जीते जी श्राद्ध ? उषा जरवाल द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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जीते जी श्राद्ध ?

कई दिनों से घर में जोर – शोर से तैयारियाँ चल रही थी | माँ – पिताजी की 50वीं वैवाहिक वर्षगाँठ का समारोह जो था | सभी ने इस अवसर पर बोलने के लिए अपनी – अपनी तैयारी पहले से ही कर ली थी किंतु ज्येष्ठ पुत्र के मन में भयंकर ऊहापोह था | सभी मेहमान समारोह में विशिष्ट भोज के साथ – साथ संगीत एवं नृत्य का आनंद उठा रहे थे | कार्यक्रम के अंत में सब युगल के लिए दो शब्द बोलकर अपने भावों को प्रकट कर रहे थे | अब ज्येष्ठ पुत्र की अपने माता – पिता के लिए कुछ कहने की बारी थी | सभी लोग उत्सुकतावश बड़े बेटे की तरफ़ देख रहे थे | ज्येष्ठ  पुत्र ने काँपते हाथों से माइक पकड़ा और भावों में बहते हुए बोलना शुरु किया – “मैं सबसे बड़ा हूँ | (अपने भाई – बहनों में) कर्तव्य की पायदान पर सबसे उपर खड़ा हूँ | मैं आप सभी के सामने एक प्रस्ताव रखना चाहता हूँ | क्यों न माँ बाबू जी के जीते जी उनका श्राद्ध मनाया जाए |”

जीते जी श्राद्ध ? पूरी महफ़िल में सन्नाटा छा गया | सबके चेहरों पर क्रोध और विस्मय का भाव छा गया था किंतु दूसरी तरफ ज्येष्ठ पुत्र ने दबाव देते हुए अपनी बात को जारी रखा | उसने फिर से बोलना शुरु किया – मेरा विचार है कि क्यों न माँ बाबू जी के जीते जी उनका श्राद्ध मनाया जाए | आज से हफ़्ते में कम से कम एक बार उन्हे स्वादिष्ट, लज़ीज़, मनपसंद भोजन कराया जाए। कम नमक या ज्यादा मीठा होने की चिंता किए बिना उन्हें उनकी पसंद का हर वो व्यंजन खिलाया जाए जिससे जिस से उनकी आत्मा तृप्त हो जाए । वैसे भी अपनों के चले जाने के बाद उन्हें विभिन्न पशु पक्षियों में ढूँढ़ने का क्या लाभ होगा ? क्यों न उनके जीते जी ही उन्हें ख़ास महसूस कराया जाए | उनके जाने के बाद आने वाली पीढ़ियों को श्राद्ध में उनका सम्मान करवाने की बजाय उनके जीवित रहते ही उनका आदर करना सिखाया जाए |

ज्येष्ठ पुत्र का बोलना जारी रहा...उनके उपरांत न जाने किस - किस के माध्यम से हम उन तक नई पोशाक भेजने की व्यर्थ कोशिश करेंगे | क्यों न इसकी बजाय हर महीने अभी से उन्हे एक नई पोशाक में सजाया जाए और प्रतिदिन उनकी आरती उतारकर उन्हे हर घर का जीता जागता भगवान बनाया जाए। क्यों न माँ - बाबू जी का जीते जी श्राद्ध मनाया जाए?

माहौल में गहरी चुप्पी छा गई थी | किसी को कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि ज्येष्ठ पुत्र के इस वक्तव्य पर अपनी क्या प्रतिक्रिया दें ? तभी पिता जी उठे और उन्होंने पुत्र को कस के गले से लगाया और बोले, बेटा बिल्कुल सही कहा तुमने | जब जीते जी ही सम्मान न मिले तो मरने के बाद कौन देखने आएगा ? जीते जी जिन्हें दो वक्त की रोटियाँ चैन से नहीं मिल पाती वो मरने के बाद भला क्या हलवा – पूरी खाने आएँगे ?

आजकल यही तो हो रहा है | जो जीते जी माँ – बाप को सम्मान नहीं दे सकते वो उनके जाने के बाद भला क्या आदर – सत्कार दे पाएँगे ? जो जीते जी माँ – बाप को वृद्धाश्रम छोड़कर आ जाते हैं वो भला श्राद्ध करके कैसे पुण्य कमा पाएँगे ? इसलिए जो आदर – सत्कार देना चाहते हो वो उनके जीते जी दो, उनकी इच्छाओं का मान उनके जीवित रहते करो नहीं तो वे जीते तो हैं पर जिंदा नहीं होते |