वाजिद हुसैन की कहानी
उत्तर प्रदेश के तराई क्षेत्र में बनखेड़ी एक गांव है जिसमें अधिकतर सिखों के फॉर्म हाउस हैं। सरकारी ज़मीन पर एक बंगाली मज़दूरों की बस्ती है जिममें अधिकांश फार्मिंग लेबर रहती हैं। इस बस्ती की सोलह वर्षीय बिल्लो का यौवन निखर रहा था। रोज़ाना उसके बंगाली माता-पिता, चाचा ताऊ उसका ब्याह कर देने के बारे में सोचते और इकट्ठे बैठकर इस बारे में परामर्श भी कर चुके थे। लेकिन बिल्लो को बस्ती का कोई लड़का भाता नहीं था। मुखिया का बड़ा लड़का सुरेश दो बार जेल जा चुका था। चाहे वह गठीला लंबा चौड़ा जवान था, बिल्लो उसे कायर समझती थी। सिखों के लड़कों ने उसे दो- एक बार मारा पीटा था। सिखों के लड़के उसे कहते थे, 'इसके पास शरीर तो है लेकिन दिल नहीं।' और बिल्लो दिल की ग्राहक थी। शारीरिक दृष्टि से उसके पास कोई कमी नहीं थी। वह लंबी थी और मछली पर पला, उसका तांबई शरीर मछली की तरह लचीला था।
शाम अंधियारे की ओर बढ़ रही थी। बिल्लो मछली बेचने में मग्न थी। वह बड़ी परात में पानी डालकर मछली को नहला रही थी। उसके पास एक युवक खड़ा था। वह ज़रा सा मुस्कुराया बोला, 'बहुत लाड़ आ रहा है।'... बिल्लो बोली, 'हिल्सा की आंखें बहुत सुंदर होती है।' ...'पर तेरी आंखों से कम सुंदर हैं, तू तो जलपरी लगती है।' युवक ने आशिक़ी के लहजे में कहा। ... बिल्लो बोली, 'धत्।' परात के पानी के छीटे युवक के मुंह पर छिटकते हुए कहा, 'काम-धाम नहीं, छोकरी छेड़ने चले आते हैं।' ...'सरदार जी की गड्डी चलाता हूं, रुपया कमाता हूं।' नरेश ने गर्व से कहा, फिर चलते-चलते पूछा, 'कल कहां मिलेगी?' ... बिल्लो ने कनखियो से युवक को देखा, धीरे से कहा, 'घाट पर' और ग्राहकों को निबटाने लगी।
नरेश सरदार सतनाम सिंह के फार्म हाउस में ट्रैक्टर ड्राइवर था और सर्वेंट क्वार्टर में रहता था। अगले दिन वह बन-ठन के, ट्रैक्टर धोने के बहाने घाट पर गया। उस समय बिल्लो नदी में नहा रही थी। नरेश को देखकर बोली, 'हटो यहां से।' उसने अपने गीले बाल झटके जो नरेश के चेहरे पर आ पड़े। नरेश ने उसके गाल पे चुटकी ले ली।
'उफ! शमये- अशमये कुछ नहीं होता ना तुम लोगों के लिए?'
तुम्हारी सुंदरता सराहने के लिए, शमये थोड़े ही देखना पड़ता है।'
'बेशर्म! झूठ ही सही पर जाती हुई बिल्लो थोड़ी- सी इठलाई तो ज़रूर।
बिल्लो ब्याह कर आई, उसने अपने भाग्य को सराहा था। माता-पिता के छोटे से कच्चे घर को छोड़कर फॉर्म हाउस के सर्वेंट क्वार्टर में आई थी। नरेश रूपवान था, उदार था, शिक्षित था, दिल्लगी और प्यार करना भी जानता था। बिल्लो के खिले यौवन, लुभाने रूप रंग ने नरेश का मन मोह लिया था। उसकी नि:स्वार्थ सेवा से सतनाम सिंह और उनकी पत्नी रूपवती कौर भी प्रभावित थी। उसके बनाए रसगुल्ले और बंगाली मिठाई ने उनकी पंजाबी मिठाई को पीछे छोड़ दिया था। कुछ दिनों में उसकी पहुंच सरदार जी की रसोई तक हो गई थी। उसके स्वादिष्ट व्यंजनों ने उस कहावत को सही साबित कर दिया था, 'मर्द के दिल का रास्ता पेट से होकर जाता है।' सतनाम सिंह उसे अपनी बेटी की तरह मानने लगे थे। वह मां बनी तो रूपवती कौर ने उसका और उसके बच्चे का ध्यान रखा था। वे उसके बेटे सोहन से अपने नाती की तरह प्यार करते थे।
सतनाम सिंह का बेटा गुरचरण सिंह फौज में मेजर था वह अपनी पत्नी दलजीत कौर और बेटी रजनी के साथ भटिंडा के सरकारी बंगले में रहता था। कारगिल युद्ध शुरू होने के कारण गुरचरण सिंह को बॉर्डर पर जाना पड़ा था। उसने अपनी पत्नी और बेटी को दादा के फॉर्म हाउस भेज दिया था। दलजीत कौर हाई सोसाइटी वूमेन थी। उसे बिल्लो के पकाए हाई फैट व्यंजन रास न आए। अत: उसने रसोई में उसकी एंट्री वर्जित कर दी। इसके अलावा दलजीत कौर को रजनी का सोहन के साथ तितलियों के पीछे भागना गवांरुपन लगता था। वह सोहन से रजनी से दूर रहने को कहती पर वह मुंह चढ़ा था, बाज़ नहीं आता था। दोनो में ऐसी दोस्ती हो गई थी कि सोहन रजनी को रज्जो कहता और रजनी उसे सोनू कहने लगी थी। दलजीत कौर सोचती थी, कि सोनू के पापा को नौकरी से निकाले बिना यह समस्या हल नहीं होगी। अत; वह ससुर से नरेश को नौकरी से निकालने को कहती परंतु वह अनसुनी कर देते?
एक दिन किसी मुक़दमे के सिलसिले में सतनाम सिंह इलाहाबाद गए। कुछ दिन के बाद वापस आए तो पता चला, दलजीत कौर ने नरेश को नौकरी से निकाल दिया। यह सुनकर उन्होंने अपनी बहू से गुस्से में बस इतना कहा, 'बिना वजह गरीब के पेट पर लात मारना रब की तौहीन होती है।'
सतनाम सिंह श्रमिक नेता भी थे। उनके ईमानदार छवि के कारण मज़दूर उनका बहुत सम्मान करते थे। बनखेड़ी से कई मील दूर एक शुगर फैक्ट्री थी जो अचानक बंद हो चुकी थी। फैक्ट्री मैनेजमेंट ने फैक्ट्री बंद करके हज़रों मजदूरों को बेरोजगार बना दिया। फैक्ट्री मालिकों का मुंबई में कुछ दूसरा कारोबार भी था, और यह एक फैक्ट्री थी जो अभी तक बराबर मुनाफे में चल रही थी। शेयर बाज़ार में उसके शेयरों की मांग क़ायम थी। फिर जाने क्या हुआ कि फैक्ट्री घाटे में चलती बताई जाने लगी। ले- आफ, छटनी का सिलसिला शुरू हुआ और देखते ही देखते फैक्ट्री बंद कर दी गई। मज़दूरों की सारी लेनदारियां फंस गई। उनके पी.एफ. का पैसा तक डूब गया। मज़दूर पिछले काफी दिनों से आंदोलन कर रहे थे । मज़दूरों को पता चला, मिल मैनेजमेंट ने उनके नेताओं से साठगांठ कर ली थी। अता मज़दूरों ने सतनाम सिंह को अपना नेता चुन लिया। उनके नेतृत्व में जुलूस धरनो का सिलसिला जारी था।
फैक्ट्री मैनेजमेंट को लगा कि सतनाम सिंह ने उनकी योजना विफल कर दी। उन्होंने सतनाम सिंह को सबक सिखाने के लिए शैतानी चाल चली। गुंडों से संपर्क किया और उनकी पोती रजनी का अपहरण कर लिया।
नरेश शुगर फैक्ट्री में दिहाड़ी मज़दूर हो गया था। र्फ्लाईओवर के नीचे बसी बेघरों की बस्ती में बिल्लो ने अपना आशियाना बना लिया था। इस बस्ती के लोग कामकाज के लिए अपने गांव से दूर आकर इस शुगर फैक्ट्री में दिहाड़ी मज़दूर थे और पुल के नीचे ज़िंदगी जीते थे। इन लोगों के दो पत्थर से बने चूल्हे से बढ़ते हुए धुएं के बादल छाए हुए थे। फिर अचानक आसमानी काले बादलों में से बिजली आंखें मारने लगती है कि अचानक बारिश ने हमला बोल दिया। तेज़ हवा के साथ मोटी-मोटी बूंदों ने बिल्लो को सिर से पांव तक भिगो दिया था। बिल्लो अपने बेटे सोनू को एक फटी चद्दर उढ़ाकर भीगने से बचाने का असफल प्रयास कर रही थी। सड़क पर चलते नाले का पानी उसके चूल्हे के ऊपर बहने लगा था। फ्लाई ओवर के नीचे पानी भरने के कारण यातायात रुक गया था।
तभी एक कार रूकी जिममें एक लड़की बचाओ-बचाओ चिल्ला रही थी। उसे देखकर सोनू रज्जो कहकर चिल्ला पड़ा। पलक झपकते ही बिल्लो गाड़ी में घुस गई। उसने रज्जो को अपहरण कर्ताओ की मज़बूत पकड़ से छुड़ा लिया और अपनी बाहों में भीच लिया। उसकी पकड़ इतनी मज़बूत थी कि अपहरण कर्ताओं की गोली भी अलग नहीं कर सकी।
गाड़ी का पीछा करते हुए दलजीत कौर आ चुकी थी। ख़ून से तरावोर बिल्लो की बाहों में रजनी को देखकर उसने पश्चाताप की मुद्रा में कहा, 'मैने तुम्हारे साथ वहशियाना सलूक किया, फिर भी मेरी बेटी को बचाने के लिए तुम जान पर खेल गईं, बहन मुझे माफ कर देना।' बिल्लो ने रजनी को उसकी मां को सौंप दिया। रक्त रिसाव के कारण उसकी सांस थमने लगी थी। सोनू अपनी मां के पास खड़ा रो रहा था। दलजीत कौर ने उसे गोदी में उठा लिया और रूधे गले से कहा, 'बेटा मत रो, मां नहीं रही, मौसी तो है।'
बिल्लो के चेहरे पर मरने से पहले संतोष झलकने लगा था। उसका मुंह थोड़ा सा खुला हुआ था, जैसे कुछ बोलते की कोशिश कर रही हो और आंखें खुली थी, जो हिल्सा की आंखों से सुंदर थीं।
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