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अकेला

"कया हुआ---
अचानक सरला का हाथ छूटा औऱ वह सीढिियो से लुुुढकते हुए नीचेे आ गई।
रामलाल और सरला की मुलाकात प्लेटफार्म पर हुुुई थी।रामलाल को बहूू ने घर से बाहर निकाल दिया था।बहू बेटे को सरला बोझ लगने लगी थी।वे उसेे वदृश्ररम भेजने पर विचार करने लगे थे।एक दिन सरला ने उनकी बातें सुन ली थी।वे ऐसा करते उससे पहले सरला स्वय ही घर छोडकर चली आयी थी।
रामलाल औऱ सरला यह सोचकर आये थे कि इस शहर को हमेशा के लिए छोडकर कहीं दूर चले जायेंगे।सरला से मुलाकात होने औऱ एक दूसरे की कहानी सुनकर रामलाल के मन मे एक विचार आया।मन मे आये विचार पर वह कुछ देर तक सोचता रहा।फिर मन ही मन मे निश्चय करके सरला से बोला,"कयो न हम.दोनो साथ रहे?"

रामलाल की बात सुनकर सरला बोली,"हम दोनो मे कोई रिश्ता नही है।भले ही हम बूढे है।लेकिन हम साथ रहेंगे तो लोग तरह तरह की बातें बनायेंगे।हम पर कटाक्ष करेगे।"
"तुम चिंता मत करो।हम लोगों को बातें बनाने का मौका बिल्कुल नहीं देगे।हम लिव इन रिलेशनशिप मे रहेंगे"सरला की बात सुनकर रामलाल बोला।
"कया?पागल हो गये हो।आजकल के मर्द औरतों मे लिव इन रिलेशनशिप का प्रचलन है।लेकिन हम नये नही पुराने जमाने के है"।
"मेरा कहने का मतलब है,हम शादी करके पति पत्नी की तरह रहेंगे"।
"शादी और इस उम्र मे?"रामलाल की बात सुनकर सरला आश्चर्य से बोली।
"साथी की जरूरत इसी उम्र मे होती है।अगर हमारे बेटे हमारा सहारा बने रहते।हमे घर से न निकालते, तो हमे साथी की जरुरत कयो महसूस होती?शादी के बारे मे हम कयों सोचते?"रामलाल, सरला को समझाते हुए बोला,"जवानी मे आदमी खुद सक्षम होता है।उसे किसी सहारे की जरूरत नहीं पडती।परन्तु बुढापे मे असक्षम हो जाता है। हम साथ रहेंगे, तो एक दूसरे के सहारे जीवन आसानी से कट जायेगा।अकेले रहने पर हमे अपने जीवन के शेष दिन काटना मुश्किल हो जायेगा"।
सरला पुराने विचारों की औरत थी।उसका मानना था जिस घर में औरत की डोली जाती है,उस घर से उसकी अर्थी ही उठतीं है।वह विधवा विवाह के पक्ष मे बिल्कुल नही थी।पति की यादों के सहारे अपनी जिंदगी के शेष दिन काट देना चाहती थी।काट भी रही थी।लेकिन जिस उम्र मे बेटा सहारा बनता है।उस उम्र मे उसे घर छोडना पडा था।अब इस उम्र मे वह अकेली औरत कहाँ जायेगी?अपना बेटा ही जब उसे बोझ समझ रहा था।तब दूसरा कयो उसे सहारा देगा?अकेले रहने पर जिदंगी काटना बहुत मुश्किल हो जायेगा।अगर कोई साथ होगा, तो शेष जीवन आसानी से कट जायेगा।वह रामलाल का प्रस्ताव अनमने मन से स्वीकार करते हुए बोली,"इन हालातों मे तुम्हारी बात मान लेने में ही समझदारी है"।
"तो आओ चले",रामलाल ने उठते हुए सरला की तरफ अपना हाथ बढाया था।सरला ने रामलाल का हाथ थाम लिया।
दोनों जिदगी का शेष सफर साथ मिलकर तय करनेके लिए चल पडे।प्लेटफार्म पार करके, वे धीरे धीरे पुल पर चढने लगे।घर से आये तब उन्हें अपनी मंजिल मालूम नही थी।लेकिन अब उन्हें मंजिल मिल गई थी।एक नई जिदगी की शुरुआत करने के लिए वे एक दूसरे का हाथ थामे बढे जा रहे थे।अचानक सरला के पैर लडखडायेऔर रामलाल का हाथ छूट गया।वह सीढियों से लुढकते हुए नीचें आ गई।
"कया हुआ सरला?"।रामलाल फुर्ती से नीचे आया।उसने सरला का हाथ पकडकर उठाना चाहा।लेकिन सरला, रामलाल के साथ जिदगी का सफर शुरू करने से पहले ही दुनिया छोडकर जा चुकी थी

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