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एक्स प्रेमिका

वाजिद हुसैन की कहानी - मार्मिक

एक संतरी जेल की वर्कशॉप में आया, जहां नवजोत बड़ी लगन से औज़ारों की मरम्मत कर रहा था। वह नवजोत को सामने वाले दफ्तर में ले गया। वहां जेलर ने नवजोत को उसका रिहाई आदेश थमाया। नवजोत ने उसे थके से अंदाज में लिया। वह नौ महीने जेल में काट चुका था। उसने तो अधिक से अधिक तीन महीने जेल में रहने की अपेक्षा की थी।

'देखो नवजोत, 'जेलर ने कहा, 'तुम्हें सुबह छोड़ दिया जाएगा। तैयार हो जाओ और आदमी बनो। तुम दिल के बुरे नहीं हो, पढ़े लिखे हो, अच्छे घर से ताल्लुक रखते हो। बुरी सोहबत मैं पड़ गए हो। तिजोरियां तोड़ना बंद करो और ईमानदारी से जियो।'

'मैं?' नवजोत ने चकित होते हुए कहा, 'क्यों, मैंने अपनी ज़िंदगी में कोई तिजोरी नहीं तोड़ी।'

'अरे नहीं, 'जेलर ने हंसते हुए कहा, 'बिल्कुल नहीं। अच्छा अब बताओ, तुम्हें रामपुर की उस वारदात के लिए कैसे पकड़ लिया गया? क्या इसलिए कि तुम बेहद ऊंची सोसाइटी के किसी शख्स को ख़तरे में डालने के डर से वहां से अपने को गैर हाजिर साबित नहीं करोगे? तुम जैसे बेक़सूरों के साथ ऐसा ही कुछ होता है।'

'मैं ?' नवजोत ने कहा। वह अभी भी धर्मात्मा बना हुआ था। 'अरे जेलर साहब मैं तो अपनी जिंदगी में कभी रामपुर गया ही नहीं।'

'इसे वापस ले जाओ, बैरक, जेलर ने मुस्कराते हुए कहा, और इसे बाहर के कपड़े पहननेे को दो। सुबह इसे सात बजे ताला खोल कर आज़ाद कर देना। मेरी सलाह पर गौर करना, नवजोत।'

अगली सुबह नवजोत जेलर के बाहरी दफ्तर में खड़ा था। क्लर्क ने उसे मज़दूरी में कमाए रुपए का भुगतान किया और वह गेट से बाहर निकल कर आया।

चिड़ियों की चहचहाहट, लहराते हरे वृक्षों और फूलों की महक को उपेक्षा करता नवजोत सीधे एक रेस्टोरेंट की तरफ बढ़ गया। वहां उसने रोस्टेड मुर्गा खाकर अपनी आज़ादी का जश्न मनाया और उसके बाद एक सिगरेट पिया। वहां से वह मज़े से टहलता हुआ बस स्टैंड गया और अपनी बस में सवार हो गया। दोपहर बाद वह गाजियाबाद के पास एक छोटे से कस्बे में उतरा। वहां वह रघुवीर नाम के एक आदमी के कैफे में गया और उससे हाथ मिलाया। रघुववीर उस समय काउंटर पर अकेला था।

'माफ करना हम और जल्दी छुटा नहीं पाए, नवजोत मेरे बच्चे! रघुवीर ने कहा, 'मगर रामपुर की तरफ से हमारा विरोध हुआ और मजिस्ट्रेट भी पीछे हट ही गया था। ठीक तो हो?'

'बढ़िया, 'नवजोत ने कहा, 'मेरी चाबी है?'

उसने अपनी चाबी ली और ऊपर, पीछे की तरफ बने एक कमरे का दरवाज़ा खोलकर अंदर चला गया। सबकुछ वैसा ही था जैसे वह छोड़ गया था।

नवजोत ने दीवार से एक फोल्डिंग बेड खींचकर बाहर निकाला, दीवार में लगे एक पैनल को खिसकाया और एक सूटकेस को घसीटते हुए बाहर किया। उसने सूटकेस को खोला और बड़े चाव से उसमें रखे औज़ारों को देखने लगा। पूरे गाज़ियाबाद क्षेत्र में किसी सेंधमार के पास इतना बढ़िया सेट नहीं था। औज़ारों वाले बैग के अंदर की तरफ नाइट्रोग्लिसरीन की पांच ग्राम की एक शीशी थी, जिसे उसके धंधे के लोग तेल कहते थे।

आधा घंटे में नवजोत नीचे आया और कैफे से बाहर निकल गया। अब वह क़ायदे के और सही फिटिंग के कपड़े पहने था। उसके हाथ में वही सूटकेस था जिसे उसने झाड़ पोछकर साफ कर लिया था।

'कोई इरादा है क्या?' रघुवीर ने प्यार से पूछा।

'मै?' 'नवजोत ने जैसे चकराते हुए कहा, 'मैं समझा नहीं। मैं तो भारत सेफ एंड एलमीरा कंपनी का सर्विस इंजीनियर हूं इस वक्त।'

उसकी इस बात से रघुवीर इतना खुश हुआ कि नवजोत को बियरऔर रोस्टेड काजू खाना पड़े। हालांकि वह नशीले पेय कभी नहीं पीता था।

नवजोत की रिहाई के एक सप्ताह बाद सरोजिनी नगर में बड़ी सफाई के साथ एक तिजोरी तोड़ दी गई और वारदात को अंजाम देने वाले का कोई सुराग नहीं लगा। उसके दो सप्ताह बाद एक पेटेंट की हुई अधिक उन्नत किस्म की सेंधमारो से सुरक्षित एक तिजोरी प्लास्टिक के डिब्बे की तरह खोल दी गई। फिर एक फाईनैंस कम्पनी के डबल लाक सेफ ने पंद्रह लाख के नोट उगल डाले। पुलिस ने सारी घटनाओं को मिलाकर देखा तो सेंधमारी के तरीके में एक ख़ास क़िस्म की समानता सामने आई और निष्कर्ष निकाला, 'नवजोत ने फिर से अपना धंधा शुरू कर दिया। अपनी अगली वारदात वह बहुत जल्दी करने की मूर्खता नहीं दिखाएगा।'

एस.ओ.जी को नवजोत की आदतों का पता था। लंबी छलांगें, जल्दी से बच निकलना, कोई गिरोह नहीं, और अच्छे समाज में उठना-बैठना। इन तौर- तरीकों के कारण नवजोत को सज़ा से बच निकलने में सफलता मिल जाती थी।

पुलिस से बचने के लिए नवजोत ने अपने को अंडरग्राउंड कर लिया था। उसके लिए ढाबे से एक लड़का खाना लेकर आया था।

नवजोत ने रोटियों से लिपटे अखबार में फाइनेंस कंपनी की सेंधमारी की ख़बर पढ़ी जिसे उसने अंजाम दिया था। साथ में फाइनेंस कंपनी के मालिक की पंखे से झूलती आत्महत्या की तस्वीर भी थी जो उसने पंद्रह लाख रुपए चोरी होने के ग़म में की थी।

नवजोत को तस्वीर ने विचलित कर दिया। ठीक ऐसी ही तस्वीर उसके पापा की अखबार में छपी थी, जब वह काॅलेज में पढ़ रहा था। उसके पापा की ज्वेलरी की दुकान थी जिसमें डकैती पड़ गई थी। पापा की मृत्यु से उसके परिवार की आर्थिक स्थिति ख़राब हो गई थी फलस्वरुप उसे पढ़ाई छोड़ने पड़ी थी। धन कमाने के लिए वह स्कॉलर से सेंधमार बन गया था। फाइनेंस कंपनी के मालिक की आत्महत्या ने उसे हत्यारा भी बना दिया था, जबकि उसका उद्देश्य किसी की जान लेना नहीं था।

एक छोटी सी कोठरी में करवट बदलते हुए उसे मां याद आने लगी। उसने अच्छे कपड़े पहने ओर घर के लिए निकल पड़ा। अगली दोपहर अपने कस्बे में पहुंच

चुका था।

वह शिवाजी मार्ग से गुज़र रहा था। बैंक के बाहर भीड़ के कारण जाम लगा था। भीड़ के बीच एक सफेद कपड़ो में औरत थी, जो बदहवासों की तरह हेल्प हेल्प चिल्ला रही थी। उसे वह आवाज़ अपनी काॅलेज की दोस्त नेहा की लगी। वह उसके पास गया। देखते ही वह उससे लिपटकर रोने लगी और बैंक में ले गई। उसने बताया, 'वह किसी काम से बैंक आई थी। उसके साथ उसका बेटा भी था। शैतानी करते-करते वह बैंक के सेफ रूम में चला गया और बंद हो गया। फिर आह भरते हुए कहा, 'इस बेचारे ने तो अपने पापा को देखा ही नहीं है। पापा की एक्सीडेंट में मृत्यु के बाद इसका जन्म हुआ था। यही मेरे जीने का सहारा था। मैनेजर का कहना है, बच्चे ने अंदर से कैश हैंडलिंग लॉक बंद कर लिया है, जिसे सेफ कंपनी का सर्विस इंजीनियर ही खोल सकता हैं। वह मुंबई से कल तक आ पाएगा, भगवान जाने क्या होगा?

मैंने उसे ढारस बंधाया, 'घबराओ नहीं मैं कुछ न कुछ करता हूं।' और पुरानी यादों में खो गया।

-कॉलेज के ऑडिटोरियम के दरवाज़े से निकलते समय मैंने अपने आप से कहा, 'इतनी सुंदर है वह बात करने का मौका मिल जाए, तो मज़ा आ जाए।' और बात करने की इरादे से मैंने अपनी ओर बढ़ती हुई लड़की की तरफ मुस्करा कर देखा। उसके चेहरे पर भी मुस्कराहट थी, मैं आपके पास आ ही रही थी।

'सचमुच, मुझे बहुत खुशी हुई मिस नेहा।' उसने वाक्य पूरा किया। गोष्टी में मुझे आपका व्याख्यान बहुत पसंद आया', फिर अचानक वह आत्मविभोर होकर बोली, 'मुझे इतना पसंद आया कि मैंने सोचा अगर में ख़ुद जाकर आपका अभिनंदन नहीं करती हूं, तो अपनी नज़रों में ही गिर जाऊंगी।'

मैं ज़रा झुक कर बोला, 'थैंकयू थैंकयू थैंकयू, मिस नेहा।... 'मैं गोरवान्वित हुआ। पर क्या मैं सचमुच इतना अच्छा बोला कि आपकी जैसी तेजस्वी लड़की को ख़ुद चलकर आना पड़ा मुझे बधाई देने।'

आप ज़रूर इतना अच्छा बोले होंगे, नहीं तो मैं इधर क्यों आती।' एक मुस्कराहट उसके होठों पर थी, 'आप कैसे आदमी है? जैसे कि आपको पता ही न हो कि आप कितना अच्छा बोले थे।'; 'सचमुच पता नहीं है मिस नेहा। बहुत ही भुलक्कड़ हूं।'

'अगर यही मैं बता सकती, तो बधाई स्वीकार कर रही होती, दे न रही होती। पर वह क्या वाक्य था -व्हाट ग्रैमर इज़ लैंगुएज ...?'

हां, हां, वह तो ... मैंने चुटकी बजाते हुए कहा था, 'वडर्स आर टू थॉट व्हाट, ग्रैमर इज़ टू लैंगुएज ...; ( विचारों के लिए जो महत्व शब्दों का है, वही महत्व भाषा के लिए व्याकरण का है।) पर नेहा जी यह उक्ति मेरी नहीं है कहीं पढ़ी थी मैंने ।'

'पढ़ी हुई ही सही, पर आपने इसका प्रयोग बहुत अच्छा किया। आपकी तो आदत है किसी चीज़ का भी यश लेना ही नहीं चाहते। माथुर सर कह रहे थे।

'क्या कह रहे थे माथुर सर।'

यही की नवजोत बिल्कुल अभिमानी नहीं है। आपने कोई निबंध बहुत अच्छा लिखा था, किंतु उसका भी यश आप लेने को तैयार न हुए।

'मैंने तो केवल उसे उदघृत कर दिया था और सच भी यही था मिस नेहा।'

'मिस- विस जाने दीजिए नवजोत जी, सिर्फ नेहा ही अच्छा लगता है।' मैं कुछ झुका फिर मन में गुदगुदी महसूस करते हुए बोला मैं झूठ नहीं कह रहा हूं। मुझे मसख़री करने की आदत है। ...इस तरह मेरी और नेहा की मित्रता गाढ़ी होती गई और थोड़े दिनों में कॉलेज में चर्चा का विषय बन गई। काॅलेज में नई-नई आई धी नेहा । जो रूप तथा सौंदर्य से सबके आकर्षण का केंद्र थी। मैं अपनी चपलता और होशियारी के लिए सबका प्रिय था ही, पर मैं इस रूपवती सुंदरी का भी प्रिय हो गया, यह किसी को भी पसंद नहीं आया।

हमारी दोस्ती को कुछ ही दिन गुज़रे थे कि घर में डकैती पड़ गई जिसके ग़म में पापा ने आत्महत्या कर ली सब कुछ बिखर गया था। एक दिन मैंने नेेहा से कहा कि मैं तुमसे कुछ कहूं।

हां, हा वह उत्साह पूर्वक बोली, 'मैं तो इसी का इंतिजार कर रही थी, हर रोज़ हर घड़ी, हर पल।'

'मुझे जो कहना था वह कहूंगा, पर पहले एक सवाल पूछूं? ... तुम मेरी कितनी घनिष्ठ मित्र हो?' 'हूं ही।'

मैं अचकचाया, मैं दूर जा रहा हूं।'

' क्यों।'

'कमाने के लिए।' मैंने कहा।

'कहां जाओगे?'

' पता नहीं।'

बैंक बंद होने का समय हो चुका था। मैं बचपन से ही बेहद भावुक था। एक प्रश्न पर लगातार विचार कर रहा था, सेफ रूम का दरवाज़ा नाइट्रोग्लिसरीन के विस्फोट से खोला जा सकता है पर यह बड़ा जोखिम भरा है। इसमें बच्चा मर भी सकता है। दूसरी ओर विस्फोटक का प्रयोग करने पर मुझे आजीवन कारावास हो जाएगा, फिर मां का क्या होगा? मुझे कोई राह नहीं सूझी। मेरे दोनों और मीलो लंबी खाई थी। परेशान होकर मैं छोटी सी जगह में लगातार चहल- क़दमी करता रहा।

फिर मैंनेे नेहा को अपने बारे में सबकुछ बता दिया और नाइट्रोग्लिसरीन के विस्फोट से दरवाज़ा तोड़ने का सुझाव रखा। वह मेरे बारे में जान कर सकते में आ गई, कुछ देर विचार करती रही फिर मुझे दरवाज़ा खोलने की स्वीकृति दे दी।

उसके बाद मैंने बैंक मैनेजर के कमरे में बैठे हुए पुलिस कमिश्नर को बताया, 'मैं सेंधमार नवजोत हूं और दरवाज़ा विस्फोट से खोलने में सक्षम हूं। उन्होंने कहा, 'क्या मैं इस मेहरबानी का कारण जान सकता हूं?'

'इसकी मां काॅलेज में मेरी दोस्त रही है।'

कमिश्नर ने धीमे से कहा, 'एक्स प्रेमिका।'

फिर मैंने कमिश्नर से कहा, 'मेरा हृदय परवर्तित हो चुका है। मैं भविष्य में सेंधमारी नहीं करूंगा।' और सेंधमारी से कमाया धन उन्हें सौप दिया।

कमिश्नर ने कहा गुड लकऔर ऑपरेशन की कमान संभाल ली।

मैं दरवाज़ा खोलने में लग गया। अपने आधुनिक बरमें से तिजोरी के फौलादी दरवाज़े में एक छेद किया। हलके पीले रंग के गाढ़े से तेल की एक बूंद को सिरिंज से उस छेद में पहुंचा दिया। एक हल्के विस्फोट के साथ दरवाज़ा खुल गया पर मैं घायल हो गया था।

विस्फोट के समय, मैं चिंतित था, 'दरवाज़ा टूट कर बच्चे पर न गिर जाए।' अत: मैंने दरवाज़े को पकड़ लिया था। यही मेरे घायल होने का कारण था। मेरे शरीर से रक्त रिसाव बढ़ रहा था जिससे मेरी सांस थमने लगीं। हज़ारों की भीड़ मेरे स्वागत के लिए जमा थी। किसी ने मुझे नवजोत कहकर पुकारा। मुझे वह आवाज़ नेहा की लगी। मैंने आंखें खोली। मेरे हाथ नेहा के हाथों में थे और वह मेरी ज़िंदगी के लिए दुआ मांग रही थी। उसके पास में उसका बच्चा बैठा था जिसने ण पापा कहकर मुझे पुकारा और मेरी थमती सांसे फिर से चलने लगी।

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