मैं तुलसी तेरे आँगन की उषा जरवाल द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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मैं तुलसी तेरे आँगन की

कुछ दिन पहले मुझे 10 – 15 दिनों के लिए मुझे अपने घर से कहीं बाहर जाना पड़ा | वापस आकर देखा तो गमले में लगी तुलसी पूरी तरह सूख गई थी | सोसाइटी के बगीचे में छोटे – छोटे तुलसी के पौधे लगे हुए  थे, उसी में से तुलसी का एक छोटा – सा पौधा लाकर मैंने गमले में लगा दिया | गमले में पानी डाला पर दो दिन – तीन दिन तक तुलसी मुरझाई ही रही | शायद उसे उसकी जन्मदायिनी मिट्टी से अलग कर दिया था | मुरझाई हुई तुलसी देखकर मैंने पता नहीं क्या सोचकर एक दूसरी तुलसी लाकर उसी गमले में लगा दी | पानी, हवा, धूप और थोड़ा – सा प्यार पाकर एक – दो दिन में ही मेरी तुलसी खिलकर मुस्कुराने लगीं | उसके हरे – भरे हवा से लहराते पत्तों को देखकर अचानक से मन में विचारों के घोड़े दौड़ने लगे |

स्त्री में भी तो तुलसी जैसी समानता हुई ना | वह भी तो एक जगह की मिट्टी से (जो कि उसकी जन्मदायिनी मिट्टी होती है |) दूसरी जगह की मिट्टी में (उसकी ससुराल में) आकर फलती – फूलती है | वह पहले अपने पिता के आँगन में खुशियाँ बिखेरती है और फिर अपने पति के घर में | जब वह तुलसी अपने पिता का आँगन छोड़कर अपने अपने पति के आँगन में आती है तब अपने मन में रंग – बिरंगे सपनों के साथ – साथ असमंजस भी लेकर आती है | वह नए आँगन में ढलने की कोशिशों में लग जाती है | इन कोशिशों में जिसे तुलसी की तरह अपनों का साथ, थोड़ा – सा प्यार और देखभाल मिल जाती है तो फिर तो वह तुलसी स्वयं ही खिलखिलाने लगती है और जल्दी ही उस दूसरी मिट्टी के रंग में रँग जाती है | जिस तुलसी को केवल उपेक्षा मिलती है उसकी सारी कोशिशें धराशायी हो जाती हैं और धीरे – धीरे वह तुलसी मुरझाकर सूख जाती है | कहते हैं कि जिस घर के आँगन में हरी – भरी तुलसी लहलहाती है वह आँगन सदा सुख और समृद्धि से भरा रहता है |

आपके आँगन की इस तुलसी को भी तानों की नहीं बल्कि प्यार एवं देखभाल की आवश्यकता है | लगातार की गई उपेक्षा तो एक भरे - पूरे पेड़ को भी सुखा देती है फिर ये तो छोटी - सी तुलसी है | आपके आँगन की यह तुलसी किसी कारण परिस्थिवश यदि सूख भी गई तो इसका स्थान दूसरी तुलसी (उस आँगन में आई दूसरी पीढ़ी की तुलसी) लेकर आपके आँगन की परंपरा का निर्वाह करेगी | यह एक तुलसी अपने साथ सास, देवरानी, जेठानी और न जाने कितनी ही तुलसियों के साथ रहकर भी सदा आपके आँगन को खुशियों से भरती रहेगी | जब वह तुलसी अपने हरि को प्यारी  है तो आपकी तुलसी आपको प्यारी क्यों नहीं लग सकती ? इसलिए जितना प्यार, सम्मान आप अपने आँगन की उस तुलसी को देते हैं उतने ही प्यार और सम्मान की अधिकारी आपके घर की ये तुलसी है | आँगन की इस तुलसी को भी वही हवा, पानी और धूप देते रहिए और फिर देखिए कैसे यह तुलसी भी आपके आँगन को सुख और समृद्धि से परिपूर्ण कर देगी |