broken books and stories free download online pdf in Hindi

भंगिन

भंगिन

शरोवन

की एक ज्वलंत कहानी

अचानक से आकाश में जैसे भटकी हुई बदलियों ने चमकते हुये चन्द्रमा के मुख पर अपनी चादर डाल दी तो पल भर में ही सारा आलम फैली हुई स्याही के रंग में नहा गया। इस प्रकार कि चारों तरफ फैला हुआ रात्रि का ये मनहूस मटमैला अंधियारा जैसे भांय-भांय सा करने लगा। कुशभद्रा शांत थी। उसके जल में फैली हुई चांदनी की कोमल किरणें अपना दम तोड़ चुकी थीं। और बालू के तीर पर कफन के समान सिसक-सिसक कर जलती हुई अंतिम चिता की राख़ भी अब ठंडी हो चुकी थी़। अपने प्रिय को अंतिम विदाई देने वालों का हुजूम भी कुशभद्रा के ठंडे जल में स्नान करके न जाने कब के अपने ठिकानों पर जा चुका था, लेकिन सारी दुनियां से रूठा हुआ अपने में ही गुमसुम, सोचों और विचारों में खोये हुये नाथन को जैसे किसी भी बात का तनिक भी होश नहीं था। वह अभी भी नदी के बिल्कुल ही किनारे ही पानी में अपने नंगे पैर लटकाये हुये, अपने नाकाम इरादों की अर्थी सजाये हुये था। दिन भर का थका-हारा, सारी दुनियां-जहान से बिल्कुल ही अलग-थलग संध्या को सूरज ढलते ही वह यहां रोज़ ही आ जाता था। आकर वह कहीं भी थोड़ा सा एकान्त स्थान पाकर बैठ जाता था। बैठते ही वह अपनी अतीत की उन विचलित कर देनेवाली स्मृतियों को एकत्रित करने लगता था जो उसके जीवन में एक बार सुगन्धित कर देनेवाली प्रस्फुटित कलियों के समान खिली तो जरूर थीं, पर अचानक से उसकी सारी जि़न्दगी के कभी भी न समाप्त होनेवाले कांटे बन कर सदा के लिये चली भी गई थीं ़ ़ ़।

‘ ये जि़न्दगी कुछ नहीं एक ठहरी हुई भोर है,

सागर की वह मौज़ है, जिसमें न कोई शोर है ़ ़ ़’

महीन, पतली और बेहद सुरीली आवाज़ में बेसुध ख्यालों में उपरोक्त गीत के बोल सुनते हुये अचानक ही जब धूल और वायु से उड़ती हुई मिट्टी की गंध का एक रेला सा कुर्सी पर बैठे हुये नाथन की नाक में सरसरा के प्रविष्ट हुआ तो नाथन का ध्यान अपने ख्यालों से हटकर वर्तमान में आया। उसने देखा कि नंदी हर रोज़ के समान, अपनी साड़ी से अपना मुंह और नाक बंद करके उसके घर के सामने झाड़ू लगा रही है। वह जब भी अपने काम पर मसीहियों की इस बस्ती में सफाई का काम करने आती थी तो अपनी आदत के समान उपरोक्त गीत को अवश्य ही गुनगुनाती और गाती थी। गर्मी के दिन थे। मसीहियों की इस बस्ती में बच्चों के खेलने, और प्राय: पानी की कमी के कारण हरियाली और घास का तो कोई नाम-ओ-निशान नहीं था। ऊपर से दिन भर मुर्गियों का भागना, उनका खेलना और कुंलाचे मारना, और भी सारी भूमि को सूख़ा बनाये फिरती थीं। सामने का सारा मैदान कभी जंगली घास का समुद्र बन जाता था, तो कभी बरसात में ताल-तलैया। नाथन की जब भी छुट्टी होती थी तो वह बहुत सबेरे ही अपना चाय का प्याला लेकर बाहर घर के सामने एक कुर्सी पर आकर बैठ जाता था। बैठ कर यही सारे नज़ारे वह देखता रहता था।

नंदी जैसे नाथन के घर के सामने रोज़ सुबह ही आकर झाड़ू लगाती थी, ठीक वैसे ही वह मसीहियों के अन्य घरों में भी सफाई का काम किया करती थी। उसके इस सफाई के काम में कोई-कोई मसीही परिवार अपनी मुर्गियों का रहने का स्थान अर्थात् दरबों की भी सफाई करवाता था। नंदी को इस सफाई के काम की मेहनत के बदले में महीने के पैसे और सारे घरों से एक वक्त का खाना मिल जाता था। हांलाकि, मसीहियों के इस इलाके की विस्त स्वंय नंदी की न होकर उसके पिता जक्खा के नाम थी। मेहतरों के समाज में यह विस्त एक ऐसा रिवाज़ था कि नंदी के पिता जक्खा के अलावा कोई अन्य सफाई कर्मचारी इस इलाके में बगैर उसकी मज़‍र्ी के काम नहीं कर सकता था। साथ में जक्खा अपने समाज और इलाके में अन्य मेहतरों और भंगियों का मुख्य जमादार भी था। सफाई आदि के विषय में यदि कोई भी शिकायत आदि होती थी तो वह सबसे पहले नंदी के पिता के पास ही जाती थी। चंूकि जक्खा काफी वर्षों से काम कर रहा था, और अपनी उम्र तथा स्वास्थ्य के हिसाब से वह यह काम कर पाने में असमर्थ भी हो जाता था, इसलिये उसकी लड़की नंदी उसके स्थान पर काम करने आती थी। नंदी का विवाह अभी नहीं हुआ था, लेकिन सब जानते थे कि उसकी उम्र विवाह के योग्य हो चुकी थी। कुछ लोगों का ख्याल था कि जब नंदी के भाई का विवाह हो जायेगा तो उसकी पत्नी नंदी का काम संभाल लेगी। नंदी के भाई के विवाह के पश्चात ही तब शायद जक्खा उसका भी विवाह कर दे?

‘ ऐ नंदी! कैसे झाड़ू लगा रही हो। सारी धूल मेरी नाक में घुसी जाती है?’ नाथन से नहीं रहा गया तो उसने नंदी से कह ही दिया।

‘?’ अपने नाम का संबोधन सुनकर झाड़ू लगाते हुये नंदी के हाथ अचानक ही थम गये। उसने झाड़ू रोकते हुये नाथन की तरफ देखा। कुछ देर न जाने क्या सोचा, फिर हल्के से मुस्कराती हुई बोली,

‘ बाबूजी, आप पानी भी तो नहीं देते हो कि मैं उसे छिड़ककर फिर झाड़ू लगाऊं, ताकि धूल का एक कण भी न उडे़। फिर यह हवा न जाने कैसी निगोड़ी है, मैं जब भी झाड़ू लगाती हूं तभी आपकी तरफ बहने लगती है। जब आप नहीं बैठते हैं, तो या तो चलती नहीं है, और अगर चलती भी है तो दूसरी तरफ।’

‘ कौन मना करता है तुम्हें पानी के लिये?’

‘ माता जी। कहती हैं कि, पानी का खर्चा बहुत आता है, और नल भी खराब पड़ा हुआ है।’

‘!’ नंदी की बात सुनकर नाथन कुछेक क्षणों के लिये चुप हो गया।

‘ मैं बताऊं कि, आप एक काम किया करिये।’

‘ वह क्या?’ नाथन बोला।

‘ अपने चेहरे को मेरी तरह ढांककर बैठा करिये। ज़रा घूंघट से।’

‘ ढांककर? वह भी घूंघट से? वह कैसे? तुम कहीं व्यंग तो नहीं करती हो?’

‘ ऐसे।’ कहते हुये नंदी ने अपने चेहरे पर लपेटी हुई साड़ी को हटाया। फिर आगे बोली,

‘ बहन जी का स्कॉफ लीजिये और मेरी तरह साड़ी के समान लपेट लीजिये।’ नंदी ने यह सब इतना शीघ्र दिखाया कि नाथन पल भर को उसका आभा से युक्त चांद सा मुखड़ा देखता ही रह गया। एक असाधारण सुन्दरता की वह मालकिन थी। धूल और गर्मी से उसका चेहरा सना होने के बाद भी लंबे बालों की कुछेक लटें उसके गोरे मुखड़े से चिपककर रह गई थीं। बालों को किसी भी शेम्पू और लक्मे की लालसा नहीं, आंखें काज़ल की मोहताज़ नहीं, और होठों को किसी भी लाली की आवश्यकता नहीं? सोचते हुये नाथन एक टक नंदी को देखता ही रह गया। सोचने लगा कि क्यों इस लड़की ने मेहतरों की बस्ती में जन्म लिया है? नंदी ने जब नाथन को यूं इस प्रकार से खुद को गहरी नज़रों से देखते पाया तो मारे लज्जा के उसने अपना चेहरा एक बार फिर साड़ी से कसा और चुपचाप झाड़ू लगाने लगी। मगर इस प्रकार कि बहुत धीरे-धीरे। यही कोशिश करके कि नाथन की तरफ धूल न जाये। साथ ही वह नाथन की नज़रों के देखने का अंदाज भी भली-भांति समझ गई थी। वह क्या? कोई भी लड़की मनुष्य की इस प्रकार की नज़रों का अर्थ बहुत अच्छी तरह से समझ जाती है।

फिर एक दिन रविवार का दिन था। नाथन सुबह दस बजे की इबादत के लिये चर्च की तैयारी करके अपने घर की तरफ आ रहा था। चर्च के पास्टर के आग्रह पर वह यह काम निशुल्क अपनी मर्जी से किया करता था। आते हुये मार्ग में उसे सामने से अचानक ही नंदी मिल गई। वह अपना काम समाप्त करके आ रही थी। उसे देखकर नाथन ने जेब से अपना रूमाल निकाला और उसे दिखाते हुये अपना मुंह और नाक ढांकने लगा। उसकी इस हरकत पर नंदी बड़े ही ज़ोरों से खिल-खिलाकर हंस पड़ी। वह जान गई थी कि नाथन उसकी नकल उतार रहा था। हंसते हुये नंदी के मोतियों समान चमकते दांत देखकर नाथन यह सोचे बगैर नहीं रह सका कि सचमुच ईश्वर ने इस लड़की को बनाते समय कोई कसर बाकी नहीं रखी है।

‘ बाबू जी! मैं झाड़ू लगा कर आ रहीं हूं। धूल कहां से उड़ने लगी?’ नंदी नाथन को देखकर हंसते हुये बोली।

‘ हां यह तो है, लेकिन न मालुम तुम्हें देखते ही ऐसा लगने लगा था कि मैं अपना मूंह छिपा लूं।’

‘ ठीक कहते हो बाबू जी। मुझे देखकर मूंह नहीं छिपाओगे तो और क्या करोगे? आखिर भंगिन जो ठहरी।’ नंदी कहते हुये उदास हुई तो नाथन के भी दिल पर जैसे अचानक से चोट लग गई। वह एक दम से नंदी से बोला,

‘ देखो नंदी, सारी दुनियां चाहे तुमको भंगी, मेहतर या हरिजन समझे, लेकिन मैं तुमको केवल एक इंसान समझता हूं। तुम जानती हो कि जो काम तुम घर-घर में करती हो, वही सारे काम हर आदमी और औरत अपने घरों में किया करते हैं। फिर काम तो काम है। किसी भी तरह का काम करने से कोई भी छोटा या बड़ा, भंगी, चमार या ठाकुर नहीं बन जाता है। तुम मेहनत और परिाम करके अपना पेट भरती हो। किसी से भीख़ तो नहीं मांगती।’

‘!’ नंदी नाथन की इस बात पर मौन होकर नीचे धरती पर देखने लगी, तो नाथन ने उससे आगे कहा कि,

‘ सुनो।’

‘ ?’ नंदी ने उसकी तरफ प्रश्नभरी निगाहों से देखा तो वह बोला,

‘ क्या तुम अपना यह काम छोड़ नहीं सकती हो?’

‘ छोड़ दूंगी तो खाऊंगी क्या ?’

‘ कोई दूसरा काम भी तो कर सकती हो।’

‘ आप तो ऐसे कह रहे हैं, जैसे कि मुझे दूसरा काम बड़ी आसानी से

मिल जायेगा ?’

‘ क्यों नहीं मिलेगा। तुम पहले हां तो बोलो।’ नाथन ने कहा।

‘ काम क्या करना होगा? सफाई, झाड़ू आदि?’

‘ हरगिज नहीं।’

‘ तो फिर?’ नंदी नाथन को आश्चर्य से देखने लगी।

‘ यूं तो मैं अपनी नौकरी करता हूं। लेकिन मेरी एक छोटी से प्रेस भी है, जिसमें मैं छपाई का काम भी किया करता हूं। इसमें ऐसे बहुत सारे काम ऐसे हैं जिन्हें सफाई के अतिरिक्त भी तुम उन्हें कर सकती हो।’

‘ मैं आपकी प्रेस में क्या काम कर सकूंगी। मैं तो केवल मिडिल ही पास हूं?’

‘ मिडिल। तुम तो बहुत ज्यादा पढ़ी हो। दूसरा जन जो मेरे यहां काम करता है वह तो केवल प्राईमरी ही पास है।’

‘?’ तब नंदी चुप हो गई। नाथन उसको चुप देख कर बोला,

‘ तो फिर हां। तुम्हारी नौकरी पक्की।’

‘ बापू से पूछ लूं तब।’

‘ जरूर पूछ लो। यदि तुम्हारा बापू मना करेगा तो फिर मैं उससे बात करूंगा। ठीक है न?’

‘ नंदी ने अपनी बड़ी-बड़ी आखों से नाथन को मुस्कराकर देखा तो पल भर के लिये वह भी मुस्करा गया।

‘ अब मैं जाऊं? नंदी ने जाने की आज्ञा मांगी तो नाथन मुस्कराकर रह गया। फिर जैसे ही नंदी जाने लगी तो वह उसे खाली हाथ देखकर चौंका। तुरन्त ही उसने नंदी को रोका। बोला,

‘ यह क्या?’

नंदी अपने ही स्थान पर ठिठक गई तो नाथन ने पूछा,

‘ तुम्हारा खाना कहां है आज का?’

‘ माता जी कह रही थीं कि अभी किसी ने भी घर में खाना नहीं खाया है। जब सब खा लेंगे तो बाद में आना।’ नंदी ने बताया तो नाथन एक दम गंभीर हो गया। वह नंदी से बोला,

‘ ज़रा आओ तो मेरे साथ।’

तब नंदी नाथन के साथ उसके पीछे हो ली।

घर के द्वार पर पहुंचकर नाथन तो अन्दर जाने लगा लेकिन नंदी वहीं दरवाजे़ के बाहर ही खड़ी रही। नाथन ने एक पल नंदी को देखा और उससे बोला,

‘ तुम यहीं ठहरना। मैं तुम्हारे लिये खाना लेकर आता हूं।’

फिर जैसे ही वह अन्दर घुसा, उसकी मां उसे देखकर बोली,

‘ इतनी देर लगाता है चर्च के अन्दर एक फर्श बिछाने के लिये? चल जल्दी से आकर खाना खा।’ यह कहते हुये उसकी मां ने खाना परोसा। नाथन भी शीघ्र ही खाने की मेज के सामने अपने हाथ धोकर बैठ गया। लेकिन वह खाना शुरू करता, उससे पहले ही वह अपनी मां से बोला,

‘ मामा, वह नंदी को खाना दे दिया क्या?’

‘ तू तो खा ले पहले। फिर दे दूंगी उसे भी।’ मां बोली।

‘ तो अभी दे दो न। वह बाहर खड़ी है। वह तो भूख़ी ही चली जा रही थी। मैं वापस लेकर आया हूं उसे।’ नाथन ने कहा तो उसकी मां उसे एक भेदभरी दृष्टि से घूरकर ही रह गई।

‘ जब तक घर में कोई भी खाना नहीं खा लेता है, उससे पहले इन भंगियों को खाना नहीं देते हैं। खानदान की सारी बरकत चली जाती है।’ मां ने तर्क किया तो नाथन सोचकर ही रह गया। लेकिन बाद में बोला,

‘ आपको कैसे मालुम कि बरकत चली जाती है। यह भी तो हो सकता है कि इन लोगों के हमारे घर में काम करने से, हमें ही आशीष मिलती हो?’

‘ अच्छा! तू अब इस नई दुनियां की बातें मत कर। हमारे समय की रीतियों, रिवाज़ों, धर्म-संस्कार और परम्पराओं को तू क्या जाने? चुपचाप खाना खा।’ कहते हुये मां बाथरूम की तरफ गई तो नाथन को अवसर मिला। उसने शीघ्रता से अपनी प्लेट उठाई। रोटियां उठाई और अचार की बोतल उठाते हुये बाहर दरवाज़े पर आया। खोलकर देखा। नंदी खड़ी हुई उसी की प्रतीक्षा कर रही थी। नाथन ने जल्दी से खाना उसे पकड़ाया और देते हुये कहा,

‘ लो, जल्दी से ले जाओ। घर जाकर इत्मीनान से खाना।’

‘?’ नंदी ने जब सारा खाना देखा। घर की स्टील की प्लेट, अचार की बोतल, सब कुछ फर्क सा देखा तो आश्चर्य से नाथन का मुंह ताकने लगी। वह जानती थी कि नाथन की मां जिस प्लेट में उसे खाना देती थी वह तो सिलवर धातु की प्लेट थी, और वह सदैव ही उनकी मुर्गियों के दरबे की छत पर रखी रहती थी।

‘चौंको मत। मामा तो तुमको न जाने कब खाना देतीं? मैंने अपना खाना तुम्हें दे दिया है। मैं दूसरा निकालकर खा लूंगा।’

‘?’ इस पर नंदी ने फिर एक बार नाथन को अचरजभरी निगाहों से निहारा, फिर बगैर कुछ भी कहे चली गई। बार-बार पीछे मुड़-मुड़कर नाथन को प्रश्नभरी निगाहों से देखती हुई।

नंदी के जाने के पश्चात नाथन अन्दर आया। जल्दी से उसने दूसरी प्लेट निकाली और अपने लिये खाना परोसने लगा। मगर इसी बीच मां वापस आ गई। उसको खाना निकालते हुये देखकर वे आश्चर्य से बोली,

‘ ये क्या। तू फिर से अपने लिये खाना परोस रहा है क्या?’

‘ हां।’

‘ और तेरा खाना जो मैं परोसकर गई थी?’

‘ वह मैंने नंदी को दे दिया। वह बहुत भूखी थी।’

‘ और अपनी घर की प्लेट?’

‘ वही सारा खाना तो मैंने प्लेट के साथ दे दिया है।’

‘ अच्छा! तुझे बहुत ज्यादा हमदर्दी हो गई है उस भंगिन से?’ उसकी मां जैसे खीज़कर बोली।

‘ मामा, काम करने से कोई भी भंगी, चमार और जमादार नहीं बनता है।’ नाथन बोला।

‘ हां, वह सब ठीक है। लेकिन इन भंगियों के साथ इनके जैसा ही बर्ताव न करो तो यह भी हमें भी भंगी ही समझने लगते हैं।’

‘ तो क्या हुआ? ईसाई तो वैसे भी भंगी कहलाते हैं। ज्यादर ईसाई तो इन्हीं मेहतरों और चमारों में से परिवर्तित हुये हैं।’ नाथन बोला तो उसकी मां पर जैसे जले पर नमक छिड़क गया। वे एक दम से बोली,

‘ तुझसे यह सब किसने कह दिया?’

‘ मुझसे कौन कहेगा? जिन्हें ज़रा भी ज्ञान है, वे सब ही जानते हैं कि जो ईसाई बने हैं उनमें ज्यादर संख्या इन्हीं जनसूचित जातियों की है।’

‘ आने दे तेरे बाप को। उनसे बहस करना।’ मां जैसे पहले से और भी अधिक भड़क गई थीं।

‘ वह कौन सी तोप चलायेंगे? आप और पापा और क्या मैं नहीं जानते हैं कि जिन मसीही लोगों के साथ आप हर दिन उठती-बैठती हैं। उनके साथ बैठकर चाय पीती हैं। खाना खाती हैं। वे मसीही बनने से पहले कौन सी बड़ी जाति के थे? आप तो बेमकसद ही जब देखो तब ही सीधी-सादी नंदी को भंगिन ़ ़ ़भंगिन ही कहती रहती है?’

‘ तो क्या हम जिन मसीहियों और ईसाइयों के साथ उठते-बैठते, खाते-पीते और रहते हैं, वे क्या सब नंदी जैसी ही भंगिन जाति के हैं?’ मां के तेवर चढ़ चुके थे।

‘ आप मुझसे क्यों पूछती हैं? उन्हीं सबसे पूछकर देख लीजिये।’

‘ मैं तुझसे पूछ रही हूं। तू कैसे कहता है यह सब?’

‘ मैंने अपनी आंखों से देखा है यह सब।’ नाथन बोला तो उसकी मां बोली,

‘ कहां देखा है?’

‘ पापा के साथ।’

‘ अपने पापा के साथ?’ मां मन ही मन बुदबुदाई। सोचा कि अब तक तो यह लड़का मेरे से ही उलझ रहा था, अब अपने बाप को भी ले बैठा?’ तब बहुत कुछ अपने मस्तिष्क पर ज़ोर डालती हुई नाथन से बोली,

‘ कहां देखा है तूने अपने पापा के साथ?’

तब नाथन ने बताया। उसने कहा कि,

‘ मामा देखो, ज्यादा पुरानी बात नहीं है। पापा जिस गांव में अपने मसीही प्रचार के लिये जाया करते हैं, उस गांव में एक बार एक लड़की की शादी हुई थी। तब उस शादी में मैं भी पापा के साथ गया था। बारात एक बस में दिल्ली से आई थी। लड़केवाले लगता था कि अच्छे अमीर थे। लेकिन गांववाले बेचारे गरीब और बाहरी दुनियां से बिल्कुल ही अनजान लगते थे। वे इसकदर भोले और अनभिज्ञ से थे, कि लगता था कि उन लोगों ने कभी बस भी देखी होगी? शायद इसीकारण उनमें बहुत से लोग अपने हाथों से बस की लंबाई तक नाप रहे थे। फिर भी जो बात मुझे तब अजीब सी लगी थी वह यही कि, बारात में आये हुये तमाम बारातियों, बस, कार और सब लोगों को देखते हुये पास ही में दूसरे गांव का एक आदमी अपने साथ के लोगों से कह रहा था कि, बस बड़ी आलीसान है। कारउ चमकीली है। ओढ़ना, लत्ते, जूते, सब ही मंहगे हैं। शहर से आई हुई धींगरी, धींगरा, मेम, सबही लाटसाहब लगत हैं। कछुउ हो? पर एक बात तो है कि, भंगी ऊंचो है।’ तब मुझे पता चला था कि जिस गांव में पापा प्रचार का काम करते थे, वह गांव हरिजनों, मेहतरों और भंगियों का था।’

‘?’ नाथन की उपरोक्त बात पर उसकी मां आंखें फाड़कर देखती ही रह गईं। वे फिर आगे कुछ और न कह सकीं। उनकी मुखमुद्रा को देखकर नाथन ने आगे कहा कि,

‘ मामा कुछ भी हो। एक बात तो है कि अपने देश में जातिय समीकरण इतना अधिक है कि धर्म-परिवर्तन हो या फिर मन-परिवर्तन, अथवा सचमुच में अपने परमेश्वर के प्रति सच्ची आस्था का परिवर्तन ही क्यों न हो; उपरोक्त सारी बातों के बावजूद भी जाति-परिवर्तन नहीं हो पाता है। भले ही कोई ईसाई हो जाये, लेकिन जानकार लोग उन्हें फिर भी उसी जाति का मानते हैं, जिनमें से वे परिवर्तित हुये हैं।’

‘ एक बार जब मसीह को अपना परमेश्वर मान लिया तो फिर कोई न भंगी है, न मेहतर और ठाकुर। सबकी एक ही जाति और एक धर्म के हैं। और वह है मसीही धर्म।’ उसकी मां ने कहा तो नाथन जैसे खिल उठा। तुरन्त ही बोला,

‘ मामा। यह हुई न कोई बात। हमाम में सब नंगे।’

‘ क्या मतलब?’

‘ मतलब यही कि जब कोई ईसाई बन गया तो फिर वह केवल ईसाई है, और कुछ नहीं।’

‘हां।’

‘ तो फिर अगर नंदी भी ईसाई हो जाये तो आप उसे फिर भंगिन तो नहीं कहेंगी न?’

‘?’ मां फिर से चुप हो गई। एक पल उन्होंने नाथन को देखा। संशय और भेदभरी निगाहों से। फिर उससे सन्देह के स्वर में पूछ बैठीं,

‘ तेरा मतलब क्या है?’

‘ मतलब कुछ भी नहीं। मैंने तो एक सामान्य सी बात कही थी। जब अन्य छोटी जाति के लोग ईसाई बनकर हमारे मसीही समाज में आदरमान और सम्मान से रह सकते हैं तो फिर नंदी क्यों नहीं?’ कहते हुये नाथन उठकर बाहर चला गया तो मां उसे आश्चर्य से अपलक देखती रह गईं। तब उन्हें यह सोचते देर नहीं लगी कि आनेवाले कल के दिन कहीं उनके लिये किसी खतरे या मुश्किल परिस्थितियों के संकेत तो नहीं हैं?

एक दिन गुज़र गया। तीसरे दिन मंगलवार था। किसी त्यौहार के कारण सरकारी कार्यालय और स्कूल आदि बंद थे। नाथन की भी छुट्टी थी, सो वह भी अपनी प्रेस में चला गया था। नाथन की मां बाहर खड़ी हुई जैसे नंदी के आने की प्रतीक्षा कर रही थीं। मगर जब उसके स्थान पर उसका भाई सुक्खू झाड़ू लगाने आया तो मां उसे देखकर चौंक गई। लगता था कि जैसे वह नंदी से कोई विशेष बात करने के लिये पहले ही से खड़ी हो गई थीं। फिर भी उन्होंने सुक्खू से पूछ लिया। वे बोली,

‘ आज क्या बात है। नंदी नहीं आई?’

‘ माता जी, वह अब यहां काम करने नहीं आयेगी। सुक्खू बोला तो नाथन की मां एक संशय से बंध गई। वह तुरन्त बोलीं,

‘ क्यों नहीं आयेगी वह। वह ठीक तो है न?’

‘ उसे नौकरी मिल गई है। सौ रूपया महिना पर।’

‘ अच्छा! तू होश में तो है? कौन देगा नौकरी उसे?’

‘ नहीं माता जी! सही कह रहा हूं। कोई देवता सरूप आदमी है, उसी ने अपने छापेखाने में नौकरी दे दी है।’

‘ छापेखाने में?’ मां के माथे पर बल पड़ गये। प्रेस तो वह जानती थीं, पर यह छापाखाना क्या होता है? वह कुछ समझ नहीं पाई। चुपचाप अन्दर चली गईं। बहुत देर तक सोचती रहीं कि कहीं यह नाथन ही की तो कोई कारिस्तानी नहीं है?

यह सब कुछ ऐसा ही चलता रहा। लगभग दो महीने बीत गये। नाथन ने नंदी को अपनी प्रेस में नौकरी दे दी थी। उसकी मां का शक भी सच निकला। मालुम होते ही उन्होंने भी अपनी तरफ से जितना हो सकता था, नाथन को खूब खरी-खोटी सुनाई। बुरा-भला, जितना भी वे बक सकती थीं, उसे बक दिया। उसके पिता से शिकायत की तो उन्होंने भी एक छोटा सा भाषण देकर नाथन को समझाने की कोशिश की। बाद में वे भी यह कहकर चुप हो गये कि, जवान लड़का है। अपने पैरों पर खड़ा है। यदि ज्यादा कुछ कहा-सुना और गुस्से में कुछ ऐसा-वैसा कर बैठा, तौभी मुसीबत है। फल स्वरूप, उन्होंने तो नाथन पर निगरानी नहीं रखी, पर उसकी मां हर समय उसके पीछे जोंक के समान ही चिपकी रहीं। दूसरी तरफ सारी मसीही बस्ती में भी नाथन की नंदी के प्रति रूचि की बातें परवान चढ़ने लगीं। उसकी मां सुनती तो मारे क्रोध के वह अपना सिर ही पकड़कर बैठ जातीं। फिर धीरे-धीरे और भी समय बीता। नंदी अभी तक नाथन की प्रेस में काम कर रही थी। झाड़ू लगाने और सफाई का काम उसका एक प्रकार से छूट ही गया था। इतने दिनों तक नाथन के साथ उसकी प्रेस में काम करने से नंदी का रहन-सहन, बात करने का ढंग, और कपड़े पहनने का सलीका ही बदल चुका था। अब उसे देखकर कोई भी नहीं कह सकता था कि यह लड़की कभी झाड़ू भी लगाया करती थी। इतने अर्से में नाथन नंदी को और अधिक मन से चाहने लगा था। उसके दिल की हसरत अब स्पष्ट तौर पर उसकी आंखों में झलकने लगी थी। हांलाकि नंदी भी नाथन के दिल की बात को महसूस करती थी। मन-मस्तिष्क से समझती भी थी, पर वह भी अपने मुख से नहीं कह सकती थी। इसका कारण था कि उसके दिल की गहराइंयों में बसी हुई उसकी मूल जाति, उसके पिता, बाप-दादों का गन्दगी वाला सफाई और मल साफ करने का पेशा, एक मेहतरानी? अपनी किस हैसियत से अपने दिल की हसरतों का पैगाम उस इंसान के समक्ष सुना सकती थी जिसने किसी प्रकार उसे सिर उठाकर चलना सिखाया था। वह चुपचाप अपना काम करती। एक-एक पैसे का हिसाब देती और काम समाप्त होते ही सीधे अपने घर चली जाती।

फिर भी ऐसा कब तक चलता? एक दिन तो यह होना ही था। नाथन ने अवसर मिलते ही अपने दिल की बात नंदी से कह दी। वह गंभीरता के साथ नंदी के पास आया और बोला,

‘ नंदी। बहुत दिनों से मैं तुमसे कुछ कहना चाहता था।’

‘?’ सुनकर नंदी के पैरों से तनिक ज़मीन तो खिसकी, लेकिन वह संभल भी गई। वह शायद पहले ही से समझ भी रही थी कि नाथन उससे क्या कहने जा रहा है? फिर भी वह अपने ही स्थान पर खड़ी होकर नाथन की आगे की बात का इंतज़ार करने लगी।

‘ तुम मुझसे शादी करोगी?’ सुनकर नंदी चौंकी तो नहीं, क्योंकि पिछले एक लम्बे समय से जो हालात बन रहे थे, उनका अंजाम भी कुछ ऐसा ही होना था। नंदी ने मुख से तो कुछ नहीं बोला, पर एक संशय के साथ वह नाथन को देखने लगी। इस प्रकार कि जैसे कह रही हो कि, जो कुछ तुम कह रहे हो, उसका मतलब जानते हो?

‘ तुमने कुछ जबाब नहीं दिया? नाथन ने फिर कहा तो नंदी ने उसकी तरफ देखा। बहुत ख़ामोशी और गंभीरता के साथ। फिर बोली,

‘ ये जानते हुये भी कि मैं कौन हूं? किस जाति से संबन्ध रखती हूं?’

‘हां।’

‘ मैंने अब तक की जि़न्दगी में यूं भी बहुत अधिक दुख और मुसीबतें उठाई हैं। आते-जाते लोगों की गंदी-गंदी बातें और फिकरे सुनें हैं। अपने शरीर की तरफ ऊंची जातिवालों की ललचाई हुई नज़रों को झेला है। अपना काम करने गई तो लोगों की गालियां और बदतमीजि़यां खाई हैं। घर-घर की जूठन खाकर इतनी बड़ी हुई हूं। और अब तुम मुझसे शादी करोगे तो और कौन सा दुख देना बाकी है मुझको? फिर मुझसे शादी करके आपको सिवाय बदनामी के और क्या मिल जायेगा?’ कहते हुये नंदी की आंखें भीग गई।

‘ मुझे तुम मिल जाओगी, और क्या चाहिये होगा मुझे? मैं सचमुच तुमको अपने घर ले जाना चाहता हूं। बड़े ही कायदे और आदर के साथ। तुम्हारे ये दुख मुझसे देखे नहीं जाते हैं।’ नाथन बोला।

‘ तुम्हारे घर की बहू बनकर भी मेरी तकदीर नहीं बदल सकती। मेरे जिस्म पर लगा हुआ भंगिन का दाग नहीं धुल सकेगा?’

‘ क्यों नही? मैं तुम्हें यहां से लेकर कहीं दूर, किसी नये स्थान में चला जाऊंगा। उस जगह पर जहां पर तुम्हें केवल लोग नंदी के नाम से ही जानेंगे। अन्य किसी नाम, जाति और व्यवहार से नहीं। हां, हो सकता है कि तुमको मेरे उद्धारकत्‍​र्ता यीशु मसीह और मेरे मसीह धर्म से शायद कोई एतराज़ हो?’

‘ नारी का परमेश्वर, सबसे पहले उसका पति होता है। विवाह के पश्चात आपका परमेश्वर मेरा परमेश्वर होगा। आपका धर्म ही मेरा और मेरी होनेवाली संतान का धर्म होगा। आप जिस जगह ठहरेंगे, वहां की धूल ही मेरा निवास और मेरा अपना घर होगा।’ कहते हुये नंदी ने अपने हथियार डाल दिये तो नाथन ने उसे अपने सीने से लगा लिया। फिर कुछेक पलों की चुप्पी के पश्चात नंदी अपना सिर नीचे झुकाते हुये नाथन से बोली,

‘ अगर आपकी यही जि़द है तो फिर मेरे बापू, परिवार और मेरी बिरादरीवालों से बात करिये।’

नाथन ने फिर इस काम में देरी भी नहीं की। उसने नंदी के घरवालों से बात की। उसके घरवाले सुनकर एक बार चौंके तो पर, वे सहज ही तैयार भी हो गये। उन्होंने भी सारा कुछ नंदी के अपने स्वंय के निर्णय पर छोड़ दिया था। फिर उन सबको एतराज़ और परेशानी हो भी क्यों हो सकती थी? नाथन को वे सब सालों से जानते थे। कितने ही वर्षों से वे सब उसके घर की सफाई का काम करते आ रहे थे। इसके साथ ही वे ये भी जानते थे कि कितने मसीही परिवार जो अब एक मान और सम्मान के साथ मसीही बस्ती में रह रहे थे, उनके दादा, परदादा भी मसीहियत में विश्वास लाने से पहले नंदी के परिवारवालों जैसा ही काम किया करते थे।

नाथन चाहता था कि उसका विवाह बड़े ही कायदे से मसीही धर्म की रीति के अनुसार हो। लेकिन ऐसा होने से पहले नंदी का ईसाई धर्म में संस्कार होना बहुत आवश्यक था। बगैर मसीही बपतिस्में के वह नाथन से ईसाई धर्म के अनुसार अपना विवाह नहीं कर सकती थी। इसके लिये नाथन ने स्थानीय चर्च के पास्टर से चुपचाप बात की और अपनी परेशानी भी बताई। तब सारी बात सुनकर वहां के चर्च पास्टर ने जैसे बहुत परेशान होते नाथन से कहा कि,

‘ तुम्हारा ख्याल कोई बहुत बुरा तो नहीं है। मैं भी तुम्हारी मदद करना चाहता हूं, लेकिन तुम्हारी शादी नंदी से बगैर बपतिस्में के नहीं हो सकती है। बपतिस्मा लेने से पहले नंदी को बाकायदा बाइबल की बुनियादी शिक्षा तो लेनी ही होगी। और इसमें उसे कम से कम नौ से दस माह तक तो लग ही जायेंगे। इसके साथ बहुत सारे कागज़ी काम कानूनन उसे पूरे करने होंगे, नहीं तो आजकल यूं भीं धर्म परिवर्तन पर गैर मसीही समुदाय बख़ेड़ा खड़ा करते ही रहते हैं।’

‘ यह तो बहुत लंबा समय हो जायेगा। वैसे भी नंदी के बिरादरीवाले नहीं चाहते हैं कि वह एक मसीही लड़के से विवाह करके हिंदू से ईसाई बन जाये। वे लोग उसके मां-बाप पर जल्द से जल्द उसका विवाह उसी की बिरादरी में करने पर ज़ोर दे रहे हैं, ताकि वह सारी उम्र झाड़ू ही लगाती रहे, और मेहतरानी का काम करती रहे।’

‘ मैं भी कानूनन बंधा हुआ हूं। मैं बहुत मजबूर हूं।’ कहते हुये पास्टर ने अपने हाथ खींच लिये तो नाथन चुपचाप हाथ मलता रह गया।

इस प्रकार नाथन घर में नंदी की बात करे तो परेशानी। मसीही बस्ती में सब उसे हर समय एक चुभनेवाली प्रश्नभरी, संशययुक्त नज़रों से देखने लगे। वह नंदी से बात करे, उसके साथ दिखे तो लोगों को परेशानी। उससे विवाह करने में परेशानी। यहां तक कि नंदी के बिरादरीवालों में, उसके समाज में भी बहुत से रूढि़वादी लोगों को उससे परेशानी होने लगी तो उसने अपने घर में बताये बगैर नंदी के साथ सरकारी कोर्ट में बाकायदा विवाह कर लिया। विवाह के पश्चात नंदी के परिवारवालों ने अपनी समस्त रीतियों को पूरा किया। लड़की को उन्होंने कायदे से विदा किया। मगर नाथन नहीं जानता था कि यहीं से उसके रास्तों की सारी मुश्किलें भी उसके स्वागत में आकर खड़ी हो चुकी थीं। नाथन की मां और उसके परिवार को तो पहले ही इस बात की खबर लग चुकी थी। वे तो शायद पहले ही से इसके विरुद्ध तैयार हो चुकी थीं। जैसे ही नाथन नंदी को लेकर घर पर आया तो उसकी मां के तेवर देखने लायक थे। मस्तिष्क का सारा पारा सातवें आसमान से भी ऊपर चढ़ चुका था। लगता था कि सारे घर को उन्होंने अपने सिर पर उठा रखा था। नाथन को नंदी के साथ देखते ही वे जैसे अंगारों पर चलती हुई चिल्लाईं,

‘बेवकूफ! शर्म नहीं आती तुझे? एक भंगिन को अपनी बीबी बनाकर ले आया है? इतना भी ख्याल नहीं आया कि हम ईसाई जरूर हैं पर मेहतर नहीं? खबरदार जो इस घर की चौखट पर दोनों में से किसी ने अपने पैर भी रखे?’

‘?’ नाथन चुपचाप अपने ही स्थान पर खड़ा रहा। नंदी तो कहती ही क्या। तब नाथन ने चुपचाप नंदी का हाथ पकड़ा। अपनी मां को एक पल देखा। फिर सारे घर को देखता हुआ क्रोध में बोला,

‘ इस घर में गलती से मैंने जन्म लेने की जुर्रत जरूर की है, लेकिन यह घर मेरा नहीं है। चल नंदी यहां से।’ कहकर नाथन नंदी के साथ उल्टे पैर लौट गया।

नाथन ने वह दिन, शाम और रात अपनी पे्रस की दुकान में ही बिताई। कुछेक दिन वे दोनों दुकान में ही रहकर अपने दिन काटने लगे। इस बीच नाथन किराये का मकान भी देखने लगा। फिर काफी दिनों के बाद उसे एक, दो कमरों का मकान किराये पर मिल भी गया। इस मकान में सब कुछ ठीक ही था, केवल पानी के लिये एक सार्वजनिक नल लगा हुआ था। नंदी तब बहुत खुशी के साथ नाथन के साथ इस घर में आकर रहने लगी। वह एक पत्नी की तरह अपने पति की हरेक बात का ख्याल रखती। दिन में नाथन अपनी नौकरी पर चला जाता तो वह उसके लिये दोपहर का भोजन बनाकर रख देती। फिर उसके जाने के पश्चात वह उसकी प्रेस का काम देखती। दिन भर दुकान पर रहती, और शाम पांच बजने से पहले, नाथन के लौटने से पूर्व ही घर पर आ जाती। और जब रात को सोने से पहले नंदी अपनी मधुर आवाज़ में नाथन को गीत सुनाती; अपनी वही प्यारी, दिल की रगों को छू देनेवाली आवाज़, जिसको कभी सुनने के पश्चात नाथन के मन में नंदी के प्रति प्रेम की ज्योति जल उठी थी, सुनते हुये नाथन के मन और शरीर दोनों ही का सारा बोझ भी हट जाता। बहुत देर तक तब दोनों अपनी इस नई जि़न्दगी के तमाम हालात और परिस्थिति पर बात करते हुये सो जाते। दोनों यूं तो अपने इस जीवन से बहुत ही खुश थे, लेकिन नंदी के मन में अभी तक यह विचार बना हुआ था कि उसके कारण नाथन कितना अधिक दुख उठाता है। तमाम जगहों पर वह केवल उसके ही कारण अपमानित भी होता है। साथ ही उसकी मां ने भी खुद मसीही होते उसे अपनी बहु के रूप में स्वीकार नहीं किया है। नंदी जब भी इस प्रकार से सोचती तो उसका मन कसैला हो जाता था।

इस तरह होते हुये नाथन और नंदी के दाम्पत जीवन के दिन एक जैसे न रह सके। धीरे-धीरे आस-पास के लोगों को पता चल गया कि नंदी मेहतरों की बस्ती से संबन्ध रखती है। सबसे पहली और बड़ी मुश्किल उन दोनों को अपने किराये के मकान में रहने पर आई। लोगों ने उनको पानी भरने से मना कर दिया। नंदी को देखते ही तमाम जान-पहचान के लोग कतराकर निकलने लगे। और अंत में एक दिन मकान मालिक ने भी नाथन से अपना मकान खाली करने के लिये कह दिया। वह बोला कि,

‘ इस बस्ती में सभी अच्छी जाति के लोग रहते हैं, भंगी नहीं। आप खुद भी समझदार हैं। महीना समाप्त होने से पहले ही मेरा मकान खाली करके अपना कहीं और रहने का बंदोबस्त कर लें।’

नाथन को मकान खाली करना पड़ा। एक बार फिर से उसे अपनी किराये की प्रेस में शरण लेनी पड़ गई। उसके कुछेक दिन यहां पर कटे, लेकिन वही समस्या और परेशानी उसको यहां पर भी आड़े आ गई। दुकान के अन्य आस-पास के दुकानदारों में नंदी को लेकर खुस-फुस होने लगी। लोग नंदी को सन्देह और अछूत की दृष्टि से देखने लगे। फिर बात बढ़ी तो इतने दिनों से दुकान के मालिक ने भी नाथन को पहले ही से चेतावनी दे दी। वह भी नाथन को जैसे समझाते हुये बोला,

‘ आप ईसाई हैं। ईसाइयों तक ही बात रहती, तब तो बात कुछ समझने और सहन करने लायक थी, मगर आपने तो हद ही कर दी है। शत्रु नहीं हूं मैं आपका? मुझे भी इसी समाज में रहना है। आप स्वंय ही अंदाजा लगा लें। अगर लोग शिकायत करेंगे तो मुझे तो कुछ करना ही होगा। इसलिये आगे से कहीं और जगह देख लें।’

इतना ही नहीं, नंदी के कारण नाथन को परेशानी उसकी अपनी नौकरी में भी होने लगी। हांलाकि, सरकारी नौकरी थी। कोई खुलकर तो सामने नहीं आ सका, लेकिन परोक्ष रूप से उसके साथ ही काम करने वाले ही उससे जैसे परहेज़ करने लगे। उसे अछूतों के समान देखने लगे। तब यह सब देखकर नाथन ने सोचा कि वह अपना स्थानान्तरण करवा ले। नंदी को लेकर कहीं ऐसे शहर में चला जाये जहां उन दोनों को कोई भी नहीं जानता हो। मगर यह बात भी नहीं बनी। स्थानान्तरण हो जाना, वह भी तत्काल, यह कोई बच्चों का खेल नहीं था। महीनों से लेकर, वर्षों तक लग सकते थे। नाथन के ऊपर, पहाड़ों का ढेर टूट पड़ा। खाने-पीने और आर्थिक समस्याओं से कहीं बहुत भारी अपनी मातृभूमि पर ही पैर टिकाने के लिये मात्र एक फुट स्थान के लिये भी वह तरस गया। वह परेशान हो गया। अपने आप ही टूटने लगा। शरीर से और आत्मा से भी। नंदी यह सब देखती तो मजबूरी में केवल आंसू बहाकर ही रह जाती।

तब अपने कारण नाथन के साथ यह सारी परेशानियां, कठिनाइंया और परिस्थितियां देखकर नंदी ने अपने ही समाज में फिर से वापस जाने की बात नाथन से कही तो वह जैसे फट पड़ा। नाथन उसको एक पल के लिये भी अपनी आंखों से ओझल नहीं कर सकता है? कितना अधिक चाहता है वह उसे, किसकदर वह केवल उस ही का है, नंदी ने जाना और समझा तो सारी परिस्थिति देखकर फूट फूटकर रो पड़ी। लेकिन वह कर भी क्या सकती थी। वह जान गई थी कि नाथन उसका पति ही नहीं, बल्कि उसका दीवाना भी है। वह उसके रूप के साथ-साथ उसकी आवाज़ और गीतों का इतना अधिक चाहनेवाला है कि जिसकी परिधि की कोई भी सीमा नहीं दी जा सकती है। वह सारी जि़न्दगी इसी तरह से कष्ट उठाता रहेगा, और उफ भी नहीं करेगा। नाथन दुख उठाये? सारा जीवन इसी तरह से परेशान रहे? एक पल को भी वह चैन और शान्ति की सांस न ले सके? इससे तो बेहतर होगा कि वह स्वंय ही इस संसार से चल बसे। वसीयत में जो भंगिन का वर्गीकरण उसकी जाति के लिये किया गया है, उसे तो वह मरकर भी अपने ऊपर से नहीं छुटा सकती है; पर अपने जाने के पश्चात वह नाथन को सम्मान के साथ इस समाज में रहने के योग्य तो बना ही सकती है।

फिर एक दिन। वह शायद एक मनहूस शाम थी? नंदी ने अपने घर सदा के लिये वापस जाने की जि़द की तो नाथन के सिर पर जैसे अंगारे टूट पड़े। फिर तो नंदी उसे समझाये, और वह नंदी को। दोनों ही अपनी-अपनी बात पर अटल थे। फिर काफी कहा-सुनी के पश्चात उस दिन दोनों ही बगैर खाये-पिये सो गये। लेकिन ऐसा कब तक चलता। मनुष्य अभावों में तो जीवन बिता सकता है, परन्तु तनाव में नहीं। घर में बढ़ते हुये रोज़्ााना के तनाव ने एक दिन नंदी के मन में एक भयानक विचार की उत्पत्ति कर दी। उसने घर के चाकू से अपनी जुबान काट ली। ना उसके पास यह प्यारी आवाज़ रहेगी और ना ही फिर कभी नाथन उसे पसन्द करेगा। नाथन ने जब देखा और सुना तो वह जैसे खड़े से ही गिर पड़ा। उसने नंदी का पूरा इलाज करवाया, परन्तु ज़हर नंदी के शरीर में फैल चुका था। उसे टैटनस हो गया था। उसकी जान बचाना कठिन हो गया। वह नाथन को रोता- बिलखता छोड़कर सदा के लिये चली गई। मरना तो एक दिन सब ही को है। नंदी को मरने के पश्चात भी किसी ईसाई कब्रिस्थान में ईसाई न होने के कारण जगह न मिल सकी। भले ही वह एक मसीही और ईसाई आदमी की पत्नी थी, पर ऐसा कोई भी तर्क नहीं माना गया। हार मानकर नाथन को नंदी का अंतिम संस्कार भी कुशभद्रा के बालू के तीर पर चिता की लपटों में करना पड़ा ़ ़ ़।

आज नंदी को इस जहान-ए फानी से विदा हुये एक माह से अधिक हो चुका था। तब से न जाने कितनी ही चितायें दुनियां से जानेवालों की राख़ बनाकर ठंडी हो चुकी थीं। इस कुशभद्रा के बालू के किनारे, अपने सीने पर हजारों मरनेवालों की दास्तां कितनी बेदर्दी से हर रोज़ लिख लेते थे? यह शायद यहां आनेवाला कोई भी नहीं पढ़ पाता था। नाथन अक्सर ही यहां आकर बैठ जाता था। आज भी वह बैठा हुआ था। शाम पूरी तरह से डूबी जा रही थी। नदी के आस-पास के वृक्षों, झाडि़यों आदि पर दिन भर के थके-हारे पक्षी अपने बसेरे के लिये पंख फड़फड़ाने लगे थे। चांद कई दिनों के लिये नदारद हो चुका था। अमावस्या के बाद की रातें चल रहीं थीं। रात होते ही कुशभद्रा का सारा जल किसी मृत हुये दानव के शव के समान ठंडा पड़ जाता था- इतनी देर में नाथन बैठे हुये अपने अतीत की उन कड़वी यादों को फिर से दोहरा गया था, जिन्हें शायद दुनियां की किसी भी मीठी से मीठी वस्तु से कभी भी मीठा नहीं किया जा सकता था।

नाथन अभी तक बैठा हुआ था। बहुत शांत। निराश कामनाओं की लाश के समान। उदास और बेमकसद। तभी उसे अपने कंधे पर किसी के हाथ का स्पर्श हुआ। नाथन ने चौंककर देखा तो उसके पीछे उसके मां-बाप, मसीही बस्ती के कुछेक लोग तथा स्थानीय पास्टर भी खड़े थे।

‘ बेटा! मरनेवालों के साथ कोई मरता तो नहीं है। जानेवाली तो चली गई है। तुम्हारी यह दशा हमसे अब देखी नहीं जाती है। हम तुम्हें लेने आये हैं?’ नाथन के पिता अपनी भरी-भरी आवाज़ में उससे जैसे गुज़्ारिश कर रहे थे।

‘?’ नाथन ने एक बार उन्हें देखा? सब लोगों को एक नज़र निहारा? फिर अपने मां-बाप को देखता हुआ उनसे बोला,

‘ आप दोनों उस निर्दोष, सुशील, बेहद सहनशील और निहायत ही शालीन लड़की के कातिल हैं जो कानून, धर्म और सामाजिक; तीनों ही रिश्तों से आपकी बहू, मेरे पैदा होनेवाले बच्चे की मां और मेरी पत्नि थी। इन तीनों ही रिश्तों को आपने हमेशा के लिये तोड़ डाला है। अब किस रिश्ते से मैं आपके घर की चौखट पर कदम रखूं? आपके घर, समाज और इस दुनियां में रहने का हकदार होते हुये भी मुझे यहां एक तिल भर की भी जगह अपनी नहीं दिखाई देती है। अब जहां मेरी जगह है, मैं केवल वहीं जा सकता हूं। नंदी की आंसुओं से भरी, तड़पती हुई चीख़ें मुझे बुला रही हैं।’

कहते हुये नाथन तीव्रता से अपने स्थान से उठा, और आंधी के समान भागता हुआ कुशभद्रा नदी के पुल पर गया, और आनन- फानन में पलक झपकते ही एक बड़ी छंलाग नीचे नदी की चक्कर काटती हुई लहरों में लगा दी। नाथन के नदी की लहरों में समाते ही एक बादलों की गर्जन का दहाड़ता हुआ स्वर माहौल में चिल्लाया और देखते ही देखते नाथन का शरीर एक पल को उभर कर जल के ऊपर दिखाई दिया, फिर सदा के लिये गायब हो गया। नाथन के पिता, मां, चर्च के पास्टर तथा मसीही बस्ती के तमाम लोग जो उसके स्वागत में उसे वापस लेने आये थे, अपने हाथ मलते ही रह गये।

शाम गहरा गई थी। कुशभद्रा के तट पर जहां एक ओर इस संसार से जानेवालों की चितायें, राख के रूप में ठंडी पड़ रही थी, वहीं उसकी लहरें भी प्यार के असफल इंसानों की आहुति लेने के पश्चात जैसे शांत हो चुकी थीं। परमेश्वर ने इंसान को इस धरती की एक ही मिट्टी से बनाया है, पर मनुष्य ने स्वंय ही जातिय समीकरण का गुणा भाग करके उनके मध्य ऊंच-नीच की दीवार खड़ी कर दी है; इससे बड़ी बिडंवना उस समाज, धर्म और देश की क्या हो सकती है?
- समाप्त।


अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED