शिकंजी - सी ज़िंदगी उषा जरवाल द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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शिकंजी - सी ज़िंदगी

एक बार एक आचार्य  जी कक्षा में पढ़ा रहे थे | कक्षा के सभी छात्र रुचिपूर्वक उन्हें सुन रहे थे और उनके द्वारा पूछे गए प्रश्नों के जवाब दे रहे थे | पर उन छात्रों के बीच एक छात्र ऐसा भी था जो कक्षा में चुपचाप और गुमसुम बैठा हुआ था | वैसे तो आचार्य जी ने पहले ही दिन छात्र को इस प्रकार गुमसुम - सा बैठा देख लिया था पर कुछ बोले नहीं थे परंतु जब कुछ सप्ताह तक ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन कक्षा के बाद उन्होंने उस छात्र को अपने कक्ष में बुलाया और पूछा - "तुम हर समय कक्षा में उदास रहते हो और चुपचाप रहते हो | कक्षा में पढ़ने में भी ध्यान नहीं देते हो | क्या बात है ? कोई परेशानी है क्या ?"

छात्र ने हिचकिचाते हुए कहा - "सर, मेरे अतीत में कुछ ऐसा हुआ था जिसकी वजह से मैं हमेशा समस्याओं से घिरा रहता हूँ, समझ ही नहीं आता कि मैं क्या करूँ ? आचार्य जी भले व्यक्ति थे | उन्होंने उस छात्र को शाम को अपने घर पर बुलाया | शाम को जब छात्र आचार्य जी के घर पर पहुँचा तो आचार्य जी ने उसे अंदर बुलाकर बैठाया और रसोई में शिकंजी बनाने चले गए | उन्होंने जानबूझकर शिकंजी में ज्यादा नमक दाल दिया और छात्र को शिकंजी देकर पीने के लिए कहा | छात्र ने जैसे ही शिकंजी का एक घूँट पीया तो अधिक नमक के स्वाद के कारण उसका मुँह अजीब - सा बन गया | उसका मुँह बना हुआ देखकर आचार्य जी ने उससे पुछा - "क्या बात है ? तुमें शिकंजी पसंद नहीं आई ?" छात्र ने जवाब दिया - "नहीं गुरुजी, ऐसी बात नहीं है, बस शिकंजी में थोड़ा नमक ज्यादा है | छात्र का जवाब सुनकर आचार्य जी ने कहा - अरे ! अब तो ये व्यर्थ हो गई | लाओ, गिलास मुझे दो, मैं इसे फेंक देता हूँ |" आचार्य जी ने गिलास लेने के लिए जैसे ही हाथ आगे बढ़ाया तो छात्र ने मन कर दिया और कहा - "नहीं गुरु जी, नमक ही तो ज्यादा है | थोड़ी - चीनी  मिलाएँगे तो स्वाद ठीक हो जाएगा |"

उसकी बात सुनकर आचार्य जी ने कहा - "सही कहा तुमने | अब इसे समझ भी जाओ | ये शिकंजी तुम्हारी ज़िंदगी है, इसमें घुला अधिक नमक तुम्हारे अतीत के बुरे अनुभव हैं, जैसे नमक को शिकंजी से बहार नहीं निकाल सकते वैसे ही ज़िंदगी के बुरे अनुभवों को भी ज़िंदगी से अलग नहीं कर सकते | ये बुरे अनुभव भी ज़िंदगी का हिस्सा ही हैं लेकिन जिस प्रकार हम चीनी घोलकर शिकंजी का स्वाद बदल सकते हैं ठीक वैसे ही ज़िंदगी में मिठास घोलकर ज़िंदगी का स्वाद भी बदल सकते हैं इसलिए मैं चाहता हूँ कि तुम अपनी ज़िंदगी में मिठास घोलो |"

आचार्य जी की बात छात्र को अच्छे से समझ आ गई और अब उसने निश्चय किया कि अब वह बीती बातों को भूलकर अपनी ज़िंदगी में मिठास घोलने का प्रयास करेगा |

हम अक्सर अपने अतीत की बातों में उलझे रहते हैं और दुखी होते रहते हैं | इस वजह से हम अपने वर्तमान पर ध्यान नहीं दे पाते और कहीं न नहीं हम स्वयं अपना भविष्य बिगाड़ लेते हैं | ज़िंदगी में कभी भी परेशानियों से घबराना नहीं है बल्कि डटकर धैर्य के साथ उनका मुकाबला करना है | 

 थोड़ा - सा नमक, थोड़ी चीनी और नींबू की खटास | शिकंजी ही तो है ये ज़िंदगी | ज़िंदगी रुपी शिकंजी का भरपूर आनंद उठाइए |