कविता - बिटिया उषा जरवाल द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

कविता - बिटिया

हर एक लड़की के जीवन में उसके पिता का अहम् स्थान होता है | मेरी जिंदगी में मेरे पापा का भी सबसे ऊँचा स्थान है | आज मेरे पापा मेरे मेरे साथ नहीं हैं पर उनका आशीर्वाद और

उनकी यादें हमेशा मुझे प्रेरित करती रहेंगीं |

कविता – ‘बिटिया’

‘मैं’ पापा की प्यारी ‘बिटिया’, उनके अँगना की नटखट – सी गुड़िया,

सबको नाच नचाती ऐसे कि सब कहते- आ गई ‘आफ़त की पुड़िया’,

जब भी मम्मी घर के काम सिखाती तब मैं हरदम नाक चढ़ाती,

माँ गुस्से से जब आँख दिखाती, मैं झट से पापा के पीछे छिप जाती,

एक बार फिर से अपनी लाडो के लाड लड़ाओ ना’

पापा ! मुझे ‘बिटिया कहकर बुलाओ ना |

ऊँगली पकड़कर नन्हे क़दमों पर चलना आपने सिखाया था,

जीवन के हर पहलू को आपने, अपने अनुभव से बताया था,

जिम्मेदारियों की तपिश में भूलकर अपनी ख्वाहिशें’

पूरी करते रहे सदा हमारी पर्चियों पर लिखी फ़रमाइशें,

एक बार फिर मेरी फ़रमाइश पूरी कर जाओ ना,

पापा ! मुझे ‘बिटिया कहकर बुलाओ ना |

मेरी तख्ती को ‘मुल्तानी’ मिट्टी से पोतना, कभी किताबों पर जिल्द चढ़ाना,

कभी ‘सुलेख’ की कलम बनाकर देना तो कभी मेरी दवात में स्याही भरना,

कभी मेरा मुँह फुलाकर बैठ जाना और फिर आपका प्यार से मुझे मनाना,

याद आता है .. मेरी हर ज़िद को अपने सिर – आँखों पर बिठाना,

मेरी एक और ज़िद पूरी कर जाओ ना,

पापा ! मुझे ‘बिटिया’ कहकर बुलाओ ना |

‘पराई’ है.. क्यों पढ़ाते हो बेटी को ? पढ़ – लिखकर क्या कर लेगी ?

घर का ‘चूल्हा – चौका’ सिखाओ, तभी तो छोरी ‘बाबुल’ का नाम करेगी,

‘पराई’ कहने वालों को आपने सबक सिखाया था’

मेरी ‘बेटी’ मेरा अभिमान है, सबको ये बतलाया था ,

आज फिर से वही ‘अलख’ जगा जाओ ना,

पापा ! मुझे ‘बिटिया कहकर बुलाओ ना |

तिनका – तिनका जोड़कर अपना घर – निर्माण किया था,

कैसे – कैसे हम बच्चों को अपने पैरों पर खड़ा किया था,

अपने कष्ट कभी जता नहीं पाए, जब कभी मुश्किल में पड़े थे,

हाथ नहीं फैलाया कभी किसी के आगे, स्वाभिमान के धनी बड़े थे,

वही अडिग संघर्ष हमें सिखलाओ ना,

पापा ! मुझे ‘बिटिया कहकर बुलाओ ना |

‘बाबुल’ तेरे अँगना में आकर वो खाली ‘कुर्सी’ दिखती है,

हर जगह घूमकर ये नज़रें, उसी कुर्सी पर आ टिकती हैं |

माँ का सूना माथा देखकर, दिल में एक सिहरन – सी छा जाती है,

अब भी यूँ लगता है.. वहीँ बैठे हो पापा, एक आवाज़ - सी आती है,

फिर से अपना हाथ मेरे सिर पर रख जाओ ना,

पापा ! मुझे ‘बिटिया कहकर बुलाओ ना |

स्वरचित एवं मौलिक रचना

उषा जरवाल

एस. ओ. एस. बालग्राम

भुज – कच्छ (गुजरात) 370020