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तुम चलो मैं घर आती हूं

यरूशलेम।

जैतून के ऐतिहासिक पर्वत पर, जैतून के एक वृक्ष से जब आखिरी चिडि़या भी जैतून के फल को नोचकर उड़ गई तो इसके साथ ही राजा दाऊद के टॉवर से पीछे खिसकते हुये सूर्य ने भी अपना मुंह छिपा लिया। जाड़े के दिन थे और वातावरण का शव शाम की बढ़ती हुई शीत के कारण ठिठुरने लगा था। सामने और नीचे की तरफ तक किद्रोन की मशहूर ऐतिहासिक सूनी घाटी भी जैसे अब पलकें बंद करके सोने की तैयारी कर चुकी थी। जैतून के पर्वत पर बना हुआ यहूदियों का कब्रिस्थान अपनी मनहूसियत से ज्यादा अपनी ऐतिहासिक इबारतों को जैसे पेश कर देना चाहता था। एक समय था जब कि 2000 वर्ष पहिले मसीहियों का मसीह यीशु नासरी इसी पर्वत पर परमेश्वर के राज्य का सुसमाचार सुनाने के लिये मारा-मारा फिरा था। इसी खूनी पर्वत पर कभी यीशु के दगाबाज़ शिष्य ने अपने पाप के प्रायश्चित के बदले में खुद को मौत के हवाले कर दिया था। उसके ही खून और मसीह यीशु के खून के तीस चांदी के सिक्कों के द्वारा किये गये सौदे में यह पर्वत कब्रिथान के लिये मोल लिया गया था। और तब से यह स्थान कब्रिस्थान बन चुका था। सारे यरूशलेम शहर की विद्युत बत्तियां जगमगा उठी थीं, परन्तु शहर के बाजार तथा अन्य कामकाज सूर्य की अंतिम किरण के दम तोड़ने से पहिले ही बंद हो चुके थे। कारण था, यहूदियों की व्यवस्था के अनुसार उनका साप्ताहिक सब्त आरंभ हो चुका था। लेकिन अभी भी सड़कों पर पर्यटकों की गाडि़यों का आवागमन दिखाई दे जाता था। लगता था कि जैसे सब ही अतिशीघ्र सब्त के कारण अपने घर पहुंच जाना चाहते थे। चारों तरफ आवागाही जैसा आलम प्रतीत होता था, पर अपने ही ख्यालों और सोचों में गंभीरता से डूबे हुये एसाव को इन तमाम बातों से जैसे कोई भी सरोकार नहीं था। वह तो अपने ही विचारों में डूबा हुआ था। सोचों और विचारों में डूबे हुये वह कभी गतसमनी बाग में नीचे मरियम मगदलीनी के चर्च को देखता तो कभी किद्रोन की सूनी पड़ी घाटी को। देखते हुये फिर बाद में बड़े ही निराश मन से अपनी आंखें झुका भी लेता था। वह जानता है कि एक समय था जब कि वह इसी स्थान पर पिछले साल भी आया था। लेकिन तब वह अकेला नहीं था। तब उसके साथ बाशमत थी। बाशमत: एक यहूदी लड़की। बड़ी ही प्यारी और बहुत ही सीधी, पर अत्यन्त समझदार।

बाशमत से एसाव की पहली मुलाकात तब हुई थी जब कि वह यरूशलेम की इस पवित्र धरती को देखने और उस पर किताब लिखने के कारण आवश्यक जानकारी लेने के उद्देश्य से आया था। तब बाशमत उसके पास अनजाने में ही आकर पूछने लगी थी,

‘सर! आपको गाइड की आवश्यकता है? अकेले ही आये हैं या आपके साथ और भी लोग हैं? कोई अन्य गाइड आपके साथ भी है या नहीं?’

‘?’

एक अनजान, पराये देश में, एक अजनबी खुबसूरत यहूदी लड़की को यूं अचानक से अपने सामने पाकर एसाव का चौंकना और आश्चर्य करना बहुत ही स्वभाविक था। वह एक गहरी नज़र से उस यहूदी लड़की को देखते हुये बोला,

‘अब आपने एक साथ कई सवाल कर दिये हैं, मैं किसका जबाब दूं?’

‘सिर्फ एक सवाल का। जब उसका उत्तर मेरे प्रतिकूल मिल जायेगा तो फिर मैं बात आगे बढ़ाऊंगी।’ उस लड़की ने कहा तो एसाव बोला,

‘जी, कहिये?’

‘आपने अभी तक कोई गाइड तो नहीं किया है न?’

‘जी नहीं।’

‘शलोम। तो फिर बात बन गई।’

‘वह क्या?’ एसाव ने पूछा तो वह आगे बोली,

‘मेरा नाम बाशमत है और मैं बहुत अच्छी गाइड हूं। आप जैसा कहेंगे और जहां चाहेंगें मैं आपको उन सारे स्थानों पर घुमा दूंगीं। सबसे अच्छी बात है कि मेरे पास अपनी खुद की गाड़ी भी है। खर्चा, दिन भर के केवल 500 शेकेल और पेट्रोल और खाना आपका। अब बताइये आप क्या कहते हैं?’

मंजूर है। लेकिन एक शर्त है।

‘वह क्या?’ बाशमत बोली।

‘इस्राएल की इन सारी ऐतिहासिक जगहों के बारे में मैं जो भी सवाल करूं उनका सही-सही जबाब मुझे मिलना चाहिये?’

‘इस बारे में जहां तक मेरा ज्ञान है, मैं आपको सही बात ही बताऊंगी। मगर मेरी भी एक शर्त है।’

‘जी, कहिये?’

‘आप मुझसे जीज़स के बारे में ऐसे सवाल नहीं करेंगे कि, यहूदियों ने उनके बारे में ये किया, वह किया आदि।’

‘डन'।’

‘डन'।’

‘हां, आपने अपना नाम क्या बताया था?’ एसाव ने पूछा तो वह तुरन्त ही बोली,

‘बाशमत।’

‘क्या आप जानती हैं कि बाइबल में इस नाम की कौन लड़की थी और उसकी भूमिका क्या थी?’

‘मैं एक गाइड हूं। आप कैसी बातें कर रहे हैं?’

‘मेरा नाम एसाव है।’

‘?’

एसाव की इस बात पर बाशमत बड़े ही ज़ोरों से खिल-खिलाकर हंस पड़ी। इस प्रकार कि उसके सफेद मोतियों जैसे दांत आकाश में कोंधियाती हुई बिजली की कतरनों के समान चमकने लगे। फिर वह तुरन्त ही तनिक झिझकते हुये से हंसते हुये एसाव से बोली,

‘बड़े ही मज़ेदार मनुष्य हैं आप, लेकिन मैं आपकी पत्नि नहीं हूं और अभी मैंने शादी भी नहीं की है।’

‘और मैं भी बहुत सीधा इंसान हूं। याकूब जैसा चालाक नहीं।’

‘याकूब पिता तो खुदा के चुने हुये भक्त थे। मैं इसके बारे में कोई भी टिप्पणी नहीं करूंगी।’

एसाव की बाशमत के साथ इस पहली मुलाकात ने अपना वह रंग दिखाया कि परमेश्वर की इस पवित्र भूमि को दिखाते और घुमाते हुये, केवल पन्द्रह दिनों के अन्तराल में ही बाशमत एसाव के प्रति जैसे भ्रमित होने लगी। खुद एसाव भी उसके प्रति सोचने पर मजबूर होने लगा कि क्या वह इसी मकसद के लिये इस्राएल की यात्रा को आया था? किताब लिखना तो मात्र उसको इस धरती पर बुलाने का एक बहाना हो सकता है, परमेश्वर का। परमेश्वर भी उसको बाशमत से मिलाना चाहता हो शायद? हो सकता हो कि विधाता का भी शायद यही इरादा हो? यंू भी खुदा के भेदों को कौन जान सका है? प्यार-मुहब्बत, पसंद, चाहे इंसान कुछ भी अपनी मर्जी से क्यों न कर ले, पर वास्तविक जीवन-साथी का चुनाव तो परमेश्वर के यहां से ही बनकर आता है। प्रतिदिन इस्राएल की धरती पर भ्रमण करते हुये, दिन के चौबीस घंटों में से लगभग 16 घंटे बाशमत की नज़दीकी में व्यतीत करते हुये,ए एक साथ खाना खाते हुये, एसाव बाशमत में एक अजीब ही बदलाव के चिन्ह देखने लगा। उसके चेहरे के ऐसे चिन्ह कि वह उसको ऐतिहासिक जगहों के बारे में बताते हुये अचानक ही कहीं खोने सी लगी थी। तत्काल ही वह गंभीर हो जाती और बात करते हुये अचानक ही वह एसाव का हाथ थाम लेती थी।

एसाव के दिन कागज में लगी हुई आग के समान बहुत शीघ्र ही समाप्त होते जा रहे थे। उसके भारत लौटने में केवल चार दिन बाकी बचे थे। बाशमत के हिसाब से केवल दो दिन वह और उसके साथ रहती। एसाव सोचता था कि वह शायद चाहती थी कि इन दो बचे हुये दिनों में उसे एसाव से बहुत कुछ कहना होगा। लेकिन कैसे? यह एक बड़ा ही चुनौती वाला प्रश्न उसके सामने था। पिछले कितने ही वर्षों से वह गाइड का काम करती आई थी। कितने ही सुन्दर और रूपवान युवक उसके जीवन में आये थे, पर इस भारतीय पुरूष में ऐसा क्या पाया था कि वह उसके प्रति इस प्रकार से सोचने पर मजबूर हो गई। पिछले पन्द्रह दिनों से वह एसाव के साथ थी। इस बीच वह उसे एक दिन अपने घर पर भी ले जा चुकी थी। उसने एसाव को अपने मां-बाप और एक छोटी बहन और भाई से भी मिलवाया था। फिर दो दिनों में से अंतिम दिन एसाव को जब वह अंटोनियों के किले को दिखाकर बाहर आई तो चुपचाप एक एकान्त से स्थान पर बहुत उदास सी बैठ गई। एसाव ने उसे ध्यान से देखा तो बाशमत की बड़ी-बड़ी कजली आंखों में आंसू थे। ऐसाव से नहीं रहा गया तो वह उसके इस गंभीर और उदास चेहरे को देखता हुआ उससे पूछ बैठा। वह बोला,

‘बाशमत! यह क्या? तुम्हारी आंखों में आंसू? तुम ठीक तो हो न?’

‘मैं जब भी इस फोर्ट को अन्दर जाकर देखती हूं तो मेरी आंखें न जाने क्यों भर आती हैं। इसी स्थान में तो नृशंस रोमियों ने नबी यीशु को काठ में ठोंकने से पहिले, उनके बे-गुनाह होते हुये भी कितनी बेदर्दी से मारा-पीटा था।’ कहते हुये बाशमत ने अपनी आंखें पौंछी।

‘?’

लेकिन एसाव को उसकी इस बात पर घोर आश्चर्य हुआ। वह बड़ी गंभीरता से बाशमत का चेहरा देखते हुये उससे बोला,

‘लेकिन, तुम तो एक यहूदी हो। तुम्हें मसीह यीशु नासरी से क्या लेना देना? फिर उनको सलीब देने में तो ़ ़ ़।’ कहते हुये वह अचानक ही रूक गया। एसाव को अचानक ही बाशमत से किया हुआ अपना वादा याद आ गया कि वह यीशु मसीह की बाबत, यहूदियों के बारे में उससे कोई सवाल-आदि नहीं करेगा।

‘?’ बाशमत ने एसाव को कोई भी उत्तर नहीं दिया। उसने केवल उसे गंभीरता से देखा और यह कहते हुये उठ कर बोली,

‘लेट्स गो।’

वह कार में बैठी। चाबी घुमाई। इंजन को चालू किया। एसाव भी उसकी बगल में ही बैठ गया। बाशमत चुपचाप, बहुत गंभीरता से, बिना कोई भी बात किये हुये कार चलाते हुये अपने घर पर आ गई। एसाव के साथ, उसको घुमाने का अनुबन्ध आज पांच बजे समाप्त होने जा रहा था। लेकिन एसाव को आश्चर्य तब हुआ जब कि बाशमत ने अपनी कार अपने घर पर न ले जाकर, उससे करीब 300 फीट की दूरी पर लाकर रोक दी। एसाव आश्चर्य से कुछ कहता, इससे पहिले ही बाशमत उससे बोली,

‘हांलाकि, यह कोई भी ऐतिहासिक और बिबलीकल जगह तो नहीं है, पर मैं यह स्थान अपने पर्यटकों को जरूर ही निशुल्क दिखाया करती हूं। कहते हुये वह कार से उतरी और पैदल चलती हुई, लगभग पचास कदमों के बाद एक पुराने और जीर्ण होते हुये कुंये के पास आकर खड़ी हो गई। फिर उस कुयें की जगत पर बैठते हुये वह ऐसाव से बोली,

‘यह पानी से लबालब भरा हुआ कुंआ देखते हो। इसके अन्दर भूमि से निकला हुआ पानी न होकर बारिश का पानी है। यह पूरा बीस फीट गहरा है। इसे मेरे अब्बा ने पिता याकूब के कुंये की यादगार में पत्थर काटकर बनाया था। पहिले हम लोग इसी कुंये का पानी पिया करते थे, पर आधुनिक युग में संक्रमण से बचने के लिये अब इसका पानी पीना बंद कर दिया है। परमेश्वर के दिये हुये हमारे इस कनान देश के आगे हांलाकि यह छोटा सा कुंआ कोई भी मायने नहीं रखता है। लेकिन मेरे लिये यह केवल एक बात के कारण बहुत ही महत्वपूर्ण है। मैं गाइड का काम करती हूं। अगर मेरा काम आपको पसंद आया है और यदि आप दोबारा इस देश में घूमने आते हैं और फिर से मेरी गाइडिंग लेना चाहें तो मुझे कहीं अन्यत्र ढूंढ़ने के बजाय सुबह सात बजे या फिर शाम को सात बजे यहां आकर बैठ जाइये। मैं यहां पर दिन में दो बार जरूर आकर इस स्थान को देखती हूं।’

बाशमत की इस बात पर एसाव ने आश्चर्य किया। वह हंसा, थोड़ा मुस्कराया और फिर बोला,

‘आपने कोई कहानी बनाई है या फिर परी को ढूंढ़ने का रास्ता बताया है?’

‘कहानी भी बना देती, अगर आपके समान कोई लेखक होती। लेकिन अंतहीन कहानी नहीं, मेरी कहानी का कोई न कोई अंत अवश्य ही होता।’

‘आपने तो वह कहानी लिख दी है, जो मेरी तमाम कहानियों के ऊपर से निकल गई है।’

‘अच्छा! उस कहानी की पृष्ठभूमि बता सकते हैं?’ बाशमत ने पूछा।

‘लेखक अपनी कहानी की पृष्ठभूमि छपने से पहिले कभी नहीं बताता है। हां, इतना अवश्य है कि यह कहानी छपने के पश्चात आप और केवल आप ही पढ़ेंगी।’

‘?’

सुनकर बाशमत का मुख लाल हो गया। इस प्रकार कि वह झेंपते हुये कुंये में अन्दर झांकते हुये अपना प्रतिबिंब उसके ठहरे हुये पानी में देखने लगी। तभी एसाव को शरारत सूझी। उसने एक पत्थर उठाया और चुपके से कुयें के ठहरे हुये पानी में फेंक दिया। छपाक् की आवाज़ के साथ बाशमत का प्रतिबिंब पानी के अन्दर बिगड़ते हुये उसके पानी में हिचकोले लेने लगा तो बाशमत सहसा ही जैसे चीख़ सी पड़ी। वह एसाव से नाराज़ होते हुये बोली,

‘यह आपने क्या किया? कुंये के ठहरे हुये जल में किसी का बना हुआ प्रतिबिंब बिगाड़ना बहुत अशुभ होता है?’

‘सौरी। आप थोड़ी देर ठहरिये। यह अपने आप फिर से बन जायेगा।’

‘थोड़ी देर नहीं। बहुत समय तक इंतज़ार करना पड़ता है। लगभग एक नया सा जन्म दोबारा लेना पड़ता है।’

‘मैं बहुत ही अधिक शर्मिन्दा हूं। मुझे आपके कल्चर और ऐसी बातों का कोई भी आभास नहीं था।’ वह अपनी गलती मानता हुआ बोला।

बाशमत ने एसाव को कोई भी उत्तर नहीं दिया। वह बिल्कुल चुप और गंभीर बनी हुई कुंये में झांकने लगी। कुंये के अन्दर अभी भी उसकी शक्ल का प्रतिबिंब किसी भटकी हुई आत्मा के समान थरथरा रहा था।

‘अच्छा, अब आप चलेंगी भी या फिर कुयें में ही कूदने का इरादा है?’

‘?’ एसाव की इस बात पर बाशमत को जैसे चोट सी लगी। इस प्रकार कि जैसे किसी ने उसको अचानक से नोच लिया हो। उसने एक बार एसाव को अपनी बड़ी-बड़ी आंखें फैलाते हुये देखा, फिर सोचकर बोली,

‘आप क्या समझते हैं? यहूदी लड़कियां क्या बुज़दिल हुआ करती हैं? अगर जि़न्दगी ने कोई ऐसा अवसर दिया तो कूदकर भी दिखा दूंगी।’

‘नहीं, नहीं। ऐसा कभी मत करना। फिर यूं भी यहूदी व्यवस्था में आत्महत्या करना पाप ही नहीं बल्कि खुदा के हुक्म को भी तोड़ना होता है।’

‘आप ही ने छेड़ी थी ऐसी बात?’

‘अच्छा, छोड़ो इस विषय को। अब यह बताओ कि आगे का क्या कार्यक्रम है? एसाव ने विषय बदलते हुये बाशमत से पूछा।

‘मैं क्या बताऊं? आप तो आज वापस जा रहे हैं। बरना, मैंने तो सोचा था कि गाजा पट्टी के हालात सोमवार से ठीक हो रहे हैं तो मैं आपको बेतलहम अवश्य ही दिखा देती।’

‘यदि मैं यह कहूं कि मैं अभी दो सप्ताह तक नहीं जा रहा हूं तो?’

‘सच?’ बाशमत की पुतलियां अचानक ही फैल गई।

‘हां, मैंने सोचा था कि इतनी दूर से जब आया हूं तो सारा कुछ देखकर ही वापस जाऊं। इसलिये मैंने अपने वीसा की अवधि दो सप्ताह के लिये और बढ़वा ली है।’

एसाव के इस कथन पर बाशमत के शरीर में जैसे बिजलियां सी कौंध गई। इस तरह से कि वह अति शीघ्र ही कुंये की जगत पर से उछलकर खड़ी हो गई। एक दम से एसाव के करीब आई, उसे गौर से देखा, फिर बोली,

‘यह आपने बहुत अच्छा किया। अब मैं आपको यीशु की जन्म भूमि जिसे राजा दाऊद की भेड़-बकरियों की गौशाला भी कहते हैं, दिखाऊंगी और बैतन्नियाह में यीशु के परममित्र लाज़र की कब्र भी दिखा दूंगी।’

‘मेरे यूं रूकने पर आप तो ऐसे खुश हो गई हैं जैसे कि राजा सुलेमान का सारा धन आप ही को मिल गया हो?’

‘अरे, वह मिल जाता तो फिर बात ही क्या थी। चलो इसी खुशी में आज शाम का खाना मैं आपको खिलाऊंगी। तिबिरियास झील के पास, फाइव स्टार होटल में।’

तिबिरियास के मशहूर फाइव स्टार होटल से एसाव और बाशमत खाना खाकर जब बाहर आये तो बाशमत के कदम स्वत: ही झील की तरफ बढ़ गये। चलते हुये अनजाने में या जान-बूझकर, जब बाशमत ने एसाव का हाथ पकड़ लिया तो एसाव के बदन में सहसा ही एक सिहरन सी दौड़ गई। लेकिन फिर भी बाशमत की इस अप्रत्याशित हरकत का उसने कोई भी विरोध नहीं किया। वह चुपचाप उसके साथ चलता रहा। बाहर का रंगीन वातावरण देखकर एसाव का भी मन मुग्ध हो गया। सारा तिबिरियास शहर विद्युत बत्तियों के प्रकाश में जैसे स्नान कर रहा था। लेकिन इस प्रकाश से भी कहीं अधिक बढ़़कर आकाश में चंद्रमा का झाग जैसे शांत झील के ठहरे हुये जल की सतह पर उफन जाना चाहता था। चांद दूर, किसी पर्वत के पीछे से उठकर ऊपर चला आ रहा था। चांदनी इसकदर अपने भरपूर प्रभाव पर थी कि उसके प्रकाश के कारण खज़ूरों के लंबे वृक्षों की परछाइंयां लंबी होकर पूरी झील के इस पार से उस पार तक चली जाना चाहती थीं। बाशमत एसाव के साथ आकर झील के किनारे पड़ी एक बैंच पर आकर बैठ गई थी। बैठकर वह एसाव से अपने परिवार के बारे में, अपने बारे में, अपने कॉलेज के दिनों के बारे में, अपने मित्‍​र्रों के बारे में और न जाने क्या-क्या बातें करने लगी थी। एसाव चुपचाप आश्चर्य से सुनने में लगा हुआ था। आश्चर्य, इसलिये कि बाशमत अब उससे एक गाइड की तरह नहीं, बल्कि एक मित्र के समान बातें करने लगी थी।

फलस्वरूप, एसाव की इन दो सप्ताहों की बढ़ी हुई वीसा की अवधि का परिणाम यह हुआ कि वह बाशमत के लिये गंभीरता से सोचने पर विवश हो गया। बाशमत ने तो अपने हाव-भाव, अपनी हरकतों से, अपने व्यवहार से और अपने तमाम रवैयों से अपने दिल की बात जाहिर कर दी थी। अब उसे अपना फैसला देना था। वह सोचने लगा कि, क्या सचमुच में उस दिन अंटोनियो के किले को देखने के पश्चात बाशमत जैसी यहूदी लड़की की आंखों में आंसू यीशु मसीह के दुखों के कारण थे अथवा कोई अन्य बात थी? क्यों वह उसकी वीसा की अवधि बढ़ जाने की खबर पर अचानक ही खुश हो गई थी? क्यों वह कुंये के जल में अपने चेहरे के प्रतिबिंब के बिगड़ जाने पर उदास हो गई थी? तब इन सारे हालात पर सोचने और समझने के बाद एसाव ने एक दिन बाशमत से अपने दिल की बात कही। वह उसके दोनों कंधों पर अपने हाथ रखते हुये बोला,

‘बाशमत, मैं यहां आया था अपनी नई किताब के लिये तमाम ऐतिहासिक जगहों को देखने और जानने के लिये। और अब अगर परमेश्वर मुझे अपनी इस चुनी हुई पवित्र भूमि की एक चुनी हुई कौम में से मेरा जीवन साथी देता है तो इससे बढ़कर मेरे लिये अन्य दूसरी खुशी कौन सी होगी?’

‘?’ बाशमत क्या कहती। वह तो ना जाने कब से एसाव के मुख से ऐसी बात सुनने का इंतज़ार कर रही थी। उसने चुपचाप अपना सिर आंखें बंद करते हुये एसाव के सीने पर रख दिया। अपने भावी घर के उन सपनों को पूरा करने की आस में, जिन्हें वह अनजाने में ही देखने लगी थी।

भारत वापस लौटने से पहिले ज़ाहिर था कि एसाव बाशमत के माता-पिता से रिश्ते की बात करता और बाशमत तो यूं भी बहुत स्पष्ट बात करनेवाली लड़की थी, सो उसने भी पहिले ही से अपने परिवार में एसाव से विवाह करने की बात बता दी थी। इसलिये एसाव को भी उसके परिवार में, रिश्तेदारों में, अपने रिश्ते की बात करने में कोई भी कठिनाई नहीं आई। सब ही ने उसकी बात मान ली। कहीं से भी कोई नकारात्मक उत्तर और विरोधाभास जैसे लक्षण नहीं दिखे। हां, बाशमत के पिता ने एसाव से एक बात अवश्य ही खुलकर कही थी। वे उससे बोले थे,

‘हमने अपनी बेटी की पसंद और खुशी के आगे सारे रीति-रिवाज़, कायदे-कानून और सामाजिक बंधनों को एक तरफ रख दिया है। बरना, हमारी शरियत के अनुसार एक यहूदी लड़की केवल यहूदी ख़तनासहित लड़के से ही अपना रिश्ता कर सकती है। तुम एक मसीही हो, पर हम लोगों की व्यवस्था से ज्यादा दूर भी नहीं हो, इसलिये बाशमत की शादी से पहिले तुम्हें भी अपना ख़तना कराना बहुत जरूरी होगा। अगर तुम ऐसा नहीं करोगे तो हम बाशमत का हाथ तुम्हारे हाथ में नहीं दे सकेगें।’

एसाव, इस बात के लिये भी राज़ी हो गया था। और तब बाकायदा विवाह की तारीख़ निर्धारित की गई। इस तारीख के हिसाब से एसाव का विवाह बाशमत से तीन महीनों के बाद होना था। एसाव ने सोचा था कि अभी वह भारत वापस चला जाता है, फिर बाद में वह तीन महीनों के पश्चात आयेगा और बाकायदा बाशमत को ब्याह कर अपने देश ले जायेगा। तब मंगनी की कुछेक रीतियां पूरी करने के उपरान्त वह बड़ी खुशी के साथ भारत लौट गया। इस बीच बाशमत से उसकी बात कभी फोन पर तो कभी ई-मेल के द्वारा होती रही थी। एसाव वापस इस्राएल जाने और अपनी विवाह की तमाम तैयारियां करने में जुट गया। फिर जैसे-जैसे यरूशलेम जाने की तारीख नज़दीक आने लगी तो उससे ठीक एक माह पहिले ही अचानक से उसकी बात बाशमत से होना बंद हो गई। बाशमत का फोन बजता रहता, कोई भी उसको उत्तर नहीं मिलता। वह उसको लगातार ई-मेल करता तो उसका भी कोई उत्तर नहीं मिलता। फिर जब एक दिन बाशमत के फोन की घंटी भी बजना बंद हो गई तो एसाव के मन में कहीं कुछ खटकने लगा। उसके दिल में विभिन्न प्रकार के विचार कोंधने लगे। लेकिन वह अब कर भी क्या सकता था। सिवाय इसके कि वह अपनी हवाई उड़ान की तारीख का इंतजार करे और वहां पर जाकर सारी बात का पता लगाये।

तब एक दिन वह अपने दिल में तमाम तरह के अंदेशों और आशंकाओं का बोझ लादे हुये फिर एक बार इस्राएल पहुंचा। जब वह तेल अबीब के अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे से बाहर निकला तो उस समय शाम का सूरज छिपने की तैयारी कर रहा था और उसकी सोने में डूबी हुई रश्मियां जैतून के वृक्षों की कोमल पत्तियों से छन-छनकर नीचे धरती पर जाली बुन रही थीं। अक्टूबर का महीना था, इसलिये इस्राएली जैसे गर्म देश की शामें ठंडी होने लगी थीं। एसाव ने अपना सामान एक टैक्सी में रखवाया और जब वह उसमें बैठ गया तो टैक्सी वाले ने उससे सवाल किया,

‘खुदा आपका इस पाक ज़मी पर आना मुबारक करे। आपको कहां सलामत पहुंचाऊं?’

‘दबीर-ए-निंशा।’ एसाव का उत्तर बहुत छोटा था।

इस होटल में वह पहले भी ठहरा था। यहां आकर उसने अपना असबाब होटल के कमरे में रखा और अतिशीघ्र ही वह बाशमत के घर की तरफ चल दिया। पैदल ही। दिल में उसके विभिन्न प्रकार के सवाल थे। तमाम तरह की अच्छी-बुरी शंकायें थीं। वह बाशमत से जल्दी से जल्दी मिल लेना चाहता था। फिर वह जैसे ही उसके घर की तरफ जानेवाली राह पर मुड़ने को हुआ तो स्वत: ही उसके कदम उस कुंयें की तरफ मुड़ गये जहां पर वह बाशमत से आखिरी बार मिला था। शाम अब तक पूरी तरह से डूबकर आनेवाली रात्रि की स्याही को गहरा करने में जुट गई थी। कुयें के पास पहुंचते ही एसाव का दिल प्रसन्नता के कारण बल्लियों सा उछलने लग। कुंये की जगत पर बाशमत बैठी हुई जैसे उसी के आने की प्रतीक्षा में आंखें बिछाये हुये बैठी थी। एसाव कुछ कहता उससे पहिले ही बाशमत उससे बोली,

‘मुझे मालुम था कि तुम जरूर आओगे।’

एसाव कुछ कहता, इससे पहिले उसने बाशमत को अपने अंक में भरना चाहा तो वह उठ कर दूसरी तरफ खड़ी हो गई। एसाव ठगा सा ही खड़ा रह गया। तब एसाव ने बाशमत से शिकायत करना चाहा, लेकिन वह कुछ बोलता, इससे पूर्व ही वह बोली,

‘अब तुम शिकायत करोगे कि मैंने फोन क्यों नहीं उठाया? तुमसे बात क्यों नहीं की? तुम्हारे ई-मेलों का उत्तर क्यों नहीं दिया? पहिले तुम घर चलो, मैं आती हूं। तब सारी बातें कर लेंगे। एसाव सुनकर ही रह गया। उसने कुछ कहा नहीं, केवल वह बाशमत को आश्चर्य से देखने लगा तो वह फिर से बोली, कहा न कि, तुम चलो। मैं आती हूं।’

‘?’

तब एसाव बगैर कुछ भी कहे हुये बाशमत को एक संशय की नज़र देखता हुआ, कुंयें की जगत से नीचे उतरा। नीचे उतरकर उसने एक बार फिर से बाशमत को देखा, फिर सीधा उसके घर की तरफ जानेवाली पगडंडी पर मुड़ गया। चलते हुये उसने दो-तीन-बार और पीछे मुड़कर बाशमत को देखा, तो वह भी उसे अपने पीछे आते हुये सी लगी। फिर आगे जाकर पगडंडी एक कोने पर जाकर समाप्त होकर दूसरी तरफ मुड़ जाती थी। एसाव मोड़ के आने पर उसी तरफ मुड़ गया। फिर जैसे ही वह आगे चला तो सहसा ही उसे अपने पीछे आती हुई बाशमत का ध्यान आया। यह सोचते ही एसाव ने अपने पीछे देखा तो देखकर दंग रह गया। बाशमत उसके पीछे नहीं थी। वह तुरन्त ही वापस आया। आस-पास, इधर-उधर देखा, पर बाशमत उसे कहीं भी नज़र नहीं आई। एसाव हैरत से चारो तरफ देखने लगा। फिर जब वह उसे कहीं भी नहीं दिखी तो वह उसके घर की तरफ चल दिया। पचास कदमों के बाद ही बाशमत का घर आ गया। लेकिन यहां भी उसे निराशा ही हाथ लगी। बाशमत के घर के दरवाज़े पर लटका हुआ ताला जैसे उसका मुंह चढ़ाने लगा था। वह आश्चर्य से भर गया। सोचने लगा कि अभी कुछ देर पहिले ही तो उसने बाशमत को अपने कुंये की जगत पर बैठे देखा था? वह उसके पीछे-पीछे आ भी रही थी। फिर बीच मार्ग में वह अचानक ही गायब भी हो गई? अभी वह अपने घर तक वह उससे पहिले पहुंच भी नहीं सकती है? फिर घर के दरवाज़े पर यह ताला किसने डाला? एसाव एक सशोपंज में पड़ा हुआ यह सब सोच ही रहा था कि तभी उसकी बगल से निकलते हुये एक जन ने उसे संशय से देखा और फिर उसकी तरफ देखते हुये वह उससे बोला,

‘मॉफ करिये! क्या मैं जान सकता हूं कि आपको किसकी तलाश है?’

‘?’

एसाव ने एक नज़र उस अनजान व्यक्ति पर डाली। फिर उस व्यक्ति से ही उसने पूछा,

‘यह घर बाशमत नप्ताली का ही है क्या?’

‘?’

एसाव के द्वारा ऐसा पूछते ही उस व्यक्ति की आंखें अचानक ही फैल गई। इस प्रकार कि वह एसाव के चेहरे पर कुछ तलाश करने की कोशिश करने लगा। तब वह व्यक्ति एसाव के कुछ करीब आया। एक बार फिर उसने एसाव को घूरा। फिर जैसे कुछ सोचते हुये उसने कहा कि,

‘यह घर नप्ताली का ही था। पीढि़यों से नप्ताली के वंश का ही रहा था यह घर, पर अब नहीं रहा। वह इसे बेचकर कहीं चला गया है। कहां गया है, यहां किसी को भी कुछ नहीं मालुम है। हां, कुछ लोगों से यह सुनने में जरूर आया है कि वह पलस्तीन के सामरिया के किसी दूर-दराज़ गांव में गुमनामी की जि़न्दगी बिता देना चाहता है।’

‘उनकी एक लड़की भी थी जो गाइड का काम किया करती थी?’

‘तुम बाशमत की बात कर रहे हो?’

‘जी हां।’

‘वह तुम्हें जरूर मिल जायेगी। वह अपने कुंये की जगत पर बैठी होगी। तुम वहां चले जाओ। यह भी सुना है कि वह अपने किसी विदेशी प्रेमी जिसका नाम एसाव था, वापस आने की प्रतीक्षा करती है।’

‘आपको तो बहुत कुछ बाशमत और उसके परिवार के बारे में मालुम है। ज़रा खुलकर बताइये’ एसाव ने कोतुहूल होते हुये पूछा।

‘अरे भाई] सिर्फ समझने की बात है। यहूदियों के रिश्ते कहीं ख़तनाहीनों में भी हुआ करते हैं। दुनियां चाहे कितनी भी चांद-सितारों से आगे बढ़ जाये। हज़रत मूसा नबी की शरियत की तौहीन कम से कम एक यहूदी तो नहीं करेगा। बाशमत का रिश्ता उसके बाप ने उसकी मर्जी के खि़लाफ एक यहूदी लड़के से करना चाहा तो वह अपने ही कुंयें में डूब मरी। बस इतनी छोटी सी कहानी है। मानो तो बहुत बड़ी बात और न मानो तो कुछ भी नहीं।’

‘?’

सुनकर एसाव के सीने पर अचानक ही जैसे पूरा गिलबो का पहाड़ टूटकर गिर पड़ा। एक ऐसा धक्का उसे लगा कि पल भर में ही उसका समूचा जिस्म तिल-मिलाकर रह गया। क्षण भर के लिये वह अचेत सा हो गया। उससे कुछ भी कहते नहीं बना। उसकी चुप्पी और ख़ामोशी देखकर वह व्यक्ति एसाव से आखि़री बार बोला,

‘बर्खुरदार, मैं तुम्हारी ख़ामोशी देखकर समझ गया हूं कि तुम कौन हो? अब तुम्हारे लिये बहतर यही है कि तुम चुपचाप यहां से खि़सक जाओ। नहीं तो बाशमत की खुदकशी के जु़र्म में लोग तुम्हें भी पत्थरवाह करके मार डालेंगे।’ यह कहते हुये उस व्यक्ति ने एसाव को एक बार घूरकर देखा, फिर वहां से चलते बना।

एसाव के दिल पर छाले पड़ गये। यरूशलेम दोबारा आने की उसकी खुशी पल भर में ही जैसे हवा हो गई। अपनी किस्मत और अपने प्यार का इतना बुरा हश्र देखकर वह खुलकर रो भी नहीं सका। अब वह चाहे इसे अपने नसीब का बुरा परिणाम कहे या फिर तकदीर का फसाना; कितनी हसरतों से वह अपना वतन छोड़कर परमेश्वर की इस पवित्र भूमि पर अपने प्यार के फूल एकत्रित करने आया था, पर कौन जानता था कि किस्मत ने उसकी झोली में सैकड़ों छेद ही नहीं किये थे, बल्कि उसकी हसरतों से भरे प्यार के इन फूलों को कांटों में बदल दिया था। वे कांटे जिनकी चुभन और दर्द को वह किसी के साथ अब शामिल भी नहीं कर सकता था। बाशमत, उसके जीवन में एक प्यारी सी, उसके प्यार की कहानी बन कर आई थी और कभी भी न सुलझने वाली पहेली बनकर अचानक ही लुप्त भी हो गई थी। एसाव को अचानक ही याद आया वह समय और वह डूबती हुई शाम का धुंधलका, जब अनजाने में ही उसने गंभीर बैठी हुई कुयें की जगत पर से अन्दर शान्त बने अपने प्रतिबिंब को देखते हुये, उसने एक पत्थर मार कर खराब कर दिया था। सचमुच बाशमत की उस दिन की कही हुई बात किसकदर सच हो चुकी थी। पानी में बने हुये किसी के प्रतिबिंब को बिगाड़ना शुभ नहीं होता है।

‘आप क्या समझते हैं? यहूदी लड़कियां क्या बुज़दिल हुआ करती हैं? अगर जि़न्दगी ने कोई ऐसा अवसर दिया तो कूदकर भी दिखा दूंगी।’

...सोचते-सोचते ऐसाव की तन्द्रा अचानक ही टूटी तो वह वर्तमान में आ गया। जिस जगह वह बैठा हुआ था, वहां से नीचे किद्रोन की मशहूर घाटी और उससे ही सटे हुये गतसमनी के बाग में मरियम मगदलीनी की यादगार में बने हुये चर्च और दूर तक पूरा यरूशलेम शहर विद्युत बत्तियों के दूधिया प्रकाश में जगमगा रहे थे। एसाव ने अचानक ही गोल्डन डॉम से नज़र हटाकर अपने सामने देखा तो सहसा ही चौंक भी गया। सामने उस क्षेत्र का चौकीदार अपनी हरी वर्दी में उसे न जाने कब से ताके जा रहा था। एसाव उससे कुछ कहता इससे पहिले ही वह चौकीदार बोला,

‘सर। मैं जानता हूं कि आप ख्यालों में गुम हैं। लेकिन यहां बैठने का समय अब समाप्त हो चुका है। मुझे अब गेट बंद करना होेगा।’

एसाव ने कुछ नहीं कहा, केवल अपने स्थान से चुपचाप उठा और वहां से निकलकर चल दिया। उसके जीवन में प्यार की महकार बन कर आई हुई बाशमत को उससे किसने छीन लिया था? शरियत के उसूलों ने, अथवा प्यार की अवहेलना करनेवाले इंसानों ने? चलते हुये वह कोई निर्णय नहीं ले सका।

समाप्त।


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