कहा, "बताती हूँ ज़रा रुको, पहले मैं हम सबके लिए शरबत लेकर आती हूँ।"

तारा जब शरबत बनाने रसोई में पहुँची तब उसने देखा नंदिनी जी पहले ही उन सबके लिए शरबत तैयार कर चुकी थीं।

"अरे चाची, आपने क्यों तकलीफ़ की? मैं तो आ ही रही थी।" तारा ने ट्रे में सारी ग्लासेस रखते हुए कहा तो नंदिनी जी बोलीं, "इसमें तकलीफ़ की क्या बात है बेटा? तुम्हारी पसंद मैं जानती हूँ, इसलिए मैंने सोचा ख़ुशी के इस अवसर पर आज मैं अपने हाथ से तुम्हारे लिए मीठा-मीठा शरबत बनाकर तुम्हें आने वाले सुखद भविष्य के लिए शुभकामनाएँ और आशीर्वाद दूँ।"

उनकी बात सुनकर तारा ने शर्माते हुए उनके पैर छुये तो उसके सिर पर अपना हाथ रखते हुए नंदिनी जी ने कहा, "हमेशा ख़ुश रहो। जाओ अब तुम तीनों एंजॉय करो, मैं भी ज़रा आश्रम होकर आती हूँ।"

"ठीक है चाची।" तारा ने ट्रे सँभालते हुए कहा और वापस राघव के कमरे की तरफ चल पड़ी।

यश और राघव की तरफ उनका ग्लास बढ़ाते हुए तारा ने उदास स्वर में कहा, "राघव यार, यश के परिवार वालों ने मुझे नापसंद कर दिया।"

"क्या? पर क्यों?" राघव को झटका सा लगा और उसने अपनी सवालिया निगाहें यश के चेहरे पर टिका दीं।

यश ने पहले तारा की तरफ देखा और फिर उसने संजीदगी से कहा, "राघव, मेरी माँ का कहना है कि ये लड़की तो बस वीडियो गेम्स की दुनिया में ही रमी रहेगी और घर-गृहस्थी को भी गेम बनाकर छोड़ देगी। फिर इसे दिन-रात गेम्स में व्यस्त देखकर भविष्य में हमारे बच्चे भी बिगड़ जायेंगे और पढ़ाई करने की जगह बस गेम्स ही खेलेंगे इसलिए उन्होंने...।"

"ठीक है, ये तो उनकी सोच हुई और तुम्हारा क्या निर्णय है यश?" राघव ने परेशान होकर पूछा तो तारा बोली, "इसका क्या निर्णय होगा, ये तो हमेशा से ही पक्का वाला मम्माज बॉय है।"

अब राघव की उलझन और तारा के लिए उसकी चिंता बढ़ती जा रही थी।
उसने तारा का हाथ अपने हाथ में लेते हुए कहा, "तारा यार, तुमने उन्हें समझाया क्यों नहीं कि तुम घर और दफ़्तर दोनों की ज़िन्दगी को कभी एक-दूसरे में नहीं मिलाओगी और तुम्हें भी इतनी समझ तो है ही कि बच्चों के सामने क्या करना है और क्या नहीं।
गेम्स तो हम भी अपने बचपन में खेलते थे पर अपने पैरेंट्स की बात मानकर लिमिट में रहकर ही न।
फिर तुम्हारे बच्चे कैसे अपनी लिमिट क्रॉस करेंगे और क्या हम सब, उनका पूरा परिवार उन्हें ऐसा करने देगा कि उनका भविष्य बरबाद हो जाये?"

"अब मैं क्या कह सकती हूँ राघव? मैं और यश तो अपनी कोशिश में हार गये।" तारा ने अपनी आवाज़ में और ज़्यादा उदासी घोलते हुए कहा तो राघव बोला, "ठीक है, अब मैं ही उन सबसे बात करूँगा। यश, तुम्हें तो इस बात से कोई आपत्ति नहीं है न कि मैं तुम्हारे परिवार से मिलकर उन्हें समझाने की कोशिश करूँ?"

"जब मुझे इस बात से कोई आपत्ति नहीं है राघव कि तुमने मेरे सामने मेरी तारा का हाथ पकड़ रखा है तो दूसरी किसी भी बात से मुझे क्यों आपत्ति होगी?" यश का ये कहना था कि राघव ने सकपकाकर तारा का हाथ छोड़ते हुए कहा, "आई एम रियली वेरी सॉरी, मैं आगे से ध्यान रखूँगा।"

"क्या?" यश और तारा ने एक साथ पूछा तो राघव बोला, "यही की मेरी हद कहाँ तक है।"

राघव को इतना परेशान देखकर अब यश और तारा ख़ुद को नहीं रोक सके और खिलखिलाकर हँस पड़े।

उन्हें यूँ हँसते हुए देखकर राघव ने असमंजस से उनकी तरफ देखा तो तारा का हाथ राघव के हाथ में देते हुए यश ने कहा, "तुम दोनों की दोस्ती की हद बस मैं ही नहीं हम तीनों का परिवार भी जानता है।
इसलिए राघव, तुम्हें कभी भी तारा के साथ औपचारिक होने की ज़रूरत नहीं है समझे।"

"और रही मुझे पसंद करने की बात तो भला तारा द ग्रेट को कोई नापसंद कर सकता है, बताओ?" तारा ने अपनी आँखें नचाते हुए कहा तो उसकी पीठ पर एक धौल जमाते हुए राघव ने बनावटी गुस्से में कहा, "तारा की बच्ची, एक तो मैं सुबह से परेशान हूँ और तू भी अपने यश के साथ मिलकर मुझे परेशान करने लगी।"

"तुम क्यों परेशान थे भाई? परेशान तो हम हो गये थे तुम्हें सँभालकर तुम्हारे केबिन से नीचे लाने में, और फिर कार में बैठाने के बाद यहाँ तुम्हारे कमरे तक तुम्हें लाने में।
ओह मेरी कितनी एनर्जी वेस्ट हो गयी और हाथों में अभी तक दर्द है सो अलग।" यश ने मासूमियत से कहा तो अब राघव भी हँसते हुए बोला, "यश बाबू, मैं अपनी तारा आपको हमेशा के लिए सौंप रहा हूँ, बदले में आपको मेरी इतनी खिदमत तो करनी ही पड़ेगी।"

"ये भी सही है।" तारा ने राघव के हाथ पर हाई-फाइव देते हुए कहा तो इन दोनों दोस्तों के साथ घुली-मिली यश की हँसी ने सुबह से राघव के कमरे में छाए हुए सारे तनाव को कोसों दूर भगा दिया।
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फ्लोरेंस के ओपेरा डि फ़िरेंज़े के मंच पर जब भारतीय युवा नर्तकी ने अपने देश की पारंपरिक नृत्य कला का प्रदर्शन करना शुरू किया तब वहाँ उपस्थित सभी दर्शकों की नज़रें जैसे उसी के ऊपर ठहर गयीं।

उसकी प्रस्तुति समाप्त होने के बाद तालियों की गड़गड़ाहट के बीच मंच संचालक ने उसके हाथों में माइक देते हुए उससे कहा, 'मिस वैदेही, सबसे पहले तो आपको इस अद्भुत नृत्य प्रदर्शन के लिए बहुत-बहुत बधाई। आपके माध्यम से भारत देश की इस प्राचीन नृत्य-कला संस्कृति से रूबरू होते हुए हम सभी स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहे हैं।
अब हम आपसे जानना चाहते हैं कि आप अपनी इस कला को, विशेषकर आज के अपने इस प्रदर्शन को किसे समर्पित करना चाहेंगी?"

वैदेही ने दर्शकों के बीच बैठी हुई अपनी माँ शारदा की तरफ एक नज़र देखा और फिर उसने कहा, "मेरी माँ और गुरु शारदा जी के साथ-साथ राघव को जिसकी बाँसुरी की धुन पर मेरे पैरों ने सबसे पहले थिरकना शुरू किया था।"
क्रमश: