सिर्फ एक रात का मौका दे दे.... Sharovan द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • उजाले की ओर –संस्मरण

    मनुष्य का स्वभाव है कि वह सोचता बहुत है। सोचना गलत नहीं है ल...

  • You Are My Choice - 40

    आकाश श्रेया के बेड के पास एक डेस्क पे बैठा। "यू शुड रेस्ट। ह...

  • True Love

    Hello everyone this is a short story so, please give me rati...

  • मुक्त - भाग 3

    --------मुक्त -----(3)        खुशक हवा का चलना शुरू था... आज...

  • Krick और Nakchadi - 1

    ये एक ऐसी प्रेम कहानी है जो साथ, समर्पण और त्याग की मसाल काय...

श्रेणी
शेयर करे

सिर्फ एक रात का मौका दे दे....

सिर्फ एक रात का मौका दे दे. . .

कहानी / शरोवन

***

चार साल और छः माह के पश्चात फिर एक बार सिविल कोर्ट का बड़ा हॉलनुमा कमरा आज काफी लोगों से भरा हुआ था. कारण था कि, तनवी और आकाश के मुकद्दमें की आज फायनल तारीख थी. आज उनके संबंध-विच्छेद अर्थात तलाक का निर्णय हो जाना था. तनवी अपनी मां-पिता तथा अन्य रिश्तेदारों के साथ आकर कोर्ट रूम में आकर बैठ चुकी थी. इसके साथ ही आकाश भी अपने मां-पिता तथा अन्य संबंधियों के साथ आकर बैठा हुआ था. तनवी और आकाश, दोनों ही के चेहरे जैसे सुस्त, परेशान, अपनी ज़िन्दगी से तन्हा और थके-थके-से दिखाई दे रहे थे. लगता था कि, जैसे दोनों ही अपने जीवन की कोई बड़ी प्रतियोगिता मानो जीत तो चुके थे, मगर फिर भी दोनों के चेहरों पर हार के चिन्ह स्पष्ट नज़र आते थे. थे.

तभी कोर्ट के हॉल में काले चोगे के साथ न्यायाधीश महोदय ने अपना प्रवेश किया. हॉल में बैठे हुए सभी लोग उनके सम्मान में खड़े हो गये. न्यायाधीश महोदय ने एक नज़र हॉल में बैठे हुए लोगों पर डाली, अपने चारों तरफ देखा और फिर सबको बैठने का आग्रह किया. लोगों के बैठते ही उन्होंने कार्यवाही शुरू करने के लिए कहा. तब फिर तनवी और आकाश अपने स्थानों से उठकर कटघरों में आकर खड़े हो गये.

उसके बाद न्यायाधीश महोदय ने आकाश की तरफ देखते हुए पूछा कि,

'आप अभी-भी अपनी पत्नी तनवी को तलाक देना चाहते हैं और उससे हमेशा के लिए अलग रहकर जीवनयापन करने का मन बना चुके हैं?'

'जी हां माय लार्ड. मैं अपने संपूर्ण होश-हवाश के साथ कहता हूँ कि, मैं अपनी पत्नी के साथ नहीं रहना चाहता हूँ और उससे सदा के लिए अलग होने की विनती करता हूँ.'

न्यायाधीश महोदय ने एक बार गंभीरता से सोचा, विचारा, फिर वे तनवी की तरह मुखातिब हुए और बोले,

'तनवी जी क्या आपका भी अपने पति आकाश के समान अभी तक यही फैसला है. आप अपने बारे में क्या कहती हैं?'

तब तनवी ने अपनी बात कही. वह बोली,

'जज साहब ! मैं इस तलाक से पहले एक रात अपने पति के साथ बिताना चाहती हूँ.'

'?'-- तनवी के मुख से ऐसी बात सुनकर जज महोदय मानों अंदर-ही-अंदर मानो सुलग-से गये. वे तनिक क्रोध में तनवी से बोले कि,

'मुझे लगता है कि, आप लोगों ने इस कोर्ट को एक उपहास का स्थान बना लिया है. यह कोर्ट कभी भी नहीं चाहता है कि, पति-पत्नी के इस पवित्र जोड़े को अलग करे. इसीलिये मैंने आप लोगों को पहले चार साल दिए थे. उसके बाद फिर और छः माह दिए थे ताकि, आप दोनों अपने जीवनों का एक बेहद महत्वपूर्ण फैसला करने से पूर्व खूब अच्छी तरह से सोच-विचार कर लें. एक-दूसरे को जान लें. हो सकता है कि, आप दोनों के तलाक लेने के इरादे बदल भी जाएँ और हमें भी इस केस को खारिज करने में आनन्द आ सके. मुझे दुःख है कि, मेरे सोचने के अनुसार ऐसा नहीं हो सका और आज फिर एक बार आप एक रात अपने पति के साथ व्यतीत करने की गुजारिश कर रही हैं? मेरी समझ में यह नहीं आता है कि, ऐसा क्या सोचा है आपने कि, जब आप चार वर्ष और छः महीनों में नहीं कर सकी वह मात्र एक रात में ऐसा क्या करना चाहती हैं कि, जिससे इस केस में कोई नई जान आ जायेगी?

जज महोदय की इस बात को सुनकर तनवी के घर और ससुराल, दोनों ही तरफ के लोग भी उसको बुरा-भला बकने लगे. मगर वह कुछ भी नहीं बोली. तब जज महोदय नें सबको शांत कराया तो तनवी ने कहा कि,

'माय लार्ड ! जब आपने इतने दिन हम दोनों को दिए हैं, तो फिर मात्र एक रात हम दोनों को साथ रहने के लिए आपको क्या परेशानी हो सकती है, मैं नहीं समझ पा रही हूँ. आप कृपया करके मुझे अपना फैसला लेने के लिए केवल एक रात साथ रहने के लिए जरुर दे दीजिये.'

उसके बाद जज महोदय ने हां कर दी और अदालत समाप्त कर दी तथा अगली तारीख इस मुकद्दमें की दो दिनों के बाद की दे दी.

        तनवी और आकाश का विवाह दोनों ही के परिवार वालों की मर्जी और पसंद से आठ वर्ष पूर्व हुआ था. चूंकि, दोनों का ये विवाह एक प्रकार से 'इंगेज' हुआ था. दोनों ही मां-बाप ने वर और बधू को अपनी-अपनी ओर से पसंद किया था. इस सिलसिले में दोनों ही तरफ से वर-बधू के बारे में खूब अच्छी तरह से जानकारियाँ उपलब्ध करने के पश्चात ही यह सम्पन्न हो सका था. आकाश आकाश स्थानीय बैंक में मैनेजर था और तनवी उसी शहर में सरकारी अध्यापिका के रूप में काम करती थी. एक प्रकार से दोनों ही दम्पत्ति की सरकारी नौकरियां थीं, सो किसी भी प्रकार से कोई भी आर्थिक तंगी और पैसों की कमी नहीं थी. दोनों ही अपने इस विवाह से खुश थे, प्रसन्न थे. आरंभ के दिनों में दोनों ही रविवार की छुट्टी बड़े ही मज़े से कभी कहीं, तो कभी किसी भी अच्छे होटल या रेस्तरां में शाम का स्वादिष्ट खाकर बिताते थे और अपनी शादी के शुरुआती दिनों का भरपूर आनन्द लिया करते थे.

        जहां आकाश तनवी के लिए एक पूर्ण रुप से एक जिम्मेदार पति किरदार निभा रहा था, अपनी पत्नी तनवी को हर तरह से खुश रखता था वहीं तनवी भी अपने पतिधर्म को निभाने में पीछे नहीं थी. वह आकाश की हरेक जरूरत का ध्यान रखती , उसकी मन-पसंद का भोजन बनाती थी, उसके वस्त्र, आदि हरेक प्रकार की वस्तुओं का पूरा-पूरा ख्याल रखती थी. इतना ही नही, वह धार्मिक रूप से भी अपने पति की सलामती, उसकी दीर्घ आयु आदि के लिए प्रत्येक सप्ताह वृत भी रखती थी.

आकाश और तनवी की शादी के आरंभ के चार वर्ष बहुत ही मनमोहक तरीके से व्यतीत हुए थे. अब तक दोनों के एक भी सन्तान नहीं हुई थी. या यूँ कहिये कि, अभी तक दोनों ही ने सन्तान के लिए सोचा भी नहीं थी. शायद यही सोचकर इस जिम्मेदारी से दूर रहे थे कि, विवाह के आरंभ के दिन खुशियाँ मनाने के लिए होते हैं. वे दोनों सन्तान से दूर रहे थे. मगर, अब विवाह के चार सालों तक मौज-मस्ती का सुख भोगने के बाद तनवी इस बारे में सोचने लगी थी. वह चाहती थी कि, अब समय आ गया है कि, उसके आंगन में भी बच्चों का शोर सुनाई दे. इसलिए, अपनी तरफ से वह यही कोशिश करती थी कि, किसी भी तरह से आकाश के मन में भी यह बात खुद ही उजागर होने लगे और वह स्वयं ही उसके मन की धारणा और इच्छाओं को समझने लगे. मगर इतना सब-कुछ सोचने-समझने और प्रयास करने के उपरान्त भी आकाश इस बात में तनवी को कोई भी सहयोग नहीं दिया. बजाय इसके कि, वह अपनी पत्नी के ज़ज्बात और इच्छाओं को भली-भाँति समझ पाटा वह उससे और भी दूर हटने लगा था.

कहते हैं कि, स्त्री मनुष्य की आँखों की भाषा, उसकी नियति और मिजाज़ को, उसके देखने के ही अंदाज़ से अच्छी तरह से समझ जाती है. यहाँ तो समूचा खेल और रहस्य किसी अनजान मनुष्य और अजनबी के साथ न होकर स्वयं उसके उस पति के साथ छिपा हुआ था, जिसके साथ वह बाकास्य्दा विवाह के पवित्र बंधन में बंधकर आई थी और जिसके सामीप्य में वह पिछले चार वर्षों से एक ही छत, एक ही घर में साथ-साथ रहती आ रही थी. वह कैसे नहीं सब समझ पाती?

सचमुच तनवी आकाश के मन के भावों को तो समझती थी. वह समझती थी कि, कहीं-न-कहीं, कुछ तो ऐसा है जो आकाश के मन में बसी हुई उसके प्रति किसी खतरनाक  कड़वाहट का कारण बना हुआ है. क्योंकि, घर में एक साथ रहते हुए, उठते-बैठते, खाते-पीते, तनवी आकाश के मन में हर पल किन्हीं हानिकारक कीटाणुओं के पनपती हुई गति के प्रभाव और तीव्रता को बखूबी समझ रही थी. यहाँ तक तो तनवी सारा कुछ चुपचाप, नाक-कान और आँखें बंद किये हुए बर्दाश्त करती रही, मगर उसकी परेशानी तब जाकर बढ़ जाती थी, जबकि, आकाश के स्वभाव में गैरों जैसा व्यवहार झलकने लगा. तनवी को परेशानी तब होती जब आकाश अगर सोफे पर बैठा हुआ होता और वह अपनी पत्नी की हैसियत से उसकी बगल में जाकर बैठ जाती और आकाश किसी-न-किसी बहाने से उसके पास से उठ जाता. वह आकाश के जाने से पहले सुबह-शाम का नास्ता और भोजन तैयार करती मगर आकाश या तो पहले ही बगैर खाए अपने दफ्तर चला जाता अथवा शाम के खाने पर उसके साथ ही नहीं बैठता था. अक्सर ही वह बहाना बना देता था कि, वह दफ्तर में ही खाकर आया है. वह बड़े ही प्यार से चाय बनाकर लाती और चाहती कि, अपने पति के साथ बैठकर चाय की चुस्कियां ले, मगर आकाश चाय पीने को ही मना कर देता था.

तनवी कभी-कभी सोचती थी कि, आकाश के मन में जैसे उसके प्रति ढेरों-ढेर शिकायतें हैं? जैसे वह कहीं, किसी स्थान  पर अपने पति के प्रति प्यार-मुहब्बत और चाहतों की दुनियां में बेवफाई करने लगी है? ऐसी परिस्थिति अगर कोई है भी तो वह उम्मीद करती थी कि, आकाश को अपनी शिकायतें करने का अवसर अवश्य ही मिले. अगर उसकी आँखों में बरसने वाले बादलों के भंडार एकत्रित हो चुके हैं तो आकाश को उनकी बरसात करने का अधिकार भी है. और नहीं तो, अगर वह खुद उसके पास यह उम्मीद लिए हुए आई है कि, आकाश उससे कुछ भी न कहे, तौभी खुद तनवी को एक मौका अवश्य ही अपना दुखड़ा रोने का जरुर ही मिले.

इस तरह का घर का सारा माहोल किसी अनजाने तनाव और अनकही शिकातों और शिकवों के मध्य मानों अपना दम तोड़ने की कगार पर आकर जैसे किसी कमजोर तिनके के सहारे आकर टिक चुका था. पति-पत्नी का वह रिश्ता और बंधन जो एक दिन किसी कच्चे धागे से, एक लोहे जैसी जंजीर के सहारे कभी-भी न टूटने वाला बंधन बन चुका था, आज इसकदर कमजोर हो चुका था कि, जिसके टूटने के भय मात्र से ही तनवी का समूचा कलेजा काँप जाता था. उसके सोचने ही मात्र की साँसों के एहसास से पल भर में उसकी समूची देह फुंक जाती थी. तनवी समझ चुकी थी कि, इन हालातों में एक साथ रहते हुए भी दोनों के मध्य का रिश्ता इतना इतना कमजोर हो चुका है, इसकदर लचक चुका है कि, मात्र एक हल्की वायु के लार का आना भर ही होगा कि, क्षण मात्र में सब-कुछ बिखरते देर भी नहीं लगेगी.

इतना ही नहीं, तनवी जब भी आकाश को गौर से  देखती, उसकी बदली हुई काया को समझने की कोशिश करती, तो उसे देखते ही उसका कलेजा जैसे बदन से बाहर निकल कर छटपटाने लगता था. आकाश के चेहरे की आभा ही नहीं बदली थी, बल्कि वह शरीर से भी दिन-ब-दिन बेहद कमजोर होता जा रहा है. तब इन हालातों में तनवी का चिंतामय होना बहुत स्वाभाविक भी था. वह परेशान रहने लगी थी.

तब एक दिन बहुत कुछ सोच-विचार करने के पश्चात तनवी को यह तो समझ में आ गया कि, आकाश अपनी तरफ से तो इस भेद को कभी-भी खोलेगा नहीं, उसे ही कोई-न-कोई उपाय तो करना ही पड़ेगा. वही खुद आगे बढ़े, खुद ही आकाश से सवाल-जबाब करे, उसके आगे तमाम प्रश्नों की झड़ियाँ लगा दे और किसी-न-किसी सूरत से उसके मन में छिपे हुए उस भेद को उजागर करवाए, जिसके कारण उसकर वैवाहिक जीवन की हरी-भरी बगिया के फूल सूखते जा रहे हैं.

तब एक दिन शाम का समय था. दिन-भर का थका-थकाया सूर्य का बदन युक्लिप्टस के गगनचुम्बी वृक्षों के पीछे-से धीरे-धीरे छिप जासने की कोशिश कर रहा था और उसकी सोने-सी चमकती हुई रश्मियाँ आकाश के बदन पर पिघले  हये सोने का लेप चढ़ा रही थीं. आकाश अपने काम से वापस आकर बाहर लॉन में पडी हुई एक आराम कुर्सी  पर बैठा हुआ कोई पुस्तक पढ़ रहा था. यूँ तो ये उसका रोजाना का ही एक प्रकार से दैनिक काम था, पर आज की शाम वह अपने कमरे में न बैठकर, बाहर इस ढलती हुई शाम की धुंध में बैठा हुआ था. उसी समय तनवी ने हर दिन के समान चाय बनाई और उसे एक ट्रे में सजाकर, आकाश के पास आई और फिर वहीं बैठ भी गई. तनवी के आने पर आकाश ने उसे एक पल निहारा, दोनों की नज़रें क्षण भर को एक हुईं और फिर उसी क्षण दोनों ने अपनी-अपनी नज़रें फेरकर एक-दूसरे के प्रति अपना अजनबीपन ज़ाहिर कर दिया.

तब तनवी ने दो प्याले चाय बनाई और एक प्याला आकाश की तरफ देते हुए उससे बोली,

'कैसे हैं आप ?'

'आज दफ्तर में आपका दिन कैसा रहा?'

'कल आप जब दफ्तर जाएँ तो थोड़े से पैसे मुझे देते जाएँ. घर में बहुत-सारी वस्तुएं समाप्त हो रही हैं, मुझे बाज़ार जाना होगा.'

'?' - तब आकाश ने तनवी को एक दृष्टि निहारा, फिर कुछ सोचा और बोला,

'पैसे तो वहीं होने चाहिए, जहां मैं रखा करता हूँ. वहां से जितने भी पैसों की जरूरत हो, ले लेना.'

'?' - तनवी के तीन प्रश्नों में से जब आकाश ने केवल एक का ही उत्तर दिया तो वह अपने पति को बड़ी-ही गंभीरता और संशय से मानो घूरने लगी. वह कुछेक पल खामोश और गंभीर बनी रही, तब बाद में उसने अगला सवाल कर दिया. वह जैसे शिकायत-भरे स्वरों में आकाश से बोली,

'ऐसे कब तक और क्योंकर चलेगा? हमारी शादी को पांच साल होने को आये हैं. इतनो सालों में आपमें जो परिवर्तन मेरे प्रति, मेरी तरफ से रुखाई और अलगाव की बजह से आ चुके हैं, उनका सबब तो मैं मालुम करने में असफल हो चुकी हूँ. इसीलिये मैं अब जानना चाहती हूँ कि, इस तरह से, अजनबियों के समान, चुप-चुप, अपने-अपने मुंह बंद किये हुए हम दोनों एक ही छत के नीचे, कब तक और कैसे रहते रहेंगे? अगर हम दोनों का ऐसा ही रवैया बना रहा तो इससे तो बेहतर होगा कि, . . .'

'हम दोनों कायदे से अलग हो जाएँ.'

तनवी की बज़ात को बीच में ही काटते हुए आकाश ने कहा तो तनवी के बदन पर उसे लगा कि, जैसे कोई बड़ा-सा पहाद्फ़ टूटकर गिर पड़ा है. वह खुद को संभालते हुए, असंतुलित होते हुए तुरंत ही बोली,

'आप गलत समझे हैं. मैंने ऐसा तो नहीं कहा है. ऐसा कहना तो अलग बात, मैं तो सपने तक में इस प्रकार से नहीं सोच सकती हूँ.'

तनवी कहते हुए बिफ़र पड़ी.

'लेकिन, आकाश ने उसकी मनोदशा और भावनाओं को नज़रंदाज़ करते हुए आगे बोला,

'तुम ना भी समझो, परन्तु मैं तो पिछले बहुत से दिनों से ऐसा ही सोचता आ रहा हूँ.'

'सोचने की बजह जान सकती हूँ मैं क्या ?'

'कोई विशेष नहीं. लेकिन मेरा विचार है कि, अगर हम दोनों तलाक ले लें, तो बहुत सारी समस्याएं हमारी अपने आप ही हल हो जायेंगी. तब हम शायद दोनों हीं खुश रह सकेंगे?'

'?'- आकाश की इस बात पर तनवी के दिल, दिमाग और सारे बदन में जैसे आग लग गई. उसे लगा कि, जैसे सैकड़ों चींटियों के दल ने उसके कोमल और गोरे बदन को बे-रहमी से  काटना आरंभ कर दिया है. वह बड़े ही आश्चर्य से, हैरानी के साथ आकाश का चेहरा देखने लगी. वह कुछ कह पाती, तभी आकाश ने अपनी बात आगे बढ़ाई. वह बोला,

'घबराओ मत. मैंने जो कुछ भी कहा है, वह कोई भी हैरानी और छोंकने वाली बात नहीं है. मैंने, यह फैसला बहुत सोच-समझकर लिया है.'

'?'- तनवी को फिर से खामोश होना पड़ा. आकाश की इस आकस्मिक बात पर वह जैसे सकते में आ गई. मन-ही-मन रोने भी लगी. फिर भी उसने गंभीरता और संयम से काम लिया. इसलिए बड़ी-ही हिम्मत से उसने आकाश से पूछा,

'जब आपने फैसला कर ही लिया है, तो इस फैसले का कारण जान सकती हूँ मैं?'

तब आकाश ने तुरंत ही उत्तर दिया. वह बोला कि,

'मैं समझता हूँ कि, इसकी तुमको जरूरत नहीं होनी चाहिए.'

'?'- मुझे लगता है,आप बहुत ज्यादा स्वार्थी हो गए हो ?. ज़िन्दगी मेरी दांव पर लगी है. अतीत मेरा उजाड़ा जा रहा है, और मुझे आपके इस एकतरफा फैसले के बारे में जानने की भी आवश्यकता नहीं है?'

'मेरा जीवन भी तो दांव पर लग चुका है. अगर मैंने इस तरह का निर्णय लिया है तो उसमें तुम्हारी भी कहीं-न-कहीं भलाई छिपी हुई है.'

आकाश ने कहा तो तनवी तुरंत ही बोली,

'वही भलाई तो मैं जानना चाहती हूँ, कि आखिर इतने महत्वपूर्ण निर्णय के पीछे आपकी क्या मजबूरी और कारण क्या है ?'

'?'- आकाश तनवी के इस कथन पर चुप हो गया. उसके चुप रहने पर तभी तनवी ने अपनी बात आगे कही. वह बोली कि,

'अगर आप नहीं बताना चाहते हैं तो मत बताइए. मेरे साथ नहीं रहना चाहते हैं, मत रहिये, लेकिन मैं आपको तलाक कभी-भी नहीं दूंगी, जब तक कि, मैं तलाक का वास्तविक कारण नहीं जान लूंगी.'

इतना सब-कुछ कहने-सुनने के बाद तनवी वहां से उठकर घर में आ गई. चाय के प्याले और सारा सामान बटोरकर. दोनों में से किसी ने चाय के प्यालों को मुंह तक नहीं लगाया था. गर्म भाप की दम तोड़ती हुई अंतिम धुंएँ जैसी लकीरें इस बात की गवाही थीं कि, आज के बाद दोनों के संबंध-विच्छेद की दलीलें आगे कहां तक बढ़ जायेंगी; शायद कोई नहीं जानता था? यहीं तक तनवी और आकाश की ये अंतिम वार्ता थी. इसके बाद वे कभी-भी आपस में नहीं मिले. जब भी मिले तो केवल कोर्ट में ही मिले थे. आकाश ने बाकायदा अपनी तरफ से तलाक के कागज़ात कोर्ट में जमा कर दिए थे.

कोर्ट में जब ये कागज़ आकाश की तरफ से दाखिल किये गये थे तो न्यायाधीश महोदय ने उन दोनों को अगले चार वर्षों के पश्चात दोबारा यह केस करने की आज्ञा दी थी. उसके बाद जब फिर से यह केस चालू हुआ तो उन्हें अगले छः महीनों के बाद अंतिम रूप से इन दोनों को बुलाया था, मगर आकाश तो जैसा आरंभ से ही अपने तलाक के लिए अडिग बना हुआ था, वहीं तनवी ने जज़ महोदय से केवल एक रात का अवसर माँगा था और अपनी याचिका में कहा था कि, वह अंतिम रूप से तलाक लेने से पहले, अपने पति के साथ, अपनी मर्जी से वह रात गुज़ारना चाहती है. तब जज महोदय हांलाकि, नाराज़ तो बहुत हुए थे, मगर फिर भी उन्होंने तनवी की याचिका पर अपनी स्वीकृति दे दी थी. शायद यही कि, अपनी मन की भावना से वे भी नहीं चाहते थे कि, यह दोनों दम्पत्ति इस बे-रहम तरीके से अलग हो जाएँ. हो सकता है कि, जो पिछले कई वर्षों में नहीं हो सका है, वह शायद किसी से चमत्कार हो जाए?

सो जज महोदय के आदेश के सामने आकाश भी कुछ नहीं कर सका. जज का आदेश था, उसका पालन तो करना ही था; तनवी ने खुद ही कार्यक्रम बनाया. एक अच्छे-से कीमती फाइव स्टार होटल में पति-पत्नी के नाम से कमरा बुक कराया और उसका समयकाल रखा गया, 'शाम छः बजे से लेकर सुबह छः बजे तक.'

फिर जब शाम हुई और समय आया तो आकाश तो छः बजे से पन्द्रह मिनट पहले ही आस गया, मगर तनवी अपने समय पर ही आई. उसको देखकर आकाश चौंका भी, उसके चेहरे पर खुशियों की एक हल्की-सी लहर भी आई, परन्तु दूसरे ही क्षण वह फिर से गंभीर हो गया. तनवी अपने पूर्ण रूप से विवाह के लाल जोड़े में, सज-धज कर बिलकुल वैसे ही आई थी, जैसे कि, वह पहली बार दुल्हन बनकर आकाश के सामने आई थी.

आकाश तनवी को इस लाल जोड़े में देखकर दंग तो था, मगर बहुत गंभीर और उदास भी दिख रहा था. पिछले इन सारे वर्षों में वह पहले से बहुत दुबला और थका-थका-सा भी लग रहा था. उसके चेहरे की तमाम वह आभा जो उसके सुंदर व्यक्तित्व, उसके गठीले बदन और मर्दानगी पर चार चाँद और सितारे लिए झूमती थी, अब जैसे सारे आकाश की रोशनियों पर अपना कफ़न डालकर, किसी कब्रिस्थान की शरण ढूँढने के लिए मोहताज़ हो चुकी थी.

आकाश का ढलता हुआ चेहरा देखते ही तनवी का सारा कलेजा जैसे मुंह को आ गया. उसका मन हुआ कि, वह आकाश से लिपटकर रो पड़े. 'क्या यही सब दिखाने और मुझे जीवन भर रुलाने के लिए इस व्यक्ति ने मुझसे अपना विवाह किया था? क्यों ये मेरे जीवन में आया? आया भी था तो क्यों मैं इससे अपना विवाह कर बैठी? मेरी किस्मत भी अजीब ही है, सारी दुनिया में केवल यही एक मात्र रह गया था, मुझसे विवाह करने के लिए?' तनवी मन-ही-मन सुबक-सी गई तो उसे देखकर आकाश उससे पूछ बैठा. बोला,

'क्या हो गया? तुम ठीक तो हो?'

'हां, मैं बिलकुल ठीक हूँ.' तनवी ने अपनी मनोदशा को संतुलित करते हुए कहा तो आकाश ने उससे आगे कहा कि,

'इस सारी रात के लिए तुमने मुझे मांगा है. मुझे क्या करना होगा?'

'कुछ नहीं, मेरे ज़हन में कुछ सवालात हैं, जो मुझे चैन से सोने भी नहीं देते हैं.'

'कैसे सवालात? क्या तुम्हारे सवाल मुझसे संबंधित हैं?'

'ज़ाहिर है, जब मैंने तुम्हें यहाँ बुलाया है तो सवाल भी आपसे संबंधित होंगे.'

'?'- तनवी की बात सुनकर आकाश चुप हो गया तो तनवी कुछेक क्षणों तक उसकी मुखमुद्रा को देखती रही. फिर बाद में वह उठकर आकाश के पास आई और उसी की बगल में सोफ़े पर बैठ गई. यह देखकर आकाश तुरंत ही उससे हटकर आगे बैठ गया तो तनवी उसकी आँखों में अपनी आँखे डालकर तुरंत कह बैठी,

'अब इतनी नफरत हो चुकी है, आपको मुझ से, कि मेरे स्पर्शमात्र से ही आपको तकलीफ होने लगी है. पहले तो आप जब भी घर आते थे तो जब तक मुझसे लिपट-चिपट नहीं लेते थे, तब तक आपको चैन नहीं पड़ता था?'

'?'- आकाश चुप ही नहीं बल्कि, गंभीर भी हो गया तो तनवी ने उसे टोक दिया. वह बोली,

'आपने मेरी बात का जबाब क्यों नहीं दिया. यूँ अचानक से चुप कैसे हो गये?'

'अब ऐसा नहीं हो सकता है. अब तो बहुत देर हो चुकी है. बेहतर है कि, तुम मुझे भूल जाओ.'

आकाश ने कहा तो तनवी जैसे रो पड़ी. वह आँखों में आंसू भरते हुए बोली कि,

'यही तो मैं जानना चाहती हूँ कि, ऐसा क्या हो गया है कि, आप मुझसे दुनियां-जहांन की दूरियाँ बना बैठे हैं? अब मेरी तरफ देखना तो दूर, मेरे पास बैठने तक से हिचकने लगे हैं. क्या मैं इतनी अधिक बुरी हो चुकी हूँ? मैं आपको सच-सच बताये देती हूँ कि, जब तक मुझको मेरे प्रश्नों का सही-सही उत्तर नहीं मिल जाएगा, मैं न तो यहाँ से हटने वाली हूँ और ना ही आपको कोर्ट में तलाक देने के लिए हां करनेवाली हूँ.'

'तो ठीक है, अब ह्मारी आखिरी मुलाक़ात तुमसे कोर्ट में ही होगी.' आकाश इतना कहकर जाने लगा तो तनवी ने उसे रोका. उससे बोली,

'मैं कोर्ट के आदेश पर यह सारी रात आपके साथ, एकांत में बिताने के लिए भीख में मांगकर लाई हूँ. आप ऐसे मुझे छोड़कर नहीं जा सकते हैं. आपको मेरे साथ, यही इसी कमरे में सुबह छः बजे तक ठहरना होगा.'

'तो फिर क्या चाहती हो मुझसे. मैं तुम्हारे साथ सो नहीं सकता, तुमको छूने का भी मेरा मन नहीं करता है, मेरे अंदर की सारी भावनाएँ, चाहतें और लगाव जैसी हर वस्तु न जाने कहाँ दफ़न हो चुकी हैं. तुम मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो. मैं तुमको अपनी तरफ से आज़ाद करके बहुत खुश देखना चाहता हूँ.' आकाश ने कहा तो तनवी उससे बोली कि,

'मुझे खुश भी देखना चाहते हो और मुझे अकेला भी छोड़ना चाहते हैं? आपकी सोच पर मुझे हंसी आती है. मैं आपको बता दूँ कि, मेरे जीवन की हरेक खुशी और रंज केवल आपसे ही मुखातिब है, अन्य किसी से भी नहीं. कैसे मैं खुश रह लूंगी आपके बगैर? कभी आपने सोचा भी या नहीं?'

'?'- आकाश फिर से चुप हो गया. कई पलों तक दोनों एक-दूसरे को देखते रहे, निहारते रहे. कमरे के खामोश वातावरण में सन्नाटा किसी तीसरे बजूद के समान चुपचाप अपने पैर फैलाए रहा.

तब तनवी ही आगे बोली. उसने अपनी बात आगे बढ़ाई और बोली,

'क्या आपको मालुम है कि, यह अलगाव के विचार आपके मन में आने से पहले मैं सप्ताह में एक दिन आपकी सेहत और उम्र की सलामती के लिए अपना वृत रखती थी और सारे दिन भूखी-प्यासी रहती थी. अपनी इस दिनचर्या को मैं आज भी करती आ रही हूँ. अगर इस संसार में ईश्वर नाम की कोई शक्ति है तो मैं भी यह जानकर रहूँगीं कि, उसकी मर्जी के बगैर वह कौन है जो मुझे आपसे अलग कर सकता है?'

'?'- तब आकाश स्वत: ही टूट गया. उसकी आँखों में आंसू झलक उठे. उसका गला भर आया. बदन उसका मानो किसी बोझ के हटने पर हल्का पड़ गया. वह अपने भरे गले से तनवी को अपने गले से लगाते हुए बोला,

'तनवी ! मैं इतना खुद्दार आदमी था कि, मैंने बड़ी-से-बड़ी मुसीबतें उठाई होंगी, मगर किसी के सामने हाथ नहीं फैलाए. कभी-भी किसी के सामने रोया नहीं; लेकिन, तुमने मुझे आज रुला दिया. मैं जानता हूँ कि, तुम मुझे इसकदर प्यार करती हो कि, जिसका कोई भी माप मेरे पास नहीं है. इसीलिये मैं तुमको कैसे बता देता कि, मैं इस जगत में केवल छः महीने का मेहमान हूँ. मुझे खून का कैंसर हो चुका है, इसी कारण मैं तुमको अपनी तरफ से आज़ाद कर देना चाहता था ताकि, तुम अपना दूसरा विवाह करके अपनी ज़िन्दगी नये सिरे से आरंभ कर सको. तुम मुझे तलाक ना भी दो, परन्तु विधि के नियमानुसार मुझे तुमसे दूर जाना ही होगा.'

'?'- आकाश के दिल का दर्द सुनकर तनवी का जैसे सारा कलेजा मुंह को आ गया. इतना अधिक उसको दुःख हुआ कि, वह भी आकाश को अपने अंक से लगाकर फूट-फूटकर रो पड़ी. सोचने लगी कि, 'इतना बड़ा त्याग कि, अपना दुःख, केवल अपने तक ही ले जाकर मेरे जीवन से दूर चला जाए?' ऐसा पति तो किस्मत वालों को ही नसीब से मिलता है.  

यहीं तक दोनों की ये आखिरी वार्तालाप थी जो अब समाप्त हो चुकी थी. सुबह हुई तो दोनों ही अपने-अपने मार्ग पर चले गये.

और जब कोर्ट की अगली अंतिम तारीख पड़ी तो सारा कोर्ट आकाश और तनवी के परिवारीजनों से खचाखच भरा हुआ था क्योंकि, आज दोनों के इस फैसले का अंतिम निर्णय हो जाना था. सब ही बैठे हुए जनों में एक उत्साह था, कौतुहूल था और साथ ही इस मुकद्दमें के फैसले के प्रति एक अजीब ही संशय भी था.

फिर अपने समय पर मुख्य न्यायाधीश आये और कोर्ट की कार्यवाही आरंभ की गई. जज महोदय ने अपनी बात आरंभ की. सबसे पहले इस मुकद्दमें की पिछली रूप्रेक्झा पर एक छोटा-सा प्रकाश डाला. मुकद्दमें की नजाकत बताई और अपना सबसे पहला सवाल आकाश से किया. वे बोले कि,

'मैं समझता हूँ कि, पिछली एक रात का जो समय आपकी पत्नी तनवी ने माँगा था, उसने आप दोनों कि फिर एक बार कम-से-कम यह तो सोचने पर मजबूर कर दिया होगा कि, पति-पत्नी का जोड़ा जो ईश्वर की तरफ से बनकर आता है, उसे तोड़ना मनुष्य का काम नहीं है. इसलिए मैं समझता हूँ कि, आपने अपना निर्णय बदल दिया होगा और अपनी पत्नी के साथ फिर से अपना जीवन एक नये सिरे से गुज़ारना मंजूर कर लिया होगा?'

'?'- जज की इस बात पर कोर्ट के अंदर बैठे हुए सारे लोगों की नज़रें आकाश को ताकने लगीं. सब ही सोच रहे थे कि, इस बार आकाश अपना फैसला जरुर ही बदल देगा, मगर सब ही आश्चर्य से तब भर गए जबकि, उसने कहा कि,

'नहीं, आप सबका सोचना गलत है. मैं अब भी अपने पहले ही वाले फैसले पर अडिग हूँ, और चाहता हूँ कि, मेरी पत्नी तनवी भी मेरी विवशता को समझे और इस वैवाहिक बन्धन से मुझे स्वतंत्र कर दे. मैं अभी भी अपना तलाक चाहता हूँ.'

'?' - जज महोदय के साथ-साथ कोर्ट के अंदर बैठे हुए अन्य लोग भी आश्चर्य करके रह गये. तब जज महोदय ने जैसे निराश होकर तनवी से कहा कि,

'मैं समझता था कि, पिछली एक रात के सामीप्य ने आप दोनों को बहुत-कुछ बदल दिया होगा, पर आपके पति आकाश पर तो कोई प्रभाव हुआ नहीं, देखें आप क्या कहती हैं?'

'मी लार्ड ! आपका कहना बिलकुल सही है. सचमुच मेरे पति जी पर तो पिछली रात एक साथ व्यतीत करने के बाद भी कोई अंतर नहीं पड़ा है, मगर मैं एक बात जानने में अवश्य ही सफल हो गई हूँ कि, मेरे पति जी क्यों मुझसे तलाक लेना चाहते हैं और क्यों वे मुझको अपने बंधन से स्वतंत्र करना चाश्ते हैं?'

तब तनवी ने अपने पति के बारे में उनकी बीमारी, उनकी परेशानी और मजबूरी के प्रति समस्त सच्चाई को उजागर कर दिया. जब समूचे कोर्ट को यह ज्ञात हुआ कि, आकाश अपनी ला-इलाज बीमारी के कारण तनवी से अलग होना चाहता है और उसे मालुम है कि, वह केवल छः महीने का ही इस संसार में मेहमान है तो सारा कोर्ट उसके प्रति सहानुभूति से भर गया. अब तक जो सब उसको ही इस केस में दोषी समझते थे, उनके सारे गलत विचार उसकी तरफ से बदलते देर नहीं लगी.

तब इसी बीच तनवी ने अपनी बात समाप्त की. वह बोली कि,

'मैं जान गई हूँ कि, मेरे पति अपनी बीमारी की बजह से मुझे तलाक देना चाहते हैं, मगर मैं उनकी धर्मपत्नी हूँ, इसलिए मैं उनको इस गंभीर परिस्थिति में अकेला, तन्हा और बे-सहारा नहीं छोड़ सकती हूँ. मैं उनकी अपने संपूर्ण दिल और आत्मा से उनकी अखिरी दम तक सेवा करूंगी, उनका अच्छे-से-अच्छा इलाज करवाऊँगी. भले ही मेरे पति को मेरी बात नागवार न लगे और वे मेरे साथ ना भी रहना चाहें, मगर मैं उनका जीवन दोबारा वापस मांगकर इस संसार के सृजनहार से लाऊँगीं. उनके लिए उपवास रखूंगी और उनका जीवन बचाने लिए भरपूर प्रयास करती रहूंगी. मैं फिर से अपनी बात कह रही हूँ कि, मैं अपने पति को इस दशा में छोड़कर पाप की भागीदार नहीं बनना चाहती हूँ. मैं उनके साथ उनके अंतिम समय तक रहना चाहूंगी.'

तनवी के इस कथन के पश्चात कोर्ट की कार्यवाही समाप्त कर दी गई. मुकद्दमा बंद कर दिया गया.

लगभग चार माह के बाद. . .

तनवी ने आकाश की भरपूर सेवा अपने तन, मन और धन से की. उसका अच्छा-से-अच्छा इलाज कराया. इस दुनियां  के ईश्वर से हर दिन दुआएं मांगी, उपवास रखे, और आकाश  की दवाइयों से लेकर, उसके खाने-पीने का हर संभव प्रयास किया. वह हर रोज़ इस दुनियां के बनाने वाले से यही दुआएं किया करती थी कि, जब वह सावित्री जैसे पतिव्रता स्त्री के आगे झुक सकता है..., जब वह जीजस को उसकी मां के लिए फिर से जीवित कर सकता है तो फिर उसके पति को क्यों नहीं दोबारा जीवनदान दे सकता है?

फिर एक दिन सचमुच तनवी की दुआओं, उसके उपवासों और वृतों का सबब यह हुआ कि, उसकी इबादत से आसमान की सियासत तक हिल गई. उसके आंसुओं से भरी दुआओं ने आसमानी राजा तक को अपना फैसला बदलने से मजबूर कर दिया और एक दिन आकाश के स्वास्थ्य में एक आश्चर्यजनक परिवर्तन देखने को मिलने लगा. उसका बदन भरने लगा. खून की कमी से पिचके हुए गालों के गड्ढ़ों में मांस भर आया. चेहरे की मृत होती हुई आभा में एक नई चमक ने जन्म ले लिया. आकाश एक दिन फिर से स्वस्थ्य हो गया.

मनुष्य अपने जीवन के लिए खुद के द्वारा बनाये हुए नियमों के आधार पर, अपनी मर्जी से फैसले करता है, यह सोचे बगैर कि मानव-जीवन के बहुत से मत्वपूर्ण निर्णय उसके भाग्य और उसकी किस्मत की रेखाओं में लिखे होते हैं. ईश्वर ही पति-पत्नी के रिश्ते आसमान के राज्य से बनाकर मनुष्य की किस्मत में दर्ज़ किया करता है. इसीलिये एक धार्मिक ग्रन्थ में लिखा हुआ है कि, 'जिसको ऊपर वाले ने जोड़ा है, उसे मनुष्य कभी-भी अलग न करे.'

आकाश और तनवी का जोड़ा जहां से भी बनकर आया था, उसे मनुष्य अपनी मर्जी से अलग कर भी कैसे सकता है. यदि मनुष्य संसार के इस तथ्य को समझ ले तो वह इन रिश्तों को कभी-भी तोड़ने का प्रयास ही नहीं करेगा.

समाप्त.