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परी का साया

क़ाज़ी वाजिद की कहानी -प्रेमकथा
‌‌‌ विडंबना है यदि फौज के स्कूल में पढ़ने वाला बच्चा, माला के जंगल के सरकारी स्कूल में पढ़ने को विवश हो। बेचारा सतनाम। पापा फौज में मेजर थे, युद्ध में जाना पड़ा। मम्मी उसे लेकर दादा के फार्म हाउस चली आई।
.... मैं स्कूल जाता तो था, पर बच्चों के साथ नहीं बैठता, जो झुंड बनाकर ज़मीन पर बैठते थे, अकेला जंगल और खेतों में घूमता रहता था।
स्कूल में एक लड़की थी, नाम था परी, जितनी सुंदर थी उतनी ही भोली थी। जिधर से भी गुज़र जाती, आकर्षण का केंद्र बन जाती। उसने मुझसे कहा, 'तुझे पता है, खेतों में भेड़िया रहता है।' उसने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे अपने पास बैठा लिया। फिर मेरी उसकी ऐसी दोस्ती हुई, हम दोनों साथ पढ़ते, खाते और खेलते थे। एक दिन पता ही नहीं चला, कब छुट्टी हो गयी, खेल चलता रहा। तभी मुझे भेड़िए की आवाज़ सुनाई दी। भेड़िया कहकर चिल्लाया, उसका हाथ पकड़ा और घर की ओर भागने लगा।
युद्ध समाप्त हो चुका था। पापा को परिवार को वापस लाने के लिए एक दिन की छुट्टी मिली थी। मोबाइल के सिगनल न मिलने के कारण वह बिना सूचित किए हमें लेने आ गए। मुझे घर पहुंचने में देर हो गई, तो वह स्कूल की ओर चल पड़े।
रास्ते में मुझे पापा दिखे, मैं सकपका गया ‌‌‌जैसे कुछ बुरा कर रहा हूं‌। मैंने उसका हाथ छोड़ दिया और पापा के पास चला गया। उन्होंने कहा, 'मेरे बच्चे, मैं तुझे लेने आया हूं।'... गाड़ी छूटने का समय हो गया था, आनन-फानन में वह मुझे लेकर ट्रैक्टर में बैठ गए, मां पहले से बैठी हुई थी। तभी मुझे परी की याद आई, जिसका हाथ मैने छोड़ दिया था। मैंने मुड़कर देखा, वीरान सड़क पर पसरा सन्नाटा किसी अनहोनी की गाथा सुना रहा था। मुझे लगा मानो मैं उस पक्षी की तरह हूं,जो सुदूर नीले आसमान में बादलों के बीच उड़ रहा था और पल भर में उसके जोड़ीदार को बाज़ झपट कर ले गया। मेरी आंसुओं से तर कमीज ने मम्मी के मन को भिगो दिया। उन्होंने पापा से कहा, हड़बड़ी में मुंडा दादा-दादी के गले नहीं लग पाया, रो-रो कर कमीज़ तर कर ली। पापा कुछ समझ नहीं पाए, वह तो ड्राइवर से तेज़ चलने की रट लगाए हुए थे।...मेरी एकाग्रता गाड़ी की सीटी की आवाज से टूटी, जिसने रफ्तार पकड़ ली थी। मां ने मुझे पराठा खाने को दिया, जो मुझ से खाया नहीं गया। उन्होंने मुझे बर्थ पर लिटा दिया। अर्ध निद्रा हालत में वह मुझे फिर से दिखाई दी ‌‌और परी कहकर मेरी चीख़ निकली। बुख़ार से तपते शरीर ने मम्मी-पापा की चिंता बढ़ा दी। उन्होंने भीगी तोलिया से बुख़ार को ‍‌बेकाबू होने से रोका। मां मुझे सुलाने का असफल प्रयास करने लगी। सोते समय वह मुझे ‌‌‌‌‌‌सिखों के शौर्य की गाथाएं सुनाती थी। मुझे लगा कहानियां झूठी थी, या मेरे सिख होने में संदेह है। सिख वह नहीं करता, जो मैंने किया था। परी ने जो मेरे साथ किया था, वह कोई ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌अपना हीं करता और मैंने जो उसके साथ किया वह कोई ग़ैर भी नहीं करता, भेड़िया पीछे था और मैंने उसका हाथ छोड़ दिया। परंतु उसने मेरे दिल में जो घर बना लिया था, उसमें वह हमेशा रहेगी। धीरे-धीरे मेरा शरीर शिथिल पड़ने लगा, पापा मुझे सीधे स्टेशन से अस्पताल ले गए। मैंने डॉक्टर को कहते सुना, 'बच्चे के दिल पर दहशत बैठ गई है, उसे दूर करने की कोशिश करें।' जो वे ‌‌ निरंतर करते रहे, परंतु उनके सारे ‌प्रयास विफल रहे। अर्ध निद्रा में ‌‌‌‌‌‌‌‌परी कहकर जाग जाना, मेरी नियति बन चुकी थी और मैने इसी के साथ जीना सीख लिया था। मां शुरू में समझती थी, मेरे ऊपर किसी परी का साया है ‌‌‌‌‌‌‌‌फिर उसे लगने लगा था कि परी कोई लड़की है।
मैं इस जनवरी में 21 बरस का हो चुका था, कनाडा मैं इंजीनयर था, लिहाज़ा मां अपने बेटे के लिए दिनभर बहू लाने के ख्वाब देखती। उसका बेटा आकर्षक‌‌‍‌ लिबास में ‌‌‌जब भी शाम को घूमने निकलता तो उसका गोरा रंग, ‌‌‌घुंघराले बाल और कद-काठी देखकर जवान लड़कियां दिल थाम कर रह जाती और खिड़कियों के पीछे से ताकती। अकूत संपत्ति का अकेला वारिस था, घर का कामकाज देखने के लिए अनेको काम वाले थे। एक दिन मां ने कर्नल की और सिविल कांट्रेक्टर की बेटियों को मेरे इर्द गिर्द मंडराते देखकर पूछा, 'तुझे यह कैसी लगती है?' मेरा उत्तर था,'कोका कोला की ‌‌‌‌‌‌‌तरह शीतल पेय है, परंतु एक दाना नमक का डलते ही तूफान मचा देती हैं ‌‌‌‌‌‌‌‌‌और दूसरी अंडे की तरह क्रेट में अच्छी लगती है, ज़रा सी आंच में आमलेट ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌ बन जाती है। मां ने कहा, 'मैं नहीं चाहती, कोई मेरे सतनाम को सताए, अगर औरत रूखी और बदजु़बान होती है, तो पति को ही ज़िंदगी भर का दुख झेलना पड़ता है। फिर मां ने हवा में तीर चलाया, 'परी कैसी है?' ओर मेरे मुंह से अनायास निकला, 'सुन्दर और शीतल।' फिर वह मेरे आगे आंचल फैलाकर बोली, 'पुत्तर ‌तुझे रब दा वास्ता, अपना गम दुखियारी मां की झोली में डाल दे।'
फिर मैंने मां को सब कुछ बता दिया। मां ने कहा, 'पुत्तर मैं उसे कहीं से भी खोज लुंगी।' मैंने कहा, 'मां ऐसा मत करना, मै इस भ्रम में हूं, परी जीवित है, यदि भ्रम टूटा तो जी नहीं सकुंगा।'...मां पर पक्की तरह से परी को ढूंढने का भूत सवार था। उसने शानदार कपड़े छोडकर सादे कपड़े पहने और महंगे दुपट्टे की जगह मामूली ओढ़नी से अपना चेहरा ढका और अपने को परी की मौसी बताकर बस्ती में पूछती फिरी। वो मिल गई। बात-चीत से मां को यकीन हो गया, यह वही लड़की है, जिसकी तलाश में वह आई है। लड़की घर पर अकेली थी, वह समझ चुकी थी, यह मौसी नहीं हैैं, गलतफहमी में हैं। फिर भी उसने उनका आदर सत्कार किया। फिर मां ने जानकर दिल दुखाने वाली बात करी। लड़की गंभीर हो उठी, उसी शांत भाव से उत्तर दिया, 'सब कुछ ईश्वर की कृपा से होता हे।'मां ने लड़की को परख लिया था। 'मै कुछ कहना चाहती हूं!' मां ने लड़की से कहा। 'आप क्या कहना चाहती है?' घबराकर ‍लड़की ने स्टूल पर बैठते हुए कहा। 'मैं तुम्हारी मौसी नहीं हूं, सरपंच शेर सिंह की बहू हूं। मेरा बेटा सतनाम तुम्हारे साथ स्कूल में पढ़ता था। वह तुम्हें बहुत प्यार करता है। मैं तुम्हें अपनी बहू बनाना चाहती हूं।' लड़की का रंग खड़िया की तरह सफेद हो गया। घबराकर बाेली, 'मैं कुछ समझी नहींं?' 'तुम मेरी बहू बनोगी, मां ने प्यार से कहा। 'मैने अब तक जो लड़कियां देखी, वे असभ्य और खुरदुरे पायदान जैसी थीं। तुम रेशम-सी कोमल हो। तुम ही मेरे सतनाम के लिए सही लड़की हो। अपना सिर झुकाओ। बेटी मैं तुम्हें यह माला पहनाना चाहती हूं। यह तुम्हारी सगाई की निशानी है।'
लड़की के माता-पिता को जब सगाई की खबर मिली तो वह भागते हुए घर आए। वातावरण में बधाई और खुशी के संदेश गूंजने लगे। मां ने अपने बेटे की शादी खू़ब धूम-धाम सेे संपन्न की।दादा-दादी और म्ममी-पापा ने जी भरके नृत्य किया। मेरी खुशियां लौट आईं।
348 ए, फाइक एंक्लेव, फेस 2, पीलीभीत बाईपास, बरेली (उ प्र) मो: 9027982074, ई मेल wajidhusain963@gmail.com


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