मंजिले - भाग 7 Neeraj Sharma द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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मंजिले - भाग 7

    मंजिले ----( ये वो होती ) -----

            आप पढ़ने वाले है, चलो ये कभी किसी का मरा ही नहीं, आख़री दम तक" ये " पीछा ही नहीं छोड़ती। छोड़ ने को हम इसे राजी है ही नहीं।

           " तुम्हारे जगहा अगर ये वो होती " सुनने वाले का दिल उछल जाता है, "सोचता है ये वो होती, तो कया उखाड़ लेती।" 

सच मे यही सोच है सब की.... अगर गर्मी है, ओ नो गर्मी, " ये वो  होती ( जानी ठंड ), तो कमबख्त जी  दिसबर होता, जून नहीं होती.... कैसे कैसे लोग है... कभी अकेला हसना भी महापाप से कम नहीं....

पकड़े गए " आज कोई मैसेज आया है, जो होड़ होड़ हस रहे थे... जरा चैक कराओ... न दिया तो तीन दिन लड़ाई झगड़ा, बस दिया तो घर मे बच्चे मम्मी से पापा डरते है, सकून से कोई हस भी नहीं सकता.... सोचता हुँ कभी, ये वो सच मे होती। तो कया कर लेती.....

ज़िन्दगी शायद जयादा नर्क नहीं हो जाती.... आगे पीछे... मॉडर्न स्मार्ट फोन की पैदाइश था लव -----चलो बच गए। शुक्र है बच गए।

जिंदगी की पटरी पे रेल चलती गयी... कभी इज़न चीखे मारता, तो कभी पटरी से पहिया फ़िसला फ़िसला बच गया.... मैंने तो बस एक बार ही कहा था.... मेरा दोस्त लफगा बताता था, क्रोध से बोला, " तेरे जगा अगर ये वो होती.... " उसकी आँखे अँगारे बन गए, क्रोध मे बोली, " जाओ उसे  ले आओ। " उसने कहा मेरा समान पैक कर के मेरे घर भेज देना, नौकरो से....

'तुमने एक हफ्ते  तक नहीं किया, तो मेरे तीन भाई आएंगे, तुम्हे हॉस्पिटल एडमिट करा के समान खुद ले के जाएंगे.... "  लफगा चुप। नशा उतर गया। दो पेग देसी के मार के बोला था... मॉडर्न जमाने मे , सब ध्वस्त हो गया, लफगा करे भी तो कया, आपने छोटे बेटे के साथ कार से निकल गयी। रहती कहा थी, लफगा अब देखो जान बुझ के बता नहीं रहा। हाँ, यही बस बरनाले की थी...." जयादा आमिर फेमली, शादी आपने लोगों मे करो... गरीब गरीब से.... बाकी मर्ज़ी --------"

लफगा चुप पसरा हुआ था... सोफे पर ही.... सोच रहा था, कयो जुबा कभी जयादा बोल जाती है, वाहजात जुबा। --------" ये वो होती कमबख्त कौन होती, तेरी अब धजिया उड़े गी। मेरे सालो के हाथ भी बहुत भारी है, हाँ मन मे आया तो ठोक डालो। "

                           करू तो कया करू, फिर सब को -----"ये "के चक्र मे शर्मा की याद आ जाती  है, एक बार नहीं कभी तो महीने मे चार चार वाऱी.... " मैं भी सोचता हुँ ---- इससे जयादा परोपकार कया होगा, घर किसी का वस जाये," ये पी कर मुग़ल बादशाह कयो बनते है...."--- टाइम के पुरे पाबंद, " चलो जी जनाब " 

शर्मा के साथ, घर उनके। उसे कहता कुछ तू बोलेगा, तो सोच ले, मैं नहीं जाऊगा। " लफगा चुप।

"बेचती साथ मे पूरी ठोक के करता मैं भी लफगे की "

"मेरे साथ पूरी ग्रंटी पे उसके हटे कटे जैसे भाई मेरे साथ पाके निश्चित हो जाते थे " 

सोचता था मै अगर ना हुँ, तो ये कचेहरी मुकदमा पक्का। साथ बैठ भाभी जी को कहता, मेरे जाने के बाद पूछना जरूर, " ये कौन है " पूछना जरूर।

लफगा मेरा पैर दबाते हुए कहता " तेरे बेटे का फोन आ गया अमरीका से। " फिर हसता हुआ मै बोला " ये " आ जाता तो, ये आज बुढ़ापे मे खालीपन न होता। 

     /                                  /                          /

       ---------------- नीरज शर्मा।

                     शहकोट, जलधर।