मंजिले - भाग 12 Neeraj Sharma द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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मंजिले - भाग 12

  मंज़िले -----  "कया यही पुण्य है " --- एक लिबास को उतार कर फेक देने को तुम बहुत बारीकी से सोच के बताना, " इसमें पाप कहा था " 

                  कहानी आप पर छोड़ता हुँ, चलो बता तो सकते हो, चोर चोरी कर के पकड़े गए, तो नाम ईश्वर का ही ले रहे है, " पकड़े गए मंदिर मे धन चोरी करते। " 

छूट गए। माँ बीमार लोग देख कर आये, दूसरे का दुनिया मे कोई नहीं, उसने कहा "सगत मिली " अब दोनों को छोड़ा जा चूका था। माँ का आख़री सास था, ले लिया, और परलोक सिधार गयी। जो बिल बना, चूका दिया किसी लाले ने धर्म कर्म करता था।

          सवाल था अब काम का, उसने कहा " दोनों को काम दे सकता हुँ, जिम्मेवारी का है, इसमें कोई चलाकी नहीं चले गी। 1978 की सत्य कथा भाई लोग, ध्यान दे।

लाला ने जिसने मंदिर मे चोरी करनी की स्कीम रची थी उसको घर मे रखा, बहुत काम करवाने मे, दूसरे को उससे दूर किया, बीस किलोमीटर पे सैलर पे पहरा देना।

दोनों का ईमानदारी देख के लोग लाला को बले बले कहने लगे। वो दो महीने बाद सिफ्ट कर देता था, जान बुझ के। बहुत शातिर था, लाला जगन मल। बहुत दिमागी था। दो महीने की तनखाह उनको नहीं दी गयी।

कारण समझ मे आया कि नहीं, तनखाह तो वो चोरो को कतई नहीं देना चाहता था। चोर और सिर पर बैठे नहीं, कदापि नहीं। दोनों सोचते थे " काम किया पर पैसे तो चाइये हमें। " गरीब चाये चोर कैसे हमारी मेहनत रख ले कोई। दोनों ने बात की।

लाला बोला, " पुण्य के काम के पैसे नहीं होते, समझे। " 

वो थोड़ा दीन भाव से बोले, " लाला जी, शरीर तोड़ मेहनत की हमने, और बदले मे कुछ भी नहीं। " 

 " रोटी दाल, लसी दही कपड़े.... ये सब मुफ्त है कया----" लाला ने टिचर की।

"चलो ये महीना लगाओ " लाला ने कहा, हिसाब तीसरे महीने मे एक दम क्लियर करुँगा। दोनों फिर राजी हो गए।" तुम एक जो है वो कुछ हफ्ते दिल्ली मेरे चाचा का हाथ बटा के आएगा,"'' --सोनीपत से दिल्ली जयादा दूर नहीं है।' "बीमार है विचारा "

"ठीक है। " लाला को एक ने कहा। "याद रखना तुम चोरी मत करना। शिकायत न आये। " लाला जी ने जैसे प्रश्न किया हो। " एक ने जाते वक़्त कहा " चोरी नहीं करेंगे, तो मर जायेगे। " मन मे जंग एक युद्ध चल रहा था। " जो सैलर की ओर गया था, " लाला चोरी बोल के ज़ख्म कुरेद ते हो, एक दिन रोओगे। " मन वही युद्ध.. जो पहले के चलता था।

               कोई दो साल बीत जाने पे, जगन मल की फोटो दीवार पे लगी थी। बेटा दुकान पे मखी मार से मखी मार रहा था।

मुनीम "  दिल का अटेक देने वाले हरामी पिलो को न पकड़ पाए पुलिस, पर तू तो बता हुआ कैसे सब " मुनीम चुप था। कया बताऊ सच कड़वा लागे, छोटे बाबू। "  लाला जी ने इनके पैसे मार लिए थे, कुल छे हजार... और एक रात उनको मारा भी बहुत, चोर चोर कहते थे। बस वो एक ट्रक ही चोरी करके ले गए बाबू जी " बेटे को जलन हुई, मुनीम पे। " तू चोरो का साथ देवत कया " मुनीम कान पकड़े, सच मे, सच है बाबू।

बेटा बोला, " ठीक है, हिसाब कर, बस और किसी को बताय तो नहीं " मुनीम न मे सिर हिलाता बोला।

बाबू बोला," तुम कोई दूसरा काम देख ले, आढ़त छोड़ दी मैंने। "  चुप और सनाटा था। 

(चलदा )----------------------------------- नीरज शर्मा,

                                            ---- शहकोट,जालंधर