-------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ कहानी है।
चलती हुई ट्रेन की टक टक थक थक... चल सो चल थी। कभी पटरी से ट्रेन के पहिये घिसते हुए टक टक टक करते गुज़ रहे थे.... फिर इज़न की कुक फिर जैसे स्पीड कम होती गयी.... लगे स्टेशन आ गया.... हाँ सच मे स्टेशन था। रूकती रूकती पांच से छे डिब्बे आगे निकल चुके थे.... जरनल डिब्बे... कम लोग उतरे , जयादा चढ़ गए। गाड़ी टुसी गयी.. भाव भर गयी, पूरी एक से एक बढ़ के।
एक भिखारी और एक आमीर लगे था... बाकी पता नहीं... उसके एचिकूट बहुत बड़े हुए थे, थोड़ी देर बाद टाई की गाँठ ठीक पता नहीं कस रहा था या ढीली....एक योगी भगवे और बीन लिए बैठा आपनी झटे ठीक करे था... कया पता, " मलयालम भाषा मे कुछ बोला", किसी ने नहीं सुना। भिखारी बोला, " इस वेंगी मे इतना कुछ काये लिए फिरे हो... " वो एक मिनट सेह नहीं सका, " खुल दू कया ----सब मंदहोश हो जायेगे। " भिखारी जोर से हसा... उसकी शक्ल डरावनी सी हो गयी.... " बस करो मिया, बच्चे रो दे गे। " मैंने आखिर बोल दिया।
भिखारी ने आँखे सिकोड़ी, " तुम्हारा है तो बात ठीक है, नहीं है तो काहे गर्म हो रहे हो... " मै चुप इस लिए हो गया, कि ये दो गाड़ी मे चढ़े, इतने ब्रह्म गयानी हो गए...
---------"बात सुन, मै भिखारी हु, जो नाग तेरे पास है, वो जनता मार देगी, पुछ कैसे... " अब योगी हस पड़ा। " तू भिखारी है, तेरी सोच ही नंग है.... वैसे मैं कयो पुछू। " योगी ने ठोक के कहा।
" मेरी सोच आज की आवाज़ है.... प्यारे योगी जी, नंग ही रहे गी। तू मत पुछ, नाग को नाग कभी लड़े है.... जैसे मैं। " भिखारी ने जनता को भड़का देख आपना बोल दिया.... योगी बोला, " जनता को नाग केह रहा है। " उसने तेल छिड़का... लोग चुप ही रहे.... मुझे तो लगा था, धमाका होने वाला है, पता नहीं लोगों ने हेड फोन कान मे लगा रखे थे। किसी ने जैसे सुना ही नहीं।
गाड़ी ने फिर हारन वजा दिया। ब्रेके फिर लगनी शुरू.... लोग मस्ती मे थे। योगी उठा बस कितनी ही जेबे कट गयी। जैसे मंत्री लोगों को छल के स्टेज छोड़ गए, ऐसे ही योगी..." जानी भोगी "
उधर भिखारी उतरा... वो जितना कर सका कर गया... कमबख्त मेरी भी जेब काट गया। पर शर्मिंदा नहीं मै, मैंने कभी ट्रेन मे जेबो का इस्तेमाल नहीं किया, पर्स मे बस साई की पिक, "सब का मालिक एक "
चुप सब, उतरने वाले उतर गए, लोग ठगे गए शायद....
कया यही देश का विकास है, जेब कटते कटते आज 2020 हो गया.... नया कुछ अविष्कार नहीं हुआ... बस वही जेब कतरा.... अब नये डवाइस मार्कीट मे आ गए, पर जेब का पुराना हथेयार.... पता नहीं कया... वही ब्लेंड की तीखी नोक " कट गए, काट गए, मेहनत के पैसे ले उड़े.... "यही कलक भारत का पुराना बिजनेस.... सब को पता है, फिर हम सावधान कयो नहीं होते। अक्सर ट्रेनों मे हम कयो शिकार हो जाते है,
इतनी मस्ती भी ठीक नहीं, भाई।
------ चलदा ----/ / / नीरज शर्मा,
/ / शहकोट, ज़िला, जलधर