मंजिले - भाग 5 Neeraj Sharma द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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मंजिले - भाग 5

           ---- हार्ट सर्जरी ---- 

एक कलाकार ज़ब लिखता हैँ तो कभी कभार इतना सच लिख जाता हैँ, उसे बेशक पछचाताप हो, वो नहीं मानता, लिखो गा, तो सत्य।

"चलो बाते हो गयी " मेरी माँ से कहा डॉ गयान प्रकाश ने, " बेटे को दिल की प्रॉब्लम हैँ, इमिज़ेटली डॉ सेठी से सम्पर्क करे। " माँ के पैरो से मिटी खिसक गयी।

बात 1983 की हैँ। अगले दिन माँ को चेन कहा। नींद कहा। सब कुछ उसे संसार मे मैं उसका पुत्र जिसकी आयु 12 वर्ष थी.... कया करती। डॉ सेठी के पास ( स्थान नहीं बता सकूंगा ) कुछ बताउगा भी.... माँ का सासार उजड़ रहा था। इतना सब तैयाग कैसे? एक अबला सेह सकती थी , एक स्त्री कितनी जंगे लड़े गी।

मेरी माँ ने सुख देखा... नहीं... बाप छोड़ गया, जिन्दा पता नहीं कयो, मेरी 4 साल बड़ी बहन और माँ जिंदगी की जंग मे अकेले.... किधर जाए।------

माँ ने सुख देखा नहीं, शायद उसकी किस्मत ही ऐसी होंगी। हम अक्सर सब किस्मत के हवाले कयो करते हैँ...? जानते हो.... विधान हैँ जो लिखा गया किसी भी तरा से होके रहता हैँ, दुख.... कारण बनते हैँ, किसी को समझ देने के लिए। कौन तेरा हैँ ? मुझे रिश्ते का तब पता चला, कि दिल्ली मे मेरा बड़ा मामा और मामी मेरे को पुत्र बना रहे हैँ... उस दिन माँ मै, बहन सच मे इतना रोये शायद मैं ही जानता हुँ। पुत्र कया हैँ, माँ को पता हैँ, पुत्र को माँ का पता हैँ।

                  कभी जीते जी किसी का बाप छोड़ कर न जाए.... मेरा मामा बड़ा देवता था.... अब वो नहीं हैँ।

रिश्तों कि कटु नीति मामा के घर मे नहीं, स्वर्ग था, कहा... मन हुआ कुछ आपना सच लिखू।

माँ घबरा रही थी... नहीं... पता कर्यो... माँ पे दुर्गा माँ की किर्पा थी। पुत्र जय शेर बन। शेर... बनने से पहले मेरा हाल वहा वार्ड मे रोज रोता था... ऑपरेशन डेट के लिए पूरा जोर मामा का उनका एक डॉ  था नाम भूल चूका हुँ, नाम शायद अनिल शर्मा था... मामा का पूरा जोर o. P. D का, मिल गया था बेड.... रोज डर और दर्द कालपनिक, मरने जैसी रोज हालत.... माँ आयी मामी के साथ... माँ का रंग लाल था, माँ ने कहा शेर बन। बस फिर बन गया। वार्डो मे घूमना, फिरना, बहुत लोगो का इस कष्ट  का उपचार था। मेरा क्रिटिकल था, मेट्रोलवाल्व सेटॉन्सिस की दिल की बीमारी, कभी पीछा न छोड़ने वाली। पता नहीं मुझे उस वक़्त कयो अच्छी  लगी एक ही सब्जी राम तोरी,मामी के हाथ की रोज रामतोरी की सब्जी बना लाती, रात को जर्नल वार्ड मे मामा बड़ा सोता था। सिगरेट रोज , गम यही, बहन का लड़का.... कल्पनिकता मन की किस के पास नहीं आती....मामा देवता था... मामी हॉस्पिटल मे मेरी माँ बन गयी। लोग पूछते, पता मुझे...

"आपका लड़का, रब ठीक करे।"मामी ने हस कर कहना... जरूर ठीक होगा, मुझे जी घुमायेगा जीप मे...

सारी बॉडी की ब्लेंड से वाल कटिंग... फिर नाहने के लिए पानी मे दवाई डाली... स्टेचर पर लिटा दिया गया।

मगलवार ऑपरेशन ओपन हार्ट सर्जरी मेरी हो गी।

बेहोशी की हालत... जब i. C. U मे लीजा रहे थे... तो मुँह से कुछ नहीं निकला, "डॉ साब मेरे मामा किथे ने...." पता नहीं कया था, चुप हो ही नहीं सका।

सब सहम गए। S. K. खना  ने कहा, थोड़ी बहुत थोड़ी 

कलोरोफाम देते हैँ।  कुछ नहीं ठीक हो जायेगा।आँखे खुली थी मुझे होश था, मामा जी और मामी को और माँ मेरी बहन को सब को देख रहा था मन की सुप्त आँखो से ... मामा का वजन 20किलो कम हो गया था।

यही हैँ मेरी आत्म कथा उन देवता लोगों के लिए। ❤️