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वह लडकी

"जानेमन नाज़ुक पैरों पर कयो जुल्म ढा रही हो?बंदा हाजिर है,खिदमत करने को"
राजूू स्ककूूटर पर इरा के पीछे चलता, जो उसके मन मे आ रहा था।बके जा रहा था।इरा उसकी बातों को अनसुनीी करके गर्दन झुकाए चुपचाप चलती रही।
एक दिन राजूू स्टेेेशन के बाहर खडाा था।तभी उसकी नजर स्टशन से बाहर निकलती एक युवती पडी थी।लम्बेेे कद, छरहरे बदन औऱ तीखे नैन नकश की युवती को वह पहली बार अपने कस्बे मे देख रहा था।
वह युवती कौन है?कहाँ से आयी हैै?कयो आयी है?कहााँ जायेगी?उस युवती को देखकर कई सवाल उसके मन मे उभरे थे।उन सवालों का जवाब खोजने के लिए वह युवती के पीछे हो लिया। युवती स्टेेेशन से पैैैदल चलकर अस्पताल पहुंची थी।राजू भी उसकेपीछे अस्पताल जा पहुंचा।वहां पहुंचने पर राजू को अपने मन के अंदर उभरे सभी सवालो का जवाब मिल गया था।
उस युवती का नाम इरा था।वह नागदा मे नर्स थी।उसका तबाााद नागदा से शामगढ हो गया था।
औऱ उस दिन के बाद वह गोलडन टेम्पल मेल से रोज नागदा से शामगढ़ आने जाने लगी।पहली बार देखते ही राजू उस पर फिदा हो गया था।ट्रेन आने से पहले ही वह स्टेशन के बाहर आकर खडा हो जाता।ट्रेन आने पर इरा स्टेशन के बाहर आती औऱ पैदल ही अस्पताल के लिए चल पडती।शामगढ छोटा कस्बा है।यहां रिक्शा याऑटो नहीं चलते।जिनके पास अपने वाहन है,वे उनसे आते औऱ चले जाते है।लेकिन जिनके पास वाहन नही है,उन्हें पैदल ही आना जाना पडता है।इरा स्टेशन से अस्पताल जाती तब राजू भी उसके पीछे हो लेता।
इरा अस्पताल पहुचकर अपने काम मे लग जाती।वह जब तक अस्पताल में रहतीं, राजू उसके इर्दगिर्द ही मंडराता रहता।राजू ने कई बार इरा से बात करनेकी कौशिश भी की थी।पर व्यर्थ ।इरा ने कभी भी उसकी बात का जवाब नही दिया।डयूटी खत्म होने पर इरा स्टेशन आती, तब राजू भी उसके पीछे आता था।
इरा को राजू का उसका पीछा करना या अस्पताल मे उसके इर्दगिर्द मंडराना बुरा लगता था।राजू के बारे मे वह लोगों से सुन चुकी थी।उसके मुंह कोई नही लगता था।
राजू,हरपाल का बेटा था।हरपाल आस पास के गांवो मे ठेकेदारी करता था।वह सुबह घर से निकलता, तो फिर रात को ही लौटता था।राजू की मॉ का स्वर्गवास हो गया था औऱ बहन की वह सुनता नही था।वह दिन भर आवारा घूमता रहता।औरतों से छेड़छाड़ औऱ मर्दों से मारपीट उसकी आदत मे शुमार हो चुका था।वह चाहे जिससे झगड पडता।मार पीट कर बैठता।चाहे जिसकी बेइज्जती कर देता।वह छोटे बडे का लिहाज नही करता था।इसलिए कोई उसके मुह नही लगता था।
इरा को यह पसंद नही था कि राजू उसका पीछा करें या उसके इर्दगिर्द मंडराता रहे।वह उसे ऐसा करने से रोकना चाहती थी।पर कैसे?
और दिन गुजरने लगे।वह राजू से परेशान थी, लेकिन नौकरी तो नही छोड़ सकती थीं।
एक दिन हरपाल किसी काम से दिल्ली गया।औऱ दिन तो वह स्कूटर से जाता था।लेकिन आज ट्रेन से गया था।इसलिए स्कूटर घर पर था।राजूअपने पिता का स्कूटर ले आया।वह ट्रेन आने से पहले स्टेशन के बाहर आकर खडा हो गया।ट्रेन आने पर इरा के बाहर आने पर राजू स्कूटर उसके पास लेजाकर बोला"बैठो, तुम्हें अस्पताल ले चलता हूँ"।
इरा ने राजू की बात सुनकर उसकी तरफ देखा जरुर, लेकिन बिना बोले रोज की तरह पैदल ही अस्पताल चल पडी।राजू स्कूटर पर उसके पीछे चलता हुआ बोला"जानेमन नाजुक पैरों पर कयो जुल्म ढा रही हो।बंदा हाजिर है,खिदमत करने को"
राजू इरा के पीछे स्कूटर पर चलता हुआ, जो मन मे आ रहा।बक रहा था।इरा उसकी बातों पर ध्यान न देकर सिर झुकाए चुपचाप चलती रही।जब राजू के बार बार कहने पर भी इरा स्कूटर पर नही बैठी।तब राजू उसके आगे स्कूटर खडा करके बोला"मै कितनी देर से स्कूटर पर बैठने की कह रहा हूँ, लेकिन तुम सुन ही नही रही"।
"मेरा रास्ता छोडो"इरा ने पहली बार राजू के सामने जुबान खोली थी।
"मै तुम्हें पैदल नही चलने दूगा।स्कूटर पर बैठो।"
"मुझे नही बैठना"इरा ने स्कूटर पर बैठने से साफ मना कर दिया।
राजू बार बार इरा से स्कूटर पर बैठने को कह रहा थाऔऱ वह मना कर रही थी।जब इरा बार बार कहने पर भी स्कूटर पर बैठने को तैयार नही हुई, तब राजू ने इरा का हाथ पकडकर जबरदस्तती स्कूटर पर बैठाना चाहा।राजू ने ज्यो ही इरा का हाथ पकड़ा, वह आगबबूला हो गई।
"तू मुझे स्कूटर पर बैठायेगा।कभी अपनी मॉ बहन को बैठाया है।"इरा ने चप्पल उतारी औऱ राजू पर पिल पडी।चप्पल मारते हुए, वह बार बार उससे पूछ रही थी"अब छेडेगा किसी औरत को?
राजू को पिटता देखकर लोग इकट्ठा हो गये।जिस राजू से कस्बे के लोग डरते थे।जो राजू आये दिन किसी के साथ मारपीट कर देता था।अच्छे अच्छे मर्द जिस राजू से घबराते थे।उस राजू को इरा सरेआम बीच बाजार मे पीट रही थी।इरा उसे तब तक मारती रही जब तक उसने इरा के पैर पकडकर माफी नहीं मॉग ली।
राजू का कस्बे मे आ आऑतक था।उस दिन के बाद उसका कस्बे मे आऑतक खत्म हो गया। पहले वह आवारा की तरह पूरे दिन कस्बे मे घूमता था।अब उसने घर से बाहर निकलना बंद कर दियाथा।कभी घर से बाहर निकलताभी,तो नजरें झुकाकर।
इरा का रतलाम तबादला हो गया था।अब वह इस कस्बे मे नही आती।लेकिन इस कस्बे के लोग उसे भूले नहीं थे।भूल भी कैसे सकते हैं?उसने यहां के लोगों को राजू के ऑतक से मुक्ति जो दिलाई थी।

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