मंजिले - भाग 3 Neeraj Sharma द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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मंजिले - भाग 3

                          (हलात )

                           छोटी कहानी मे मेरी ये खुद की पसंद की जाने वाली कहानी हैँ.... इस मे कुछ हिंदू हैँ, कुछ मुस्लिम समुदाये हैँ। '2045" ---चल रहा हैँ। सोच रहे हैँ, कया करे। कयो की लोग तो बहुत पानी साफ के दुख और हवा शुद्ध के कारण ही मर गए हैँ।  जयादा हत्या तो बड़े शहरो की हैँ.... कुछ गांव हैँ जो बचे हुए हैँ वो हरयाली के कारण.... पर वो हवा शुद्ध ले रहे हैँ, पर पानी शुद्ध नहीं रहा इस लिए नई बीमारियों के नामो से मर रहे हैँ। 

पारदरशिकता कही नहीं रही, हमारे पहले थी कया।

हमारे लोग कहते रहे। जलवाजू बचा लो। " ना कोई धयान नहीं, कामबख्त लोगों का। " अब कैसे मुँह खोल कर सास ले रहे हैँ। बोल भी नहीं सकते, कितना बहस करते थे। लालच और लचारी कमीना पन कितना बढ़ गया।

सोचते हैँ, न डॉ हैँ, बड़े शहरो की वीरानगी , हॉस्पिटल मे सब वीरान.... सड़क ऐसे गुमसुम हैँ , जैसे कभी कोई जहा हैँ ही नहीं, कया सोचते हो, कया देखते हो,वीरान धरती, धीरे धीरे ताप बढ़ता जा रहा हैँ। कोई रहस्य जो छुपा था, उजागर हो रहा हैँ ----------------कोई वैज्ञानिक जानकारी.... शायद। 

खमोश वातावरण.... नदिया भी गुनगुनाती नहीं, कयो??? पानी कम से भी कम हैँ, कहा चला गया।

हिन्दू समुदाय चुप हैँ, मुस्लिम चुप हैँ।

कोई बम्ब अटेक नहीं.... लोगो को तो वातावरण बली चाड़ रहा हैँ। मौसम मे कभी गर्मी  कठिन परस्तिथि कर देती। कभी ठंड का बोलबाला हो जाता। कैसा मौसम.... सब को ले जायेगा। लगता हैँ। अच्छे घराने के लोग भी अंदर दीवारों मे जकडे हुए हैँ, मास्क मुँह पे बस लगे हुए हैँ। -----कोई पैसे के ऊपर बचने का प्रयास ढूढ लेगा.... असभव कैसे??? चलो देखते हैँ, पुछ रहे हैँ, समाचार कोई नहीं दें रहा.... हाँ एक बार किसी समाचार वाले ने हिमत की थी... पूछा ही था "कैसे महसूस कर रहे हो।" दूसरे ने उसकी आकस्मिक आक्सीजन ही छीन लीं थी। "वो तो  उसी वक़्त मर गया था। कितना जहर होगा।

उसके बाद कोई नहीं आया।

ऐसा ही चाद पर दृश्य देखते थे हम।

कैसे हवा मे तेर रहे हैँ। अब उस चाद की मिटी का कया करोगे। बोलो भी कुछ तो, सरकार भी चुप हैँ।

पता नहीं वो कया सोच रही हैँ, सरकार हैँ भी जा गोरमिंट चुप करके बलिदान दें गयी। कुछ करती कयो नहीं। मुसलमान समुदाय बोला, गोरमिट की सेहायता हम कैसे ले। हिन्दू बोले, भगवान ही बचा सके हमें। 

पहले कैसे घूमती थी एम्बुलेंस की चिकारी.... अब सब ठप ही हो गया.... कयो हुआ ऐसा। वातावरण की संभाल इतनी जरूरी थी, किसी ने लालच के वक्त धेयान ही नहीं दिया।

अब पता !!! 

सब शून्य मे हैँ, आक्सीजन अंदर संचार ही कम कर रही हैँ, सारे चुप ही करके बैठे हुए हैँ। अब कोई महजब नहीं कहता, छोड़ो फ़साद, अब तो सब फसे बैठे हैँ। ------"हलात खुद ही ऐसे तैयार कर लिए।" किसी ने सोचा होगा कभी ऐसा भी होगा.... हिन्दू कह रहे हैँ कलिक अवतार होगा, बस अब तो। मुस्लिम बोले थोड़ा सा, "भाई, सास ले लो, बस।" हलात हमने खुद कयो ऐसे बनाये, सेहक के मर रहे हैँ। ----कितना दुखदायी माहौल हैँ। गंगा भी लुप्त हो गयी हैँ.... हिन्दू बोले, " उसमे ही डुबकी लगा लेते " मुस्लिम समुदाय चुप हैँ... मास्क चेहरों को डके हुए हैँ।