Too late books and stories free download online pdf in Hindi

बहुत देर हुई

बहुत

देर हुई

कहानी/शरोवन

***

जिस राहेल की अचानक पलायनता ने नीरव की जिन्दगी की कहानी का वास्तविक विषय ही बदल डाला था, उसी के दोबारा मिलने पर उसने उसे नकार क्यों दिया? प्रेम की सौगात में मिले हुये पुष्प जब अर्थी के फूलों में बदल जायें तो इंसान उन्हें स्पर्श करने से डरता क्यों है?’

***

‘जमाने का चलन है कि, बहुत सी बातें अपने समय पर अच्छी नहीं लगती हैं तो कुछ बातें समय निकल जाने के पश्चात प्यारी हो जाती हैं। वर्षों पहले तुमने शांत झील के जल में एक छोटा सा कंकड़ फेंक कर उसके ठहरे हुये जल में हलचल मचा दी थी। शायद तुम्हारे लिये ऐसा करना कोई खेल हो सकता था, और मेरे लिये मेरे द्वारा की गई वह गलती कि जिसका ख़ामियाज़ा मैं न जाने कितने ही सालों तक भुगतता रहा था। मैं जलता रहा। दुनियां ने मेरा तमाशा देखा था और तुमने अपना खेल पूरा किया था। तुमने फिर कभी पीछे मुड़कर देखना भी नहीं चाहा, पर मैं तुम्हारी स्मृतियों में अपनी उस परछाई को पकड़ने की कोशिश करता रहा, जिसके वास्तविक बज़ूद का एक मजबूत सिरा तुम्हारे आंचल से जुड़ने की एक असफल चेष्टायें सदा करता रहा था। तुम्हें शायद अंदाजा भी नहीं होगा कि इतने वर्षों तक मैं हर पल खुद को किसकदर मारता रहा। अपने आपको समझाने की नाकाम कोशिशें करता रहा। बदले हुये वक्त का दस्तूर मैं तुम्हें कैसे समझाऊं? जो बात बहुत पहले अच्छी लगनी चाहिये थी वह तुम्हें उस समय अच्छी क्यों नहीं लगी थी? और जो अब मुझे ठीक नहीं लग रही है, वह तुम्हें क्यों पसंद है? अर्थी पर रखे हुये फूल कोई भी दुबारा उठाने नहीं जाता है। जो कुछ तुमने मेरे साथ किया और नियति ने जो तुम्हारे साथ किया, उसका सार यही है कि हम अपनी इस अधूरी कहानी को एक हसीन विराम देकर समाप्त कर दें। मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो और तुम कोई दूसरा जीने का बहाना ढूंढ़ लो, ठीक वैसे ही, जैसे कि कभी एक दिन तुमने मुझे ठुकराकर रोहित को ढूंढ़ लिया था। मैं यहां से अपने काम पर जा रहा हूं और मुझे आशा है कि मेरे वापस आने से पहले ही तुम मेरा तन्हा घर छोड़कर चली जाओगी। जसवंती को मैंने तुम्हारे जाने के खर्च आदि के लिये पैसे दे दिये है, यदि चाहो तो उससे ले लेना। नीरव।’

राहेल ने पत्र पढ़ कर समाप्त किया तो पढ़ते ही उसकी आंखों के सामने जैसे अध्ंकार छा गया। वर्षों पहले का, उसकी हरेक बात मानने वाला नीरव आज इतना अधिक बदल ही नहीं चुका है, बल्कि एक प्रकार से निष्ठुर भी हो गया है? राहेल सोचती ही रह गई। पत्र पढ़ने के बाद उसने उसे मोड़कर हाथ में ही पकड़ लिया और फिर एक भरपूर निराशा और हताश मन से सामने देखा। नीरव के घर में खाना आदि पकाने वाली तथा अन्य घर के काम करने वाली जसवंती उसके सामने खड़ी हुई न जाने कब से जैसे उसी को ताक सी रही थी।

‘साहब ने तुम से कुछ कहा भी था यह पत्र देते समय?’ राहेल ने एक आशा से पूछा तो जसवंती ने नहीं में अपनी गर्दन हिला दी। तब राहेल ने उससे आगे कहा कि,

‘तो फिर मेरा सामान बाध्ं दो। मैं टैक्सी के लिये फोन करती हूं।’

पथरीले टेड़े-मेढ़े बल खाते पहाड़ी मार्गों को नापते हुये टैक्सी अपनी ही गति से भागी जा रही थी। इस प्रकार कि मार्ग के किनारे खड़े हुये गगनचुंबी चिनार के वृक्ष कितनी शीघ्रता से पीछे भागते जा रहे थे कि, मन ही मन उदास, गंभीर और बहुत चुप, राहेल देखती तो थी पर समझ कुछ भी नहीं पा रही थी। उसके मस्तिष्क में फिलहाल एक ही बात थी कि कितनी शीघ्रता से वह हवाई अड्डे पहुंच जाये और उसे दिल्ली लौटने के लिये किसी हवाई जहाज में कोई सीट खाली मिल जाये। इसके साथ ही उसके मन और दिमाग में रह-रहकर वे सारी अतीत की बातें और घटनायें भी कौंध जाती थीं, जिनके साथ उसके अधूरे जिये हुये दिनों की केवल मात्र स्मृतियां ही शेष रह गई थीं। इन स्मृतियों में भूले-भटके नीरव के वे कुछेक लम्हे भी थे, जिनको आधार बनाकर उसने फिर एक बार उसके करीब आने की कोशिश की थी। सोचते हुये राहेल के मन-मस्तिष्क में उसके अतीत के जिये हुये दिन किसी चलचित्र के समान साकार होने लगे . . .’

एक ही कॉलेज और एक ही कक्षा में एक साथ पढ़ते हुये जब राहेल ने एक दिन अचानक से नीरव को टोक दिया और वह उससे बोली,

‘ये तुम अपनी नियमित शेव क्यों नहीं बनाते हो? कितनी अच्छी शक्ल है और जंगली बने फिरते हो?’

‘रोज़ाना शेव बनाऊं? किसके लिये? यहां पढ़ने के लिये आता हूं, किसी देवी के दर्शन करने तो नहीं।’

नीरव ने कहा तो राहेल ने उसे गौर से देखा। एक संशय से। फिर उससे बोली,

‘कितने सालों से तुम मेरे साथ पढ़ते आये हो? निरे बुद्धू ही हो क्या? अब यह भी क्या चिल्ला-चिल्लाकर बताना पड़ेगा तुम्हें?’

राहेल ने जिस अनोख़े अंदाज से अपने मन में नीरव के प्रति पनपते हुये प्यार की महकार का अहसास कराया था, उसे जानकर नीरव के दिल के सारे तारों में झनकार होने लगी। राहेल सुन्दर थी। परिवार और व्यवहार में भी वह सुशील थी। एक दिन नीरव को अपना घर बसाना ही था, यदि राहेल ही उसकी जीवन संगिनी बने तो बुराई ही क्या है? ऐसा सोचकर नीरव ने राहेल के प्रति न केवल अपना सोचने का ढंग ही बदला बल्कि वह उसके प्रति आसक्त भी हो गया। फिर जब नीरव ने राहेल की तरफ अपने पग बढ़ाये तो राहेल भी तितलियों समान उड़ने लगी। फिर अब राहेल को चाहिये भी क्या था? पिछले कितने ही वर्षों से वह जो सपना देख रही थी, उसे साकार होने में कोई दुविधा भी नहीं थी। केवल समय का इंतज़ार भर बाकी था। शिक्षा पूरी होते ही और अपने पैरों पर खड़े होते ही वे दोनों एक दिन सदा के लिये बंधनसूत्र में बंध जायेंगे। इन्हीं सपनों और भविष्य में आनेवाली खुशियों की झूम में कॉलेज का पूरा एक वर्ष का सत्र कब समाप्त हो गया, किसी को पता ही नहीं चला। कॉलेज गर्मी की छुट्टियों में बंद हुये तो राहेल और नीरव की शिक्षा भी समाप्त हो गई। नये वर्ष के आगमन पर राहेल नीरव से मिल कर अपने नर्स के प्रशिक्षण में चली गई और नीरव जैसा वह चाहता था कोई सरकारी नौकरी ढूंढ़ने लगा। इस बीच दोनों का संपर्क मोबाइल फोन और ई‍र्मेल के द्वारा बना रहा।

फिर काफी दिन दोनों के इसी प्रकार व्यतीत हो गये। नीरव को सरकारी प्रकाशन विभाग में बहुत अच्छी नौकरी मिल गई। अपनी इस सफलता की खबर उसने राहेल को जो उस समय बंगलौर में अपना नर्स का प्रशिक्षण ले रही थी; को भी दी तो वह भी प्रसन्नता में उसे ढेरों बधाइंया दे गई। तब नीरव अपनी नई नौकरी में व्यस्त हो गया। साथ ही वह राहेल की स्मृतियों को अपने दिल में जमा कर के अपने आने वाले सुनहले भविष्य के सपने देखने लगा। देखने लगा कि कब राहेल का प्रशिक्षण समाप्त हो और वह कब उसे बाकायदा ब्याह कर अपने उस नये फ्लैट में लाये जो उसने अपनी नौकरी के मिलने के बाद किश्तों में खरीदा था। लेकिन राहेल के प्रशिक्षण के अंतिम वर्ष के दौरान नीरव के इस सपनों के महल में उस समय शक और सन्देहों के बादल आकर चिपटने लगे जब उसे यह महसूस होने लगा कि राहेल उसमें अरूचि लेने लगी है। इस अरूचि के संकेत यही थे कि पहले राहेल के फोन आने के नंबरों में कमी हुई और फिर धीरे-धीरे उसके ई‍र्मेल आने बंद होने लगे। नीरव उसे फोन करता तो पहले तो वह उसे मिलती ही नहीं, यदि मिलती भी तो वह उससे अधिक देर बात भी नहीं करती थी। राहेल की यह अरूचि धीरे-धीरे जब उसकी अलगावता में बदलने लगी तो नीरव को तकलीफ होना बहुत सहज ही था। अलगाव और दूरियां बढ़़ाने की तमाम कोशिशों में जब राहेल आगे बढ़ने लगी तो नीरव का माथा ठनक गया। उसने सोचा कि, किसी का भी मन बदलने के लिये तीन सालों का समय और बदला हुआ स्थान बहुत महत्वपूर्ण होता है। अपने तीन वर्षों के नर्सिंग प्रशिक्षण के दौरान राहेल ने बहुत कुछ देखा होगा और बहुत कुछ पाया भी होगा। हो सकता है कि कोई अन्य उसकी दृष्टि में अब नीरव से भी आगे बाज़ी मार ले गया हो? कहां वह एक छोटे से कस्बे का रहने वाला सीधा-साधा इंसान, और कहां वैभव और रंगीनियों से भरा हुआ बंगलौर शहर? राहेल तो क्या, किसी की भी पसंद और फैसले बदलने में देर भी क्या लगती है? जब नीरव अपने पर काबू नहीं रख सका तो वह एक दिन राहेल को बगैर बताये हुये बंगलौर पहुंच गया। राहेल उसे अचानक से आये हुये यूं देख जहां अत्यंत खुश होती, उसके स्थान पर वह नीरव को खिन्न और विक्षिप्त सी नज़र आई तो नीरव का रहा-बचा सन्देह भी विश्वास में बदल गया। राहेल नये शहर में इतने दिनों तक रहते हुये बदली ही नहीं थी बल्कि जैसे फिर नये सिरे से दोबारा नये रूप में बनी थी। नीरव को समझते देर नहीं लगी कि उसकी जि़न्दगी के वे बहुत सारे सपनों के महल जिन्हें बनाकर वह एक इंतजार में अब तक उनकी परवरिश करता आ रहा था, टूट कर खंडर ही नहीं हुये हैं, बल्कि हमेशा के लिये किसी सदियों पुराने कब्रिस्तान में दफन भी हो चुके हैं। राहेल ने उसके अरमानों पर आग ही नहीं बरसाई थी, बल्कि उस आग में तेल भी डाला था। जिन रास्तों पर एक साथ चलने के लिये कभी राहेल ने उसे आमन्त्रित किया था, उस पर चलते हुये वह कब अचानक से कहीं अन्यत्र खि़सक चुकी है, नीरव को जब तक पता चलता, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। अब राहेल से अपनी हसरतों की मिन्नतें करना और फिर से अपने सपनों की भीख़ मांगने से कोई भी लाभ नहीं था। वह ही एक आस और उम्मीद में उसकी प्रतीक्षा करता रहा था, जब कि हकीकत तो यह थी कि राहेल ने तो उसे जाने कब का अपने जीवन से निकाल दिया था। क्यों राहेल ने ऐसा किया था? क्यों वह उसे एक धोख़े में रखे रही? नीरव ने समझदारी से काम लिया और राहेल से इस बारे में कुछ भी नहीं कहा। ना ही उससे कुछ भी पूछा। बस चुपचाप उसे अपना अंतिम नमस्कार करके, एक औपचरिकता को निभाकर, भारी मन से वह वापस घर आ गया।

घर आकर, ज़ाहिर था कि उसका मन टूटता। उसकी दैनिक कार्यक्रमों में उलट-फेर होने लगी। चेहरे की दाढ़ी फिर से बढ़ने लगी। उसकी समझ में आ गया जमाने का दस्तूर और प्यार का चलन। एक समय था जब उसकी दाढ़ी अकारण और लापरवाही के कारण बढ़ती थी, पर अब दिल में छिपे एक भेद और राज के कारण। वह राज जिसे केवल वही अकेला जानता और समझता था। फिर एक दिन जैसा उसने सोचा था, वही सच बन कर उसके सामने भी आ गया। राहेल किसी रोहित नामक उस लड़के से अपनी शादी करने जा रही थी जो अपनी आगे की डाक्टरी की पढ़ाई के लिये विदेश जाने वाला था। नीरव ने सुना तो उसके दिल के रहे-बचे अरमान और उम्मीदों के साये भी बगैर शोर किये हुये जल कर ख़ाक हो गये। उसके दिल में इतने दिनों से चिपकी हुई समस्त सन्देह की पर्ते राहेल के छली प्यार की हकीकत बनकर उजड़ती चली गईं। उसका दिल इसकदर टूटा कि उसने अपना शहर ही सदा के लिये छोड़ देने का फैसला कर लिया। किसी हद तक यह बहुत सच भी था कि अब उसे उस शहर में रहने से लाभ भी क्या था, जिसमें उसकी जि़न्दगी की सारी खुशियों ने तड़प-तड़प कर अपना दम तोड़ा था। नीरव ने अपना स्थानान्तरण करवाया। अपने फ्लैट को बेचा और अपनी हसरतों पर अपनी ही मृत कामनाओं का कफन डाल कर चुपचाप ननियाघाट के इस छोटे से शहर में आकर एक गुमशुदा के समान रहने लगा।

राहेल ने अपना विवाह किया। अपने इस विवाह की उसने नीरव को कोई भी खबर तक नहीं दी। फिर खबर देकर वह करती भी क्या। जिस इंसान को उसने चाह कर भी छोड़ दिया, किसी दूसरे को अपना हमसफर बना लिया, उसको कुरेदने से मतलब भी क्या था? शादी के बाद रोहित कुछ दिन राहेल के साथ रहकर विदेश चला गया। उसके वापस आने की चाह में राहेल अपनी आंखें बिछाये रही। नये जीवन साथी के साथ नये सपनों के बनाये हुये घर और अपने साजन के लौट आने की आशा में राहेल के दिन किसी किताब के वायु के द्वारा पलटने वाले पन्नों के समान सरकने लगे। दिन बदले। ऋतुयें बदलीं, मौसम बदले और तारीख़ें बढ़ती चली गई। दिन, महिने और वर्ष व्यतीत होते-होते कई साल यूं ही राहेल के इंतज़ार और झूठी आस में गुज़र गये। ना तो रोहित ही वापस आया और ना ही उसकी कोई ख़बर राहेल को मिली। राहेल ई‍र्मेल करती तो ई‍र्मेल का पता बदल जाने के कारण उसका ई‍र्मेल वहां तक पहुंचता ही नहीं। वह वापस आ जाता। वह फोन करती तो पता चलता कि रोहित के फोन नंबर पर कोई अन्य व्यक्ति रह रहा है। सो इस प्रकार जब रोहित के वापस आने की कोई ख़बर राहेल को नहीं मिली और ना ही वह वापस आया, तथा उसकी पढ़ाई का सत्र भी समाप्त हो गया तो राहेल ने उसके आने की उम्मीद भी छोड़ दी। वह समझ गई कि रोहित विदेश जाकर वहीं पर सदा बसने के कारण वह वहीं का होकर रह गया है।

राहेल के दिन इन्हीं चोट ख़ाई हुई प्यार की मार के साथ किसी तरह बीत रहे थे। अपने प्यार में मिली रूसवाई के कारण वह रोई और चिल्लाई तो नहीं थी, पर हां मन ही मन दिल में एक टीस के साथ खुद को कोसती जरूर रहती थी। ऐसे में वह कभी-कभी यह अवश्य ही सोच लेती थी कि शायद विधाता ने उसको नीरव के कारण उसके लालची और मतलबी प्यार की सज़ा दी है। काश: वह ऐसा नहीं करती और चुपचाप नीरव का हाथ थाम लेती तो शायद आज उसको अपने जीवन का यह मनहूस दिन नहीं देखना पड़ता। सो राहेल के दिन इन्हीं सोचों में उसके उदास जीवन के जैसे कभी भी न बदलने वाले काले सायों के साथ व्यतीत हो रहे थे। वह अपने काम पर जाती और चुपचाप घर वापस आती। केवल यही दिनचर्या उसके पास शेष रह गई थी। ऐसे में कभी उसे नीरव याद आता तो उसके दिल में कहीं पश्चाताप की एक गहरी लकीर उसके सारे अरमानों को काटती हुई खिंचती चली जाती। फिर एक दिन इन्हीं दिनों उसके पास रोहित का एक पत्र बड़े लिफाफे के साथ प्राप्त हुआ तो उसकी रही-बची उम्मीदों ने भी अपना आखि़री दम भी तोड़ दिया। लिफाफे के अन्दर रोहित ने विवाह विच्छेद के कागज भेजे थे और अपने एक छोटे से पत्र के साथ क्षमा पत्र। वह विदेश में रहते हुये वहीं किसी अनिवासी भारतीय लड़की से विवाह करने जा रहा था। राहेल ने पत्र पढ़ा तो चुपचाप उसकी आंखों से दो बूंद आंसू टपक कर पत्र पर चू पड़े। कौन जानता था कि उसकी आंखों से निकले हुये ये आंसू उसकी खुद की, की गई गलतियों का उपहार थे या फिर एक समय नीरव को खो देने के ग़म में? कुछ भी हो जिस बध्ंन का फैसला कई साल पहले हो चुका था, उसको अंतिम अंजाम देने में अब देर करने से लाभ भी क्या था। राहेल ने चुपचाप कागज़ों पर हस्ताक्षर करके उन्हें वापस कर दिया। अपने प्यार की सौगात में मिले इस नज़राने को रखकर वह करती भी क्या। सोच लिया कि एक दिन उसने नीरव का दिल तोड़ा था, उसे रूलाया होगा, शायद यही दुनियां बनाने वाले का चलन है कि जैसा बोया था, वैसा ही उसने काटा भी है। किसी दिन यदि उसे नीरव मिला तो वह उससे रो-रोकर क्षमा जरूर मांग लेगी।

अपनी जि़न्दगी के इन्हीं आयामों से गुज़रती हुई, कभी सुख और कभी दुख के बारे में सोचती हुई राहेल किसी तरह अपना जीवन व्यतीत करने लगी। काम से उसे छुट्टी मिलती तो घर में ही समय काटती या फिर सप्ताह के अंत में छुट्टी मिलने पर किसी सहेली के साथ सारा दिन निकाल देती। बहुत हुआ तो साल में एक बार कहीं भी किसी दूसरे शहर में घूमने चली जाती। तब इस प्रकार जब वह इस वर्ष ननियाघाट की इस मनोरम और सुन्दर झील पर इन गर्मी की छुट्टियों में अपनी छुट्टियां व्यतीत करने आई तो झील के तट पर बालू के साथ पानी में नंगे पैर अकेले ही चहल-कदमी करती किसी छाया को दूर से देखकर चौंक गई। उस छाया का चलने का ढंग और एकान्त देखकर राहेल को आश्चर्य हुआ। उसे लगा कि इस प्रकार के किसी व्यक्तित्व को वह पहले भी कहीं देख चुकी है। राहेल की उत्सुकता बढ़ी तो उसके कदम भी उसी तरफ चलने लगे। थोड़ा नज़दीक आकर वह दूर से ही उस युवक को देखने और पहचानने का प्रयास करने लगी। फिर जब पास आई तो उस युवक को देखकर उसके आश्चर्य का ठिकाना नहीं रहा। सामने उसके नीरव खड़ा था। वही चेहरा, वही अंदाज, चेहरे पर वही हल्की बढ़ी हुई दाढ़ी, पर आंखों में दुनियां-जहान की नीरवता और खालीपन? राहेल नीरव के चेहरे की ऐसी दशा देखकर मन ही मन रो पड़ी। फिर बाद में अपनी-अपनी कहने-सुनने और दुखड़ा रोने के पश्चात राहेल ने नीरव को ना जाने क्यों अकेला छोड़ना उचित नहीं समझा। हांलाकि नीरव राहेल को यूं अकेला देखकर चौंका तो था पर उसने इसे कोई गंभीरता से नहीं लिया। राहेल फिर नीरव के साथ ही उसके घर पर आ गई। अपनी समाप्त होती छुट्टियों को भी उसने अपने काम पर एक फोन करके बढ़वा लिया। फिर धीरे-धीरे राहेल को जब यह पता चला कि नीरव अभी भी नितान्त अकेला है तो वह उसमें फिर से रूचि लेने लगी। हांलाकि, राहेल ने भी अपने साथ हुई दुखद घटना और रोहित के बारे में नीरव को सब कुछ बता दिया था, पर उसे आश्चर्य इस बात का था कि नीरव ने उससे अभी तक कुछ भी नहीं कहा था। कोई शिकायत भी उससे नहीं की थी। और ना ही उससे अपने पिछले सम्बंधों के बारे में कोई जिक्र ही किया था। वह बोलती थी और वह केवल चुपचाप सुनता रहता था। लेकिन जो बदलाव राहेल ने नीरव में इतने दिनों के अन्तराल के बाद देखा था, वह यही कि, नीरव पहले के दिनों के मुताबिक कहीं अधिक ख़ामोश और चुप हो गया है। शायद ऐसा बदलाव उसके जीवन में समय के तकाज़े के रूप में आया था? जिन हालात में राहेल नीरव को छोड़कर पलायन कर गई थी, उन सबका अंजाम शायद ऐसा ही कुछ होना था।

फिर काफी दिनों तक नीरव के घर में रहते हुये एक दिन जब राहेल ने उससे अपने किये की क्षमा मांगी और अपने-उसके पुराने सम्बंधों को फिर एक बार जीवंत कर लेने की पेशकश की तो नीरव ने काफी देर तक सोचने के बाद उससे केवल यही कहा कि,

‘अभी जाकर सो जाओ। रात बहुत हो चुकी है। जो तुमने कहा है, उसके बारे में मैं तुम्हें कल बताऊंगा।’

और जब दूसरे दिन वह सोकर उठी थी तो नीरव अपने काम पर जा चुका था, तथा जसवंती ने उसका लिखा हुआ वह लिफाफा उसे पकड़ा दिया था जिसमें नीरव का उसके प्रति आखि़री फैसले का पत्र था . . .’

'बीबी जी! एयरपोर्ट आ चुका है। सामान उतार दूं?’

टैक्सी ड्राइवर ने कहा तो राहेल के विचारों की सोचती हुई श्रृंखला की कडि़यां अचानक ही टूटकर नीचे बिख़र गईं। वह अतीत से निकल कर वर्तमान में आ गई। टैक्सी से उतर कर उसने चुपचाप ड्राइवर को पैसे दिये और सूटकेस घसीटती हुई एयरपोर्ट के दरवाज़े के अन्दर प्रविृष्ट हो गई। सच ही तो था, जिस काम को दोबारा करने की वह आस लगा बैठी थी, उसके लिये तो बहुत देर हो चुकी थी। रोहित और नीरव, दोनों ही को वह खो चुकी थी। एक को लालच में और दूसरे की कद्र ना जानकर।

समाप्त.

अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED