मां लक्ष्मी की लीला Wajid Husain द्वारा आध्यात्मिक कथा में हिंदी पीडीएफ

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मां लक्ष्मी की लीला

वाजिद हुसैन सिद्दीक़ी की कहानी यह शहर कल- कारखानों के लिए जाना जाता है। वक्त की तरह लगातार जगह बदलते रहने वाले मज़दूर इस शहर के कारख़ानो के आसपास मिल जाते हैं। यह लोग बेरोज़गार है मगर उनके पास हजारों रोज़गार है। एक नौकरी से दूसरी नौकरी करके ज़िंदगी बसर करते लोगों के मुंह से यह तेरी नौकरी यह मेरी नौकरी जैसी बात बिल्कुल बेमतलब लगती है।शहर के इस हिस्से में इन्हीं मज़दूरों की एक बड़ी आबादी अपनी जिंदगी बसर करती है। इस आबादी के पास कई किस्से हैं, ज़्यादातर उदास कर देने वाले और और डरावने किस्से। इन किस्सों में परेशानियां है, तकलीफें हैं और अजीब रोंगटे खड़े कर देने वाले अनुभव भी।     एक शाम की बात है, कि अंधेरा होने के बाद एक नौजवान तकरीबन सभी कारखानों में काम मिलने की नाकाम कोशिश से निराश होकर एक तेल के कारखाने के पास सुस्ताने के लिए बैठ गया। इस कारखाने का मलिक चहल क़दमी के लिए कारख़ाने से बाहर आया तो उनको यूं देखा जैसे वह किसी मेवे में लगे हुए कीड़ा हो और मेवे को अंदर ही अंदर खोखला कर चुका हो और अब दूसरा मेवा ढूंढ रहा हो।         'क्या यहां कोई नौकरी ख़ाली है?' माधव ने विनम्रता से कहा। 'अंदर आओ', उस अधेड़ आदमी ने सूखी मेंढक की सी टर्र अपने गले से बाहर निकाली। वह उसे कारखाने में ले गया और मिट्टी का तेल बनाने की विधि दिखाई।     वहां एक टैंक में तेल के कुओं से निकला हुआ क्रूड आयल भरा हुआ था। पास में एक मशीन लगी थी जिसे मजदूर रबर के पट्टे से चला रहे थे। मशीन से निकला मिट्टी का तेल एक अंडरग्राउंड टैंक में चला जाता था। उसके बाद मज़दूर मशीन की जाली पर जमी गाद एक गड्ढे में फेंक देते थे।      मलिक ने पूछा, 'कब से काम पर आएगा?'     .जी मालिक, अभी सोच कर बताता हूं।'        माधव अपनी क़द-काठी, सुंदर चेहरे- मोहरे के साथ विशेष रूप से आकर्षक था। वह कारखाने में तेल से चुपड़े हुए मजदूरों को देखकर सोचने लगा, 'कुछ दिनों बाद वह भी इन जैसा दिखने लगेगा।' वह इसी उधेड़बुन में था, 'नौकरी करें या न करे।' तभी काठ की गेंद ने उसके माथे पर ज़ोर से हिट किया और ख़ून बहने लगा।‌‌ उसकी हल्की सी चीख़ सुनकर एक जवान लड़की भागती हुई आई। उसके हाथ में क्रिकेट बैट था। माधव समझ गया, इसने बैट से ज़ोरदार शाट लगाया होगा। लड़की ने कहा, 'क्षमा कीजिए।' और अपनी नाज़ुक हथेली घाव पर रखकर ख़ून बहने से रोक दिया। तब तक उसका छोटा भाई भी आ पहुंचा जिसके साथ वह गेंद- बल्ला खेल रही थी। लड़की ने भाई से कहा, 'सुरेश, जल्दी से दवाई का डिब्बा लेकर आ। सुरेश भागता हुआ गया और डिब्बा लेकर आ गया। लड़की ने टिंचर आयोडीन उसके घाव पर लगाने के बाद पट्टी बांध दी।     माधव ने लड़की को पहचान लिया। उसने इसी लड़की की तलाश में गलियों की ख़ाक छानी थी। उसे लगा, तलाश पूरी हो गई। उसने झट से कहा, 'मालिक, कल से काम पर आऊंगा।'   छोटी दिवाली का दिन था। वह माथे पर तिलक लगाकर गले में गेरुआं गमछा डालकर लक्ष्मी नारायण मंदिर से पूजा करके लौट रहा था। मंदिर सुनसान में बना हुआ था इसलिए गिनती के लोग ही वहां आते थे। उन आने वालों में यह लड़की भी थी। वह पूजा करके घर जा रही थी तभी दो गुंडे गन्ने के खेत से निकलकर आए और इसे खींचने लगे। 'बचाओ- बचाओ'  सुनकर वह गुंडो पर कॉल बनकर टूट पड़ा था। गुंडो के भाग जाने के बाद उसने लड़की से कहा था, 'आपको इस वीराने में बने मंदिर में नहीं आना चाहिए।' उसने कहा, 'हर एक यही सोचेगा तो मां लक्ष्मी अकेली हो जाएगीं। देखिए न, मुझे बचाने के लिए उन्होंने आपको भेजा है। माधव उसकी सादगी और मैया के प्रति अटूट श्रद्धा देखकर उस पर मर- मिटा था। उसके ख्यालों- ख्वाबों मैं वह अक्सर आती थी पर वह उसका न नाम जानता था, न ठिकाना। गलियों में बाज़ारों में वह निकलता तो उसकी आंखें उसे ढूंढती। उसे मैया पर भरोसा था, 'उन्होंने उसके दीदार कराए हैं तो वही मिलाएंगी।'        माधव का एक दोस्त था जिसका नाम मोहन था। वह एक खेत में मज़दूरी करता था। माधव उसी के साथ खेत में बनी झोपड़ी में रहता था। दिन भर मज़दूरी करने के बाद थका- मांदा पहुंचता तो दोनों मित्र मिलकर भोजन करते और अपना अर्थहीन जीवन साझा करते थे।  उस रात माधव पहुंचा तो हवा में उड़ रहा था। उसके पैर ज़मीन पर न पड़ते थे। वह खाट पर लेटा मगर नींद उसकी आंखों से कोसों दूर थी। आंख बंद करने पर उसे अपने चारों ओर पुष्पा दिखाई देती थी। लेटे-लेटे उसकी कल्पना पर पंख लग गए। मानो वह एक घोड़ी पर सवार है और उसके आगे एक डोली में सजी-धजी पुष्पा बैठी उसे कनखियों से देख रही है।     माधव को लगा, इस नौकरी ने उसके दिल की मुराद पूरी कर दी। कारखाने में पुष्पा आती तो उसे लगता जैसे तेल में कमल खिल गया। छुट्टी के बाद मज़दूर अपने घर चले जाते वह कचरे की गाद के पास बैठा न जाने क्या करता रहता था।      एक दिन मलिक की नज़र उस पर पड़ गई। उसने कहा, 'तुम यहां क्या कर रहे हो?' उसने मलिक को एक गड्ढे में भरा तेल दिखाया फिर कहा, 'मालिक यह तेल मैंने तेल की गाद से निकाला है।      अगले दिन मालिक ने सभी मज़दूरों को जमा किया। उनसे कहा, 'माधव ने कारखाने की गाद से तेल निकाल कर कारखाने को बहुत लाभ पहुंचाया है। 'मैंने उसे कारखाने का सुपरवाइजर बनाया है और यह कोट पहनाया है। तुम्हें इसके आदेश का पालन करना होगा।      पुष्पा अब अकेली मंदिर नहीं जाती थी। वह माधव को अपने साथ ले जाती थी। रास्ते में उस जगह से गुज़रती, जहां उसके साथ हादसा हुआ था, डर जाती थी। एक दिन माधव के मुंह से अनायास निकल गया, 'डरा मत करिए, तब आप अकेली थी, अब मैं आपके साथ हूं।' पुष्पा ने कहा, 'आपने अपनी जान पर खेल कर मुझे बचाया था, मुझसे ज़िक्र तक नहीं किया।' माधव ने कहा, 'स्त्री की रक्षा करना पुरूष का कर्तब्य है, इसमें शेख़ी बघारने की क्या बात?' पुष्पा ने कृतार्थ पूर्ण नज़रों से उसकी ओर देखा।      एक दिन कारखाने में हंगामा बरपा हो गया। पुष्पा का भाई सुरेश फिसलकर अंडरग्राउंड टैंक में गिर गया था। मलिक, पुष्पा और सभी कर्मचारी चीत्कार करने लगे पर तेल के टैंक में जाने की कोई भी हिम्मत नहीं जुटा पाया। माधव को इस घटना का पता चला, वह रस्सी के सहारे टैंक में कूद गया और सुरेश को निकाल लाया।      पुष्पा ने माधव से पूछा, 'आप मेरे भाई की जान बचाने के लिए टैंक में कूद गए। भाग्यवश टैंक में तेल कम था, आप बच गए। आपने ऐसा क्यों किया?'   'मैं तुमसे मोहब्बत करता हूं।' उसकी आंखों में झांकते हुए कहा।    'मोहब्बत तो मैं भी आपसे करती हूं पर… ।'      बेटे की जान बचाने के उपलक्ष में, मलिक ने माधव को सम्मानित करने के लिए एक पार्टी का आयोजन किया। उसने माधव को  माला पहनाई जिसमें लक्ष्मी जी की सोने की मूर्ति लगी थी और हिदायत दी, ' यह सदैव तुम्हारी रक्षा करेंगी, विषम परिस्थिति में भी इन्हें अपने से अलग मत करना।'      सभी लोग पार्टी का आनंद ले रहे थे। माधव पुष्पा के साथ डांस फ्लोर पर डांस करने लगा जिसे देखकर मलिक गुस्से में आग बबूला होकर बोला, 'तू अपनी औकात भूल गया। मैंने तुझे कोट पहनाया। तू मेरी बेटी के साथ डांस करने लगा।'      माधव ने शालीनता के साथ कोट उतार कर रख दिया फिर पुष्पा से कहा, 'मैं तुमसे मोहब्बत करता हूं। क्या तुम भी मुझसे मोहब्बत करती हो?'    'जी करती हूं।' पुष्पा ने धीरे से कहा।    मैं तुम्हारे योग्य होने के बाद आऊंगा, क्या तुम मेरा इंतजार करोगी?' 'जी, मरते दम तक।' पुष्पा ने रूंधै गले से कहा।     माधव चल पड़ा। छलछलाती आंखों से वह उसे जाता देखती रही।      माधव घर पहुंचा। उसने मोहन को पूरा वृतांत सुनाया फिर कहा, 'मैं इस शहर में मुंह दिखाने लायक नहीं रहा, मैं जा रहा हूं। मोहन ने कहा, 'दोस्ती का दम भरता था, जाने से पहले यह भी नहीं सोचा, मोहन तेरे बिना कैसे जिएगा?'  दोनों दोस्त अनजाने  सफर पर निकल पड़े।    विषम परिस्थितियों से जूझते हुए लंबा सफर तय करने के बाद वे एक गांव पहुंचे। वे भूख-प्यास से बेहाल थे। उस गांव में कई कुएं थे पर पीने योग्य पानी केवल एक में था, बाकी में तेल मिश्रित पानी था। कुएं का मालिक पानी बेचता था।  उनके पास पानी ख़रीदने के लिए पैसे नहीं थे। माधव की जान पर बन आई तो कुएं के मालिक ने उसे मूर्ति बेचकर पानी ख़रीदने की सलाह दी। उसे आदमी के गले में यीशु की मूर्ति थी। माधव ने मूर्ति की ओर इशारा करके कहा, 'जैसे यह तुम्हारे गाड है, इस तरह यह मेरी भगवान है। मैं जीते जी इन्हें बेच नहीं सकता। यह सुनकर वह बहुत खुश हुआ। उसने उन्हें पानी पिलाया और खाना भी खिलाया। माधव ने उससे कहा, 'मैं तेल मिश्रित पानी से तेल अलग करने में माहिर हूं। तुम मेरे साथ अपने कुओं के पानी से तेल अलग करने की पार्टनरशिप कर लो। 'पानी तुम्हारा, तेल मेरा।' वह इस पर सहमत हो गया। माधव तेल को पानी से अलग करता और मोहन बाज़ार में बेच देता था। उन्हें व्यवसाय में बहुत लाभ होने लगा। उन्होंने मोहन- माधव नाम से एक कंपनी बना ली। उनका व्यवसाय दूर-दूर तक फैल गया था।    माधव के पास इज्ज़त, दौलत, शोहरत सब कुछ थी पर उसकी आंखों में एक काली छाया सी आ जाती जो कभी-कभी उस बादल की तरह गहरी हो जाती जो फूटना चाहता हो।  एक दिन मोहन ने उससे उदासी का कारण पूछा। उसने कहा, 'मैं यहां जंजाल में फंस गया हूं, वहां पुष्पा मेरा इन्तज़ार कर रही होगी। मोहन ग़मगीन हो गया। उसने कहा, 'दोस्त तुम अपनी मोहब्बत के पास जाओ, तुम्हारी पार्टनरशिप बरक़रार रहेगी।'   माधव कारखाने पहुंचा। मालिक की हालत चिंताजनक थी। उन्होंने उससे कहा, 'लक्ष्मी जी की सौगंध, 'मैं तुम्हारे प्यार का दुश्मन नहीं हूं। मैंने तुम्हें पुष्पा के योग्य वर बनने के लिए यह किया था । मुझे विश्वास था, तुम आओगे, मैंने तुम्हारा यह कोट संभाल कर रखा है।'    मलिक ने माधव को कोट पहनाया तो उसने अपना सिर आशिर्वाद के लिए झुका दिया। उसके बाद वह उसे और अपनी बेटी को उसी मंदिर ले गए जहां उनकी मुलाकात हुई थी। उन्होंने मां लक्ष्मी की मूर्ति के सामने अपनी बेटी का हाथ उसके हाथ में दिया। 'मां लक्ष्मी की लीला' कहते समय उनका गला रूंध गया और आंखें नम हो गई। मंदिर फूलों की सुगंध से महक उठा तो लगा, मां स्वंय आशीर्वाद देने आईं हैं।348 ए, फाईक एंक्लेव, फेस 2, पीलीभीत बाइपास, बरेली (उ प्र) 2430006 मो: 90 27982074, ई मेल wajidhusain963@gmail.com