मर्म की बात उषा जरवाल द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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मर्म की बात

                                                                                                 मर्म की बात

ये तो आप सब जानते ही हैं कि कृष्ण जी ज्ञान के अथाह सागर थे | जब कुरुक्षेत्र की रणभूमि में अपने समक्ष अपने ही परिवारजनों और सगे – संबंधियों देखकर अर्जुन विचलित हो गए थे तब श्री कृष्ण ने ही ‘गीता’ का उपदेश देकर उन्हें इस संशय से निकाला था और धर्मयुद्ध के लिए प्रेरित किया था |

आधुनिक युग में भी ‘गीता’ मनुष्य के विचलित मन को उचित दिशा प्रदान करती है |

 

हमारे विद्यालय में संस्कृत की कक्षा में गुरुजी भी अक्सर हम सभी को गीता – ज्ञान प्रदान करते रहते थे | एक दिन गुरुजी ने छात्रों से कहा कि आज हम कक्षा में कुछ सवाल – जवाब करते हैं | बस फिर क्या था ? छात्रों ने सोचा ... क्यों न आज गुरुजी के ‘गीता – ज्ञान’ का परीक्षण लिया जाए ? तभी एक बच्चे ने गुरुजी से कहा – “गुरुजी ! मुझे माया, मोह, तृष्णा और मृगतृष्णा सहित अन्य  बुराइयों के विषय में समझाइए |”

गुरुजी ने ‘गीता’ के श्लोक के माध्यम से छात्र को इन सभी का अर्थ समझाने का प्रयास किया पर छात्र के मन का संशय दूर नहीं हुआ इसलिए गुरुजी ने दैनिक जीवन के उदाहरण देकर समझाना उचित समझा जो वाकई प्रशंसनीय है | आज गुरुजी ने सभी छात्रों के लिए विद्यालय के भोजनालय से कुल्फ़ियाँ मँगवाई | फिर  कुछ छात्रों के हाथ में एक – एक कुल्फ़ी देते हुए कहा – “बच्चो ! पहले तुम स्वादिष्ट कुल्फ़ी का आनंद उठाओ फिर समझाता हूँ |”

जब छात्र कुल्फ़ी का लुत्फ़ उठा रहे थे तब गुरुजी ने समझाना आरंभ किया | गुरुजी ने एक छात्र की तरफ़ देखते हुए कहा – “ये जो कुल्फ़ी खाते हुए तुम एक हथेली कुल्फ़ी के नीचे लगाए हुए हो ना, इसे  कहते  हैं - ‘मोह’ । क्योंकि तुम चाहते हो कि चाहते इसका स्वाद अंत तक बना रहे |

और कुल्फ़ी खतम होने के बाद भी तुम जो इस डण्डी चाटते ही जा रहे हो, इसे  कहते  हैं - ‘लोभ’। तुम जानते हो कुल्फ़ी खतम हो गई है फिर भी इसे पाने की चाह खतम नहीं कर पा रहे हो |

और डण्डी फेंकने के बाद, सामने वाले की कुल्फ़ी देखकर सोचना कि उसकी कुल्फ़ी खत्म क्यों नहीं हुई ?

इसे  कहते  हैं – ‘ईर्ष्या’ । क्योंकि तुम उसका आनंद सहन नहीं कर पा रहे हो | तुम सोच रहे हो जो तुम्हारे पास नहीं है वो उसके पास भी नहीं होना चाहिए |

और कुल्फ़ी खतम होने से पहले यदि तुम्हारी कुल्फ़ी डंडी से नीचे गिर जाए और केवल डंडी हाथ में रह जाए तब तुम्हारे मन में जो आता है.... इसे कहते  हैं – ‘क्रोध’ ।“

इतने में ही कक्षा के एक आलसी छात्र ने पूछा – “गुरुजी ! आलस्य क्या होता है ?”

गुरुजी ने उसी बालक की ओर संकेत करते हुए कहा – “तुम प्रतिदिन कक्षा में देर से पहुँचते हो | जो नींद पूरी होने के बाद भी 3 घंटे तक बिस्तर पर मगरमच्छ की तरह पड़े रहते हो ना ! इसे  कहते  हैं – ‘आलस्य’ |”

तभी एक और छात्र ने प्रश्न किया – “गुरुजी ! लालच क्या है ?”

गुरुजी ने उस छात्र से पूछा कि क्या वह कभी बाहर खाना खाने गया है ? छात्र ने हामी भर दी तो गुरुजी ने दूसरा प्रश्न पूछ लिया -  “रेस्टोरेंट में खाने के बाद निकलते समय क्या खाते हो ?” छात्र ने जवाब में सौंफ़ कहा | गुरुजी ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया -  “जो कनस्तर (मुट्ठी) भर के सौंफ और मिश्री का बुक्का मारते हो ना !! यही तो ‘लालच’ है | जितना है उतने से संतोष नहीं है इसलिए खूब सारा बटोर लेना चाहते हो |”

तभी एक शिक्षक ने भी लगे हाथ एक प्रश्न पूछ लिया – “गुरुजी ! भय क्या है ? ये भी बता दीजिए |”

गुरुजी ने कहा – “आप प्रतिदिन कहीं बाहर जाते समय जो ताला लगाने के बाद उसे पकड़ कर खींचते हो, गाड़ी बंद करते समय बंद हुई कि नहीं, ये जाँचते हो ना !! इसे कहते  हैं – ‘भय’ ।“

अब तो बच्चों के साथ – साथ शिक्षकगण ने भी स्वयं को बच्चा समझकर गुरुजी से प्रश्नों की झड़ी लगा दी | एक ने पूछा – “तो फिर शोषण क्या है ? ये भी बता दीजिए |” गुरुजी ने सभी महिला शिक्षिकाओं की तरफ़ देखकर मुस्कुराते हुए कहा – “आप लोग ही सबसे अधिक शोषण करती हैं |” सबने आश्चर्यचकित दृष्टि से गुरुजी की ओर देखा | तब गुरुजी ने कहा – “आप लोग जो बेचारे गोलगप्पे वाले से कभी मिर्च वाला, कभी सूखा, कभी दही वाला, कभी मीठी चटनी वाला और कभी खट्टा वाला गोलगप्पा माँगती हैं ना ! वो शोषण नहीं तो और क्या है ?”

तभी गुरुजी को कुछ सुटकने की आवाज़ – सी सुनाई दी तो उन्होंने एक शिक्षिका की तरफ़ संकेत करते हुए कहा – “आपकी फ्रूटी खतम हो गई है फिर भी आप जो आप स्ट्रॉ से सुड़प-सुड़प करके आखिरी बूँद तक पीने की कोशिश कर रही हो ना !!  इसे  कहते   हैं -  ‘मृगतृष्णा’ ।“ 

एक और सवाल पर उन्होंने जवाब दिया – “ये जो तुम लोग केले खरीदते समय अंगूर क्या भाव दिए ? बोलकर जो 8 - 10 अंगूर ऐसे ही खा जाते हो ना !! इसे कहते  है – ‘अक्षम्य अपराध’।

और ये जो तुम पंगत में बैठकर खाते हुए ......... रायते वाले को आता देखकर जल्दी से.. रायता पी जाते  हो....!! इसे  कहते   हैं – ‘छल’ ।

और अपने जीवन की सच्चाई जानकार अब आप सब जो आनंद अनुभव कर रहे हो ना !! ये है -

‘आत्मशांति’ |”

सच ! आज की कक्षा में छात्रों के साथ – साथ हम सब शिक्षकों को भी भरपूर आनंद मिल गया | कितनी आसानी से गुरुजी ने मर्म की बात समझा दी |

 

 
 उषा जरवाल ‘एक उन्मुक्त पंछी’

गुरुग्राम, हरियाणा