मैंने इस बार शायद गलत जगह पांव रख दिया था। पांव तले से थोड़ी सी मिट्टी नीचे को रिसकी थी, जिससे हल्की सी आवाज हुई। मुझे लगा, मेरी गलती से शोर पैदा हो रहा है। अभी हाल गालियां सुनने को मिलेंगी.....हो सकता है कि एकाध धप्पा भी खा जाऊं । सो मैं डर गया । मेरी झिझकती निगाह रघुवंशी पर गई । वह शांत दिख रहा था। मैं निश्चिंत हुआ, यानी कि हम सब सुरक्षित थे ।

Full Novel

1

मुख़बिर - 1

डकैतों की तलाश में निकले एक दल ने दो ऐसे मुखबिर साथ ले लिए जो पहले इसी डाकू पकड़ ने रहे और उन्हें डाकू के सारे ठौर ठिकाने मालूम थे। डकैतों और पुलिस वालों का व्यवहार और सतर्कता लगभग एक जैसी थी। ...और पढ़े

2

मुख़बिर - 2

पिछली रात करसोंदा-कलां गांव में सुरेश रावत के बड़े भाई गणेश रावत को रात ग्यारह बजे श्यामबाबू घोसी घर से बुलाके गांव के बाहर ले जाकर बड़ी बेदर्दी से मार डाला था । सुरेश के साथ थाने जाने के लिए एक भी आदमी तैयार नहीं हुआ -, डाकू सिंगराम रावत की वजह से वैसे ही कृपाराम नाराज चल रहा है रावत विरादरी से बैठे-ठाले डाकुओं से कौन बैर बांध ले । सुरेश को पता लगा कि बागियों की खोज में जंगलों में घूम रही एक टुकड़ी करसोंदा-कलां में रूकी हैं तो वह नंगे पैरों हमारे दल के पास भागा चला आया था । ...और पढ़े

3

मुख़बिर - 3

चंबल की कहानी।पुलिस की सर्चिंग टुकड़ी को कुछ सुराग मिला तो वे उत्साह में हैँ। दरअसल चंबल में लंबे के बाद कोई बीहड़ में कूदा है, नए जमाने का डकैत है ! डकैतों और पुलिस वालों का व्यवहार और सतर्कता लगभग एक जैसी थी। दोनों मुखबिर की हालत खराब , वे पुलिसिया गाली गुफ्तार और बेइज्जती से दुःखी प्रायः पुराने दिन याद करते थे । ...और पढ़े

4

मुख़बिर - 4

दिन में समूह के बीच सुरक्षित चलते वक्त तक जरा-जरा सी आवाज पर हमारे बदन में फुरफुरी आ जाती फिर तो इस वक्त रात के अंधेरे में असुरक्षित लेटे हम सब थे। मुझे ऐसे कई हादसे याद आ रहे थे जिनमें बागियों या नक्सलियों ने इस तरह किसी इमारत में मकाम किये लेटी पुलिस टीम को डायनामाइट लगा के उड़ा दिया था। इसलिए जहां भी जरा सा खटका होता मैं ही नहीं जाग रहा हर सिपाही एक पल को चौंक उठता। ...और पढ़े

5

मुख़बिर - 5

लल्ला पर मुझे बेहद तरस आता है, पिता के इकलौते लड़के, पिता एक जाने माने कथा वाचक थे, संगीत डुबाकर जब वे माकिर्मक कथाऐं सुनाते तो सुनने वाले का दिल फटने फिरता, यही जादू सीखना चाह रहे थे लल्ला पंडित, सो उन्होने न तो पढ़ाई मे ध्यान दिया न ही खेती बारी में ।... और दोनों ही उजर गये । खेती पर गांव के अड़ियल गूजर ने अपनी भैंसों का तबेला बना लिया और रोज रोज कथा में जाने के कारण स्कूल जाना बंद हो गया, और धीरे धीरे तीस साल के हो बैठे लल्ला महाराज । ...और पढ़े

6

मुख़बिर - 6

उस दिन वोट गिरने में एक दिन बाकी था। पटवारी होने के नाते मेरे माथे पर अनगिनत जिम्मेदारियां लदी । अपने हल्का ( कार्य क्षेत्र के गांवों ) में आये चुनाव कर्मचारियों की पूरी व्यवस्था मुझे संभालनी थी, उन्हे खाना पहुंचाना, बिस्तरे मंगवाना और वोटिंग के लिये फर्नीचर लाना, पोलिंग वूथ वगैरह बनबाना हम पटवारियों के ही तो जिम्मे रहता है न ! उस दिन मैंने बड़े भोर अपने गांव से पैदल चल के बस पकड़ी थी, और तहसील के लिए रवाना हो गया था ।‘‘ ...और पढ़े

7

मुख़बिर - 7

‘‘ अब जल्दी करो सिग लोग। अपयीं-अपयीं विरादरी बताओ सबते पहले ।‘‘ लोग अपनी जाति-बिरादरी और गांव नाम बताने लगे। घोसी, गड़रिया, कोरी, कड़ेरा, नरवरिया और रैकवार सुनकर तो कृपाराम चुप रह जाता था । लेकिन वामन-ठाकुर और ऐसी ही कोई दूसरी जाति का आदमी होता, तो वह एक ही वाक्य बोलता था -‘‘तू उतै बैठि मादऱ … !‘‘ ...और पढ़े

8

मुख़बिर - 8

अचंभा तो ये था कि हमारे सामने ही एक देहाती आदमी आया, उसने पर्दा हटा कर भीतर झांका और पूछे ताछे सीधे एसपी के कमरा में घुस गया । उस आदमी का रूतबा देख कर हमने दांतो तले अंगुली दबा ली थी- एक देहाती भुच्च आदमी की इतनी हिम्मत ! जरूर ये कोई नेता-वेता होंगे । लेकिन मन ने विश्वास नही किया था-ऐसे फटीचर आदमी भला कहां से नेतागिरी कर पायेंगे ! जिनके पास खुद खाने नहीं दिख रहा, वो दूसरों को कहां से टुकड़ा डालेंगे ! तो ! ...और पढ़े

9

मुख़बिर - 9

कृपाराम का इशारा मिला तो हम लोग झटपट चल पड़े । पोजीशन वही थी-आगे कृपाराम और बीच में डरे-सहमे, सब । इसके बाद भी हालत वही कि जिसका ऊंचा-नीचा पांव पड़ा या किसी गलती से कोई आवाज हुई कि पीछे से किसी न किसी बागी की निर्मम ठोकर खाना पड़ता हमे । हमारा वो दुबला-पतला साथी शायद भारी वज़न की वज़ह से गिरा ही था कि सारे बागी उसके सिर पर सवार हो उठे थे। ...और पढ़े

10

मुख़बिर - 10

सौ, पचास, दस और पांच-पांच के नांटों की अलग-अलग गड्डी बनाके मैंने और लल्ला ने रूपये गिनना शुरू कर । जब तक सब्जी बनी, तब तक नोट गिने जा चुके थे । मैं बोला-‘‘ मुखिया, जे नोट तो पन्द्रह हजार चार सौ अस्सी है,।‘‘ ‘‘मुखिया पुरी काहे में काड़ेंगे ?‘‘ ‘‘मादरचो…, हिना का कडा़ई दीख रही है तो खों । जा अपनी मइयो की …. में काढ़ ले ! जा भगोनी नाय दीख रही तोखेां ?‘‘ ...और पढ़े

11

मुख़बिर - 11

पुलिस बल के लोग सुबह पांच बजे जागे और दैनिक क्रिया के बाद स्कूल के मैदान में पंक्तिबद्ध खड़े कसरत करने लगे । कुछ दिन तक मुझे और लल्ला पंडित को कसरत करते जवान अजीब से लगते थे, लेकिन एक दिन हमको मुंह दबा कर हँसते देखा तो बाद रघुवंशी ने हम को सुबह-सुबह की जाने वाली कसरत के फायदे बताये तो हमने भी कसरत करना शुरू कर दी । ...और पढ़े

12

मुख़बिर - 12

बड़े भोर बागी जाग गये और लतिया कर हमे जगाने लगे । दिशा मैदान से फरागत होने के लिए हम दो-दो आदमियों के पांव आपस में बांध कर साथ-साथ छोड़ा । पहले तो टट्टी के लिए बैठने में एक दूसरे से हम लोगों को खूब शरम लगी, फिर पेट का दबाब और शारीरिक जरूरत से मजबूर हो कर एक दूसरे से पीठ सटाकर हम लोग किसी तरह निवृत्त हुये । ...और पढ़े

13

मुख़बिर - 13

हम लोग पहाड़ी से नीचे उतरे । सामने की पंगडंडी से दूधवालों की चार-पांच साइकिलें आती दिख रही थीं बागी उन्हे देखकर रूके, तो दूधियों की तो हालत ही खराब हो गयी । डरते कांपते वे दूर ही रूक गये थे । श्यामबाबू ने आवाज देकर उन्हे आश्वस्त किया -‘‘ डरो मत सारे हो, हमाये ढिेंग आओ और बस दूध पिला दो ।‘‘ मैंने देखा कि दूध का केन खुलते ही बागी दूध पीने के लिए भूखे टूट पड़े । ...और पढ़े

14

मुख़बिर - 14

रामकरन बोला- मै एक सहकारी बैंक में चपरासी हूं, सहकारी बैक का कामकाज प्राइवेट संस्थाओं की तरह चलता न कोई टाइम टेबिल न कोई कायदा-कानून । वहां अध्यक्ष सबका मालिक है । वही सबका माई बाप है और वही बैंक का सबसे बड़ा अफसर । वो जो कह दे वही कायदा, वही नियम । ...और पढ़े

15

मुख़बिर - 15

मुख़बिर राजनारायण बोहरे (15) ब्याह कृपाराम की याददास्त बड़ी तेज है । जब उसका ब्याह हुआ तब वह दस का रहा होगा, लेकिन उस दिन जब किस्सा सुनाने बैठा तो आंख मूंद कर इस तरह राई-रत्ती बात सुनाता चला गया जैसे अभी कल की कोई्र घटना बता रहा हो । पहले उसने अपने खानदान की कीर्ति उचारी -‘‘ हमारा कुल-खानदान घोसी के नाम से जग-जाहर है, पर हम असिल में गड़रिया हैं । हमारे बाप-दादा गाय-भैस चरात हते तो उन्हे सबि लोग ’गोरसी‘ ’गोरसी‘ कहत हते, बाद में गोरसी ते घोसी कहलान लगे। गड़रिया दो तरहा के होते हैं ...और पढ़े

16

मुख़बिर - 16

मुख़बिर राजनारायण बोहरे (16) बारात गांव और कुटुम के हर ब्याह में वह नमक और पानी परोसता है, लेकिन काका ने उसे अपने खुद के ब्याह में परोसाई ते दूर रही, घर से बाहर निकलने पर भी रोक लगा दी है । सारे बदन में थोपी हुई हल्दी से हर पल एक अजीब सी गंध निकलती है, ऊपर से वक्त-वेवक्त कम्बल लपेटना पड़ता है तो पसीना के फौबारे छूट जाते है। कांधे से कमर तक लटकी कटार और उसकी पट्टी अलग कंघे से लेकर कमर तक चुभती है । देर रात उसे एक पत्तल में खाना मिला तो उसने ...और पढ़े

17

मुख़बिर - 17

मुख़बिर राजनारायण बोहरे (17) हिकमत कृपाराम ने इस तरह किस्सा शुरू किया मानो वह किसी और की कहानी सुना हो.... कृपाराम एक सीधासादा और मेहनती चरवाहा था । बचपन से ही तेज अक्कल वाला था, लेकिन गांव में स्कूल न था सो बचपन में पढ़-लिख न सका । पिता ने जैसे-तैसे करके बचपन में ही विवाह कर दिया था और घर में दो बच्चा खेल रहे थे तब कृपाराम के। अपने पिता गंगा घोसी के साथ कृपाराम दिन भर अपने ढोर-बखेरू चराता रहता । शाम को कारसदेव के चबूतरे पर ढांक बजाता, ग्वालों के देवता कारसदेव की प्रशंसा में ...और पढ़े

18

मुख़बिर - 18

मुख़बिर राजनारायण बोहरे (18) बीहड़ पुलिस आये दिन उन दोनों से पूछने-ताछने आ धमकती । वे दोनों क्या बताते पुलिस हाथ मलती रह जाती । उन चारों के फ़रार होने की खबर सुनके गांव में सबसे ज्यादा हिकमतसिंह को डर गया । उसने अपने घर पर लठैतों की फौज बिठा ली । महीना भर तक जब कोई वारदात नहीं हुई तो गांव के लोगों ने यह कहके अपने मनको समझा लिया कि वे लोग बागी नहीं बने बल्कि इतनी बेइज़्ज़ती के होने से लाज-शरम की वजह से वे लोग कहीं अंत गांव में जाकर रहने लगे हैं । लेकिन ...और पढ़े

19

मुख़बिर - 19

मुख़बिर राजनारायण बोहरे (19) चिट्ठी मैंने सुनाना आरंभ किया । हम लोग दोपहर को एक पेड़ के नीचे बैठे कि दूर से धोती कुर्ता पहने बड़े से पग्गड़ वाला एक आदमी आता दिखा । बागी सतर्क हो गये । वह आदमी थोड़ा और पास आया तो कृपाराम ने पहचाना -‘‘अरे ये तो मजबूतसिह है, अपना आदमी !‘‘ अपना आदमी, यानि कि बागियों का मुखबिर ! कृपाराम उठा और मजबूतसिंह से अलग से बतियाने के लिए आगे वढ़ गया । वे लोग देर तक बातें करते रहे । फिर मजबूतसिंह चुपचाप वापस चला गया । लौट कर कृपाराम ने उदास ...और पढ़े

20

मुख़बिर - 20

मुख़बिर राजनारायण बोहरे (20) मुठभेड़ मजबूतसिंह उस दिन अपने कंधे झुकाये जमीन पर आंख गढ़ाये हुए आता दिखा तो सबको उत्सुकता हुई । कृपाराम लपक के मजबूतसिंह से मिलने आगे वढ़ गया। ये क्या, मजबूतसिंह की बात सुनते ही कृपाराम ने उसे एक जोरदार धक्का दिया और मजबूतसिंह जमीन पर गिर कर धूल चाटता नजर आया । यह देख दूर खड़े बाकी डाकुओं ने अपनी बंदूकें संभाली तो कृपाराम ने वहीं से इशारे से उन सबको शांत रहने का आदेष दिया । फिर उसने जमीन पर गिरे मजबूतसिंह को सहारा देकर खुद ही उठाया और गुफा तक ले आया ...और पढ़े

21

मुख़बिर - 21

मुख़बिर राजनारायण बोहरे (21) कृपाराम का पुश्तैनी गांव अगले दिन मैने किस्सा सुनाना शुरू किया कि एक बार मैने के साथ जाकर कृपाराम का पुश्तैनी गांव देखना चाहा था । हुआ ये था कि एक दिन कृपाराम ने मुझसे सिलक गिनवाई तो पता चला था कि उनके पास तीन लाख से ज्यादा रूपये नगदी रखे हैं । अपनी सुरक्षा के साथ-साथ इतने सारे रूपये भी लादे रखने और रखाते फिरने के झंझट से बचने के लिए उसने अजयराम से कहा कि वह गांव जाकर सिलक लाला को संभलवा आये । तो मैंने इच्छा प्रकट की थी कि मैं भी ...और पढ़े

22

मुख़बिर - 22

मुख़बिर राजनारायण बोहरे (22) हत्या अगले दिन दिन भर की थकान मिटाने पुलिस पार्टी के लोग एक पहाड़ी के पर टांगे फैलाए लेटे थे कि दूर पेड़ों की ओट में कुछ साये से चलते-फिरते दिखें तो पायलट सैनिक सतर्क हो गये । पुलिस दल ने पोजीशन ले ली और फायर खोलने वाले थे कि सेकंड-लेफ्टीनेंट सिन्हा ने रघुवंशी को याद दिलाया-‘‘ अपना वायरलेस सेट चालू करके तो देखलो साहब, कही ये लोग अपनी ही किसी टीम के सदस्य न हों, और गलतफहमी में हम अपने किसी भाई पर ही न गोली चल बैठे ।‘‘ और यही सच निकला । ...और पढ़े

23

मुख़बिर - 23

मुख़बिर राजनारायण बोहरे (23) रामकरण की जान गलतफहमी से मुझे याद आया, कि कैसे जरा सी गहतफहमी पैदा होने श्यामबाबू ने रामकरण की जान ले ली थी । उस रात मैंने उन सबको रोज की तरह अपना किस्सा सुनाना आरंभ कर दिया- .........उस दिन गिरोह में से कृपाराम और अजयराम कहीं चले गये थे और अपनी जगह हमेशा की तरह उन दो निहत्थे बदमाशों को पहरेदार बना के छोड़ गये थे, जिन्हे लल्ला पंडित लगुन के बुलौआ में आये मेहमान कहा करते थे, क्योंकि जब भी वे दोनों आते थे, दिन भर चुप बैठेे रहते थे और टुकुर-टुकुर इधर-उधर ...और पढ़े

24

मुख़बिर - 24

मुख़बिर राजनारायण बोहरे (24) तोमर तब रात के तीन बजे होंगे जब रघुवंशी की धीमी सी आवाज सुनी मैने शायद सिन्हा ने उन दिनों की कोई बात छेड़ दी थी सो रघुवंशी धीरे धीरे कुछ सुना रहा था-‘‘ उन दिनों मै उसी थाने का इंचार्ज था और वहीं तोमर डकैती उन्मूलन टीम का इंचार्ज था । उसका डेरा उन दिनों मेरे थाने में ही था । मुझे तो पूरी घटना पता है । हुआ ये कि ‘‘…… इसके साथ रघुवंशी ने उन दिनों का वाकया सुनाना शुरू कर दिया। तोमर जिला मुकाम से लौटा तो बेहद परेशान था उस ...और पढ़े

25

मुख़बिर - 25

मुख़बिर राजनारायण बोहरे (25) कारसदेव मैने अनुभव किया था कि बीहड़ में हम जिस भी गांव के पास से हरेक ज्यादातर गांवों के बाहर एक चतूबतरा जरूर बना होता । कृपाराम पूरी श्रद्धा से उस चतूतरे पर सिर जमीन पर रखकर प्रणाम करता । मुझ लगातार यह उत्सुकता रहने लगी कि इस जैसा हिंसक आदमी कौन से देवता को इतना मानता है, किसी दिन पूछेंगे । एक दिन मौका देख कर मैंने पूछा तो कृपाराम ने बताया-ये हम ग्वाल बालों के देवता हीरामन कारसदेव है । ’इनकी कथा हमने कहीं सुनी नहीं, दाऊ किसी दिन सुनाओ न !‘मेरी उत्सुकता ...और पढ़े

26

मुख़बिर - 26

मुख़बिर राजनारायण बोहरे (26) एलादी बारह वरस की तपस्या से भोले बाबा शंकर भागवान एलादी की भक्ति से प्रसन्न गये और एक दिन ग्वाले का वेष बना कर एलादी के पास पहुंचे । वे एलादी से बोले -बहन, तुम रोज-रोज मिट्टी के शिवलिंग काहे बनाती हो, सासक्षात शिवजी की पूजा काहे नहीं करतीं! एलादी बोली-साचात शिवजी कहां मिलेंगे ? ग्वाला वेष धारी शंकरजी बोले -ऊपर पहाड़ पर शंकर जी की मूर्ति है वहां जाओ । एलादी पहाड़ के ऊपर पहुंची और चारों ओर शिवजी की पिंडी ढूढ़ने लगी । लेकिन पहाड़ी पर शिवजी की कोई पिंडी नहीं थी । ...और पढ़े

27

मुख़बिर - 27

मुख़बिर राजनारायण बोहरे (27) फिरौती अगले दिन में किस्सा सुनाने का मन बना रहा था कि यकायक रघुवंशी ने -‘‘ तुम कितनी फिरौती दे आये थे -गिरराज !‘‘ ‘‘ कतई नहीं साहब, एकऊ रूपया ना दियो हमने !‘‘ मैंने मजबूत आवाज में हमेशा की तरह जवाब दिया। ‘‘ मैं बताता हूं दरोगा जी, इसका तो पूरा किस्सा मुझे मालूम है।‘‘ दीवान हेतमसिंह ने बीच में दखल दिया और मेरी हंसी सी उड़ाता बोला-‘‘गिरराज के बाप ने अपनी तीन बीघा जमीन बेच के एक लाख दये औैर लल्ला पंडित की घर वाली ने अपने जेवर गिरवी रख के पिचत्तर हजार ...और पढ़े

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मुख़बिर - 28

मुख़बिर राजनारायण बोहरे (28) कृपाराम की चिट्ठी चम्बल की घाटी में एक बात प्रचलित है कि जिस घर का बागियों ने पकड़ लिया हो, उस घर पर बागियों की सतत नजर रहती है, सो कोई काहे को अपना नाम ऐसे आसामी के हितुओं के रूप में लिखवाये जो डाकुओं के दुश्मन हैं । दद्दा बिन बुलाये ही अगले दिन पन्द्रह किलोमीटर पैदल चल कर पुलिस थाने गये और अपनी नेहरू-कट जाकेट की ऊपरी जेब में मेरा फोटो धर ले गये थे । वहां ऐसे ही फोटो इकट्ठे किये जा रहे थे । मेरा कद-काठी और हुलिया लिख कर दरोगा ...और पढ़े

29

मुख़बिर - 29

मुख़बिर राजनारायण बोहरे (29) शिनाख़्त छोटा दरोगा बोला -‘‘ चलो तुम्हारा किस्सा निपट गया !‘‘ मैंने मन ही मन कि किस्सा कहां निपटा था, असली किस्सा तो फिर शुरू हुआ था । जब बिस्तर पर पहुंचा, तो मेरी आंखों में नींद न थी । मेरी आंखों के आगे वह वास्तविक किस्सा घूम रहा था जो फिर षुरू हुआ था । उस दिन हमे घर लौटे हुये एक महीना हुआ था, कि अखबारों में खबर छपी ‘डाकू कृपाराम अपने साथियों के साथ समर्पण कर रहा है । ‘ लल्ला पंडित दौड़ते-दौ़ड़ते मेरे पास आये-‘‘ काहे गिरराज, किरपाराम कौ समर्पण देख ...और पढ़े

30

मुख़बिर - 30

मुख़बिर राजनारायण बोहरे (30) मुकदमा अदालत में मुकदमा चला था । तब तक छह महीने बीत चले थे, आरंभ बीहड़ में सिंह के समान बेधड़क भटकते बागी अब चूहों से लगने लगे थे । सो हमारी हिम्मत भी वढ़ गयी थी और हम दोनों ने बेझिझक अदालत में भी बागियों की पहचान कर ली थी । रामकरन की हत्या के केस में हमारी ही गवाही के आधार पर सब बागियों को सजाये-मौत मिली थी। तो सबसे ज्यादा हम दोनों प्रसन्न हुये थे । हमको लगा था कि उनके दिल पर कई दिनों से रखा पर्वत अब जाकर उनके सीने ...और पढ़े

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मुख़बिर - 31 - अंतिम भाग

मुख़बिर राजनारायण बोहरे (31) कृपाराम के मुखबिर हेतमसिंह बताता है कि इगलैंड से ख़ास तरह की तालीम लेकर आये के एक आई जी को इस अंचल में डाकू समस्या को निपटाने का काम सोंपा गया तो उनने पुलिस विभाग की एक आम सभा आयोजित की थी, जिसमें दीवान से लेकर डीआईजी तक की रैंक के पुलिसिया लोग सम्मिलित हुए थे । हर आदमी से सुझाव मांगे गये-आप लोग अपनी अपनी अकल से बताओ कि कृपारम गिरोह को कैसे खत्म किया जा सकता है? हेतम बताता है कि हर आदमी ने अपने अपने सुझाव दिये, लेकिन यह तो दिखावा था, ...और पढ़े

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