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महुआ

जेनीफर की आंखों में ऐसी कौन सी कशिश और कैसा नशीलापन था कि साहिल अपनी पढ़ाई-लिखाई सब भूलकर अपनी जि़न्दगी का किनारा भी खो बैठा। जीवन-नैया जब लचकने लगी तो एन वक्त पर नीलम ने उसे डूबने से बचा तो लिया पर, प्यार की बारिश में भीगने का जो नज़राना साहिल को मिला, तो उसे पाकर वह लड़खड़ा क्यों गया?

वक्तबेवक्त किये गये प्यार के समझौंतो पर प्रकाश डालती हुई शरोवन की एक मार्मिक कहानी।

***

साहिल कल रात ही अपने काम से वापस आया था। थक कर चूर हो चुका था, इसलिये काफी देर तक सुबह सोता भी रहा था। जब उठा तो स्नान आदि से निवृत होकर अपनी मेज के सामने बैठ गया था। नीलम चाय का प्याला उसके सामने रखकर किचिन में नाश्ता आदि तैयार करने लगी थी। बाद में अतिशीघ्र ही तैयार होकर, साड़ी पहनकर अपने कमरे से निकली और साहिल के पास आकर, उसके सामने पिछले एक सप्ताह की डाक रखते हुये बोली,

‘सुनिये! मैं कॉलेज जा रही हूं। नाश्ता तैयार करके मैंने रख दिया है, सो जरूर से खा लेना। दिन भर भूख़े मत बने रहना। मैं आपकी गाड़ी ले जा रही हूं। मेरी गाड़ी पता नहीं क्यों चालू होने में परेशान करने लगी है? और हां, मैंने आपको नैनी जाने से पहले ही कहा था कि जेनीफर का फोन आया है, उसे फोन कर लेना। लगता है कि आप भूल गये होंगे। आपके जाने के बाद उसका पत्र भी आ गया तो आप घर पर थे नहीं, सो मैंने सोचा कि न जाने कैसा पत्र है, कोई विशेष बात भी हो सकती है। मैंने खोल कर पढ़ लिया है। अब अधिक सोचा-विचारी न करना, और सोच-समझकर फैसला करना।’

इतना कह कर नीलम शीघ्र ही चली गई तो साहिल मूक बना उसे केवल जाते हुये देखता रहा। नीलम के जाने के बाद साहिल ने एक नज़र भाप उड़ाते हुये चाय के प्याले पर डाली, फिर उसे उठाकर एक सिप लिया और उस पत्र को देखने लगा जो अमरीका से जेनीफर ने उसके लिये लिखा था। उसने एक बार लिफाफे को ऊपर-नीचे से देखा और फिर वह पत्र को पढ़ने लगा,

‘अतिप्रिय साहिल,

‘मैंने तुम्हें बहुत सताया, बहुत ही अधिक दुख दिया, जितना अधिक तुमको रूलाया था! शायद यह मेरे किये ही का प्रतिफल है कि आज मैं बहुत ही दहाड़ें मारकर रो लेना चाहती हूं। सचमुच ही बहुत रो भी रही हूं मैं। एक वक्त था कि मैं ज़रा सा उदास होती थी और तुम मुझे देखकर पानी-पानी हो जाते थे। कितनी अभागिन हूं मैं? इतनी अधिक कि आज मैं अपना चेहरा खुद आयने में भी नहीं देखना चाहती हूं। मैंने तुमको जि़न्दगी के विभिन्न आयामों के सहारे प्यार के झूठे धरातल पर बैठाते हुये हुस्न और वासना के वे सारे राज़ सिखा़ने चाहे, जिन्हें पाश्चात्य सभ्यता की समय-समय पर पूरी करनी वाली महज़ जरूरतें ही समझी जाती हैं। खाओ-पिओ और मौज़ करो। अपने साथी से केवल उतना ही मतलब रखो, जितना कि आवश्यकता हो। केवल एक ऐसा रिश्ता हो जिसमें भावनायें, आस्थायें और दिल की नाज़ुक संवेदनाओं का कोई मूल्य और अर्थ नहीं रह जाता है। विवाह हो या न हो, पर आपस के संबध वही होने चाहिये जो विवाह के बाद होते हैं। ये मेरी अपनी शिक्षा नहीं थी बल्कि उस देश की देन ही थी जिसकी मिट्टी में, मैं पली-बढ़ी और सीखी थी। शायद ये तुम्हारे देश का संस्कार ही है कि जो मैंने तुमको अपने संस्कारों से सिखाना चाहा, वह तुम्हारी दृष्टि में वाह्यातपन और बेशर्मी थी। मैं तुमको पसंद करती थी और तुम मुझको चाहने लगे। मैं तुम्हें कैसे समझाती कि यहां की अंग्रेजी धरती पर पहले ही बॉयफ्रेंड से दोस्ती करके शादी करने वाली लड़की को बेबकूफ कहा जाता है। तुम्हारे देश में महज एक ही की याद में लोग जि़न्दगी बसर कर देते हैं, और यहां पर ऐसी बातों को जीवन की साधारण सी घटना समझकर, जूतियों में पड़ी धूल के समान झाड़कर हमेशा के लिये साफ कर देते हैं। तुम मुझसे शादी करना चाहते थे, और मैं केवल तुममें अपना क्षणिक मनोरंजन ढूंढ़ती रही। कितना बड़ा अन्तर था तुम्हारी सोच और मेरी सोच में? इतना लंबा फासला था कि जिसे मैं तय करना तो दूर, उसके बारे में सोच भी नहीं सकती थी। यही कारण था कि मैं हमेशा के लिये तुम से बध्ंा नहीं सकी। तुमको बहुत चाहते हुये, तुम्हें अपना समझते हुये भी तुम से शादी भी नहीं कर सकी . . . . कहने को तो इतना अधिक सैलाब है इन आंखों में कि आंखें थक जायेंगीं, पर आंसू नहीं थमेगें। बस यही सोच-सोचकर मलाल आता है कि मैं तुम्हें समझ क्यों नहीं सकी थी? क्या कमी नज़र आई थी तुम्हारे अन्दर कि मैं तुम्हारे साथ रहते हुये भी तुम्हारी सदा को बन नहीं सकी? मैं जानती हूं कि इन सारी बातों को दोहराने से फायदा भी क्या? मैं तुमसे खुद इतना अधिक दूर आ चुकी हूं कि अब मेरे और तुम्हारे दरम्यान जो फासला बन चुका है, उसे कभी भी पूरा नहीं किया जा सकेगा। मेरा इस दुनियां से कूच करने का समय बहुत पास आ चुका है, इ्सलिये चाहती हूं कि तुम्हारी वह अमानत जिसके बारे में तुम गुमान भी नहीं कर सकते हो, तुम्हें बहुत ही आदरमान के साथ सौंपकर अपने इस बोझ से बरी हो जाना चाहती हूं। तुम कहा करते थे कि मेरी आंखों में बहुत नशीलापन है, यदि मुझसे तुम्हारी कोई सन्तान हुई तो तुम उसका नाम ‘महुआ’ रखोगे। महुआ से तुम्हारे देश में नशे की शराब बनाई जाती है। सचमुच महुआ तुम्हारी ही सन्तान है। बहुत ही अधिक प्यारी और नशीली आंखें हैं उसकी। आठ साल की हो चुकी है। बिल्कुल तुम्हारी ही शक्ल की दिखने लगी है अब वह। तुम्हारी बात को याद रखते हुये मैंने उसका नाम महुआ ही रखा है। अब तुम कहोगे और आश्चर्य करोगे कि, तुमसे मुझे तुम्हारी यह इकलौती सन्तान कैसे और कब मिल गई? ज़रा याद करो उस दिन और समय को, जब कि नौ साल पहले मैं भारत आई थी और तुम्हारे ही पास ठहरी थी। मैं समझती हूं कि तुम्हारे मस्तिष्क की भूली हुई स्मृतियों को खोलने के लिये इतना ही बताना काफी रहेगा। मेरा भारत आने का मकसद भी यही था, क्योंकि मेरा अमरीकन पति, जिसे मैं कभी का छोड़ चुकी हूं, मुझे सन्तान देने के लिये सक्षम नहीं था। तब मैंने सोचा कि यदि सन्तान ही चाहिये तो क्यों न मैं अपने उस भूतपूर्व प्रेमी के पास चली जाऊं जो शायद अभी तक मेरे प्यार की इबादत कर रहा होगा। फिर हुआ भी यही सब। मैंने तुम्हें पत्र लिखा। फिर तुम से फोन पर बातें हुईं और मेरा भारत भ्रमण का कार्यक्रम बन गया था। महुआ, मेरे और तुम्हारे मध्य की उन्हीं दिनों की निशानी है। बस उसे लेने आ जाओ। मैं ज्यादा दिनों तक नहीं रह पाऊंगी। डाक्टरों ने मुझको रक्त का कैंसर बताया है। यदि शीघ्र ही आओगे तो तुमसे शायद भेंट भी हो सके, वरना तो मेरा हा्र तुम जानते ही हो।

जेनीफर।’

साहिल ने एक ही सांस में पत्र पढ़कर समाप्त किया तो सहसा ही सकते में आ गया। सिर पकड़कर बैठ गया। जिन्दगी की भूली-बिसरी यादों की धुध्ंा अचानक ही उसकी आंखों के पर्दे पर से साफ हुई तो अतीत में लगे हुये प्यार की चोटों के ज़ख्म, उसकी नज़रों के सामने उसके जीवन की बहुत सारी गलतियों की किरचनें बनकर उड़ने लगे। वे यादें और वे पल जिनकी सुगंधों में मदहोश होकर उसने कभी अपने जीवन के सुनहरे ख्वाब सजाये थे। वह तो कभी सपने में भी नहीं सोचता था कि विदेश में महज़ अपनी शिक्षा के दौरान वह किसी विदेशी लड़की को इसकदर चाहने भी लगेगा कि उसके बगैर वह जीने की कल्पना भी नहीं कर सकता है। कहते हैं कि मानव जीवन के पहले-पहल प्यार के स्पर्श इतने नाज़ुक होते हैं कि जिन्हें इंसान कभी भी अपनी स्मृतियों से साफ नहीं कर पाता है। वह बात और है कि जि़न्दगी की व्यस्ततायें उन्हें एक बार को नज़रअंदाज जरूर कर दें, पर जब भी सोई हुई यादों को छेड़ दिया जाता है तो मनुष्य परेशान अवश्य ही होने लगता है। यह सच है कि वह विदेश में केवल अपनी इंजीनियरिंग की शिक्षा के लिये आया था, ना कि अपने प्यार की कोई कहानी लिखने। लेकिन अमरीकी शिक्षा के साथ-साथ किस्मत ने उसकी जि़न्दगी में एक कहानी और भी लिख दी थी। वह कहानी कि, जिसकी नाकाम हसरतों में वह जब कभी भी करवटें लेता तो इंसानी फितरतों का वह करारा तमाचा उसके मुंह पर पड़ता कि फिर वह कभी इस बात को दोहराना भी नहीं चाहता था। मगर आज जे़नीफर का पत्र पढ़कर वह तिलमिला जरूर गया था। इस प्रकार कि वह अपने भूले हुये अतीत की दबी हुई स्मृतियों को फिर एक बार कुरेदने पर मजबूर हो चुका था . . .’

जार्जिया के अटलांटा में स्थित जार्जिया स्टेट कॉलेज में पढ़ते हुये, अपनी गणित की कक्षा में जब भी वह आता तो स्वत: ही उसकी आंखें जे़नीफर को तलाशने लगती थीं। जे़नीफर उसकी गणित की कक्षा की सहपाठिनी थी। वह जब भी आती तो साहिल उससे बात करने को बहुत ही लालायित हो जाता। वह समय-असमय उससे बात भी करता। वह भी उसको सामान्य तरीके से उत्तर देती। बातें करतीं, पर कभी जे़नीफर की बातों से यह जाहिर नहीं होता कि वह उसमें वास्तविक रूचि भी रखती है। या उसको चाहती भी है। वास्तविक चाहत और पसंद में अन्तर साहिल को तब पता चला, जब कि उसे यह ज्ञात हुआ कि जे़नीफर अपने किसी बॉय फ्रेंड की तलाश में है। विदेशी भूमि पर पलने वाली लड़कियों और लड़कों के लिये बॉय और गर्ल फ्रेंड, शारीरिक जरूरतों की पूत्‍​र्ति है, और अपने देश में भावी जीवन साथी की तलाश . . .’ यह सच जानकर साहिल के दृष्टिकोण के सामने एक प्रश्नसूचक चिन्ह और जुड़ गया। लेकिन इतना सब कुछ जानकर भी साहिल का नज़रिया ज़ेनीफर के प्रति बदल नहीं सका। वह उसको अच्छी लगती थी। अच्छी लगती रही। वह उसकी पहली पसंद थी, और अपनी इस पसंद में वह चुपचाप अपनी चाहतों की सुगन्ध भरने की कोशिश करने लगा।

कॉलेज की पढ़ाई और अमरीकी विदेशी भूमि पर चहकती हुई लड़कियों की बेफिक्र वे जिन्दगियां कि जिनमें दायित्व और जिम्मेदारियों से पहले मौज़मस्ती और ‘फन’ जैसे अहम मुद्दे पहले अपना स्थान रखते हैं, साहिल भी खुद को अधिक दिनों तक दूर नहीं रख सका। एक मसीही समाज और मसीही परिवार में पलने और बढ़ने के बावजूद भी वह बाइबल की उस शिक्षा को याद नहीं रख सका कि जिसमें स्पष्ट कहा गया है कि विवाह पूर्व किसी भी तरह के शारीरिक सम्बन्ध धर्म, समाज और अपने परमेश्वर की नज़र में पाप हैं। पहले उसने इस मार्ग पर कदम रखने से पहले सोचा भी। रोक भी लगानी चाही, पर यह देखकर कि यहां तो सब ही ईसाई हैं। सब ही के बॉय और गर्ल फ्रेंड हैं। अधिकाशं लोग चर्च की रविवार की इबादत में अपने-अपने साथी की बगल में बैठकर, इबादत से अधिक एक दूसरे का बदन सहलाने और स्पर्श करने में ध्यान पहले देते हैं तो वह अपने घर, परिवार, समाज और देश की संस्कृति तक को ताक पर रख गया। एक, दो रहने वाले अन्य भारतियों का भी जब उसने यही रवैया देखा, और उनसे पूछा तो उनका भी यही उत्तर था कि, ‘जैसा देश, वैसा भेष।’ अपना देश छोड़कर जब वह विदेश में पढ़ने आया है तो पाश्चात्य सभ्यता और चलन को कब तक नहीं सीखेगा। फिर एक दिन ऐसे ही कक्षा की समाप्ति के बाद जब ज़ेनीफर ने उसे अचानक से अपने जन्म दिन की पार्टी का निमंत्रण दिया तो उसे लगा कि शायद उसके प्यार की वे कसकें जो उसके दिल से निकलती हुई एक इबादत की दुआओं के रूप में परमेश्वर के दरवाज़े पर इतने दिनों से दस्तकें दे रही हैं, उनका असर अब होने लगा है। ज़ेनीफर ने उसे ‘रूबी ट्यूज़ डे’ नामक रेस्टॉरेंट में आनेवाले शनिवार की शाम को उसके साथ-साथ कक्षा के अन्य सहपाठियों को भी निमंत्रण दिया था।

साहिल यह निमंत्रण पाकर अत्यधिक प्रसन्न हो गया। अंधे को क्या चाहिये था? केवल दो आंखें। पार्टी के दौरान, जे़नीफर का सामीप्य तो मिलेगा ही, साथ ही हो सकता है कि उससे उसे अपने दिल की बात कहने का सुअवसर भी मिल जाये। निश्चित समय पर साहिल ‘रूबी ट्यूज़ डे’ पहुंच गया। यह रेस्टॉरेंट उसके कॉलेज कैम्पस से अधिक दूर तो नहीं था। वह पैदल भी जा सकता था, पर उसकी एक अन्य सहपाठिनी नेफरटिटी ने अपनी कार में उसे ‘राइड’ दे दी थी। साहिल यह जानकर कि रेस्टॉरेंट तक नेफरटिटी के द्वारा उसकी ‘राइड’ का प्रबंध भी ज़ेनीफर के दिमाग की ही उपज थी, बहुत प्रसन्न हो गया।

‘रूबी ट्यूज़ डे’ में पहुंचकर साहिल ने देखा कि ज़ेनीफर की इस पार्टी के लिये रेस्टॉरेंट के प्रबंधकों ने एक अलग ही स्थान आरक्षित कर दिया था। हांलाकि, यह जन्मदिन पार्टी थी। पार्टी में आने वाले सब ही लोग कुछ न कुछ गिफ्ट आदि लेकर आये थे, लेकिन खाने आदि का प्रबन्ध ज़ेनीफर की तरफ से नहीं था। निमंत्रण में आये हुये लोगों को अपना खाना खुद ही खरीदना था, खुद ही की पसंद से ऑर्डर देना था, पर सबके साथ बैठकर खाना था। यह विदेशी चलन था। पाश्चात्य रीति-रिवाज़ों की वह परम्परा थी कि जिसमें जिस्म के दस्तूर तो एक ही होंगे, पर डॉलर में कोई भी बांट नहीं होगा। विवाह हो या न हो, तुम्हारा पैसा अलग, मेरा पैसा अलग, लेकिन शरीर का मिलन जब भी होगा तो उसमें कोई भी बंदरबांट नहीं।

सबके साथ, साहिल ने भी अपना खाना खरीदा। जो भी वह खा सकता था, वह ले लिया। सबके साथ मिल बैठ कर खाया। मनोरंजन किया। बातें की। उसे अच्छा भी बहुत लगा। अमरीका में जब से वह आया था, यह उसकी पहली पार्टी थी। जो गिफ्ट लेकर वह आया था, वह उसने ज़ेनीफर को पहले ही से दे दिया था। भारतीय पंजाबी सलवार सूट था। जिसे पाकर जे़नीफर शायद बहुत खुश भी हो गई थी। शायद इसी लिये वह अपने खाने की प्लेट हाथ में ही लिये हुये साहिल के पास आई और वहीं उसके सामने बैठ भी गई। पहले मुस्कराई और फिर जो गिफ्ट वह लाया था, उसके लिये उसे थैंक यू बोला। बाद में वह वहीं बैठ कर अपना खाना भी खाती रही और उससे बातें भी करती रही। तभी अचानक से जे़नीफर ने साहिल को देखते हुये कहा कि,

‘कंधों तक झूलते हुये तुम्हारे काले बाल कितने सुन्दर और प्यारे हैं। जब भी इन्हें कटवाओं तो मुझे दे देना।’

‘बाल क्यों? तुम मुझ ही को जो ले लो?’ जाने कैसे अवसर मिला तो साहिल के मुख से निकल गया।

‘तुम्हें ?’ जे़नीफर चौंक गई। पर जब साहिल ने गंभीरता से हां में अपना सिर हिलाया तो ज़ेनीफर पहले तो मुस्कराई, फिर अपनी प्लेट उठाई और वहां से उठते हुये बोली कि,

‘तुमने ऑफर दिया है तो सोचूंगी अवश्य ही।’ कहते हुये वह चली गई और अपने अन्य साथियों में घुलमिल गई। साहिल चुपचाप उसे देखता रहा।

पार्टी समाप्त हुई। लड़के और लड़कियां एक दूसरे से गले मिलकर सोमवार को फिर से कॉलेज में मिलने की बात कहते हुये जु़दा हुये। साहिल ने एक चिकिन सैंडविच, मीडियम ड्रिंक्स, मीडियम फ्रैंचफ्राइज़ और एक कॉफी का बिल चुकाया- 23 डालर्स में; अपने उन पैसों से, जिनकी किफायत के लिये उसके मां-बाप ने उसे अमरीका आने से बहुत पहले ही से हिदायत दे रखी थी। लेकिन साहिल की दृष्टि में इन पैसों की कीमत जे़नीफर के सामीप्य के उन कुछेक लम्हों से कहीं बहुत कम थी जो उसे ‘रूबी ट्यूज़ डे’ में उसके पास बैठकर जैसे किस्मत की लकीरों को चुराने के बाद मिले थे।

समय बदला। वक्त आगे बढ़ा। अमरीका में पतझड़ का मौसम आया। जार्जिया का तो यूं भी फॉल या पतझड़ का मौसम बहुत ही प्रसिद्ध और प्यारा होता है। वृक्षों की पत्तियों ने तरह-तरह के रंगबिंरगे अपने रंग बदले और उन्हें नंगा कर दिया। इस प्रकार कि जंगलों के गर्भ में भी दूर तक झांकते रहो और हर चीज़ आसानी से देख लो। फॉल के साथ ठंडी हवायें चली तो आकाश में उड़ने वाले बादलों के काफिले भी सिमटने लगे। मौसम के बदलते हुये रूख़ को देखते हुये छोटी-छोटी चिडि़यायें और परिन्दें धीरे-धीरे करके गायब होने लगे। कॉलेज का एक सीमेस्टर समाप्त हुआ। दो सप्ताह की छुट्टियां हुई। साहिल के मन-मस्तिष्क से इन दो सप्ताहों के लिये पढ़ाई और किताबों का कुछ बोझ हल्का हुआ। वह सोचने लगा कि इन दो सप्ताह की छुट्टियों में वह क्या करे? कुछ घटों के काम के लिये उसके पास ‘वर्क परमिट’ भी था, पर ज़ेनीफर के ख्यालों में डूबकर उसने पहले ही से कोई भी काम ढूंढ़ने की कोशिश ही नहीं की थी। और अब एन वक्त पर काम मिलने की कोई उम्मीद भी नहीं थी। सब ही की छुट्टियां हुई थीं। स्टूडेंट हर जगहों पर पहले ही से काम के लिये लगा लिये गये थे। सो साहिल अपने कॉलेज के कैम्पस में बैठा हुआ यही सब सोच रहा था कि अचानक ही उसे जे़नीफर का फोन मिला। बात हुई तो उसने बताया कि वह अकेली है, और शाम का खाना वह उसी के साथ कहीं भी खाना चाहती है। खाने का पैसा भी वही देगी। यदि वह राज़ी है तो वह उसे लेने आ जायेगी। साहिल अकेला तो था ही। उसने भी शीघ्र ही हां कर दी।

फिर जेनीफर आई और उसे एक लंबी ड्राइव पर ले जाने के पश्चात, उसने एक भारतीय रेस्टॉरेंट ‘रोटी पंजाब दी’ के सामने अपनी कार रोक दी। कार से उतरते हुये जे़नीफर ने ही बात शुरू कर दी। वह साहिल से बोली कि,

‘स्पाइसी चिकिन कढ़ी और तंदूरी रोटी का बहुत नाम सुना है, चलो आज वही खा लेते हैं।’

अंदर बैठ कर जेनीफर ने ही ऑर्डर दिया। फिर दोनों बैठ कर खाने लगे। आपस में बातें करते रहे। जे़नीफर साहिल से उसके परिवार, देश और भविष्य के काम आदि के बारे में बातें करती रही। बातों के मध्य ही उसने साहिल से पूछा,

‘तुम्हारे पास गर्ल फ्रेंड है?’

‘नहीं।’

‘क्यों ?’ साहिल सहसा ही चौंक सा गया। वह आश्चर्य से जेनीफर को देखने लगा तो वह बोली,

‘कैसे रह लेते हो तुम लोग? कितनी उम्र है तुम्हारी?’

‘छब्बीस साल।’

‘इतने बड़े हो चुके हो और अभी तक डायपर्स से ही खेल रहे हो?’

‘हमारे देश में बच्चे डायपर्स नहीं बांधते हैं।’

‘फिर क्या करते हैं?’

‘नंगे खेलते और घूमते हैं, क्योंकि ना समझदार होते हैं। जब कपड़े पहनने लगते हैं तो समझदार समझे जाते हैं।’ साहिल बोला।

‘लेकिन अमरीका में उल्टा है। जेनीफर ने उत्तर दिया तो साहिल तुरन्त ही बोला,

‘तुम्हारा मतलब?’

‘यहां पर कपड़े न पहनने वाले और उतारने वाले को समझदार समझा जाता है।’

साहिल जेनीफर की इस बात पर केवल मुस्कराकर चुप हो गया। लेकिन फिर कुछेक पलों के पश्चात उसने व्यंग सा किया। बोला,

‘काफी सभ्य संस्कृति है तुम्हारे वतन की? समझ आने पर नंगे आदम और हव्वा को खुद परमेश्वर ने उनका तन ढांकने के लिये किसी जानवर का बध करके चमड़े के कपड़े पहनाये थे, और तुम्हारा ‘कल्चर’ उनको फिर से उतारकर अपनी आधुनिक सभ्यता का बखान करता है?’

‘सभ्य से क्या मतलब है तुम्हारा? जि़न्दगी जीने और गुज़ारने और प्यार करने के लिये होती है, ना कि उम्र पूरी करने के लिये।’

‘हां जानता हूं। जल का स्वभाव केवल बहना होता है, लेकिन सवाल यह है कि हम मनुष्य उसके मार्गो में दखलअंदाजी करके, उसके बहाव को कहां से कहां मोड़ देते हैं। इंसान का जन्म लेने वाले को इस संसार में जीना तो है ही, लेकिन कैसे? इसमें अवश्य ही सन्देह हो सकता है।’

‘तुम अपने भारत देश से विदेश में इंजीनियरिंग पढ़ने आये हो। बेहतर होता कि फिलॉसिफी ही ले लेते?’ जेनीफर ने कहा तो साहिल केवल हल्के से मुस्करा गया।

साहिल और जेनीफर की बातों का सिलसिला चलता रहा। दोनों ही एक दूसरे के बारे में पूछते-जानते रहे। फिर दोनों का खाना समाप्त हुआ तो बातें भी समाप्त हो गईं। रेस्टॉरेंट में काफी देर तक वे बैठे रहे। फिर गई रात जेनीफर साहिल को उसके कैम्पस तक छोड़ने आई। जाने से पूर्व जेनीफर साहिल के करीब आई। उसे गौर से देखती रही। उसकी आंखों में गहराई से झांकती रही। फिर उसकी कमीज़ के सामने के बटनों को अपने दोनों हाथों से पकड़ती हुई उससे बोली कि,

‘साहिल एक बात पूछूं?’

‘हां।’

‘तुम मेरे बॉय फ्रैंड बनना चाहोगे?’

जेनीफर की इस बात पर साहिल ने उसे बड़ी गंभीरता से देखा। निहारा। उसकी नशीली आंखों में डूबने की कोशिश करता रहा। फिर उसने कहा कि,

‘जेनीफर, तुम्हारे बॉय फ्रैंड की जिम्मेदारियां मैं कभी भी पूरी नहीं कर सकूंगा। पर हां, मेरे जीवन साथी के रूप में यदि तुम मेरे साथ-साथ मेरी हमसफर बनना चाहती हो तो मुझे बड़ी प्रसन्नता होगी। तुम्हारा साथ मिलने पर मैं समझूंगा कि मैंने जीवन में जिस पहली लड़की को चाहा और पसंद किया, वह मुझे मेरी अमानत के रूप में मिल चुकी है।’

साहिल की इस बात को जेनीफर ने सुना तो उसे लगा कि अचानक ही जैसे किसी ने उसकी गोद में सितारों की दुनियां लाकर बंद कर दी है। उसने बगैर किसी भी संकोच के अपना सिर साहिल के सीने पर रख दिया और सपनों की दुनियां में चोरी करने के लिये प्रविष्ट हो गई, उन वस्तुओं की, जिनसे वह अपना भावी घर सजाना चाहती थी।

बाद में दिन बदले। बढ़ते हुये समय के साथ साहिल और जेनीफर की मित्रता परवान चढ़ने लगी। साहिल तो पहले ही से जेनीफर का दीवाना था, उसका थोड़ा सा साथ मिला तो वह उसके साथ अपने भावी जीवन के सपनों को साकार करने की मन ही मन योजनायें बनाने लगा। अब तो साहिल कहीं भी जाता तो जेनीफर उसके साथ होती। जेनीफर के पास अपनी कार थी, और साहिल केवल विद्यार्थी वीज़ा पर पढ़ने आया था, इसलिये जेनीफर ने भी इस बात का लाभ उठाया। वह जहां भी जाती या साहिल को कहीं भी जाना होता वह उसे अपनी कार की सवारी प्रदान कर देती। इस तरह से कॉलेज का सत्र समाप्त हुआ और दूसरा शुरू हुआ तो साहिल कॉलेज का कैम्पस छोड़कर जेनीफर के माता-पिता के घर में ही उनका एक कमरा किराये पर लेकर रहने लगा। इससे उसे बहुत लाभ भी हुआ। वह अपने रहने का पैसा बचाने लगा। जेनीफर के कारण उसके माता-पिता ने साहिल को बहुत कम पैसों में ही अपने घर का एक कमरा रहने के लिये दे दिया था। फिर होते-होते एक दिन ऐसा भी आया कि साहिल की पढ़ाई समाप्त हुई। पढ़ाई समाप्त हुई तो उसके प्रवास का वीज़ा भी समाप्त हुआ। अब उसे अपने देश वापस लौटना था। लेकिन वापस जाने से पहले उसे अपने सपनों को साकार करना था, अपने प्यार की उस कहानी को अंतिम अंजाम देना था, जिसको वह पिछले चार वर्षों से लिखता चला आ रहा था। इसलिये जाने से कुछ दिन पूर्व उसने जेनीफर से अपने मन की बात कही। वह बहुत ही गंभीर होकर बोला कि,

‘जेनी, तुम्हें तो मालुम ही है कि मेरा वीज़ा समाप्त होने में केवल मुश्किल से तीन सप्ताह ही बचे हैं। अब मुझे वापस जाना होगा। लेकिन जाने से पूर्व मैं तुमको अपने साथ ले जाना चाहता हूं।’

‘मैं तुम्हारे साथ जाकर क्या करूंगी।’ जेनीफर ने निर्लिप्त भाव से उत्तर दिया तो साहिल अचानक ही चौंक गया। चौंकना स्वभाविक ही था। इतने वर्षों से एक साथ रहने के बाद भी वह जेनीफर की आंखों में अपने प्रति अलगाव और रूख़ेपन की भावना को महसूस कर रहा था।

‘तुम तो जानती ही हो कि मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं।’

‘हां, जानती हूं।’

‘तो फिर?’ साहिल ने एक आस से जेनीफर को देखा तो वह बोली,

‘मैंने तुमको चाहा, पसंद किया, अपने जीवन का एक बहुत ही महत्वपूर्ण हिस्सा तुम्हारे सामीप्य में गुज़ारा, लेकिन मैं तुम से ही अपना विवाह करूंगी; ऐसा मैंने कभी सोचा तो था, पर बाद में मैंने अपना इरादा बदल दिया है।’

‘?’ साहिल के बदन पर अचानक ही जैसे बुलडॉज़र चढ़ गया। इस प्रकार कि वह हिल भी नहीं सका। जिस लड़की को उसने चाहा, अपनी जि़न्दगी की हसरतों से भी बढ़कर प्यार किया, जिसे गले से लगाया, जिसके बदन की रूह में उसने अपनी रूह को विलीन कर दिया, इसकदर उसकी चाहत, उसके प्यार की इबादत में सिज़दे किये कि वह उन्हें गिन भी नहीं सकता है, आज वक्त आने पर उसने कितनी आसानी से यह बात कह दी? शायद यही वह फर्क है पूर्व और पश्चिम की दूरियों में। हम जिसे प्यार, मुहब्बत और चाहतों का आदरमान देते हैं, उसे विदेशी ज़मीन पर कुछेक क्षणों का मनोरंजन मान कर ख़ाक में मिला दिया जाता है। कोई अंतर नहीं पड़ता कि जीवन के प्यार-भरे पल, बदनपरस्ती की बजह से मिले हों या फिर माहौल और वातावरण के कारण?

साहिल ने फिर जेनीफर से कुछ भी नहीं कहा। कोई शिकायत नहीं की। वह जानता था कि जेनीफर एक अमरीकन लड़की थी। उसे अपना फैसला सुनाने में जो खुशी हुई होगी, उतना फैसले के अंजाम से दुख नहीं हुआ होगा। वह उस देश की वासिनी थी जहां दिल टूटने के दुख से ही जब कोई वाकिफ नहीं है तो टूटने की आवाज़ किसे सुनाई देती? साहिल ने चुपचाप अपना सामान बांधा। जेनीफर से अंतिम बार मिला और उसके देश और धरती को सदा के लिये विदा कहकर अपने वतन वापस आ गया। फिर अब वह वहां रूक कर करता भी क्या, जहां पर उसके दिल की हसरतें स्वार्थ के अंगारों में जलकर राख़ हो चुकी थीं।

वतन वापस आकर कुछ दिन ख़ामोश रहा। मन ही मन अपने अतीत की अधूरी कहानी को बंद किया। खुद को संभाला। फिर एक दिन एक फर्म में अच्छे पद की नौकरी मिली तो वह उसमें व्यस्त हो गया। समय की चढ़ती पर्तों के आगे वह जेनीफर को भुला तो नहीं सका था, पर हां अब वह उसे याद भी नहीं करता था। सोच लिया था कि विदेश की बात विदेश में ही समाप्त हो गई और अब उसे अपने देश की धरती पर फिर एक बार अपना मार्ग चुनना था। लेकिन इसी बीच अमरीका से आने के पश्चात एक धमाका उसके जीवन में फिर से हो गया। जेनीफर का एक दिन फोन आया कि वह भारत भ्रमण के लिये आ रही है, और चाहती है कि वह उसकी इस यात्रा में आवश्यक सहायता अवश्य ही करे। साहिल ने पहले तो सोचा कि जब किसी से कोई मतलब ही नहीं रहा है तो वह फिर से क्यों बीच में पड़े। लेकिन बाद में यह सोचकर कि एक दिन था कि जब विदेश में जेनीफर ने भी उसकी हर तरह से मदद की थी तो अब उसे भी करना चाहिये। सो इस प्रकार से जेनीफर भारत आई। उससे बड़े ही गर्मजोशी के साथ मिली। उसके संग रही। घूमी-फिरी और एक दिन वापस भी चली गई। जेनीफर के वापस चले जाने के पश्चात साहिल फिर एक बार उसे कई महिनों तक याद करता रहा था। मगर जब मां की सम्मत्ति और अन्य पारिवारिक लोगों के दबाब के कारण एक दिन जब नीलम उसकी पत्नि के रूप में उसके पास आ गई तो जेनीफर की रही-बची स्मृतियां भी नीलम के अथाह प्यार के सागर में डूबकर समाप्त हो गईं। एक प्रकार से साहिल अब तक जेनीफर को बिल्कुल ही भूल चुका था। वह तो सोचता था कि वही ऐसा अभागा है जो जेनीफर को कुछ नहीं दे सका था। उसको देने के बजाय वही उससे इतनी ढेर सारी यादें ले आया था कि, चाहता तो अपना सारा जीवन ही उन स्मृतियों के सहारे काट देता। लेकिन उसका ऐसा सोचना ही भूल थी। जेनीफर को उसने जो दिया था, और जो वह उससे ले गई थी, वह फिर भी इतना मंहगा नहीं था, बल्कि जिस रूप में जेनीफर ने उसके समीप्य का बोझ उसे वापस किया था, वह उसके फर्ज़ और उत्तरदायित्व के रूप में इतना बहुमूल्य था कि जिसके आगे वह एक शब्द भी अपने मुख से नहीं निकाल सकता था। महुआ; उसकी अपनी बेटी, उसका अपना रक्त और अपनी औलाद, अपनी मां की दम तोड़ती ममता के साथ, उससे सहारा मांग रही थी . . .? सोचते-सोचते साहिल की आंखों के सामने अध्ंाकार सा छाने लगा। इस प्रकार कि वह अपना सिर मेज पर ही रख कर बड़ी देर तक बैठा रहा।

वह जानता था कि अपने जीवन में उसने जो भी कुछ बगैर सोचे-समझे किया था, उन सब बातों का अंजाम कुछ ऐसा ही होना था। इंसान किसी भी बहाव में अंनजानी राहों पर चल कर जो कुछ दिनों का चैन और खुशियां अपने अन्दर महसूस करता लेता है, उनका व्यवहार जब वास्तविकता का स्पर्श पाकर आयना दिखाता है तो किस प्रकार अपनी शक्ल भी गैर दिखने लगती है; मानव जीवन की इस कड़वी सच्चाई को यदि वह पहचान ले तो उसके जीवन में शायद वह न हो, जो ना होते हुये भी हो जाता है। जेनीफर के इनकार करने के पश्चात भी साहिल उसके सामीप्य के उन लुभावने क्षणों को लेने से इनकार नहीं कर सका, जो उसे कभी भी नहीं लेने चाहिये थे। पूर्व की संस्कृति का चमकता हुआ आयना, पश्चिमी सभ्यता की चमक के सामने किसकदर धुंधला और गंदा भी हो सकता है, विदेश आने वाले हरेक भारतीय को कम से कम इतना तो सोचना ही चाहिये।

साहिल के मन और मस्तिष्क पर कोई अतिरिक्त बोझ न पड़े, यही सोचकर नीलम जल्दी ही अपने काम से घर आ गई। जब आई तो दिन के एक बज रहे थे। आकाश में सूर्य का गोला जैसे दहकने लगा था। अक्टूबर का माह आरंभ हो चुका था, पर वातावरण में अभी तक ग्रीष्मकाल जैसी गर्मी ठहरी हुई थी। लगता था कि जैसे वह यहां से अब जाना ही नहीं चाहती थी। नीलम को घर बिल्कुल वैसा ही मिला, जैसा कि वह छोड़कर गई थी। वह सीधे ही पहले तो किचिन में गई। मेज पर सुबह का बनाया हुआ वह नाश्ता जो उसने साहिल के लिये बनाया था, उसको देख कर मुंह चिढ़ाने लगा तो वह मन ही मन बुड़बुड़ाई,

‘मैं तो पहले से जानती थी। लौटकर जब भी आऊंगी तो नाश्ता रखा ही हुआ मिलेगा।’

बाद में वह सीधे साहिल के पास कमरे में गई। वह अभी तक वैसा ही बैठा हुआ था। बैठा हुआ जैसे अभी तक सोच ही रहा था। चाय का प्याला, मेज पर रखा हुआ न जाने कब का ठंडा हो चुका था। साहिल के सामने ही, उसके लैप टॉप पर जेनीफर का खुला हुआ पत्र रखा हुआ था। नीलम देखते ही सारी परिस्थिति समझ गई। साहिल के दिल और दिमाग पर जेनीफर का पत्र पढ़कर क्या बीती होगी? वह अंदाजा लगा सकती थी। सब कुछ देखते हुये वह साहिल से बोली,

‘कहा था कि ज्यादा सोचना नहीं। अभी तक बैठे हुये ही हैं। नाश्ता भी वैसा ही रखा हुआ है। मैं यही सोचकर जल्दी आई हूं। अब चलिये, शीघ्र ही नहा लीजिये, मैं चाय का पानी चढ़ाती हूं। जब नहाकर निकलेंगे तभी खाना भी गर्म कर दूंगी।’

साहिल नीलम को यूं अचानक आया देख चौंका तो, पर कोई आश्चर्य नहीं कर सका। नीलम स्कूल में प्राधानाचार्या थी, सो जब चाहती थी, तभी आ भी जाती थी। वह चुपचाप उठा और स्नानघर में जाकर घुस गया।

फिर थोड़ी ही देर बाद दोनों दम्पत्ति मेज के सामने बैठे हुये खाना खा रहे थे। साहिल तो यूं भी बहुत ख़ामोश और चुप तब से हो चुका था, जब से उसको महुआ की सूचना मिली थी। खाने के मध्य, कभी-कभार नीलम ही आपस के मध्य बसी हुई मनहूस चुप्पी को अपनी बातों से तोड़ने का एक असफल प्रयास करती थी। वरना, साहिल तो जैसे चुप्पी साध चुका था। उसके चेहरे पर बसी हुई यह मूकता और मौन दिल में अनजाने आई हुई एक अपराधबोधता के कारण थी, या फिर अपनी अनदेखी बेटी की चिन्ता के कारण? कौन जानता था? जानते थे तो केवल इतना ही कि, ठहरे हुये शांत जल में यदि एक तिनका भी गिर जाता है तो हलचल तो मच ही जाती है। पर यहां तो जैसे सम्पूर्ण पहाड़ ही टूट कर गिर पड़ा था।

अभी नीलम और साहिल बैठे हुये खा ही रहे थे कि अचानक फोन की घंटी बड़े ज़ोरों से घनघनाई। साहिल उठने लगा तो नीलम खुद ही उठते हुये बोली,

‘मैं उठाती हूं। शायद स्कूल से आया होगा?’

नीलम ने फोन उठाया और जैसे ही उसने हलो बोला, दूसरी तरफ से किसी महिला ने अंगे्रजी भाषा में कहा कि,

‘दिस इज़ दा मैसेज़ फॉर मिस्टर साहिल, जेनीफर हैज़ बीन पास्ड अवे लास्ट नाइट, एंड नॉव हिज डॉटर महुआ इन माई टेक केयर। आई एम स्पीकिंग जेनीफर्स मदर।’

नीलम ने सुना, तो सुनकर ही रह गई। सब कुछ इतना शीघ्र घट गया? सचमुच इंसान का जीवन एक चाय के प्याले में से उड़ती हुई भाप के समान है, जो पल भर को दिखती तो है, लेकिन जब गायब हो जाती है, तो फिर दोबारा कभी भी नहीं दिखती है। ऐसे नाशमान जीवन को बचाने के लिये मनुष्य क्या कुछ नहीं करता रहता है?

वह चुपचाप फोन रखकर अपनी जगह पर आई, और फिर से खाने की कोशिश करने लगी। उसको अचानक ही चुप देख कर साहिल ने एक संशय से उससे पूछा,

‘किसका फोन था?’

‘आप महुआ को लेने अमरीका कब जायेंगे?’ साहिल की बात का उत्तर न देते हुये नीलम ने महुआ की बात की तो वह उसे गौर से देखने लगा। वह कुछ और सवाल करता, इससे पहले ही नीलम ने बात शुरू कर दी। वह बोली,

‘यदि आपके पास समय नहीं है तो फिर मैं जाती हूं। आखि़र मां हू्ं मैं उसकी।’

‘?’ नीलम ने कहा तो साहिल उसे फिर से एक संशय के साथ देखने लगा। उसे इस तरह से देखते हुये तब नीलम ने कह ही दिया। बोली,

‘जेनीफर की कल रात में मृत्यु हो चुकी है। यही बताने के लिये उसकी मां ने अभी फोन किया था।’

सुनकर साहिल फिर एक बार अपना सिर पकड़कर बैठ गया। सागर के किनारे आकर भी वह किनारा न पा सका। कैसा नसीब और नाम ‘साहिल’ लेकर वह पैदा हुआ था? रास्ते सूने थे। सब कुछ पाकर भी, उसके हाथ खाली थे।

समाप्त।


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