1974
इस वर्ष में दो महत्वपूर्ण घटनाओं की वजह से यह साल याद है
पहला इस साल रेलवे की हड़ताल हुई थी।इस हड़ताल की subghat काफी समय पहले ही शुरू हो गयी थी।रेलवे में 2 मान्यता प्राप्त यूनियन थी।एम्प्लाइज यूनियन और मजदूर संघ।वे दोनों AIRF और NFIR से सम्बद्ध है।
NFIR सरकार समर्थक थी फिर भी ।जदूर संघ रेल हड़ताल में शामिल हो गयी थी।
सरकार ने खुद ही हड़ताल को सफल बना दिया था।रॉड साइड के स्टेशनों में ताला लगा दिया गया।
बड़े स्टेशनों पर भी ज्यादतर ऑफिस बन्द कर दिए गए।काफी ट्रेने रदद् कर दी गयी।जो ट्रेने चली खाली थी।यात्री हड़ताल के डर से घर से काफी कम निकले।
मेरी नौकरी ज्यादा पुरानी नही थी।इसलिए मैंने हड़ताल से दूरी रखी और ड्यूटी की।
जहा एक तरफ हड़ताल करने वाले प्रताड़ित हुए।दूसरी तरफ जी होने ड्यूटी की उन्होंने
फायदाआ उठाया।काम करने वालो के बच्चों को नौकरी दी गयी।जिनके बच्चे नालायक थे वे भी नौकरी पा गए।मेरे तो कोई संतान अभी हुई नही थी।इसलिए मुझे एक अतिरिक्त वेतन व्रद्धि मिली थी।
इसी साल पत्नी गर्भवती हुई थी।उस समय हम रावली में
किराये के मकान मे रहते थे।प्रेग्नेंट होने पर उसे लेडी लॉयल अस्पताल मे दिखाने लगा।और धीरे धीरे समय गुजरने लगा।डिलीवरी से पहले माँ गांव से आगरा आ गयी थी।8जनवरी1975 उस दिन मेरी ड्यूटी2 बजे से 10 बजे तक थी।लेकिन में करीब9 बजे घर आया तो कमरे मे पत्नी खाट पर लेटी हुई थी।मकान की अन्य औरते भी थी।पता चला पत्नी के प्रसव के दर्द शुरू हो गए थे।
उन दिनों ऑटो तो मिलते नही थे।हम लोग रिक्शे से अस्पताल पहुचे थे।लेडी लायल अस्पताल राजा मंडी में है।ओरतो के लिय वो ही अच्छा माना जाता था।पत्नी को एडमिट कर लिया गया था।ठंड के दिन थे।जनवरी के महीने में वैसे भी आगरा ठंडा रहता है।एक के बाद एक औरते आ रही थीं।उनकी डिलीवरी हो रही थी ।लेकिन पत्नी की डिलीवरी का समाचार नही आ रहा था।पत्नी अंदर वार्ड में थी और मैं और माँ बाहर बरामदे में
और पूरी रात मैं और माँ ििनतजार करते रहे लेकिन पत्नी की डिलीवरी नहीं हुई।हम परेशान थे।औऱ पूरी रात बाहर बरामदे में गुजरी।
सुबह होने पर मैं बाबू लाल जी के घर गया।वह मेरे वरिष्ठ थे और मेरे साथ छोटी लाइन बुकिंग में कार्य कर रहे थे।उन्हे जाकर सारी बात बताई थी।फिर वह मेरे साथ अस्पताल गए थे।उनकी लेडी लायल में एक नर्स से परिचित थी।वह उससे जाकर मिले थे।रात को पत्नी को भर्ती कराया तब से उसकी कोई देखभाल नही हो रही थी।जो औरते प्रसव पीड़ा से कराह रही थी ।चीख रही थी।हल्ला मचा रही थी।उन्ही पर ध्यान दिया जा रहा था।
बाबू लाल जी के नर्स से मिलने के बाद पत्नी की तरफ देखा गया तो पता चला रात में ही थैली फ़ट गयी थी।जिसकी वजह से डिलीवरी नही हुई थी और तुरन्त ऑपरेशन का निर्णय लिया गया।
उन दिनों भी ऑपरेशन होते थे लेकिन आज जैसे सरल नही पत्नी का मेजर ऑपरेशन हुआ था।दोपहर में थियेटर में ले गए और शाम ढलने पर बाहर आई थी।तब बेहोश थी।जब तक पत्नी न आई मैं उसकी सकुशलता की भगवान से प्रार्थना करता रहा।और वार्ड में आने पर उसके होश में आने का ििनतजार