कोठे वाली Wajid Husain द्वारा प्रेरक कथा में हिंदी पीडीएफ

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कोठे वाली

वाजिद हुसैन सिद्दीकी की कहानीअंधेरा होते ही युवक ने कार सुनसान में बने ढाबे पर रोकी। देसी शराब की बोतल गटकने के बाद पकौड़ी खाकर मुंह का कसैलापन दूर किया। फिर फर्राटा भरने‌ लगा।    उसकी कार ने एक साइकिल को हिट किया। साईकिल वाला हवा में उड़ा, धम्म की आवाज़ के साथ ज़मीन पर गिरा और रुकने से पहले दो बार लुढ़का।         उसने कार रोक दी। साइकिल वाला बिना हिले- डुले सड़क पर पड़ा हुआ था। दुर्घटना वाली जगह पर भीड़ थी और शोर शराबा था। वह सन्न दिमाग से चालक के बालों से रिसते खून को देख रहा था।         साइकिल वाला अब भी बिना हिले-डुले सड़क पर पड़ा हुआ था। वह अपनी कार में बैठा सोच रहा था, 'कुछ भी हो जाए, तुम मरना नहीं मेरे दोस्त। यूं भी शराब पीकर गाड़ी चलाना गैर कानूनी है।' थोड़ी देर बाद वह अपनी कार से बाहर निकला और धीरे-धीरे चलता हुआ उसके पास पहुंचा। अचानक साइकिल वाला उठकर बैठ गया। फिर वह बड़बड़ाने लगा और गलिया देने लगा, 'भाड़ में जाओ तुम, तुम्हारा बेड़ा गर्क हो जाए। कैसे गाड़ी चलाते हो तुम।'      यदि बूढ़ा गलियां बक सकता है तो वह ठीक-ठाक है और वह मेरे लिए अच्छी बात है।            सड़क पर कंडिया और सब्ज़ी गिरी हुई थी। ऐसा लगता था, जैसे बूढ़ा गांव के बाज़ार से सब्ज़ी और रोज़मर्रा का सामान ख़रीद कर घर जा रहा था। युवक ने खुद को शांत महसूस किया। उठकर दो- चार क़दम चलने में उसने उसकी मदद की। सब ठीक रहा और वह सीधा खड़ा हो गया। उसके मुंह पर अब भी ख़ून लगा हुआ था।      वह अभी भी भौचक्का लग रहा था उसने अपने हाथ से अपने सिर पर लगे ख़ून को रगड़ा, अपने हाथ को देखा और लड़खड़ाते हुए उससे पूछा, 'तुम क्या करते हो?'     युवक ने सोचा, 'यदि मैंने उसके साथ ज़्यादा अच्छा व्यवहार किया तो वह मुझसे हरजाना मांगेगा।  उसने उसे खूंखार निगाहों से घूरा, तुम्हें इससे क्या मतलब?' उसने बूढ़े के सीने में अपनी उंगली चुभाते हुए कहा, 'तुम्हारा सत्यानास हो। तुमने अपनी साइकिल मेरी कार‌ में घुसा दी और तुम्हारी ये हिम्मत कि तुम मुझे गालियां दो।      बूढ़े ने अपना सिर झुका लिया और अपने बचाव में कहने लगा, 'आपकी कार की बत्तियां नहीं जल रही थी। मुझे कैसे पता चलता...?' तभी युवक ने कुछ और लोगों को वहां इकट्ठे होते हुए देखा। उन्होंने युवक से कहा एक तो तुमने गाड़ी की बत्तियां नहीं जलाई थी और उसे दोषी ठहरा रहे हो।       युवक को याद आया कि यदि मुसीबत में घिर जाए तो ख़रगोश भी आदमी को काट लेता है। उसे ख़्याल आया कि क्यों न मैं इस ज़ख़्मी आदमी को कुछ रुपए पैसे देकर मामला रफा-दफा कर दूं। फ़िज़ूल के लड़ाई झगड़े में क्या रखा है?  उसने उसकी गिरी हुई साइकिल उठाने में मदद की। बूढ़े ने अपना सिर झुकाया, कांपते हुए वह कुछ क़दम चला और फिर वह अचानक दोबारा ज़मीन पर गिर गया। इस बार वह बेहोश हो गया। युवक ने उसे बहुत देर तक ज़ोर-ज़ोर से हिलाया पर वह होश में नहीं आया।      भीड़ बढ़ती जा रही थी और सड़क पर उसकी गाड़ी के पीछे‌ अन्य गाड़ियों की एक लंबी कतार लग गई थी। उसने थोड़ी दूरी पर पुलिस की गाड़ी के सायरन की आवाज़ सुनी। उसने जल्दी से विधायक पप्पू फसादी को फोन लगाया। उन्होंने दुर्घटना की जगह के बारे में उससे प्रश्न पूछा और इससे जुड़े कुछ और सवाल किए। फिर उन्होंने मदद करने का वादा किया। उसने फोन काटा ही था कि पुलिस वाले वहां पहुंचने लगे। उनमें से एक ने उससे गाड़ी के कागज़ मांगे। उसने धीरे से कहा, मैं पप्पू फसादी का ख़ास आदमी हूं।     उसने उसे घूरकर देखा और कहा, 'फालतू बकवास मत करो। पहले इसे अस्पताल ले चलते हैं यह बुरी तरह घायल है'        युवक की चिंता बढ़ती जा रही थी। तभी सिपाही के मोबाइल की घंटी बजी। वह कुछ देर तक सुनता रहा और फिर बात करते हुए उसको कठोर निगाहों से देखते हुए भीड़ से थोड़ी दूर चला गया। लगभग दो मिनट बाद जब वह वापस आया तो उसका पूरा हाव-भाव ही बदला हुआ था।       उसने युवक से कुछ नहीं कहा, बल्कि वह सीधे उस बूढ़े के पास गया और उससे बोला, तुमने बिना देखे साईकिल मोड़ दी। उसका चेहरा पीला पड़ गया। उसके चेहरे पर ख़ून लगा हुआ था और उसके होंठ कांप रहे थे। बहुत देर तक उसे समझ ही नहीं आया कि वहां क्या हो रहा है।       युवक बड़बड़ाया, 'क्या फूटी किस्मत है मेरी।' लेकिन उसने कभी नहीं सोचा था कि बूढ़ा ख़ुद को इतना बड़ा बेवकूफ साबित कर देगा। वह अचानक उठ खड़ा हुआ और कांपते हुए अपनी साइकिल पर टिक गया। फिर उसने अपनी सब्जी वाली कंडिया ली और वह सड़क पर गिरी सब्जियां आदि उठाने लगा। हरी पत्तियों पर उसके माथे से रिस कर बहता खून गिर रहा था। युवक ने और पुलिस वाले ने हैरानी से आंखें मिलाई। सिपाही ने उससेे पूछा, 'सब ठीक है?' बूढ़ा अपनी छाती को मलते हुए बोला, 'यहां दर्द हो रहा है।'      अब दूसरा अनुभवी सिपाही आगे आया उसने बूढ़े से पूछा कि क्या वह यह मामला निपटाना चाहता है। उसने आगे कहा, 'तुमने बगैर साईड देखे साईकिल मोड़ दी‌, तुम्हें अपनी ग़ल्ती माननी होगी, समझे?' फिर उस पुलिस वाले ने युवक से कहा, 'आपकी भी गलती है। आपकी गाड़ी की बत्तियां नहीं जली थीं। वह चुपचाप मान गया कि गलती उसकी भी थी। बूढ़ा भयभीत लग रहा था और हकलाते हुए उसने माफी मांगी। युवक मन ही मन हंस रहा था लेकिन उसने राहत की सास ली। पुलिस वाला वाकई जानता था कि इस मामले को कैसे निपटाना है। उसने कार के टक्कर लगने वाली जगह की ओर इशारा करके पूछा, 'क्या आपकी कार ठीक है?'       कार मरम्मत करने वाले को दिखाए बिना कुछ भी नहीं कहा नहीं जा सकता। लेकिन डेंटिंग- पेंटिंग में कम से कम तीन- चार हज़ार का ख़र्चा लग जाएगा।'       बूढ़े की आंखें फैल गई और बेहद भयभीत होकर उसने अपनी जेब से मुड़े हुए नोट निकाले। कुल मिलाकर सत्तर रुपये की रकम थी। वह इतना घबराया हुआ था कि उसकी आंखों से आंसू निकलने लगे। मेरे पास इतने ही हैं। आप चाहें तो मेरी साइकिल रख लीजिए।       यह पुरानी साइकिल तो कबाड़ी के काम ही आएगी। मैं इसे क्यूं लूं', युवक ने कहा। पुलिस वाला धीमी आवाज में उस बूढ़े से बात करने लगा। अब बूढ़ा ज़ोर से कांपा। फिर उसने अपनी बंडी खोली और कांपते हाथों से भीतर की जेब में रखे पांच सौ रुपए निकाले,  खांसते हुए कहा, ' मुझे टी.बी है, एक्स-रेे कराने के लिए जोड़े थे। मेरे पास इतने ही हैं। उसकी आंखों से आंसू रुकने का नाम नहीं ले रहे थे। युवक ने सारी रक़म उससे ले ली। बूढ़ा एक हाथ में सब्ज़ी की कंडिया पकड़े और दूसरे हाथ में अपनी साइकिल संभाले धीरे-धीरे चलता हुआ आगे बढ़ गया। उसके माथे से अब भी ख़ून रिस रहा था।        भीड़ में से कुछ लोगों ने पुलिस की ज़्यादती पर कमैंट किए पर पुलिस की घुड़की के सामने टिक न सके। धीरे-धीरे भीड़ छट गई। पहले पुलिस वाले ने धीरे से कहा, 'आगे से आप शराब पीकर गाड़ी मत चलाएं।'       'समझ गया, भाई समझ गया।' उसने कहा, 'तुम अपने चाय- पानी के लिए कुछ रख लो।' उसने जवाब नहीं दिया और सीटी बजाते हुए वह आगे बढ़ गया।      युवक ने वापस आकर अपनी कार का इंजन चालू किया। गाड़ी चलाते हुए जब वह अगले मोड़ पर पहुंचा तो उसने पाया कि वह बूढ़ा सड़क के किनारे  एक छोटे से पेड़ के पास रुका हुआ था। उसका चेहरा बेहद पीला पड़ा हुआ था। वह एक हाथ से अपना पेट पकड़े हुए बेतहाशा खांस रहा था। उनकी आंखें आपस में मिली और फिर युवक दूसरी ओर देखने लगा जैसे उनके बीच कुछ हुआ ही नहीं था।       उसने गाड़ी की गति बढ़ाई और कोठे‌ वाली चम्पा के पास पहुंच गया।         चम्पा ने उससे कहा, 'साहिब बड़ी देर कर दी आने में, थोड़ी देर और नहीं आते, तो मेरी जान निकल जाती।' युवक ने उसे बाहों में भरते हुए कहा, 'मेरा दिल तुम्हारे पास आने के लिए मचल रहा था, पर एक ससुरा बूढ़ा गाड़ी के आगे आ मरा।'         कोठा गाने की आवाज़ से गूंजने लगा, 'मेरा पिया घर आयो रे...।' युवक चम्पा पर वह रुपए लुटाने लगा जो उसने बूढ़े से वसूले थे।       तभी घटनास्थल से एक चश्मदीद आया। उसने चम्पा से कहा, 'तेरा पापा सड़क पर मरा पड़ा है।'         'किसने मारा पापा को?' रोती हुई चम्पा ने पूछा।        'जिसका तू दिल बहला रही है' चश्मदीद ने तंज़िया लहजे में कहा और पूरा वृतांत सुनाया।     ' क्यूं मारा पापा को?' चम्पा ने नवयुवक को झिंझोड़ कर पूछा।      युवक चुप रहा और तमंचा लहराता हुआ चला गया।        रोती हुई चम्पा अपने पापा की लाश लेने पहुंची। रात गहरा गई थी, सड़क एकदम सुनसान थी। उसने पापा की लाश को उन्ही की साइकिल के कैरियर पर रखा, सब्ज़ी की कंडिया साईकिल के हैंडिल में लटकाकर घर ले लाई।        सवेरे पड़ोसियों की मदद से पापा की मृत देह को अग्नि को समर्पित करने के बाद चम्पा घर में अकेली थी। पेट की ज्वाला शांत करने के लिए उसने साइकिल में लटक रही कंडिया से सब्ज़ियां निकालीं। हरी पत्तियां मुरझा गईं थी। उन पर लगा ख़ून काला पड़ चुका था।      बेबसी में उसने दीवार पर लगी पापा की तस्वीर को देखा। वह गले में गमछा डालकर गर्व के साथ कारखाने में काम कर रहे थे। उसे याद आया, पापा कहते थे, 'पहले संगीत प्रेमी नवाब और रईस कोठे पर आते थे, अब गुंडे मवाली आते हैं। तुझे अपने इस पुशतैनी धंधे को छोड़कर कोई इज़्ज़तदार धंधा अपनाना चाहिए।'        उसने पापा का गमछा अपने गले में डाला और कारख़ाने पहुंच गई। उसे आत्मविश्वास से भरा देख मालिक ने उसे पापा की जगह काम पर रख लिया। कोठे वाली, कारखाने वाली बन चुकी थी। वहां उसे खाना, पैसा और मान- सम्मान मिला। शाम को घर लौटी तो उसे लगा, 'पापा ठीक कहते थे।'    348 ए, फाइक एंक्लेव, फेस 2, पीलीभीत बाईपास बरेली, (उ प्र) 243006 मो: 9027982074, ई मेल wajidhusain963@gmail.com