फरिश्ता Wajid Husain द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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फरिश्ता

क़ाज़ी वाजिद की कहानी - परोपकारी

मूसलाधार बारिश हो रही थी। कुछ गिरने की आवाज़ से माया जाग गई। मुझे हिलाया, 'आपने आवाज़ सुनी?' ... 'सो जा, बिल्ली होगी।' मैंने नींद में कहा। उसे चैन नहीं पड़ा, दबे पैरों उठी, पापा के कमरे में गई। पापा बिस्तर पर नहीं थे, वाशरूम का दरवाज़ा भिड़ा हुआ था। उसने पापा को पुकारा, कोई जवाब नहीं मिला। वॉशरूम में झांका, पापा गिरे पड़े थे। माया की चीख़ ने मुझे जगा दिया‌। मैंने एम्बुलेंस को काल किया पर ख़राब मौसम के कारण नहीं आई। फिर मैने जान-पहचान वालों से सम्पर्क किया परन्तु निराशा हाथ आई।
मेरे फ्लैट से कुछ दूरी पर कारखाने में काम करने वाले मज़़दूरों की बस्ती थी। उनके छोटे-छोटे घरों को हम अपार्टमेंट में रहने वाले पिंजरे कहते थे और उसमें रहने वालों को हीन दृष्टि से देखते थे। अपने बच्चों को उनके बच्चों से इस तरह बचाते थे जैसे वह कोविड के कैरियर हों‌। मैं हैल्प- हैल्प चिल्लाता हुआ पिंजरो की ओर चला गया। ... मरघट जैसे सुनसान में लंगड़ाता हुआ, एक इंसान पास आता दिखा। पास आकर वह बोला, 'क्या बात है दोस्त?'... मैंने अपनी मुश्किल बता दी वह मेरे साथ हो लिया। देखते-देखते उसने चादर का स्टे्चर बनाया जिसमें लिटाकर पापा को कार तक ले गया। ... मैं समय रहते अस्पताल पहुंच गया। आई सी यू के बाहर मैं अचरज करता रहा, कि इस इंसान को एक निहायत अजनबी की इस क़दर मदद करने की आख़िर क्या पड़ी थी- कौन है यह आदमी, देखने में मरियल सा लग रहा था। जब मैंने कार स्टार्ट की, तब लगभग रटी- रटाई शैली में यह बोलते हुए कि 'ऐसे मौसम में गाड़ी सावधानी से चलाना', अचानक मुड़ा और हाथ हिलाकर अभिवादन करता हुआ वहां से चलता बना। यह सब इतनी फुर्ती से हुआ कि मैं उसको शुक्रिया भी नहीं कह पाया।
पापा के ठीक होने के बाद उसका ख्याल मन से धीरे-धीरे निकल गया। एहसान फरामोशी का यह पहला या इकलौता मामला नहीं था, लोगों को और घटनाओं को अपने जीवन में हम अक्सर इसी तरह हमेशा भूलते आए हैं।
छुट्टी का दिन था, मैं बालकोनी मे खड़ा था‌। मुझे सामने देखकर पड़ोस वाले कह बैठे, 'ओ तुमने खबर सुनी? कंपनी ने राकेश को नौकरी से निकाल दिया।... 'राकेश? कौन राकेश, वही जो आवारा किस्म का था?'... तभी बीच से कोई आवाज़ फूटती है: 'अरे नहीं भाई, राकेश जो इलेक्ट्रशियन का काम करता था... लंबी छरहरी कद काठी, लंबे झूलते हुए बाल जिसके हैं ... और हां वह थोड़ा लंगड़ाता भी है। राकेश बेहद नेक इंसान, सबकी मदद करने वाला, खूब लगन के साथ काम करने वाला। उसके दो बच्चे हैं और बीवी की नौकरी गए अभी तीन महीने ही हुए हैं ... क़र्ज़ के लिए गिरवी अलग। ...
उनके चले जाने के बाद मैं अकेला रह गया। मुझे लगा, लोगबाग उस इंसान की चर्चा कर रहे हैं, जिसने पापा के हर्ट अटैक के समय मेरी मदद की थी। उसके बाल बड़े थे और लंगड़ाता भी था। इतने दिनों बाद आज यह एहसास हो रहा था कि जिस इंसान ने मुझे पिता की छत्र -छाया से वंचित होने से बचाया था, मैंने उससे शुक्रिया तक नहीं कहा था। मेरे मन में धुकधुकी होती है, 'क्या मुझे उससे मिलने जाना चाहिए ... कुछ बातचीत करना चाहिए?...बात ... आख़िर क्या बात करें? फिर मैं पिंजरो की ओर चल पड़ा। मेरी नज़र अचानक उसके चेहरे पर पड़ जाती है। पल भर में मुझे कपकपी छूट जाती है। इसका चेहरा तो बर्फ जैसा एकदम झक सफेद है। पूरी गृहस्ती सड़क किनारे रखी थी। पास में पत्नी एक बच्चे की उंगली पकड़े हुए खड़ी थी और दूसरा गोद में था। वह आसपास इस तरह देखता है, जैसे उसको मालूम न हो, किधर या कहां जाना है। ...
मैं पूछ बैठा, 'तुम्हें उस तूफानी रात का वाकया याद है, जब पापा को हर्ट अटैक पड़ा था।' उलझन में वह अपने दोनों हाथ आपस में रगड़ने लगता है ... 'हां ' ...'सिर हिलाकर उसने अब हामी भरी ...' अब याद आ गया।' निहायत अपनेपन से उसने पूछा, 'कैसे हैं पिताजी?'
'ठीक हैं।' मैने कहा। ...मैं इस दुविधा में था कि किस तरह मुझे इस आदमी की मदद करना चाहिए‌। इसी कशमकश में मेरे मन में एक आईडिया जन्म लेता है। फिर सोचता हूं, वह मेरे प्रस्ताव पर राज़ी होगा या नहीं, कहने में क्या जाता है। मैंने पूछा, 'कहां जाओगे?' उसने धीरे से कहा, ' पता नहीं।' मैंने बेहद दरियादिली से कहा, 'क्या करोगे यार नौकरी करके, घर का धंधा है फिर किसी के तलवे चाटने कि आख़िर ज़रूरत क्या है?' पापा गांव चले गए हैं। वह अपनी बीमारी का जि़क्र करते हुए कहते हैं, 'हर्ट अटैक के बाद एक फरिश्ता आया, जिसने मुझे वाशरूम से उठाकर कार में लिटा दिया। वह न आता तो आज मैं जीवित न होता।' वह गांव में अकेले रहते हैं। हमारा कारोबार और फारमिंग भी है। अकेले उन्हें इस सब को संभालने में दिक्कत आ रही है। क्यों न तुम गांव चले जाओ?'
... यह बोलते हुए मैं कंखियों से उसके चेहरे के भाव पढ़ने की कोशिश करने लगा। उसने पास खड़ी पत्नी से कुछ सलाह मशवरा किया। उसके चेहरे की रंगत लौटने लगी थी... धीरे-धीरे वह इतना सहज हो जाता है कि पत्नी से कहता है, 'जेठ जी के पैर छुओ।' मैंने पापा से सम्पर्क किया। वह बहुत खुश थे, 'फरिश्ता, उनके घर आ रहा था।'
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