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ऑखें

सुनंदा डॉक्टर थी।आईं सर्जन यानि ऑखों की डाक्टर।नेत्र विशेषज्ञ।वह एक सामाजिक संस्था सेभी जुड़ी हुई थी।उसका काम था नेत्रदान केलिए लोगो को प्रेरित करना।नेत्रदान करने वाले व्यक्ति की म्रुत्यु के बाद उसकी ऑखें निकालकर अंधे व्यक्ति को लगाकर उसकी जिन्दगी मे उजाला लाना।
असलम सुनंदा का डाईवर था औऱ मेरी नर्स थी।असलम शरीीी,नेकदिल औऱ विश्वासपात्र आदमीथा।
मेरी विधवा थी।
एक दिन एक आदमी की मौत हो गई।इस आदमी ने नेत्रदान कर रखे थे।सुनंदा उस आदमी की ऑखें लेने कार से उसके घर जा रही थी।रास्ते मे कार की बस से टक्कर हो गई।सुनंदा को तो मामूली चोट आयीथी।,लेकिन असलम औऱ मेरी बुरी तरह जख्मी हुये थे।दोनों की जान तो बच गई, लेकिन ऑखों की रोशनी चली गई थी।
असलम औऱ मेरी केअंधा होने पर सुनंदा दुखी रहने लगी।वह खुद को दोषी मानती थी।अगर वे दोनो साथ न होते, तो उनकी ऑखों की रोशनी न जाती।अंधे होने की वजह से वे काम करने लायक नही रहे थे।असलम पर बीबी बच्चों की जबकि मेरी पर अपाहिज बेटे की जिम्मेदारी थी।वह दोनों की ऑखों की रोशनी वापस लाना चाहती थीं।
लेकिन यह तभी संभव था,जब कोई अपनी ऑखें दान कर दे।मरने के बाद हिन्दूओ मे दाह संसकार की जबकि मुसलमानों औऱ ईसाइयों मे दफनाने की प्रथा है।मरनेके बाद सभी सिथतियों मे शरीर नष्ट हो जाता है।शरीर के साथ ऑखें भी।अगर मरने से पहले पहले आदमी अपनी ऑखें दान कर दे,तो मरनेके बाद उसकी ऑखें किसी अंधे व्यक्ति के जीवन मे उजाला ला सकती है।
हमारे यहाँ समाज अभी इतना जागरुक नही हुआ है कि लोग नेत्रदान का महत्व समझे।लोग यह तो जानते हैं कि मरने के बाद शरीर के साथ ऑखें भी नष्ट हो जाती है।फिर भी नेत्रदान से हिचकते है।अनपढों की बात छोडिए शिक्षित भी कम ही नेत्रदान करते.है।सुनंदा की समझ.मे नहीं आ रहा था।वह असलम औऱ मेरी की ऑखों की रोशनी वापस कैसे लाए।
वह कोई उपाय सोच पाती,उससें पहले एक हादसाः हो गया।उसके पिता का अचानक देहान्त हो गया।पिता कीमौत होने पर घर मे कोहराम मच गया।पिता की मौत का सुनंदा को भी सदमा लगा।वह बेटी होने के साथ एक डॉ भी थी।वह जानती थी,उसके पिता की देह को कुछ घंटे बाद अगनि के सुपुर्द कर दिया जायेगा।शरीर के साथ पिता की ऑखें भी नष्ट हो जायेगी।अगर उनकी ऑखें बचा ली जाए ,तो अंधो की ऑखों की रोशनी लौट सकती है।असलम औऱ मेरी फिर से देख सकते है।लेकिन समस्या यह थी कि मरने से पहले पिता ने नेत्रदान नही किये थे।इसलिए घरवालों की रजामंदी के बिना उनकी ऑखें नही ली जा सकती थी।
पिता की ऑखे लेने केलिए मॉ और भाई से रजामंदी लेना जरुरी था।लेकिन ऐसे माहौल मे उनसे बात कैसे की जाए ।बात किए बिना काम नही हो सकता था।उसने भाई से बात की।उसकी बात सुनकर पवन बोला"पागल हो गई है।अपने पिता के मृत शरीर की दुर्गति करना चाहती है।"
"आप साइनस के लेकचरार होकर कैसी बातें कर रहे है।आप जानते है,आग के हवाले होते ही शरीर नष्ट हो जायेगा।ऑखे भी।लेकिन अगर पिता की ऑखे असलम औऱ मेरी को लगा दी जाए, तो उनकी ऑखों मे रोशनी लौट सकती है"
पहले तो पवन बहन की बात सुनकर नाराज हो गया था।लेकिन बहन के समझाने पर बोला,"तू कह तो सही रही है,लेकिन मॉ नहीं मानेगी"
"भैया आप के समझाने पर मॉ जरुर मान जायेगी"
पवन ने मॉ से बात की तो वह रोते हुए बोली"मै अपने पति के शरीर की दुर्रगति नही होने दूगीं।"
"मॉ पापा पूरी जिन्दगी समाज सेवा करते रहे।अगर मरने के बाद उनकी ऑखे किसी जरुरतमंद के काम आ सके तो उनकी आत्मा को कितनी शान्ति मिलेगी"
बेटे के समझाने पर मॉ मान गई थी।
आज सुनंदा के पिता इस.संसार मे नही है।लेकिन उनकी ऑखे असलम औऱ मेरी के पास है।वह असलम औऱ मेरी को देखती है,तो ऐसा लगता है।पिता की ऑखे उसे निहार रही हो।

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