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मन का बोझ

काज़ी ‌वाजिद की कहानी - पश्चाताप

मैं गांव से आई .ए .एस की कोचिंग के लिए शहर आया था। जिस जगह पर मैने कमरा किराए पर लिया था, वह ख़सता हाल कोठी थी। उसमें बस यही एक फायदा था कि किराया बहुत कम था। मेरे सामने वाले कमरे में एक लड़की रहती थी, वह मकान मालकिन थी, जिसको औरत कहा जाए तो ज़्यादा मुनासिब होगा। सब उसे 'रजनी' के नाम से पुकारते थे। घुंघराले बालों और लंबे कद वाली रजनी के चेहरे पर कशिश के साथ एक अजीब कशमकश भी होती थी।
उसका दरवाजा मेरे दरवाजे के बिल्कुल सामने था। कभी-कभी सीढ़ियों पर उससे सामना हो जाता था, तो उसके होंठो पर मुस्कान आ जाती, पर न जाने क्यों उसकी आंखों में उदासी और वीरानी होती। फिर भी वह मुझसे पूछती, कोई दिक्कत तो नहीं है? और उसके लिए मेरे दिल में बसी सहानुभूति में और इज़ाफा हो जाता। एक दिन मैं बैड पर लेटा कमरे की छत को घूर रहा था और कक्षा में गैर हाजिर होने का बहाना ढूंढने में व्यस्त था, जब दरवाज़ा खुला। उसने कहा,' क्या आप व्यस्त हैं?'
मैंने कहा,' जी नहीं फुर्सत में हूं। क्या बात है?' मैं उठ कर बैठ गया। उसके चेहरे पर मुझे परेशानी दिखाई दे रही थी। वह शब्दों को तोलते हुए कहनेे लगी,' मैं एक निवेदन लेकर आई हूं।' मैं बैड पर बैठे, उसे देखता रहा। रजनी वहीं दरवाजे़ पर खड़े-खड़े कहने लगी, मैं एक खत लिखवाना चाहती हूं, मेरा मतलब है कि एक पत्र' लिखवाना चाहती हूं, बस यही बात है।' उसकी आवाज़ आश्चर्यजनक रूप से बहुत ही नरम, डरी हुई और गुज़ारिश करती हुई लगी। मैं बिना कुछ कहे, उठकर लिखने वाली मेज़ के पास रखी कुर्सी पर जा बैठा। मैंने कहा, 'बैठो और लिखवाओ।' वह चुपचाप चलते हुए दूसरी कुर्सी पर सावधानी से बैठी। उसके बाद उसने मेरी और इस तरह देखा, जैसे कोई बच्चा गलती करने के पश्चात, शर्मिंदगी से देखता है। मैंने कहा,' किसके नाम लिखवाना है?' 'रजनी के नाम।' उसने कहा‌। मैं चौक गया, जब उसने उसी कोठी का पता लिखवाया, जिसमें वह रहती थी‌।
'जी कहिए, क्या लिखवाना है?'
'मेरी प्यारी रजनी,'उसने कहना शुरू किया। मेरी जान तुम में अटकी हुई है। तुमने कभी मुझे कोई स्नेह भरा संदेश नहीं भेजा। जिस दिन तुम ने मुझ से कहा था, मैं तुमसे प्यार करती हूं, 'माधव'। उस दिन से मेरे ऊपर तुम्हारे प्यार का ख़ुमार सवार हो गया था। मुझे यकीन नहीं हो रहा था, कि एक शहर में रहने वाली माडर्न लड़की, किसी गरीब गांव वाले से प्यार करती है? फक़त तुम्हारा माधव।'
माधव सुनकर मैं हैरान हो गया। माधव मेरा बड़ा भाई था जो यूनीवर्सिटी में पढ़ता था। अपनी सहपाठिन किसी अमीर लड़की से प्यार करने लगा था। फिर एक दिन उस लड़की के व्यवहार ने उसका दिल दुखाया जिससे उसने आत्महत्या कर ली थी। कहीं यह वही लड़की तो नहीं है, जिससे मेरा भाई प्यार करता था। मैंने सुन रखा था, इस तरह का पत्र तो लड़कियां अपने दिल की तसल्ली के लिए लिखवाती हैं, जब उनका प्रेमी उन्हें छोड़कर चला जाता है, या आत्महत्या कर लेता है। फिर भी मैंने संयम नहीं खोया, उसे पत्र लिखकर दे दिया। इस वाक्ये के बाद मुझे उसके चेहरे पर सुकून दिखाई दिया।
एक दिन उसने मुझ से कहा,' मैं तुम्हारी तहे दिल से शुक्रगुजार हूं। वह ख़त लिखकर तुमने मुझ पर एहसान किया है। अगर तुम्हें कभी किसी तरह की मदद की जरूरत हो, तो बिना हिचकिचाहट।'
' नहीं नही---।' मैंने कहा।
'बहुत-बहुत मेहरबानी।' उसने फिर कहा,' अगर किसी कमीज़ का बटन लगवाना हो, या सिलाई वगैरह करवाना हो---।' मैंने कहा,' ऐसा होगा तो ज़रूर कहूंगा। आप तो मेरी बड़ी बहन जैसी हैं।' उसका चेहरा खिल गया‌।
हकीकत यह थी, कि मैं बहुत बेज़ार था। यहाँ मुझे भाई की याद आती थी। अपना कमरा बदलने को तैयार था, पर दिक्कत यह थी कि दूसरा कोई कमरा खाली नहीं था। दूसरी बात यह थी कि मेरे कमरे की खिड़की से बाहर का जो हसीन नज़ारा दूर-दूर तक दिखाई देता, वह सुविधा हर कमरे में न थी।
इस कशमकश का कोई हल निकले, यही सोच विचार कर रहा था, उसी वक्त दरवाजा खुला और कोई अंदर चला आया, 'भैया तुम्हें कोई व्यस्तता तो---नहीं---है?' मैंने मुड़कर रजनी को देखा। उसके अंदाज में वही नरमी और गुजारिश थी। मैंने कहा,' नहीं---ऐसी कोई बात नहीं,---क्या काम है?'
'मैं चाहती हूं कि तुम एक और खत लिख कर दो।'
'जी, रजनी के नाम।'
'तुमने मुझे भैया कहा। मुझे लगता है, मेरी बहन से कुछ ऐसा हुआ है, जिसने उसे अपराध बौध जीवन जीने को मजबूर कर दिया है। भाई से बेझिझक कह डालो, तुम्हारा भाई समस्या का समाधान अवश्य निकाल लेगा।' उसने मेरी ओर आशा भरी नजरों से देखा फिर मुझे एक डाएरी पढ़ने को दी, जिस में लिखा था।
---वह इतनी गंभीर प्रवृत्ति का था कि किसी भी बात को सरलता से नहीं ले पाता था। उसकी मानें, तो जीवन में हंसने का मतलब समय खराब करना होता है, जो सरासर गलत है। उसने अपने ही दम पर गांव की पाठशाला से यूनिवर्सिटी तक का सफर तय किया था।‌ उसकी मंजि़ल आकाश पर विचरण करने की थी। इस सफर में उसकी साइकिल ही उसकी संगिनी थी, जो पौ फटते ही, उसे गांव से लेकर निकल पड़ती थी और समय से यूनीवर्सिटी पहुंचा देती थी। वह कक्षा में जिस बैंच पर बैठता था, उस पर पहले से बैठी लड़कियां, बोरिंग है कहती हुई खिसक जाती थी। उसे कम ही लोग माधव नाम से जानते थे। उसका किताबी कीड़ा नाम ही प्रचलित था।
---मैं उसकी सहपाठिन ‌‌थी, परंतु उससे विपरीत विचारों की थी। मैं किसी भी बात को गम्भीरता से नहीं लेती थी। मेरे दिमाग में रोमांच का कीड़ा कुलबुलाता रहता था। जो मुझे हर समय ‌रोमांच करने को उकसाता था। एक दिन मुझे कक्षा में पहुंचने में देर हो गई, लैक्चर शुरु हो चुका था। प्रोफेसर की निगाहों से बचने के लिए, मैं चुपके से ख़ाली पड़ी बैंच पर बैठ गई। उस पर माधव ध्यानमग्न मुद्रा में लैक्चर सुुन रहा था। मुझे ‌शरारत सूझी, अपने होटो को रुमाल से ढककर धीमे से कहा, 'मैं तुमसे प्यार करती हूं, 'माधव।'
---माधव को लगा, जैसे वह राजकुमार है और स्वयंवर में रजनी ने उसके गले में वरमाला डाल दी। उसकी लेक्चर सुनने की गति धीरे-धीरे कम होने लगी, सासें तेज़ चलने लगी। थोड़ी देर में वह सहज हो गया और मेरी ओर सवालिया निगाहों से देखने लगा। क्या उसने सचमुच यह शब्द कहे थे या मुझे ऐसा बस महसूस हुआ था। यह पहेली उसको परेशान कर रही थी। वे शब्द जो उसने सुने थे, सच में कहे गए थे या नहीं? यह सच है या झूठ? यह सवाल उसकी इज़्ज़त का हो गया था।
---उसके बाद से माधव मुझे अपनी अधीरता भरी उदास नजरों से ताकता था, मानो मेरे अंदर की बात भापना चाहता हो। वह इस इंतजार में था कि मैं उससे कोई बात करूं। वह मेरे चेहरे को ध्यान से देखता था और उसके चेहरे पर यह कैसे भाव है, मैं देखती थी, लेकिन वह अपने ख्यालों को, अपनी भावनाओं को, शब्दों के रूप में प्रकट नहीं कर पाता। वह झेप रहा है, वह डर रहा है, उसकी अपनी ही खुशी‌‌‌‌‌‌‌ उसे तंग कर रही है। वह चकित है? यह शब्द किसने कहे थे? शायद इसी ने? या हो सकता है, मुझे बस ऐसा लगा हो, बस ऐसे ही वह शब्द सुनाई दिए हो!
मुझे उस पर तरस आ रहा था। बेचारा लड़का! वह इस सच्चाई से अनभिज्ञ है। जल्द ही माधव पर इन शब्दों का नशा- सा हो जाता है, वैसा ही नशा जैसे शराब या मार्फिन का होता है। वह इन शब्दों की ख़ुमारी में रहने लगता ‌या मुझे ताकता रहता था‌।
---एक दिन मैं उसे कक्षा में नजर नहीं आई। मैं तो अक्सर पीरियड बंक कर देती थी। वह मुझे ढूंढते हुए गर्ल्स कॉमन रूम तक चला आया। उसकी आंखें मुझे ही तलाश ‌रहीं थी। वह धीमे-धीमे क़दमों ‌‌ से चल रहा था और इंतजार कर रहा था कि शायद मैं ‌‌‌‌‌उससे कुछ कहूंगी। मैं यह नोट ‌‌‌कर रही थी कि उसका ‌‌‌दिल कैसा तड़प रहा है ‌‌‌लेकिन वह चुप रहने की कोशिश कर रहा है और अपने मन की बात को अपने दिल ही में रखे हुए हैं।
---फिर कुछ ही समय बाद मार्च का महीना आ गया।
आज कक्षा का आखि़री दिन था। कल से यूनिवर्सिटी की‌‌ ‌‌‌ छुट्टियां शुरू हो रही थी। वह मेरी कार के पास, साईकिल लिए खड़ा था। मैंने कार स्टार्ट की, वह मेरे पास आया। 'आप ने मुझ से कुछ‌ कहा था।' वह बोला। मैंने अंजान बनते हुए कहा,' कब' मैं आपसे मिली ही नहीं हूं।' उसका चेहरा और उदास हो गया, आंख में आंसू छलकने लगे।
---अचानक न जाने उसे क्या हुआ! उसने साइकिल दौड़ा दी। मैं स्तब्ध रह गई, जब वह मेरी कार से आगे निकल गया।
--- परीक्षा में उसकी सीट, मेरी सीट से कुछ फासले पर थी, परंतु खाली पड़ी थी। मैं बार-बार उसकी सीट की ओर देख रही थी। निरीक्षक मेरी बेचैनी भाप गए। उन्होंने मुझसे कहा,' माधव नहीं आया, मुझे चिंता सता रही है, कुछ दिनों से बहुत तनाव में था। लगता है, किसी विषम परिस्थिति से गुज़र रहा है। हे भगवान! किसी अनर्थ की सूचना ना मिले।'
---उनके शब्दों ने मुझे बेचैन कर दिया था। इस गिल्ट ने मुझे जीवनभर चैन नहीं लेने दिया। ---और मैं यह नहीं समझ पा रही थी कि मैंने उससे यह शब्द क्यों कहे थे, किसलिए मैंने उसके साथ ऐसा ओछा मज़ाक किया था?'
---मेरा शक सही निकला, सहपाठिन का रोमांच मेरे भाई की आत्महत्या का कारण था। मेरा भाई पढ़ाकू था, हंसी-मज़ाक से अनभिज्ञ था। कोरे काग़ज़ जैसे उसके मन पर, रजनी ने नादानी में अपना नाम लिखा था, जिसे फिर वह भी न मिटा पाई, फलस्वरुप भईया‌ ने जान दे दी।
हालांकि रजनी की गलती तो बचपना थी, परंतु उसे बहुत बड़ी सजा मिल रही थी, जिसे देखकर मेरा मन भर आता था। मैंने उसे इस व्यथा से निकालने का निर्णय लिया। अत: मैंने बात को हंसी में लेते हुए कहा,' दीदी आपने डाएरी में एक बात का जि़क्र नहीं किया, वह उचक उचक कर, रिक्शा वालों के स्टाइल में साइकिल चलाता था।
उसने उतावली होकर कहा,' तुम्हें कैसे पता?'
' वह मेरे गांव में रहता है और मेरा प्रेरणा ‌‌‌‌‌‌‌स्रोत है।'
' वह ठीक तो है?'उसने पूछा।
'यह तो मुझे नहीं पता, परंतु इतना मालूम है वह पढ़ाई छोड़ कर किसी अच्छी नौकरी में निकल गया था‌। सुना है अब तो उसकी शादी भी हो गई, एक बच्चे का बाप भी बन गया है।' रजनी का चेहरा खिल गया, ऐसा लगा, उसके मन का बोझ उतर गया।
मैंने उससे कहा, 'दीदी एक बात और कहूं। मेरी नौकरी लग गई है, मैं इसी समय जा रहा हूं।' मुझ़े चिन्ता थी, कहीं मेरे रूकने से इसे सच्चाई का पता न लग जाए। मैंने उसके पांव छूकर आशीर्वाद लिया। वह मेरी भाभी तो नहीं बन सकी थी, परंतु उसने मेरे भाई के लिए बहुत आंसू बहाए थे।
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